दूधनाथ सिंह: Difference between revisions
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दूधनाथ सिंह का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[बलिया ज़िला|बलिया ज़िले]] के सोबंथा गाँव में 17 अक्टूबर 1936 को हुआ था। [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से [[हिंदी साहित्य]] में एम. ए. करने के पश्चात् कुछ दिनों तक [[कलकत्ता]] (अब [[कोलकाता]]) में अध्यापन करने के पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापन करने लगे। सेवानिवृति के बाद अब पूरी तरह से लेखन के लिए समर्पित हो गये। | दूधनाथ सिंह का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[बलिया ज़िला|बलिया ज़िले]] के सोबंथा गाँव में 17 अक्टूबर, 1936 को हुआ था। [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से [[हिंदी साहित्य]] में एम. ए. करने के पश्चात् कुछ दिनों तक [[कलकत्ता]] (अब [[कोलकाता]]) में अध्यापन करने के पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापन करने लगे। सेवानिवृति के बाद अब पूरी तरह से लेखन के लिए समर्पित हो गये। | ||
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[[सूर्यकांत त्रिपाठी निराला]], [[सुमित्रानंदन पंत]] और [[महादेवी वर्मा]] के प्रिय रहे दूधनाथ सिंह ने आखिरी कलाम, लौट आ ओ धार, निराला : आत्महंता आस्था, सपाट चेहरे वाला आदमी, यमगाथा, धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे जैसी कालजयी कृतियों की रचना की। उनकी गिनती हिन्दी के चोटी के लेखकों और चिंतकों में होती थी। वहीं, उनके तीन कविता संग्रह भी प्रकाशित हैं। इनके 'एक और भी आदमी है' और 'अगली शताब्दी के नाम' और 'युवा खुशबू' हैं. इसके अलावा उन्होंने एक लंबी कविता- 'सुरंग से लौटते हुए' भी लिखी है। आलोचना में उन्होंने 'निराला: आत्महंता आस्था', 'महादेवी', 'मुक्तिबोध: साहित्य में नई प्रवृत्तियां' जैसी रचनाएं दी हैं।<ref name="nvb"/> | |||
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==साठोत्तरी कहानी का सूत्रपात== | |||
दूधनाथ सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक रह चुके हैं। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचना सहित सभी विधाओं में लेखन किया। दूधनाथ सिंह उन कथाकारों में शामिल हैं जिन्होंने नई कहानी आंदोलन को चुनौती दी और साठोत्तरी कहानी आंदोलन का सूत्रपात किया। 'हिन्दी के चार यार' के रूप में ख्यात [[ज्ञानरंजन]], [[काशीनाथ सिंह]], दूधनाथ सिंह और रवीन्द्र कालिया ने अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में हिन्दी लेखन को नई धार दी। लेखकों की पीढ़ी तैयार की और सांगठनिक मजबूती प्रदान की। चार यार में अब सिर्फ काशीनाथ सिंह और ज्ञानरंजन ही बचे।<ref name="nvb"/> | |||
==सम्मान और पुरस्कार== | ==सम्मान और पुरस्कार== | ||
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* कथाक्रम सम्मान | * कथाक्रम सम्मान | ||
* साहित्य भूषण सम्मान | * साहित्य भूषण सम्मान | ||
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दूधनाथ सिंह का 11 जनवरी, 2018 को देर रात करीब 12 बजे निधन हो गया। कई दिनों से वह [[इलाहाबाद]] के फीनिक्स अस्पताल में भर्ती रहे। कैंसर से पीड़ित दूधनाथ सिंह को दिल का दौरा पड़ा था। उन्हें वेंटीलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया था। वह 81 वर्ष के थे। दूधनाथ सिंह पिछले एक वर्ष से कैंसर से पीड़ित थे। उनके परिवार में दो बेटे एवं एक बेटी है। दो वर्ष पूर्व उनकी लेखिका पत्नी का निधन हो गया था। दूधनाथ सिंह के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच और प्रगतिशील लेखक संघ ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है और इसे [[हिंदी साहित्य]] की अपूर्णनीय क्षति बताया है। [[हिंदी]] के प्रख्यात कवि अशोक वाजपेयी, [[साहित्य अकादमी पुरस्कार|साहित्य अकादमी]] से सम्मानित लेखक [[उदय प्रकाश]], आलोचक वीरेंद्र यादव समेत अनेक लेखकों पत्रकारों ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। दूधनाथ सिंह की इच्छा के मुताबिक़, उनकी आँखें मेडिकल कॉलेज को दान की जाएंगी। उनके बेटों अनिमेष ठाकुर, अंशुमन सिंह और बेटी अनुपमा ठाकुर ने यह फैसला किया है।<ref name="nvb">{{cite web |url=https://navbharattimes.indiatimes.com/state/uttar-pradesh/allahabad/poet-doodhnath-singh-pass-away-on-thursday-in-allahabad/articleshow/62467767.cms |title=यूपी : वरिष्ठ कवि, कथाकार दूधनाथ सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन|accessmonthday=14 जनवरी|accessyear=2018 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=नवभारत टाइम्स|language=हिंदी }}</ref> | |||
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Latest revision as of 10:13, 10 October 2022
दूधनाथ सिंह
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पूरा नाम | दूधनाथ सिंह |
जन्म | 17 अक्टूबर, 1936 |
जन्म भूमि | सोबंथा गाँव, बलिया ज़िला, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 11 जनवरी, 2018 |
मृत्यु स्थान | इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश |
संतान | पुत्र- अनिमेष ठाकुर, अंशुमन सिंह और पुत्री- अनुपमा ठाकुर |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार एवं कवि |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | इलाहाबाद विश्वविद्यालय |
शिक्षा | एम.ए. (हिन्दी साहित्य) |
पुरस्कार-उपाधि | 'भारतेंदु सम्मान', 'शरद जोशी स्मृति सम्मान', 'कथाक्रम सम्मान', 'साहित्य भूषण सम्मान' |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | दूधनाथ सिंह ने अपनी कहानियों के माध्यम से साठोत्तरी भारत के पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक एवं मानसिक सभी क्षेत्रों में उत्पन्न विसंगतियों को चुनौती दी। |
अद्यतन | 17:48, 14 जनवरी 2018 (IST)
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इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
दूधनाथ सिंह (अंग्रेज़ी:Doodhnath Singh, जन्म: 17 अक्टूबर, 1936 - मृत्यु: 11 जनवरी, 2018) हिन्दी के प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार, नाटककार एवं कवि थे। दूधनाथ सिंह ने अपनी कहानियों के माध्यम से साठोत्तरी भारत के पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, नैतिक एवं मानसिक सभी क्षेत्रों में उत्पन्न विसंगतियों को चुनौती दी।
जीवन परिचय
दूधनाथ सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया ज़िले के सोबंथा गाँव में 17 अक्टूबर, 1936 को हुआ था। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एम. ए. करने के पश्चात् कुछ दिनों तक कलकत्ता (अब कोलकाता) में अध्यापन करने के पश्चात् इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापन करने लगे। सेवानिवृति के बाद अब पूरी तरह से लेखन के लिए समर्पित हो गये।
प्रमुख कृतियाँ
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के प्रिय रहे दूधनाथ सिंह ने आखिरी कलाम, लौट आ ओ धार, निराला : आत्महंता आस्था, सपाट चेहरे वाला आदमी, यमगाथा, धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे जैसी कालजयी कृतियों की रचना की। उनकी गिनती हिन्दी के चोटी के लेखकों और चिंतकों में होती थी। वहीं, उनके तीन कविता संग्रह भी प्रकाशित हैं। इनके 'एक और भी आदमी है' और 'अगली शताब्दी के नाम' और 'युवा खुशबू' हैं. इसके अलावा उन्होंने एक लंबी कविता- 'सुरंग से लौटते हुए' भी लिखी है। आलोचना में उन्होंने 'निराला: आत्महंता आस्था', 'महादेवी', 'मुक्तिबोध: साहित्य में नई प्रवृत्तियां' जैसी रचनाएं दी हैं।[1]
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जिसे सरकार द्वारा जब्त कर लिया गया) |
साठोत्तरी कहानी का सूत्रपात
दूधनाथ सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक रह चुके हैं। उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, उपन्यास और आलोचना सहित सभी विधाओं में लेखन किया। दूधनाथ सिंह उन कथाकारों में शामिल हैं जिन्होंने नई कहानी आंदोलन को चुनौती दी और साठोत्तरी कहानी आंदोलन का सूत्रपात किया। 'हिन्दी के चार यार' के रूप में ख्यात ज्ञानरंजन, काशीनाथ सिंह, दूधनाथ सिंह और रवीन्द्र कालिया ने अपने जीवन के उत्तरार्द्ध में हिन्दी लेखन को नई धार दी। लेखकों की पीढ़ी तैयार की और सांगठनिक मजबूती प्रदान की। चार यार में अब सिर्फ काशीनाथ सिंह और ज्ञानरंजन ही बचे।[1]
सम्मान और पुरस्कार
- भारतेंदु सम्मान
- शरद जोशी स्मृति सम्मान
- कथाक्रम सम्मान
- साहित्य भूषण सम्मान
निधन
दूधनाथ सिंह का 11 जनवरी, 2018 को देर रात करीब 12 बजे निधन हो गया। कई दिनों से वह इलाहाबाद के फीनिक्स अस्पताल में भर्ती रहे। कैंसर से पीड़ित दूधनाथ सिंह को दिल का दौरा पड़ा था। उन्हें वेंटीलेटर पर शिफ्ट कर दिया गया था। वह 81 वर्ष के थे। दूधनाथ सिंह पिछले एक वर्ष से कैंसर से पीड़ित थे। उनके परिवार में दो बेटे एवं एक बेटी है। दो वर्ष पूर्व उनकी लेखिका पत्नी का निधन हो गया था। दूधनाथ सिंह के निधन से साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। जनवादी लेखक संघ, जन संस्कृति मंच और प्रगतिशील लेखक संघ ने उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है और इसे हिंदी साहित्य की अपूर्णनीय क्षति बताया है। हिंदी के प्रख्यात कवि अशोक वाजपेयी, साहित्य अकादमी से सम्मानित लेखक उदय प्रकाश, आलोचक वीरेंद्र यादव समेत अनेक लेखकों पत्रकारों ने गहरा शोक व्यक्त करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी है। दूधनाथ सिंह की इच्छा के मुताबिक़, उनकी आँखें मेडिकल कॉलेज को दान की जाएंगी। उनके बेटों अनिमेष ठाकुर, अंशुमन सिंह और बेटी अनुपमा ठाकुर ने यह फैसला किया है।[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 यूपी : वरिष्ठ कवि, कथाकार दूधनाथ सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन (हिंदी) नवभारत टाइम्स। अभिगमन तिथि: 14 जनवरी, 2018।
बाहरी कड़ियाँ
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