अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन: Difference between revisions

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अज्ञेय, सच्चिदानंद वात्स्यायन (जन्म -7 मार्च 1911 कुशीनगर, उत्तर प्रदेश मृत्यु-4 अप्रैल 1987 नई दिल्ली), हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे।

व्यक्तिगत जीवन

इनके पिता पण्डित हीरानंद शास्त्री प्राचीन लिपियों के विशेषज्ञ थे। बचपन पिता की नौकरी के साथ कई स्थानों की परिक्रमा में बीता। कुशीनगर में जन्म, फिर लखनऊ, श्रीनगर, जम्मू घूमते-घामते परिवार 1919 में नालंदा पहुंचा। वहाँ पिता ने अज्ञेय से हिन्दी लिखवाना शुरु किया। इसके बाद 1921 में परिवार ऊटी पहुंचा जहाँ पिता ने उनका यज्ञोपवीत कराया और वात्स्यायन कुलनाम दिया।

शिक्षा

अज्ञेय ने घर पर ही भाषा, साहित्य, इतिहास और विज्ञान की प्रारंभिक शिक्षा आरंभ की। 1925 में उन्होंने मैट्रिक की प्राइवेट परीक्षा पंजाब से उत्तीर्ण की। इसके बाद दो वर्ष मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में एवं तीन वर्ष फ़ॉर्मन कॉलेज, लाहौर में संस्थागत शिक्षा पाई। वहीं बी.एस.सी.और अंग्रेजी में एम.ए.पूर्वार्द्ध पूरा किया। इसी बीच भगत सिंह के साथी बने और 1930 में गिरफ़्तार हो गए।

कार्यकाल

छह वर्ष जेल और नज़रबंद भोगकर1936 में कुछ दिनों तक आगरा के समाचार पत्र सैनिक के संपादन मंडल में रहे। 1937-39 में विशाल भारत के संपादकीय विभाग में रहे। कुछ दिन ऑल इंडिया रेडियो में रहकर अज्ञेय 1943 में सैन्य सेवा में प्रविष्ठ हुए। 1946 में सैन्य सेवा से मुक्त होकर वह शुद्ध रुप से साहित्य में लगे। मेरठ और उसके बाद इलाहाबाद और अंत में दिल्ली को उन्होंने केंद्र बनाया। अज्ञेय प्रतीक का संपादन किया। प्रतीक ने ही हिन्दी के आधुनिक साहित्य की नई धारणा के लेखकों, कवियों को सशक्त मंच दिया और साहित्यिक पत्रकारिता का नया इतिहास रचा। 1965 से 1968 तक अज्ञेय साप्ताहिक दिनमान के संपादक रहे। पुन: प्रतीक को नाम, नया प्रतीक देकर 1973 से निकालना शुरु किया और अपना अधिकाधिक समय लेखन को देने लगे। 1977 में उन्होंने दैनिक पत्र नवभारत टाइम्स के संपादन का भार संभाला। अगस्त 1979 में उन्होंने नवभारत टाइम्स से अवकाश ग्रहण किया।

सप्तक

1943 में सात कवियों के वक्तव्य और कविताओं को लेकर एक लंबी भूमिका के साथ अज्ञेय ने तार सप्तक का संपादन किया। अज्ञेय ने आधुनिक हिन्दी कविता को नया मोड़ दिया, जिसे प्रयोगशील कविता की संज्ञा दी गई। इसके बाद समय-समय पर उन्होंने दूसरा सप्तक, तीसरा सप्तक और चौथा सप्तक का संपादन भी किया।

कृतित्व

अज्ञेय का कृतित्व बहुमुखी है और वह उनके समृद्ध अनुभव की सहज परिणति है। प्रारंभ की रचनाएँ अध्ययन की गहरी छाप अंकित करती हैं या प्रेरक व्यक्तियों से दीक्षा की गरमाई का स्पर्श देती हैं, बाद की रचनाएँ निजी अनुभव की परिपक्वता की खनक देती हैं। और साथ ही भारतीय विश्वदृष्टि से तादात्म्य का बोध कराती हैं। अज्ञेय स्वाधीनता को महत्त्वपूर्ण मानवीय मूल्य मानते हैं। परंतु स्वाधीनता उनके लिए एक सतत जागरुक प्रक्रिया है। अभिव्यक्ति के लिए अज्ञेय ने कई विधाओं, कई कलाओं और भाषाओं का प्रयोग किया, जैसे कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, यात्रा वृत्तांत, वैयक्तिक निबंध, वैचारिक निबंध, आत्मचिंतन, अनुवाद, समीक्षा, संपादन.उपन्यास के क्षेत्र में शेखर: एक जीवनी हिन्दी उपन्यास का एक कीर्तिस्तंभ बना। नाट्य - विधान के प्रयोग के लिए उत्तर प्रियदर्शी लिखा, तो आंगन के पार द्वार संग्रह में वह अपने को विशाल के साथ एकाकार करने लगते हैं। कितनी नावों में कितनी बार, क्योंकि मैं उसे जानता हूँ, सागरमुद्रा, पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ और महावृक्ष के नीचे संग्रहों की कविताएँ आत्मसाक्षात्कार के उत्तरोत्तर बढते क्षणों की सृष्टि हैं।

प्रमुख कृतियाँ

  • कविता भग्नदूत (1933)
  • चिंता (1942)
  • इत्यलम (1946)
  • हरी घास पर क्षण भर (1949)
  • बावरा अहेरी (1954)
  • आंगन के पार द्वार (1961)
  • पूर्वा (1965)
  • कितनी नावों में कितनी बार (1967)
  • क्योंकि मैं उसे जानता हूँ (1969)
  • सागर मुद्रा (1970)
  • पहले मैं सन्नाटा बुनता हूँ (1973)

उपन्यास

  • एक जीवनी (1966)
  • नदी के द्वीप (1952)
  • अपने अपने अजनबी (1961)

पुरस्कार

अज्ञेय को भारत में भारतीय पुरस्कार, अंतर्राष्ट्रीय 'गोल्डन रीथ' पुरस्कार आदि के अतिरिक्त साहित्य अकादमी पुरस्कार (1964) ज्ञानपीठ पुरस्कार (1978) से सम्मानित किया गया।



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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

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