शिवानी: Difference between revisions

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शिवानी के लेखन तथा व्यक्तित्व में उदारवादिता और परम्परानिष्ठता का जो अद्भुत मेल है, उसकी जड़ें, इसी विविधतापूर्ण जीवन में थीं। शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलनेवाली ‘नटखट’ नामक एक बाल पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] शिवानी को ‘गोरा’ पुकारते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर की सलाह को कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर शिवानी ने [[हिन्दी]] में लिखना प्रारम्भ किया। ‘शिवानी’ की एक लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ [[1951]] में ‘धर्मयुग’ में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक चलता रहा। उनकी अन्तिम दो रचनाएँ ‘सुनहुँ तात यह अकथ कहानी’ तथा ‘सोने दे’ उनके विलक्षण जीवन पर आधारित आत्मवृत्तात्मक आख्यान हैं।<ref name="भारतीय साहित्य संग्रह"/>
शिवानी के लेखन तथा व्यक्तित्व में उदारवादिता और परम्परानिष्ठता का जो अद्भुत मेल है, उसकी जड़ें, इसी विविधतापूर्ण जीवन में थीं। शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलनेवाली ‘नटखट’ नामक एक बाल पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव [[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] शिवानी को ‘गोरा’ पुकारते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर की सलाह को कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर शिवानी ने [[हिन्दी]] में लिखना प्रारम्भ किया। ‘शिवानी’ की एक लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ [[1951]] में ‘धर्मयुग’ में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक चलता रहा। उनकी अन्तिम दो रचनाएँ ‘सुनहुँ तात यह अकथ कहानी’ तथा ‘सोने दे’ उनके विलक्षण जीवन पर आधारित आत्मवृत्तात्मक आख्यान हैं।<ref name="भारतीय साहित्य संग्रह"/>
==प्रमुख रचनाएँ==
==प्रमुख रचनाएँ==
शिवानी की 'आमादेर शांति निकेतन' और 'स्मृति कलश' इस पृष्ठभूमि पर लिखी गई श्रेष्ठ पुस्तकें हैं। 'कृष्णकली' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसके दस से भी अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं। उपन्यास, कहानी, व्यक्तिचित्र, बाल उपन्यास और संस्मरणों के अतिरिक्त, लखनऊ से निकलनेवाले पत्र ‘स्वतन्त्र [[भारत]]’ के लिए ‘शिवानी’ ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा।<ref name="अभिव्यक्ति">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/s/shivani.htm |title=शिवानी |accessmonthday=[[4 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम  |publisher=अभिव्यक्ति |language=[[हिन्दी]]}}
शिवानी की 'आमादेर शांति निकेतन' और 'स्मृति कलश' इस पृष्ठभूमि पर लिखी गई श्रेष्ठ पुस्तकें हैं। 'कृष्णकली' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसके दस से भी अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।<ref name="अभिव्यक्ति">{{cite web |url=http://www.abhivyakti-hindi.org/lekhak/s/shivani.htm |title=शिवानी |accessmonthday=[[4 अप्रैल]] |accessyear=[[2011]] |last= |first= |authorlink= |format=एच टी एम  |publisher=अभिव्यक्ति |language=[[हिन्दी]]}}
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==कृतियाँ==
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;उपन्यास
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Revision as of 07:52, 24 April 2011

thumb|250px|शिवानी
Shivani
गौरा पंत ‘शिवानी’ (जन्म- 17 अक्टूबर 1923; मृत्यु- 21 मार्च 2003) हिन्दी की सुप्रसिद्ध उपन्यासकार थीं।

जीवन परिचय

शिवानी आधुनिक अग्रगामी विचारों की समर्थक थीं। शिवानी का जन्म विजयादशमी के दिन गुजरात के पास राजकोट शहर में हुआ था। शिवानी के पिता श्री अश्विनीकुमार पाण्डे राजकोट में स्थित राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल थे, जो कालांतर में माणबदर और रामपुर की रियासतों में दीवान भी रहे। शिवानी के माता और पिता दोनों ही विद्वान संगीत प्रेमी और कई भाषाओं के ज्ञाता थे। शिवानी ने पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन से बी.ए. किया। साहित्य और संगीत के प्रति एक गहरा रुझान ‘शिवानी’ को अपने माता और पिता से ही मिला। शिवानी जी के पितामह संस्कृत के प्रकांड विद्वान पंडित हरिराम पाण्डे, जो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में धर्मोपदेशक थे। वह परम्परानिष्ठ और कट्टर सनातनी थे। महामना मदनमोहन मालवीय से उनकी गहरी मित्रता थी। वे प्रायः अल्मोड़ा तथा बनारस में रहते थे, अतः शिवानी का बचपन अपनी बड़ी बहन तथा भाई के साथ दादाजी की छत्रछाया में उक्त स्थानों पर बीता। शिवानी की किशोरावस्था शान्ति निकेतन में और युवावस्था अपने शिक्षाविद पति के साथ उत्तर प्रदेश के विभिन्न भागों में बीती। शिवानी के पति के असामयिक निधन के बाद वे लम्बे समय तक लखनऊ में रहीं और अन्तिम समय में दिल्ली में अपनी बेटियों तथा अमेरिका में बसे पुत्र के परिवार के साथ रहीं[1]

कार्यक्षेत्र

शिवानी का कार्यक्षेत्र मूलरूप से उत्तर प्रदेश के कुमाऊँ क्षेत्र की निवासी के रूप में बीता। शिवानी की शिक्षा शांति निकेतन में और जीवन का अधिकांश समय शिवानी ने लखनऊ में बिताया। शिवानी की माँ गुजरात की विदुषी, पिता अंग्रेज़ी के लेखक थे। पहाड़ी पृष्ठभूमि और गुरुदेव की शरण में शिक्षा ने शिवानी की भाषा और लेखन को बहुयामी बनाया। बांग्ला साहित्य और संस्कृति का शिवानी पर गहरा प्रभाव पड़ा।

लेखन की शुरूआत

शिवानी के लेखन तथा व्यक्तित्व में उदारवादिता और परम्परानिष्ठता का जो अद्भुत मेल है, उसकी जड़ें, इसी विविधतापूर्ण जीवन में थीं। शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलनेवाली ‘नटखट’ नामक एक बाल पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर शिवानी को ‘गोरा’ पुकारते थे। रवीन्द्रनाथ टैगोर की सलाह को कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर शिवानी ने हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया। ‘शिवानी’ की एक लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ 1951 में ‘धर्मयुग’ में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक चलता रहा। उनकी अन्तिम दो रचनाएँ ‘सुनहुँ तात यह अकथ कहानी’ तथा ‘सोने दे’ उनके विलक्षण जीवन पर आधारित आत्मवृत्तात्मक आख्यान हैं।[1]

प्रमुख रचनाएँ

शिवानी की 'आमादेर शांति निकेतन' और 'स्मृति कलश' इस पृष्ठभूमि पर लिखी गई श्रेष्ठ पुस्तकें हैं। 'कृष्णकली' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। इसके दस से भी अधिक संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं।[2] उपन्यास, कहानी, व्यक्तिचित्र, बाल उपन्यास और संस्मरणों के अतिरिक्त, लखनऊ से निकलनेवाले पत्र ‘स्वतन्त्र भारत’ के लिए ‘शिवानी’ ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा।[3]

कृतियाँ

उपन्यास
  • कृष्णकली
  • कालिंदी
  • अतिथि
  • पूतों वाली
  • चल खुसरों घर आपने
  • श्मशान चंपा
  • मायापुरी
  • कैंजा
  • गेंदा
  • भैरवी
  • स्वयंसिद्धा
  • विषकन्या
  • रति विलाप
  • आकाश
कहानी संग्रह
  • शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ
  • शिवानी की मशहूर कहानियाँ
  • झरोखा, मृण्माला की हँसी
संस्मरण
  • अमादेर शांति निकेतन
  • समृति कलश
  • वातायन
  • जालक
यात्रा विवरण
  • चरैवैति
  • यात्रिक
आत्मकथ्य
  • सुनहुँ तात यह अमर कहानी
धारावाहिक
  • 'सुरंगमा'
  • 'रतिविलाप',
  • 'मेरा बेटा'
  • 'तीसरा बेटा'[2]

पुरस्कार

1982 में शिवानी जी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से अलंकृत किया गया।

मृत्यु

शिवानी का 21 मार्च, 2003 को दिल्ली में 79 वर्ष की आयु में निधन हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कस्तूरी मृग (हिन्दी) (पी.एच.पी) भारतीय साहित्य संग्रह। अभिगमन तिथि: 4 अप्रैल, 2011
  2. 2.0 2.1 शिवानी (हिन्दी) (एच टी एम) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 4 अप्रैल, 2011
  3. सुयाल, सुनील। श्रद्धांजलि शिवानी "गौरा पंत- हिन्दी साहित्य का एक चमकता सितारा (हिन्दी) (एच टी एम) पुण्य भूमि-भारत। अभिगमन तिथि: 4 अप्रैल, 2011

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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