रमेश चंद्र शाह

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रमेश चंद्र शाह (अंग्रेज़ी: Ramesh Chandra Shah, जन्म- 15 नवम्बर, 1937, अल्मोड़ा, उत्तराखंड) हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार, नाटककार, निबंधकार तथा कुशल समालोचक हैं। साल 2015 का साहित्य अकादमी पुरस्कार आपको मिला है। साल 2001 में उन्हें प्रतिष्ठित 'व्यास सम्मान' से भी सम्मानित किया गया था।

परिचय

लेखक रमेश चंद्र शाह का उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 15 नवम्बर सन 1937 को हुआ था। 2015 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मशहूर साहित्यकार डॉ. रमेश चंद्र शाह को मिला है। रमेश चंद्र शाह 'गोबर गणेश', 'किस्सा गुश्लाम', 'पूर्वा पर', 'चाक पर गणेश' और 'विनायक' जैसे तमाम उपन्यासों से अपनी पहचान बना चुके हैं। उन्होंने कई मशहूर काव्य, कहानी संग्रह, यात्रा वृतांत लिखे हैं। उनको उनके 'विनायक' उपन्यास के लिए 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' दिया गया।

38 साल पहले जब उनका उपन्यास 'गोबर गणेश' प्रकाशित हुआ था, तब पहली बार उन्हें साहित्य अकादमी दिये जाने की चर्चा हुई थी। 78 किताबें लिखने के बाद कहीं जा कर 'विनायक' उपन्यास को साहित्य अकादमी के लायक समझा गया। इस दौरान रमेश चंद्र शाह ने 78 किताबें लिखीं। शाह कहते हैं, "मेरी किताबें कम से कम छह अवसरों पर साहित्य अकादमी के लिये शार्टलिस्ट की गईं, लेकिन मुझे सुख केवल इस बात का है कि जिस 'विनायक' उपन्यास के लिये अंतत: मुझे साहित्य अकादमी मिला, वह मेरे पहले उपन्यास 'गोबर गणेश' का ही विस्तार है।"[1]

मुख्य कृतियाँ

उपन्यास : गोबर गणेश, किस्सा गुलाम, पूर्वा पर, आखिरी दिन, पुनर्वास तथा आप कहीं नहीं रहते विभूति बाबू।[2]

कहानी संग्रह : जंगल में आग, मुहल्ले का रावण, मानपत्र, थिएटर, प्रतिनिधि कहानियां[3]

कविता संग्रह : कछुए की पीठ पर, हरिश्चंद्र आओ, नदी भागती आई, प्यारे मुचकुंद को, देखते हैं शब्द भी अपना समय, चाक पर समय[4]

निबंध संग्रह : रचना के बदले, शैतान के बहाने, आडू का पेड़, पढ़ते-पढ़ते, स्वधर्म और कालगति तथा हिंदी की दुनिया में।

यात्रा संस्मरण : एक लंबी छांह।

साक्षात्कार : मेरे साक्षात्कार।

समालोचना : छायावाद की प्रासंगिकता, समानांतर, सबद निरंतर, वागर्थ, भूलने के विरुद्ध, वागर्थ का वैभव, जयशंकर प्रसाद, आलोचना का पक्ष, समय संवादी।

नाटक : मारा जाई खुसरो, मटियाबुर्ज।

अनुवाद : छंद और पक्षी (कैथलीन रैन की कविताओं का हिंदी रूपांतर) अंग्रेज़ी में।

आत्म ज्ञान

अपने लिखे में दर्शन और चिंतन के विस्तार को लेकर रमेश चंद्र शाह के पास अपने तर्क हैं, "आम हिंदुस्तानी के लिए ज्ञान का मतलब आत्मज्ञान होता है, नॉलेज इंडस्ट्री नहीं। सामान्य से सामान्य आदमी में भी दार्शनिक संस्कार होता ही है। वही मुझमें भी है। जीवन के स्वाभाविक दिशा, परिणति के रूप में वह रचनाओं में भी आएगा ही।" रमेश चंद्र शाह उम्र के इस पड़ाव में आ कर भी थके नहीं हैं। हर रोज़ लिखना, जीवन के दूसरे काम की तरह उनकी दिनचर्या में शामिल है, क्योंकि शाह मानते हैं कि अभी उनकी श्रेष्ठतम रचना का लिखा जाना बचा हुआ है।[1]

सम्मान

  1. शिखर सम्मान
  2. भारतीय परिषद एवं मध्य प्रदेश साहित्य परिषद से पुरस्कृत
  3. महावीर प्रसाद द्विवेदी पुरस्कार
  4. व्यास सम्मान, 2001


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 श्रेष्ठतम रचना अभी बाक़ी (हिंदी) bbc.com। अभिगमन तिथि: 12 सितम्बर, 2021।
  2. रमेश चंद्र शाह (हिंदी) hindisamay.com। अभिगमन तिथि: 12 सितम्बर, 2021।
  3. राजकमल पेपर बैक
  4. प्रतिनिधि कविताओं का संचयन, वाग्देवी पाकेट बुक्स

बाहरी कड़ियाँ

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