भगवतशरण उपाध्याय

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भगवतशरण उपाध्याय (अंग्रेज़ी: Bhagwat Sharan Upadhyay जन्म:1910, मृत्यु: 12 अगस्त 1982) भारतविद् के रूप में देशी-विदेशी अनेक महत्वपूर्ण संस्थाओं से सक्रिय रूप से संबद्ध रहे तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय मनीषा का प्रतिनिधित्व किया। जीवन के अंतिम समय में वे मॉरीशस में भारत के राजदूत थे। भगवतशरण उपाध्याय का व्यक्तित्व एक पुरातत्वज्ञ, इतिहासवेत्ता, संस्कृति मर्मज्ञ, विचारक, निबंधकार, आलोचक और कथाकार के रूप में जाना-माना जाता है। वे बहुज्ञ और विशेषज्ञ दोनों एक साथ थे। उनकी आलोचना सामाजिक और ऐतिहासिक परिस्थितियों के समन्वय की विशिष्टता के कारण महत्वपूर्ण मानी जाती है। संस्कृति की सामासिकता को उन्होंने अपने ऐतिहासिक ज्ञान द्वारा विशिष्ट अर्थ दिए हैं।

जीवन परिचय

भगवतशरण उपाध्याय का जन्म सन्‌ 1910 में बलिया (उत्तर प्रदेश) में तथा निधन सन्‌ 1982 में मॉरीशस में हुआ। तीन खंडों में 'भारतीय व्यक्तिकोश' तैयार करने के अलावा उन्होंने नागरी प्रचारिणी सभा, काशी द्वारा प्रकाशित 'हिन्दी विश्वकोश' के चार खंडों का संपादन भी किया। भगवतशरण उपाध्याय का साहित्य-लेखन आलोचना से लेकर कहानी, रिपोर्ताज़, नाटक, निबंध, यात्रावृत्त, बाल-किशोर और प्रौढ़ साहित्य तक विस्तृत है।[1]

प्रमुख कृतियाँ

हिंदी रचनाएँ
  • भारतीय संस्कृति के स्रोत
  • कालिदास का भारत (दो खंडों में)
  • गुप्तकालीन संस्कृति
  • भारतीय समाज का ऐतिहासिक विश्लेषण
  • कालिदास और उनका युग
  • भारतीय कला और संस्कृति की भूमिका
  • भारतीय इतिहास के आलोक स्तंभ (दो खंडों में)
  • प्राचीन यात्री (तीन खंडों में)
  • सांस्कृतिक चिंतन
  • इतिहास साक्षी है
  • खून के छींटे इतिहास के पन्नों पर
  • समीक्षा के संदर्भ
  • साहित्य और परंपरा
अंग्रेज़ी रचनाएँ
  • इंडिया इन कालिदास
  • विमेन इन ऋग्वेद
  • द एंशेण्ट वर्ल्ड
  • फ़ीडर्स ऑफ़ इंडियन कल्चर।

बहुआयामी व्यक्तित्व

डॉ. भगवतशरण उपाध्याय का व्यक्तित्व बहुआयामी है। यद्यपि उनके व्यक्तित्व और कर्तव्य का मुख्य क्षेत्र इतिहास है, उनके लेखन का मुख्य विषय इतिहास है, उनके सोचने का मुख्य नजरिया ऐतिहासिक है, फिर भी संस्कृति के बारे में उनके दृष्टिकोण और चिन्तन को देखा जाए, वैसे ही साहित्य के बारे में उनके दृष्टिकोण और चिन्तन को देखना भी कम रोचक नहीं है। हिन्दी आलोचना के विकास में अथवा आलोचना-कर्म में उपाध्याय जी की चर्चा आमतौर से नहीं सुनी जाती। हिन्दी-आलोचना पर लिखी पुस्तकों में उनका उल्लेख नहीं मिलता और हिन्दी के आलोचकों की चर्चा के प्रसंग में लेखकगण उनका जिक्र नहीं करते। लेकिन डॉ. भगवतशरण उपाध्याय ने साहित्य के प्रश्नों पर, खासकर अपने समय के खास प्रश्नों पर तो विचार किया ही है, उन्होंने बाजाब्ता साहित्य की कृतियों की व्यावहारिक समीक्षा भी की है। यह तो अलग से ध्यान देने योग्य और उल्लेखनीय है कि उन्होंने कालिदास पर जितने विस्तार से लिखा है, उतने विस्तार से और किसी ने नहीं लिखा। कालिदास उनके अत्यंत प्रिय रचनाकार हैं। उन पर डॉ. उपाध्याय ने कई तरह से विचार किया है।[2]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भगवतशरण उपाध्याय (हिंदी) हिंदी भवन। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2014।
  2. भगवत शरण उपाध्याय (हिंदी) पाखी। अभिगमन तिथि: 15 मार्च, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

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