कमलेश्वर: Difference between revisions

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====फ़िल्म एवं टेलीविजन====
====फ़िल्म एवं टेलीविजन====
फ़िल्म और टेलीविजन के लिए लेखन के क्षेत्र में भी कमलेश्वर को काफ़ी सफलता मिली है। उन्होंने सारा आकाश, आँधी, अमानुष और मौसम जैसी फ़िल्मों के अलावा 'मि. नटवरलाल', 'द बर्निंग ट्रेन', 'राम बलराम' जैसी फ़िल्मों सहित 99 हिंदी फ़िल्मों का लेखन किया है। कमलेश्वर भारतीय दूरदर्शन के पहले स्क्रिप्ट लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने टेलीविजन के लिए कई सफल धारावाहिक लिखे हैं जिनमें 'चंद्रकांता', 'युग', 'बेताल पचीसी', 'आकाश गंगा', 'रेत पर लिखे नाम' आदि प्रमुख हैं। भारतीय कथाओं पर आधारित पहला साहित्यिक सीरियल 'दर्पण' भी उन्होंने ही लिखा। दूरदर्शन पर साहित्यिक कार्यक्रम 'पत्रिका' की शुरुआत इन्हीं के द्वारा हुई तथा पहली टेलीफ़िल्म 'पंद्रह अगस्त' के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। तकरीबन सात वर्षों तक दूरदर्शन पर चलने वाले 'परिक्रमा' में सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याओं पर खुली बहस चलाने की दिशा में साहसिक पहल भी कमलेश्वर जी की थी। वे स्वातंत्र्योत्तर भारत के सर्वाधिक क्रियाशील, विविधतापूर्ण और मेधावी हिंदी लेखक थे।<ref name="अभिव्यक्ति "/>
फ़िल्म और टेलीविजन के लिए लेखन के क्षेत्र में भी कमलेश्वर को काफ़ी सफलता मिली है। उन्होंने सारा आकाश, आँधी, अमानुष और मौसम जैसी फ़िल्मों के अलावा 'मि. नटवरलाल', 'द बर्निंग ट्रेन', 'राम बलराम' जैसी फ़िल्मों सहित 99 हिंदी फ़िल्मों का लेखन किया है। कमलेश्वर भारतीय दूरदर्शन के पहले स्क्रिप्ट लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने टेलीविजन के लिए कई सफल धारावाहिक लिखे हैं जिनमें 'चंद्रकांता', 'युग', 'बेताल पचीसी', 'आकाश गंगा', 'रेत पर लिखे नाम' आदि प्रमुख हैं। भारतीय कथाओं पर आधारित पहला साहित्यिक सीरियल 'दर्पण' भी उन्होंने ही लिखा। दूरदर्शन पर साहित्यिक कार्यक्रम 'पत्रिका' की शुरुआत इन्हीं के द्वारा हुई तथा पहली टेलीफ़िल्म 'पंद्रह अगस्त' के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। तकरीबन सात वर्षों तक दूरदर्शन पर चलने वाले 'परिक्रमा' में सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याओं पर खुली बहस चलाने की दिशा में साहसिक पहल भी कमलेश्वर जी की थी। वे स्वातंत्र्योत्तर भारत के सर्वाधिक क्रियाशील, विविधतापूर्ण और मेधावी हिंदी लेखक थे।<ref name="अभिव्यक्ति "/>
==रचनाएँ==
==प्रमुख रचनाएँ==
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;कहानी संग्रह
;कहानी संग्रह
उनके कहानी संग्रहों के नाम हैं-
* जॉर्ज पंचम की नाक
#जॉर्ज पंचम की नाक
* मांस का दरिया
#मांस का दरिया
* इतने अच्छे दिन
#इतने अच्छे दिन
* कोहरा
#कोहरा
* कथा-प्रस्थान
#कथा-प्रस्थान
* मेरी प्रिय कहानियाँ
#मेरी प्रिय कहानियाँ।
;आत्मपरक संस्मरण
;आत्मपरक संस्मरण
कमलेश्वर ने आत्मपरक संस्मरण भी लिखे। इनकी संस्मरण पुस्तकों के नाम हैं-
* जो मैंने जिया
#जो मैंने जिया
* यादों के चिराग़
#यादों के चिराग़
* जलती हुई नदी
#जलती हुई नदी
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;उपन्यास
;उपन्यास
उनके उपन्यास निम्नलिखित हैं-
* एक सड़क सत्तावन गलियाँ
#एक सड़क सत्तावन गलियाँ
* लौटे हुए मुसाफिर
#लौटे हुए मुसाफिर
* डाक बंगला
#डाक बंगला
* समुद्र में खोया हुआ आदमी
#समुद्र में खोया हुआ आदमी
* तीसरा आदमी
#तीसरा आदमी
* काली आंधी
#काली आंधी
* वही बात
#वही बात
* आगामी अतीत
#आगामी अतीत
* सुबह....दोपहर....शाम
#सुबह....दोपहर....शाम
* रेगिस्तान
#रेगिस्तान
* कितने पाकिस्तान
#कितने पाकिस्तान।
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==प्रसिद्धि==
==प्रसिद्धि==
उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया। [[हिन्दी]] में यह प्रथम उपन्यास है, जिसके अब तक पाँच वर्षों में, [[2002]] से [[2008]] तक ग्यारह संस्करण हो चुके हैं। पहला संस्करण छ: महीने के अन्तर्गत समाप्त हो गया था। दूसरा संस्करण पाँच महीने के अन्तर्गत, तीसरा संस्करण चार महीने के अन्तर्गत। इस तरह हर कुछेक महीनों में इसके संस्करण होते रहे और समाप्त होते रहे।
उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया। [[हिन्दी]] में यह प्रथम उपन्यास है, जिसके अब तक पाँच वर्षों में, [[2002]] से [[2008]] तक ग्यारह संस्करण हो चुके हैं। पहला संस्करण छ: महीने के अन्तर्गत समाप्त हो गया था। दूसरा संस्करण पाँच महीने के अन्तर्गत, तीसरा संस्करण चार महीने के अन्तर्गत। इस तरह हर कुछेक महीनों में इसके संस्करण होते रहे और समाप्त होते रहे।

Revision as of 06:35, 5 January 2013

कमलेश्वर
पूरा नाम कमलेश्वर प्रसाद सक्सेना
जन्म 6 जनवरी, 1932
जन्म भूमि मैनपुरी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 27 जनवरी, 2007
मृत्यु स्थान फरीदाबाद, हरियाणा
कर्म-क्षेत्र उपान्यासकार, आलोचक, फ़िल्म पटकथा लेखक
मुख्य रचनाएँ जॉर्ज पंचम की नाक, मांस का दरिया, इतने अच्छे दिन, कोहरा, कथा-प्रस्थान, मेरी प्रिय कहानियाँ,
भाषा हिंदी
विद्यालय इलाहाबाद विश्वविद्यालय
शिक्षा एम.ए. (हिन्दी साहित्य)
पुरस्कार-उपाधि 2005 में पद्मभूषण, 2003 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (कितने पाकिस्तान)
प्रसिद्धि उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया।
विशेष योगदान इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के क्षेत्र में भी विशेष योगदान दिया।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी ‘नई कहानियों’ के अलावा ‘सारिका’, ‘कथा यात्रा’, ‘गंगा’ आदि पत्रिकाओं का सम्पादन तो किया ही ‘दैनिक भास्कर’ के राजस्थान अलंकरणों के प्रधान सम्पादक भी रहे।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

कमलेश्वर (अंग्रेज़ी: Kamleshwar जन्म- 6 जनवरी, 1932 मैनपुरी - मृत्यु- 27 जनवरी, 2007 फ़रीदाबाद) हिन्दी लेखक कमलेश्वर बीसवीं शती के सबसे सशक्त लेखकों में से एक हैं। कहानी, उपन्यास, पत्रकारिता, स्तंभ लेखन, फ़िल्म पटकथा जैसी अनेक विधाओं में उन्होंने अपनी लेखन प्रतिभा का परिचय दिया। इन्होंने अनेक हिन्दी फ़िल्मों के लिए पट-कथाएँ लिखीं तथा भारतीय दूरदर्शन श्रृंखलाओं के लिए दर्पण, चन्द्रकान्ता, बेताल पच्चीसी, विराट युग आदि लिखे। भारतीय स्वातंत्र्य संग्राम पर आधारित पहली प्रामाणिक एवं इतिहासपरक जन-मंचीय मीडिया कथा ‘हिन्दुस्तां हमारा’ का भी लेखन किया।

जीवन परिचय

कमलेश्वर का जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में 6 जनवरी, 1932 में हुआ था। प्रारम्भिक पढ़ाई के पश्चात कमलेश्वर ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की। कमलेश्वर बहुआयामी रचनाकार थे। उन्होंने सम्पादन क्षेत्र में भी एक प्रतिमान स्थापित किया। ‘नई कहानियों’ के अलावा ‘सारिका’, ‘कथा यात्रा’, ‘गंगा’ आदि पत्रिकाओं का सम्पादन तो किया ही ‘दैनिक भास्कर’ के राजस्थान अलंकरणों के प्रधान सम्पादक भी रहे। कश्मीर एवं अयोध्या आदि पर वृत्त चित्रों तथा दूरदर्शन के लिए ‘बन्द फ़ाइल’ एवं ‘जलता सवाल’ जैसे सामाजिक सरोकारों के वृत्त चित्रों का भी लेखन-निर्देशन और निर्माण किया।

कार्यक्षेत्र

'विहान' जैसी पत्रिका का 1954 में संपादन आरंभ कर कमलेश्वर ने कई पत्रिकाओं का सफल संपादन किया जिनमें 'नई कहानियाँ' (1963-66), 'सारिका' (1967-78), 'कथायात्रा' (1978-79), 'गंगा' (1984-88) आदि प्रमुख हैं। इनके द्वारा संपादित अन्य पत्रिकाएँ हैं- 'इंगित' (1961-63) 'श्रीवर्षा' (1979-80)। हिंदी दैनिक 'दैनिक जागरण'(1990-92) के भी वे संपादक रहे हैं। 'दैनिक भास्कर' से 1997 से वे लगातार जुड़े हैं। इस बीच जैन टीवी के समाचार प्रभाग का कार्य भार संभाला। सन 1980-82 तक कमलेश्वर दूरदर्शन के अतिरिक्त महानिदेशक भी रहे। कमलेश्वर का नाम नई कहानी आंदोलन से जुड़े अगुआ कथाकारों में आता है। उनकी पहली कहानी 1948 में प्रकाशित हो चुकी थी परंतु 'राजा निरबंसिया' (1957) से वे रातों-रात एक बड़े कथाकार बन गए। कमलेश्वर ने तीन सौ से ऊपर कहानियाँ लिखी हैं। उनकी कहानियों में 'मांस का दरिया,' 'नीली झील', 'तलाश', 'बयान', 'नागमणि', 'अपना एकांत', 'आसक्ति', 'ज़िंदा मुर्दे', 'जॉर्ज पंचम की नाक', 'मुर्दों की दुनिया', 'क़सबे का आदमी' एवं 'स्मारक' आदि उल्लेखनीय हैं।[1]

फ़िल्म एवं टेलीविजन

फ़िल्म और टेलीविजन के लिए लेखन के क्षेत्र में भी कमलेश्वर को काफ़ी सफलता मिली है। उन्होंने सारा आकाश, आँधी, अमानुष और मौसम जैसी फ़िल्मों के अलावा 'मि. नटवरलाल', 'द बर्निंग ट्रेन', 'राम बलराम' जैसी फ़िल्मों सहित 99 हिंदी फ़िल्मों का लेखन किया है। कमलेश्वर भारतीय दूरदर्शन के पहले स्क्रिप्ट लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं। उन्होंने टेलीविजन के लिए कई सफल धारावाहिक लिखे हैं जिनमें 'चंद्रकांता', 'युग', 'बेताल पचीसी', 'आकाश गंगा', 'रेत पर लिखे नाम' आदि प्रमुख हैं। भारतीय कथाओं पर आधारित पहला साहित्यिक सीरियल 'दर्पण' भी उन्होंने ही लिखा। दूरदर्शन पर साहित्यिक कार्यक्रम 'पत्रिका' की शुरुआत इन्हीं के द्वारा हुई तथा पहली टेलीफ़िल्म 'पंद्रह अगस्त' के निर्माण का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। तकरीबन सात वर्षों तक दूरदर्शन पर चलने वाले 'परिक्रमा' में सामाजिक-सांस्कृतिक समस्याओं पर खुली बहस चलाने की दिशा में साहसिक पहल भी कमलेश्वर जी की थी। वे स्वातंत्र्योत्तर भारत के सर्वाधिक क्रियाशील, विविधतापूर्ण और मेधावी हिंदी लेखक थे।[1]

प्रमुख रचनाएँ

कहानी संग्रह
  • जॉर्ज पंचम की नाक
  • मांस का दरिया
  • इतने अच्छे दिन
  • कोहरा
  • कथा-प्रस्थान
  • मेरी प्रिय कहानियाँ
आत्मपरक संस्मरण
  • जो मैंने जिया
  • यादों के चिराग़
  • जलती हुई नदी
उपन्यास
  • एक सड़क सत्तावन गलियाँ
  • लौटे हुए मुसाफिर
  • डाक बंगला
  • समुद्र में खोया हुआ आदमी
  • तीसरा आदमी
  • काली आंधी
  • वही बात
  • आगामी अतीत
  • सुबह....दोपहर....शाम
  • रेगिस्तान
  • कितने पाकिस्तान

प्रसिद्धि

उपन्यासकार के रूप में ‘कितने पाकिस्तान’ ने इन्हें सर्वाधिक ख्याति प्रदान की और इन्हें एक कालजयी साहित्यकार बना दिया। हिन्दी में यह प्रथम उपन्यास है, जिसके अब तक पाँच वर्षों में, 2002 से 2008 तक ग्यारह संस्करण हो चुके हैं। पहला संस्करण छ: महीने के अन्तर्गत समाप्त हो गया था। दूसरा संस्करण पाँच महीने के अन्तर्गत, तीसरा संस्करण चार महीने के अन्तर्गत। इस तरह हर कुछेक महीनों में इसके संस्करण होते रहे और समाप्त होते रहे।

सम्मान और पुरस्कार

कमलेश्वर को उनकी रचनाधर्मिता के फलस्वरूप पर्याप्त सम्मान एवं पुरस्कार मिले। 2005 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ अलंकरण से राष्ट्रपति महोदय ने विभूषित किया। उनकी पुस्तक ‘कितने पाकिस्तान’ पर साहित्य अकादमी ने उन्हें पुरस्कृत किया।

निधन

27 जनवरी, 2007 को फ़रीदाबाद, हरियाणा में कमलेश्वर का निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कमलेश्वर (हिंदी) (एच.टी.एम.एल) अभिव्यक्ति। अभिगमन तिथि: 5 जनवरी, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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