कंबन: Difference between revisions
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कंबन का कुछ समय विद्वान बारहवीं शताब्दी और कुछ नवीं शताब्दी मानते हैं। कंबन का वास्तविक नाम का पता नहीं है। कंबन उनका उपनाम था। कंबन के माता-पिता का उनकी बाल्यावस्था में ही देहांत हो गया। अनाथ बालक को पालने वाला कोई न था। उनके दूर के एक संबंधी अर्काट ज़िले के सदैयप्प वल्लल नामक धनी किसान के दरवाजे पर चुपचाप छोड़ आए। दयालु वल्लल ने बालक को अपने बच्चों की देख-रेख के काम के लिए अपने घर में रख लिया। जब उन्होंने देखा कि उनके बच्चों के साथ कंबन भी पढ़ने में रुचि लेने लगा है तो सदैयप्प वल्लल ने कंबन की शिक्षा का भी पूरा प्रबंध कर दिया। इस प्रकार कंबन को विद्या प्राप्त हुई और उनके अंदर से काव्य की प्रतिभा प्रस्फुटित हो गई। | कंबन का कुछ समय विद्वान बारहवीं शताब्दी और कुछ नवीं शताब्दी मानते हैं। कंबन का वास्तविक नाम का पता नहीं है। कंबन उनका उपनाम था। कंबन के माता-पिता का उनकी बाल्यावस्था में ही देहांत हो गया। अनाथ बालक को पालने वाला कोई न था। उनके दूर के एक संबंधी अर्काट ज़िले के सदैयप्प वल्लल नामक धनी किसान के दरवाजे पर चुपचाप छोड़ आए। दयालु वल्लल ने बालक को अपने बच्चों की देख-रेख के काम के लिए अपने घर में रख लिया। जब उन्होंने देखा कि उनके बच्चों के साथ कंबन भी पढ़ने में रुचि लेने लगा है तो सदैयप्प वल्लल ने कंबन की शिक्षा का भी पूरा प्रबंध कर दिया। इस प्रकार कंबन को विद्या प्राप्त हुई और उनके अंदर से काव्य की प्रतिभा प्रस्फुटित हो गई। | ||
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सदैयप्प वल्लल का चोल राजा के दरबार में प्रवेश था। कंबन भी उनके साथ जाने लगा। एक दिन कंबन की कविता से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें अपने दरबार का कवि बना लिया। राजा ने और वल्लल ने कंबन की काव्य प्रतिभा देखकर उनसे आग्रह किया कि वे [[रामायण|वाल्मीकि रामायण]] के आधार पर तमिल भाषा में [[राम]] काव्य की रचना करें। इस पर कंबन ने तमिल भाषा में रचना कर डाली। यही रचना आज भी ‘कंबरामायण’ के नाम से प्रसिद्ध है। कंबरामायण में 10 हज़ार 50 पद हैं और यह बालकांड से युद्धकांड तक 6 कांडों में विभक्त है। उनके रचे हुए ग्यारह ग्रंथ और हैं, पर सर्वाधिक प्रसिद्ध ‘कंबरामायण’ ही है। इसमें कवि ने द्रविण सभ्यता का वर्णन विशेष रूप से किया है। कवि-सम्राट के सम्मान से विभूषित कंबन को तमिल भाषा का [[वाल्मीकि]] भी कहा जाता है। एक मत के अनुसार यह रचना 1178 ई. में पूरी हुई थी। | सदैयप्प वल्लल का चोल राजा के दरबार में प्रवेश था। कंबन भी उनके साथ जाने लगा। एक दिन कंबन की कविता से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें अपने दरबार का कवि बना लिया। राजा ने और वल्लल ने कंबन की काव्य प्रतिभा देखकर उनसे आग्रह किया कि वे [[रामायण|वाल्मीकि रामायण]] के आधार पर तमिल भाषा में [[राम]] काव्य की रचना करें। इस पर कंबन ने तमिल भाषा में रचना कर डाली। यही रचना आज भी ‘कंबरामायण’ के नाम से प्रसिद्ध है। कंबरामायण में 10 हज़ार 50 पद हैं और यह बालकांड से युद्धकांड तक 6 कांडों में विभक्त है। उनके रचे हुए ग्यारह ग्रंथ और हैं, पर सर्वाधिक प्रसिद्ध ‘कंबरामायण’ ही है। इसमें कवि ने द्रविण सभ्यता का वर्णन विशेष रूप से किया है। कवि-सम्राट के सम्मान से विभूषित कंबन को तमिल भाषा का [[वाल्मीकि]] भी कहा जाता है। एक मत के अनुसार यह रचना 1178 ई. में पूरी हुई थी। | ||
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तमिल भाषा के प्रसिद्ध ग्रंथ कंबरामायण के रचियता कंबन का जन्म तमिलनाडु के चोल राज्य में तिरुवलुंपूर नामक गांव में हुआ था।
जीवन परिचय
कंबन का कुछ समय विद्वान बारहवीं शताब्दी और कुछ नवीं शताब्दी मानते हैं। कंबन का वास्तविक नाम का पता नहीं है। कंबन उनका उपनाम था। कंबन के माता-पिता का उनकी बाल्यावस्था में ही देहांत हो गया। अनाथ बालक को पालने वाला कोई न था। उनके दूर के एक संबंधी अर्काट ज़िले के सदैयप्प वल्लल नामक धनी किसान के दरवाजे पर चुपचाप छोड़ आए। दयालु वल्लल ने बालक को अपने बच्चों की देख-रेख के काम के लिए अपने घर में रख लिया। जब उन्होंने देखा कि उनके बच्चों के साथ कंबन भी पढ़ने में रुचि लेने लगा है तो सदैयप्प वल्लल ने कंबन की शिक्षा का भी पूरा प्रबंध कर दिया। इस प्रकार कंबन को विद्या प्राप्त हुई और उनके अंदर से काव्य की प्रतिभा प्रस्फुटित हो गई।
काव्य रचना
सदैयप्प वल्लल का चोल राजा के दरबार में प्रवेश था। कंबन भी उनके साथ जाने लगा। एक दिन कंबन की कविता से प्रभावित होकर राजा ने उन्हें अपने दरबार का कवि बना लिया। राजा ने और वल्लल ने कंबन की काव्य प्रतिभा देखकर उनसे आग्रह किया कि वे वाल्मीकि रामायण के आधार पर तमिल भाषा में राम काव्य की रचना करें। इस पर कंबन ने तमिल भाषा में रचना कर डाली। यही रचना आज भी ‘कंबरामायण’ के नाम से प्रसिद्ध है। कंबरामायण में 10 हज़ार 50 पद हैं और यह बालकांड से युद्धकांड तक 6 कांडों में विभक्त है। उनके रचे हुए ग्यारह ग्रंथ और हैं, पर सर्वाधिक प्रसिद्ध ‘कंबरामायण’ ही है। इसमें कवि ने द्रविण सभ्यता का वर्णन विशेष रूप से किया है। कवि-सम्राट के सम्मान से विभूषित कंबन को तमिल भाषा का वाल्मीकि भी कहा जाता है। एक मत के अनुसार यह रचना 1178 ई. में पूरी हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
लीलाधर, शर्मा भारतीय चरित कोश (हिन्दी)। भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: शिक्षा भारती, 123।
बाहरी कड़ियाँ
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