डॉ. तुलसीराम: Difference between revisions

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==परिचय==
==परिचय==
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==शिक्षा==
==शिक्षा==
शुरुआती तालीम आजमगढ़ से लेने के बाद डॉ. तुलसीरामकी ज़िदगीं के दूसरे अध्याय की शुरुआत [[बनारस]] से हुई। बचपन से किताबों के शौकीन डॉ. तुलसीराम जब मार्क्सवाद के संपर्क में आये तो उन्हें इससे बहुत संबल और साहस मिला। बनारस आने के बाद डॉ. तुलसीराम की जान-पहचान कुछ लेखकों से हुई और अपनी ज़िदगी के प्रेरणा रहे [[भीमराव अंबेडकर|डॉ. भीमराव अंबेडकर]] की रचनाओं पर अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। '[[बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय|बनारस विश्वविद्यालय]]' से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद वे [[दिल्ली]] आये और '[[जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय]]' में एक प्रोफ़ेसर के रूप में काम किया।<ref>{{cite web |url=http://rstv.nic.in/%E0%A4%A1%E0%A5%89-%E0%A4%A4%E0%A5%81%E0%A4%B2%E0%A4%B8%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AE%E0%A4%83-%E0%A4%AE%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BE.html |title=डॉ तुलसीरामः मणिकर्णिका के भगीरथ का अवसान |accessmonthday= 02 नवम्बर|accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=rstv.nic.in |language=हिंदी}}</ref>
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==लेखन कार्य==
==लेखन कार्य==
डॉ. तुलसीराम ने अपने लेखन में दलितों के तमाम कष्टों, यातनाओं, उपेक्षओं, प्रताड़नाओं को खुलकर लिखा और सामाजिक बंधनों पर जमकर हमला बोला। उनकी लेखनी की एक और विशेषता जो उन्हें तमाम दलित लेखकों से अलग करती है, वह उनके अचेतन पर [[बुद्ध]] का गहरा प्रभाव है। उनके जीवन के हरेक पल खासकर निर्णायक क्षणों में बुद्ध हमेशा सामने आते हैं। इसका उदाहरण उनकी [[आत्मकथा]] 'मुर्दहिया' और 'मणिकर्णिका' में दिखता है।
डॉ. तुलसीराम ने अपने लेखन में दलितों के तमाम कष्टों, यातनाओं, उपेक्षओं, प्रताड़नाओं को खुलकर लिखा और सामाजिक बंधनों पर जमकर हमला बोला। उनकी लेखनी की एक और विशेषता जो उन्हें तमाम दलित लेखकों से अलग करती है, वह उनके अचेतन पर [[बुद्ध]] का गहरा प्रभाव है। उनके जीवन के हरेक पल खासकर निर्णायक क्षणों में बुद्ध हमेशा सामने आते हैं। इसका उदाहरण उनकी [[आत्मकथा]] '[[मुर्दहिया- डॉ. तुलसीराम|मुर्दहिया]]' और '[[मणिकर्णिका- डॉ. तुलसीराम|मणिकर्णिका]]' में दिखता है।


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Latest revision as of 09:20, 12 April 2018

डॉ. तुलसीराम
पूरा नाम डॉ. तुलसीराम
जन्म 1 जुलाई, 1949
मृत्यु 13 फ़रवरी, 2015
मृत्यु स्थान दिल्ली
पति/पत्नी प्रभा चौधरी
संतान पुत्री- अंगिरा
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र साहित्य
मुख्य रचनाएँ 'मुर्दहिया' और 'मणिकर्णिका'।
विद्यालय बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय
प्रसिद्धि साहित्यकार, विद्वान
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी डॉ. तुलसीराम की लेखनी की एक विशेषता है, जो उन्हें तमाम दलित लेखकों से अलग करती है। वह है- उनके अचेतन पर बुद्ध का गहरा प्रभाव।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

डॉ. तुलसीराम (अंग्रेज़ी: Dr. Tulsiram, जन्म- 1 जुलाई, 1949; मृत्यु- 13 फ़रवरी, 2015, दिल्ली) दलित लेखन में अपना एक अलग स्थान रखने वाले साहित्यकार थे। उनके लेखन में शांति, अहिंसा और करुणा व्याप्त है। वे गहन अध्येता और विद्वान् थे।

परिचय

डॉ. तुलसीराम का जन्म 1 जुलाई सन 1949 में हुआ था। उनकी पत्नी का नाम प्रभा चौधरी है तथा एक पुत्री है अंगिरा।[1] आजमगढ़ से तालुक्कात रखने वाले डॉ. तुलसी राम बचपन में सामाजिक मान्यताओं और बंधनों से जुझे। उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता। ग़रीबी का अभाव उनकी ज़िदगीं में साये की तरह रहा, लेकिन आरंभिक जीवन में उन्हें जो आर्थिक, सामाजिक और मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ी, उसकी उनके जीवन और साहित्य में मुखर अभिव्यक्ति हुई।

शिक्षा

शुरुआती तालीम आजमगढ़ से लेने के बाद डॉ. तुलसीरामकी ज़िदगीं के दूसरे अध्याय की शुरुआत बनारस से हुई। बचपन से किताबों के शौकीन डॉ. तुलसीराम जब मार्क्सवाद के संपर्क में आये तो उन्हें इससे बहुत संबल और साहस मिला। बनारस आने के बाद डॉ. तुलसीराम की जान-पहचान कुछ लेखकों से हुई और अपनी ज़िदगी के प्रेरणा रहे डॉ. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं पर अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। 'बनारस विश्वविद्यालय' से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद वे दिल्ली आये और 'जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय' में एक प्रोफ़ेसर के रूप में काम किया।[2]

लेखन कार्य

डॉ. तुलसीराम ने अपने लेखन में दलितों के तमाम कष्टों, यातनाओं, उपेक्षओं, प्रताड़नाओं को खुलकर लिखा और सामाजिक बंधनों पर जमकर हमला बोला। उनकी लेखनी की एक और विशेषता जो उन्हें तमाम दलित लेखकों से अलग करती है, वह उनके अचेतन पर बुद्ध का गहरा प्रभाव है। उनके जीवन के हरेक पल खासकर निर्णायक क्षणों में बुद्ध हमेशा सामने आते हैं। इसका उदाहरण उनकी आत्मकथा 'मुर्दहिया' और 'मणिकर्णिका' में दिखता है।

गीत और कविताएं डॉ. तुलसीराम के जीवन का अभिन्न अंग रहे, इसीलिए उनके 'मुर्दहिया' और 'मणिकर्णिका' दोनों की ही लेखन शैली में इन दोनों के बहाव दिखे। उनकी आत्मकथा के दो खण्ड ‘मुर्दहिया’ और ‘मणिकर्णिका’ अनूठी साहित्यिक कृति होने के साथ ही पूरबी उत्तर प्रदेश के दलितों की जीवन स्थितियों तथा साठ और सत्तर के दशक में इस क्षेत्र में वाम आन्दोरलन की सरगर्मियों के जीवन्तज खजाना हैं। इसमें बाबासाहब भीमराव अंबेडकर के सामाजिक आत्म को प्रोफ़ेसर तुलसीराम ने अपनी स्मृतियों का सहारे अपने आत्म से जोड़ने की कोशिश की।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. डॉ. तुलसीराम के व्यक्तित्व और कृतित्व की एक झलक (हिंदी) aajtak.intoday.in। अभिगमन तिथि: 02 नवम्बर, 2016।
  2. डॉ तुलसीरामः मणिकर्णिका के भगीरथ का अवसान (हिंदी) rstv.nic.in। अभिगमन तिथि: 02 नवम्बर, 2016।

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