भीष्म साहनी: Difference between revisions
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भीष्म साहनी का गद्य एक ऐसे गद्य का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत करता है जो जीवन के गद्य का एक ख़ास रंग और चमक लिए हुए है। उसकी शक्ति के स्रोत काव्य के उपकरणों से अधिक जीवन की जड़ों तक उनकी गहरी पहुँच है। भीष्म को कहीं भी [[भाषा]] को गढ़ने की ज़रुरत नही होती। सुडौल और खूब पक्की ईंट की खनक ही उनके गद्य की एकमात्र पहचान है।<ref name="हिन्दीकुंज" /> | भीष्म साहनी का गद्य एक ऐसे गद्य का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत करता है जो जीवन के गद्य का एक ख़ास रंग और चमक लिए हुए है। उसकी शक्ति के स्रोत काव्य के उपकरणों से अधिक जीवन की जड़ों तक उनकी गहरी पहुँच है। भीष्म को कहीं भी [[भाषा]] को गढ़ने की ज़रुरत नही होती। सुडौल और खूब पक्की ईंट की खनक ही उनके गद्य की एकमात्र पहचान है।<ref name="हिन्दीकुंज" /> |
Revision as of 06:45, 24 April 2011
भीष्म साहनी
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पूरा नाम | भीष्म साहनी |
जन्म | 8 अगस्त, 1915 ई. |
जन्म भूमि | रावलपिण्डी, भारत |
मृत्यु | 11 जुलाई, 2003 |
मृत्यु स्थान | दिल्ली |
पति/पत्नी | शीला जी |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | मेरी प्रिय कहानियाँ, झरोखे, तमस, बसन्ती, मायादास की माड़ी, हानुस, कबिरा खड़ा बाज़ार में, भाग्य रेखा, पहला पाठ, भटकती राख |
विषय | कहानी, उपन्यास, नाटक, अनुवाद |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत, पंजाबी |
विद्यालय | गवर्नमेंट कॉलेज (लाहौर), पंजाब यूनिवर्सिटी |
शिक्षा | एम.ए., पी.एच.डी. |
पुरस्कार-उपाधि | साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975), शिरोमणि लेखक सम्मान (पंजाब सरकार) (1975), लोटस पुरस्कार (अफ्रो-एशियन राइटर्स एसोसिएशन की ओर से 1970), सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1983), पद्म भूषण (1998) |
नागरिकता | भारतीय |
शैली | साधारण एवं व्यंगात्मक शैली |
अन्य जानकारी | भीष्म साहनी जी लोकगीतों और लोकजीवन के भी मर्मज्ञ थे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
भीष्म साहनी का जन्म 8 अगस्त, 1915 ई. को रावलपिण्डी, भारत में हुआ था। इनको हिन्दी साहित्य में प्रेमचंद की परंपरा का अग्रणी लेखक माना जाता है। यह आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रमुख स्तंभों में से थे। प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता बलराज साहनी इनके भाई थे तथा इनके पिता अपने समय के प्रसिद्ध समाज -सेवी थे। पिता के व्यक्तित्व की छाप भीष्म पर भी पड़ी। इनकी अध्ययन में भी बड़ी रूचि थी।[1]
शिक्षा
भीष्म साहनी की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही हिन्दी व संस्कृत में हुई। इन्होंने स्कूल में उर्दू व अंग्रेज़ी की शिक्षा प्राप्त करने के बाद 1937 में गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर से अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. और 1958 में पंजाब युनिवर्सिटी से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वर्तमान समय में प्रगतिशील कथाकारों में साहनी जी का प्रमुख स्थान है।
कार्यक्षेत्र
साहनी जी ने बँटवारे से पूर्व व्यापार किया और इसके साथ वे अध्यापन का भी काम करते रहे। तदनन्तर इन्होंने पत्रकारिता एवं इप्टा नामक मण्डली में अभिनय का कार्य किया। साहनी जी फ़िल्म जगत में भाग्य आजमाने के लिए बम्बई गये, जहाँ काम न मिलने के कारण इनको बेकारी का जीवन व्यतीत करना पड़ा। इन्होंने वापस आकर पुन: अम्बाला के एक कॉलेज में अध्यापन (खालसा कॉलेज अमृतसर में) के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में स्थायी रूप से कार्य किया। इस बीच इन्होंने लगभग 1957 से 1963 तक विदेशी भाषा प्रकाशन गृह मास्को में आनुवादक के रूप में बिताये। यहाँ साहनी जी ने 2 दर्जन के क़रीब रशियन भाषायी किताबें टालस्टॉय, आस्ट्रोवस्की, औतमाटोव की किताबों का हिन्दी में रूपांतर किया। साहनी जी ने 1965 से 1967 तक "नई कहानियाँ" का सम्पादन किया। साथ ही इनके प्रगतिशील लेखक संघ तथा अफ़्रो एशियाई लेखक संघ से सम्बद्ध रहे। यह 1993 से 1997 तक साहित्य अकादमी एक्जिक्यूटिव कमेटी के सदस्य रहे।
कृतियाँ
साहनी जी की मुख्य कृतियाँ हैं-
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विचारधारा
भीष्म साहनी जी को प्रेमचंद की परम्परा का लेखक माना जाता है। भीष्म जी की कहानियाँ सामाजिक यथार्थ की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं। उन्होंने पूरी जीवन्तता और गतिमयता के साथ खुली और फैली हुई जिंदगी को अंकित किया है। साहनी जी मानवीय मूल्यों के बड़े हिमायती थे, उन्होंने विचारधारा को अपने साहित्य पर कभी हावी नही होने दिया। वामपंथी विचारधारा के साथ जुड़े होने के साथ वे मानवीय मूल्यों को कभी ओझल नही होने देते। इस बात का उदाहरण उनके प्रसिद्ध उपन्यास 'तमस' से लिया जा सकता है।[1]
गद्य
भीष्म साहनी का गद्य एक ऐसे गद्य का उदाहरण हमारे सामने प्रस्तुत करता है जो जीवन के गद्य का एक ख़ास रंग और चमक लिए हुए है। उसकी शक्ति के स्रोत काव्य के उपकरणों से अधिक जीवन की जड़ों तक उनकी गहरी पहुँच है। भीष्म को कहीं भी भाषा को गढ़ने की ज़रुरत नही होती। सुडौल और खूब पक्की ईंट की खनक ही उनके गद्य की एकमात्र पहचान है।[1]
भाषा
भीष्म साहनी हिन्दी और अंग्रेज़ी के अलावा उर्दू, संस्कृत, रूसी और पंजाबी भाषाओं के अच्छे जानकार थे।[2]
शैली
भीष्म साहनी जी ने साधारण एवं व्यंगात्मक शैली का प्रयोग कर अपनी रचनाओं को जनमानस के निकट पहुँचा दिया।
धर्मनिरपेक्षता
भीष्म साहनी जी मूलत: प्रतिबद्ध रचनाकार थे। उन्होंने कुछ मूल्यों के साथ साहित्य रचा। साहनी जी बेहद सादगी पसंद रचनाकार थे। साहनी जी ने जीवन में हमेशा धर्मनिरपेक्षता को महत्व दिया और उनका धर्मनिरपेक्ष नजरिया उनके साहित्य में भी बखूबी झलकता है। "अमृतसर आ गया" जैसी उनकी कहानियाँ शिल्प ही नहीं अभिव्यक्ति की दृष्टि से काफ़ी आकर्षित करती हैं।[3]
लोकगीतों और लोकजीवन के मर्मज्ञ
भीष्म साहनी सादगी पसंद रचनाकार थे। वरिष्ठ कहानीकार एवं ‘नया ज्ञानोदय’ पत्रिका के संपादक रवीन्द्र कालिया के अनुसार साहनी अपनी पत्नी के साथ इलाहाबाद में इनके घर पर रूके थे। इस दौरान साहित्यिक चर्चा के अलावा उन्होंने तमाम पंजाबी लोकगीत सुनाए। इससे पता चलता है कि साहनी लोकगीतों और लोकजीवन के भी मर्मज्ञ थे।[2]
थिएटर
भीष्म साहनी जी थिएटर की दुनिया से भी नज़दीक से जुड़े रहे और उन्होंने इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन इप्टा में काम करना शुरू किया जहाँ उन्हें बड़े भाई बलराज साहनी का सहयोग मिली। भीष्म साहनी ने मशहूर नाटक भूत गाड़ी का निर्देशन भी किया जिसके मंचन की ज़िम्मेदारी ख़्वाजा अहमद अब्बास ने ली थी।[3]
पुरस्कार
भीष्म साहनी जी को "तमस" नामक कृति पर साहित्य अकादमी पुरस्कार (1975) से सम्मानित किया गया। उन्हें शिरोमणि लेखक सम्मान (पंजाब सरकार) (1975), लोटस पुरस्कार (अफ्रो-एशियन राइटर्स असोसिएशन की ओर से 1970), सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार (1983) और पद्म भूषण (1998) से सम्मानित किया गया।
मृत्यु
प्रेमचंद की परंपरा को आगे बढ़ाने वाले इस लेखक का निधन 11 जुलाई, 2003 को दिल्ली में हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़िया
संबंधित लेख
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