माधव शुक्ल: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:48, 14 September 2015

माधव शुक्ल
पूरा नाम माधव शुक्ल
जन्म 1881
जन्म भूमि इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1943
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'सीय स्वयंवर', 'महाभारत पूर्वाध' और 'भामाशाह की राजभक्ति' आदि।
भाषा हिन्दी
प्रसिद्धि कवि, नाटककार, अभिनेता
विशेष योगदान आपने जौनपुर और लखनऊ में नाटक मंडलियाँ स्थापित की थीं अैर कलकत्ता में 'हिंदी नाट्य परिषद' की प्रतिष्ठा की।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी शुक्ल जी के मन में देश की पराधीनता से मुक्ति की प्रबल आकांक्षा थी। तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें ब्रिटिश शासन का कोपभाजन बनकर कई बार करागार का दंड भी भुगतना पड़ा था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

माधव शुक्ल (जन्म- 1881, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1943) प्रसिद्ध कवि, नाटककार तथा अच्छे अभिनेता थे। इनका कण्ठ बड़ा ही मधुर था। इन्होंने 'सीय स्वयंवर' सन 1916 ई. में, 'महाभारत पूर्वाध' और 'भामाशाह की राजभक्ति' नामक नाटकों की रचना की। इनमें केवल एक ही नाटक 'महाभारत पूवार्ध' प्रकाशित हुआ था।

  • माधव शुक्ल जी प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) के निवासी और मालवीय ब्राह्मण थे।
  • इनका कंठ बड़ा मधुर था और ये अभिनय कला में पूर्ण दक्ष थे। ये सफल नाटककार होने के साथ ही अच्छे अभिनेता भी थे।
  • माधव शुक्ल के राष्ट्रीय कविताओं के दो संग्रह 'भारत गीतांजलि' और 'राष्ट्रीय गान' जब प्रकाशित हुए तो हिंदी पाठकवर्ग ने उनका सोत्साह स्वागत किया।[1]
  • भारत-चीन में युद्ध छिड़ने पर इनकी राष्ट्रीय कविताओं का संकलन 'उठो हिंद संतान' नाम से प्रकाशित हुआ था। कविताओं की विशेषता यह है कि आज की स्थिति में भी वे उतनी ही उपयोगी एवं उत्साहवर्धक हैं, जितनी अपनी रचना के समय थीं।
  • सन 1898 ई. में माधव शुक्ल ने 'सीय स्वयंबर' सन 1916 ई. में, 'महाभारत पूर्वाध' और 'भामाशाह की राजभक्ति' नामक नाटकों की रचना की। इनमें केवल एक ही नाटक 'महाभारत पूवार्ध' प्रकाशित हुआ। ये सभी नाटक इनके समय में ही सफलता के साथ खेले गए थे और इन्होंने अभिनय में भाग भी लिया था।[1]
  • प्रयाग के अतिरिक्त इनके नाटक कलकत्ता में भी खेले गए थे और उससे शुक्ल जी को काफ़ी ख्याति मिली थी। इन्होंने जौनपुर और लखनऊ में नाटक मंडलियाँ स्थापित की थीं अैर कलकत्ता में 'हिंदी नाट्य परिषद' की प्रतिष्ठा की।
  • माधव शुक्ल जी के मन में देश की पराधीनता से मुक्ति की और सामाजिक सुधार की प्रबल आकांक्षा थी। तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलनों में सक्रिय भाग लेने के कारण इन्हें ब्रिटिश शासन का कोपभाजन बनकर कई बार करागार का दंड भी भुगतना पड़ा था।
  • नाटक के प्रति उस समय हिंदी भाषी जनता की सुप्त रुचि को जगाने का बहुत बड़ा श्रेय माधव शुक्ल जी को है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 माधव शुक्ल (हिंदी) भारतखोज। अभिगमन तिथि: 14 सितम्बर, 2015।

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