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नर्मद (जन्म- सूरत 24 अगस्त, 1833 मृत्यु-1886) गुजराती भाषा के युग प्रवर्तक माने जाने वाले रचनाकार थे।
जीवन परिचय
गुजराती भाषा के युग प्रवर्तक माने जाने वाले रचनाकार नर्मद का जन्म सूरत बड़नभरा नागर ब्राह्मण परिवार में 24 अगस्त, 1833 ई. को हुआ था। नर्मद के पिता लालशंकर मुम्बई में मसिजीवी होकर निवास करते थे। नर्मद की माध्यमिक शिक्षा वहीं के एल्फिंस्टन इन्स्टिट्यूट में संपन्न हुई। उनका पूरा नाम नर्मदाशंकर लाल शंकर दवे था। पर रचनाएँ उन्होंने 'नर्मद' नाम से की हैं। उस समय की प्रथा के अनुसार 11 वर्ष की उम्र में ही नर्मद का विवाह हो गया था। सूरत की प्रारंभिक शिक्षा के बाद जब वे मुम्बई में अध्ययन कर रहे थे तभी अपने श्वसुर के आदेश पर गृहस्थी संभालने के लिए उन्हें वापस आकर सूरत में 15 रुपए मासिक वेतन की अध्यापकी स्वीकार करनी पड़ी। जिस प्रकार हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल के आरंभिक अंश को 'भारतेंदु युग' संज्ञा दी जाती है, उसी प्रकार गुजराती में नवीन चेतना के प्रथम कालखंड को 'नर्मद युग' कहा जाता है। हरिश्चंद्र की तरह ही उनकी प्रतिभा भी सर्वतोमुखी थी। उन्होंने गुजराती साहित्य को गद्य, पद्य सभी दिशाओं में समृद्धि प्रदान की, किंतु काव्य के क्षेत्र में उनका स्थान विशेष है। लगभग सभ प्रचलित विषयों पर उन्होंने काव्यरचना की। महाकाव्य और महाछंदों के स्वप्नदर्शी कवि नर्मद का व्यक्तित्व गुजराती साहित्य में अद्वितीय है। गुजरात के प्रख्यात साहित्यकार मुंशी ने नर्मद को 'अर्वाचीनों में आद्य' कहा है।
कार्यक्षेत्र
नर्मद ने 22 वर्ष की उम्र में पहली कविता लिखी। तब साहित्य के विभिन्न अंगों को संमृद्ध करने का क्रम आरंभ हो गया। कुछ समय तक उन्होंने मुम्बई में अध्यापक का काम किया, पर वहाँ का वातावरण अनुकूल न पाकर उसे त्याग दिया और 23 नवंबर, 1858 को अपनी कलम को सम्बोधित करके बोले-लेखनी अब में तेरी गोद में हूँ। 24 वर्षों तक वे पूरी तरह से साहित्य सेवा में ही लगे रहे। पहले उनकी रचना के विषय ज्ञान भक्ति वैराग्य आदि हुआ करते थे।
रचनाएँ
नर्मद ने नए विषयों पर पद्य और गद्य में रचनाएँ कीं। प्रकृति स्वतंत्रता आदि विषयों पर रचनाएँ आरंभ करने का श्रेय नर्मद को जाता है। प्रथम गद्यकार के रूप में उन्होंने निबंध, चरित्र लेखन, नाटक, इतिहास आदि सभी विधाओं की रचनाओं द्वारा गुजराती साहित्य का भंडार भरा।
कृतियाँ
- गद्य
- नर्मगद्य
- नर्मकोश
- नर्मकथाकोश
- धर्मविचार
- जूनृं नर्मगद्य
- नाटक
- सारशाकुंतल
- रामजानकी दर्शन
- द्वौपदी दर्शन
- बालकृष्ण विजय
- कृष्णकुमारी
- कविता
- नर्म कविता
- हिंदुओनी पडती
- आत्मकथा
- मारी हकीकत
'मारी हकीकत' नामक उनकी आत्मकथा को गुजराती की पहली आत्मकथा होने का गौरव प्राप्त है। उनकी अधिकांश कविताएँ 1855 और 1867 के बीच लिखी गईं। गुजराती के प्रथम कोश का निर्माण उन्होंने बहुत आर्थिक हानि उठाकर भी किया था।
समाज सुधारक
नर्मद एक समाज सुधारक भी थे उन्होंने 'बुद्धिवर्धक' सभा की स्थापना की थी। नर्मद जो कहते उस पर स्वयं भी अमल करते थे। उन्होंने एक विधवा से विवाह किया था और सामाजिक बुराइयों का विरोध करने के लिए 'दांडियो' नाम का एक पत्र निकाला। नर्मद को वीर तथा श्रृंगार के वर्णन में अधिक रुचि थी। नर्मद का अपना विशेष स्थान है और गुजराती साहित्य में उनके समय को 'नर्मद युग' के रूप में जाना जाता है।
मृत्यु
गुजराती साहित्य के अमूल्य रत्न नर्मद की मृत्यु 1886 ई. में हुई थी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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