चन्द्रबली सिंह: Difference between revisions
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चूँकि वे [[अंग्रेज़ी]] कविता के मर्मज्ञ थे, छठे दशक में नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद किए थे, जो पुस्तकाकार ‘हाथ’ शीर्षक से छपा था। [[साहित्य अकादमी]] से उनकी पाब्लो नेरूदा की कविताओं का एक संचयन प्रकाशित हुआ था। अपनी मृत्यु के पूर्व उन्होंने एमिली डिकिन्सन, वाल्ट ह्निटमन एवं बर्तोल्ट ब्रेख्त की कविताओं के अनुवाद किए थे, जो [[महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय|महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय]] के सहयोगी से वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। खेद का विषय यह है कि वे इन किताबों को प्रकाशित रूप में नहीं देख पाए। वाल्ट ह्निटमन [[अमरीका]] के राष्ट्रीय कवि हैं। वे [[कविता]] में मुक्तछंद के जन्मदाता हैं। ‘घास की पत्तियाँ’ उनकी अमर कृति है, जिसकी लोकप्रियता देश-देशान्तर में है। चन्द्रबली सिंह युवावस्था से ही उनकी कविताओं के मर्मज्ञ अध्येता रहे हैं। उन्होंने ह्निटमन की कविताओं का लन्मयता में डूबकर [[हिन्दी]] में रूपान्तर किया है। यह पुस्तक चन्द्रबली सिंह की उम्र भर की साधना का प्रतिफल है। अमरीका के इस महान् कवि के महत्त्व को [[हिन्दी]] के प्रारम्भिक दो साहित्य-निर्माताओं ने बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही स्वीकार कर लिया था और चन्द्रबली सिंह ने उनकी महत्ता को समग्रता में पहली बार उजागर किया। उन्होंने वाल्ट ह्निटमन की संक्षिप्त जीवनी के साथ-साथ उनकी कविताओं पर विस्तार से विचार किया है।<ref name="रविवार"/> | |||
==सास्कृतिक आंदोलन के समर्थक== | ==सास्कृतिक आंदोलन के समर्थक== | ||
चन्द्रबली जी [[रामविलास शर्मा]], [[त्रिलोचन शास्त्री]] की पीढी़ से लेकर प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की युवतम पीढ़ी के साथ चलने की कुव्वत रखते थे। वे जनवादी लेखक संघ के संस्थापक महासचिव और बाद में अध्यक्ष रहे। उससे पहले तक वे [[अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ|प्रगतिशील लेखक संघ]] के महत्वपुर्ण स्तम्भ थे। जन संस्कृति मंच के साथ उनके आत्मीय संबंध ताजिन्दगी रहे। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद राष्ट्रीय एकता अभियान के तहत सांस्कृतिक संगठनों के साझा अभियान की कमान बनारस में उन्हीं के हाथ थी और इस दौर में उनके और हमारे संगठन के बीच जो आत्मीय रिश्ता क़ायम हुआ, वह सदैव ही चलता रहा। उनके साक्षात्कार ‘समकालीन जनमत’ में प्रकाशित हुए। चन्द्रबली जी वाम सास्कृतिक आंदोलन के समन्वय के प्रखर समर्थक रहे। | चन्द्रबली जी [[रामविलास शर्मा]], [[त्रिलोचन शास्त्री]] की पीढी़ से लेकर प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की युवतम पीढ़ी के साथ चलने की कुव्वत रखते थे। वे जनवादी लेखक संघ के संस्थापक महासचिव और बाद में अध्यक्ष रहे। उससे पहले तक वे [[अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ|प्रगतिशील लेखक संघ]] के महत्वपुर्ण स्तम्भ थे। जन संस्कृति मंच के साथ उनके आत्मीय संबंध ताजिन्दगी रहे। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद राष्ट्रीय एकता अभियान के तहत सांस्कृतिक संगठनों के साझा अभियान की कमान बनारस में उन्हीं के हाथ थी और इस दौर में उनके और हमारे संगठन के बीच जो आत्मीय रिश्ता क़ायम हुआ, वह सदैव ही चलता रहा। उनके साक्षात्कार ‘समकालीन जनमत’ में प्रकाशित हुए। चन्द्रबली जी वाम सास्कृतिक आंदोलन के समन्वय के प्रखर समर्थक रहे। | ||
चन्द्रबली जी ने मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के भीतर की बहसों के उन्नत रूप और स्तर के लिए हरदम ही संघर्ष किया। ‘नई चेतना’ [[1951]] में उनका लेख छपा था- ‘साहित्य का संयुक्त मोर्चा’। (बाद में वह ‘आलोचना का जनपक्ष’ पुस्तक में संकलित भी हुआ। चन्द्रबली जी ने इस लेख में लिखा, ‘सबसे अधिक निर्लिप्त और उद्देश्यपूर्ण आलोचना आत्मालोचना कम्यूनिस्ट- लेखकों और आलोचकों की और से आनी चाहिए। उन्हें अपने भटकावों को स्वीकार करने में किसी प्रकार की झेंप या भीरुता नहीं दिखलानी चाहिए, क्योंकि जागरूक क्रांतिकारी की यह सबसे बड़ी पहचान है कि वह आम जनता को अपने साथ लेकर चलता है और वह यह जानता है कि दूसरों की आलोचना के साथ-साथ जब तक वह अपनी भी आलोचना नहीं करता, तब तक वह न सिर्फ जनता को ही साथ न ले सकेगा, वरन् स्वयं भी वह अपने लिए सही मार्ग का निर्धारण नहीं करा पाएगा। दूसरों की आलोचना में भी चापलूसी करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि चापलूसी उन्हें कुछ समय तक धोखा दे सकती है, किन्तु उन्हें सुधार नहीं सकती। मैत्रीपूर्ण आलोचना का यह अर्थ नहीं कि हम दूसरों की गलतियों को जानते हुए भी छिपाकर रखें। आत्मालोचना के स्तर और रूप की यही विशेषता- मार्क्सवादी आलोचना होनी चाहिए कि हम उसके सहारे आगे बढ़ सकें।’<ref>{{cite web |url=http://lekhakmanch.com/%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82.html |title= चन्द्रबली सिंह के रूप में प्रेरणा स्रोत खो दिया |accessmonthday=15 अप्रॅल |accessyear=2014 |last=|first=|authorlink= |format= |publisher= लेखक मंच|language=हिंदी }}</ref> | चन्द्रबली जी ने मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के भीतर की बहसों के उन्नत रूप और स्तर के लिए हरदम ही संघर्ष किया। ‘नई चेतना’ [[1951]] में उनका लेख छपा था- ‘साहित्य का संयुक्त मोर्चा’। (बाद में वह ‘आलोचना का जनपक्ष’ पुस्तक में संकलित भी हुआ। चन्द्रबली जी ने इस लेख में लिखा, ‘सबसे अधिक निर्लिप्त और उद्देश्यपूर्ण आलोचना आत्मालोचना कम्यूनिस्ट- लेखकों और आलोचकों की और से आनी चाहिए। उन्हें अपने भटकावों को स्वीकार करने में किसी प्रकार की झेंप या भीरुता नहीं दिखलानी चाहिए, क्योंकि जागरूक क्रांतिकारी की यह सबसे बड़ी पहचान है कि वह आम जनता को अपने साथ लेकर चलता है और वह यह जानता है कि दूसरों की आलोचना के साथ-साथ जब तक वह अपनी भी आलोचना नहीं करता, तब तक वह न सिर्फ जनता को ही साथ न ले सकेगा, वरन् स्वयं भी वह अपने लिए सही मार्ग का निर्धारण नहीं करा पाएगा। दूसरों की आलोचना में भी चापलूसी करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि चापलूसी उन्हें कुछ समय तक धोखा दे सकती है, किन्तु उन्हें सुधार नहीं सकती। मैत्रीपूर्ण आलोचना का यह अर्थ नहीं कि हम दूसरों की गलतियों को जानते हुए भी छिपाकर रखें। आत्मालोचना के स्तर और रूप की यही विशेषता- मार्क्सवादी आलोचना होनी चाहिए कि हम उसके सहारे आगे बढ़ सकें।’<ref>{{cite web |url=http://lekhakmanch.com/%E0%A4%9A%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%AC%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BF%E0%A4%82%E0%A4%B9-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B0%E0%A5%82%E0%A4%AA-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82.html |title= चन्द्रबली सिंह के रूप में प्रेरणा स्रोत खो दिया |accessmonthday=15 अप्रॅल |accessyear=2014 |last=|first=|authorlink= |format= |publisher= लेखक मंच|language=हिंदी }}</ref> | ||
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[[रामचंद्र शुक्ल|आचार्य रामचंद्र शुक्ल]] के बाद आचोलना का ऐसा समर्थ स्तबक किसी ने नहीं लिखा, लेकिन चंद्रबली सिंह ने गद्य को उत्कर्ष पर पहुंचाया। मैं भी ऐसा गद्य नहीं लिख सकता। यह बात वरिष्ठ आलोचक [[नामवर सिंह]] ने जनवादी लेखक संघ केंद्र की ओर से प्रोफेसर चंद्रबली सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते समय [[साहित्य अकादमी]] के सभागार में आयोजित सभा में कही। उन्होंने कहा कि चंद्रबली ने जिन छह कवियों को [[अनुवाद]] के लिए चुना उनमें पाब्लो नेरुदा, नाजिम हिकमत, | [[रामचंद्र शुक्ल|आचार्य रामचंद्र शुक्ल]] के बाद आचोलना का ऐसा समर्थ स्तबक किसी ने नहीं लिखा, लेकिन चंद्रबली सिंह ने गद्य को उत्कर्ष पर पहुंचाया। मैं भी ऐसा गद्य नहीं लिख सकता। यह बात वरिष्ठ आलोचक [[नामवर सिंह]] ने जनवादी लेखक संघ केंद्र की ओर से प्रोफेसर चंद्रबली सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते समय [[साहित्य अकादमी]] के सभागार में आयोजित सभा में कही। उन्होंने कहा कि चंद्रबली ने जिन छह कवियों को [[अनुवाद]] के लिए चुना उनमें पाब्लो नेरुदा, नाजिम हिकमत, मायकोव्स्की, वाल्ट ह्विटमैन, एमिली डिकिन्सन और ब्रेख्त हैं। इन सबने फासिज्म के विरोध में तथा मानवीय उत्पीड़न के विरोध में यथार्थवादी कविताएं लिखी थीं। इस चयन से उनकी आलोचनात्मक कसौटी का पता चलता है। उन्होंने कहा कि [[चंद्रकांता संतति]] पर पहली बार चंद्रबली सिंह ने ही विस्तार से विचार किया और [[खड़ी बोली]] हिंदी के कथा साहित्य के विकास में [[देवकीनंदन खत्री]] की दृष्टि को सकरात्मक रूप से प्रस्तुत किया। जनवादी लेखक संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने कहा कि द्वंद्वात्मक एवं ऐतिहासिक दृष्टि की प्रखरता उनकी आलोचना में जिस तरह से उभरी है, उससे सीख लेने की ज़रूरत है। वह [[साहित्य]] के सभी क्षेत्रों में बहुविज्ञ पंडित थे। [[नागरी प्रचारिणी सभा]] के विश्वकोश में जितनी भी यूरोपीय साहित्य की टिप्पणी छपीं, वे चंद्रबली जी ने ही लिखीं। विश्व साहित्य की दृष्टि से भी उनका ज्ञान बहुत व्यापक था। आलोचना की प्रांजल भाषा लिखने के हिसाब से वह अद्वितीय थे।<ref>{{cite web |url=http://lekhakmanch.com/tag/chandrabali-singh|title= चंद्रबली सिंह ने गद्य को उत्कर्ष पर पहुंचाया : नामवर सिंह |accessmonthday=15 अप्रॅल |accessyear=2014 |last=|first=|authorlink= |format= |publisher= लेखक मंच|language=हिंदी }}</ref> | ||
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[[हिन्दी]] के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, संगठनकर्ता और विश्व कविता के श्रेष्टतम अनुवादकों में शुमार कामरेड चन्द्रबली सिंह का [[23 मई]], [[2011]] को 87 वर्ष की आयु में [[बनारस]] में निधन हो गया। | [[हिन्दी]] के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, संगठनकर्ता और विश्व कविता के श्रेष्टतम अनुवादकों में शुमार कामरेड चन्द्रबली सिंह का [[23 मई]], [[2011]] को 87 वर्ष की आयु में [[बनारस]] में निधन हो गया। चन्द्रबली जी का जाना एक ऐसे कर्मठ वाम बुद्धिजीवी का जाना है, जो मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के हर हिस्से में बराबर समादृत और प्रेरणा का स्रोत रहा। | ||
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Latest revision as of 05:33, 23 May 2018
चन्द्रबली सिंह
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पूरा नाम | चन्द्रबली सिंह |
जन्म | 20 अप्रैल, 1924 |
जन्म भूमि | ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 23 मई, 2011 |
मृत्यु स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | लेखक, आलोचक, अनुवादक, प्राध्यापक |
मुख्य रचनाएँ | 'लोक दृष्टि', 'हिन्दी साहित्य' तथा 'आलोचना का जनपक्ष' आदि। |
भाषा | हिंदी, अंग्रेज़ी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | चन्द्रबली सिंह जनवादी लेखक संघ के संस्थापक महासचिव और बाद में अध्यक्ष रहे। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
चन्द्रबली सिंह (अंग्रेज़ी: Chandrabali Singh, जन्म- 20 अप्रैल, 1924, ग़ाज़ीपुर ; मृत्यु- 23 मई, 2011, वाराणसी) एक लेखक होने के साथ-साथ उत्कृष्ट कोटि के अनुवादक एवं आलोचक थे। ग़ाज़ीपुर में जन्मे चन्द्रबली सिंह ने 'लोक दृष्टि', 'हिन्दी साहित्य' तथा 'आलोचना का जनपक्ष' नामक शीर्षक से पुस्तक का प्रकाशन किया। इनकी गिनती एक उत्कृष्ट कोटि के अनुवादक के रूप में भी की जाती थी।[1]
जीवन परिचय
चन्द्रबली सिंह अंग्रेज़ी के परम विद्वान् होकर भी हिन्दी के साधक थे। वे रामविलास शर्मा के सान्निध्य में काफ़ी लम्बे समय तक आगरा के बलवंत राजपूत स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापन करते रहे। चन्द्रबली सिंह अपनी साइकिल की डंडी पर रामविलास जी को बैठाकर, गपशप करते हुए, महाविद्यालय आते-जाते थे। रामविलास शर्मा ने अपनी रामचन्द्र शुक्ल पर लिखी आलोचना पुस्तक को चन्द्रबली सिंह को अभूतपूर्व आलोचक कहकर समर्पित किया है। वे लम्बे-छरहरे थे। पान अधिक खाने से उनके दाँत काले पड़ गए थे, किन्तु उनकी वाणी में मिठास थी। जो भी इनके पास आता, इनका ही हो जाता था। वे सरल और सहृदय थे।[2]
साहित्यिक परिचय
चन्द्रबली सिंह ने जो आलोचनात्मक निबंध लिखे हैं, वे उनकी दो पुस्तकों में संकलित हैं-
- लोकदृष्टि और हिन्दी साहित्य
- आलोचना का जनपद
चूँकि वे अंग्रेज़ी कविता के मर्मज्ञ थे, छठे दशक में नाजिम हिकमत की कविताओं के अनुवाद किए थे, जो पुस्तकाकार ‘हाथ’ शीर्षक से छपा था। साहित्य अकादमी से उनकी पाब्लो नेरूदा की कविताओं का एक संचयन प्रकाशित हुआ था। अपनी मृत्यु के पूर्व उन्होंने एमिली डिकिन्सन, वाल्ट ह्निटमन एवं बर्तोल्ट ब्रेख्त की कविताओं के अनुवाद किए थे, जो महात्मा गाँधी अंतराष्ट्रीय विश्वविद्यालय के सहयोगी से वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया है। खेद का विषय यह है कि वे इन किताबों को प्रकाशित रूप में नहीं देख पाए। वाल्ट ह्निटमन अमरीका के राष्ट्रीय कवि हैं। वे कविता में मुक्तछंद के जन्मदाता हैं। ‘घास की पत्तियाँ’ उनकी अमर कृति है, जिसकी लोकप्रियता देश-देशान्तर में है। चन्द्रबली सिंह युवावस्था से ही उनकी कविताओं के मर्मज्ञ अध्येता रहे हैं। उन्होंने ह्निटमन की कविताओं का लन्मयता में डूबकर हिन्दी में रूपान्तर किया है। यह पुस्तक चन्द्रबली सिंह की उम्र भर की साधना का प्रतिफल है। अमरीका के इस महान् कवि के महत्त्व को हिन्दी के प्रारम्भिक दो साहित्य-निर्माताओं ने बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही स्वीकार कर लिया था और चन्द्रबली सिंह ने उनकी महत्ता को समग्रता में पहली बार उजागर किया। उन्होंने वाल्ट ह्निटमन की संक्षिप्त जीवनी के साथ-साथ उनकी कविताओं पर विस्तार से विचार किया है।[2]
सास्कृतिक आंदोलन के समर्थक
चन्द्रबली जी रामविलास शर्मा, त्रिलोचन शास्त्री की पीढी़ से लेकर प्रगतिशील संस्कृतिकर्मियों की युवतम पीढ़ी के साथ चलने की कुव्वत रखते थे। वे जनवादी लेखक संघ के संस्थापक महासचिव और बाद में अध्यक्ष रहे। उससे पहले तक वे प्रगतिशील लेखक संघ के महत्वपुर्ण स्तम्भ थे। जन संस्कृति मंच के साथ उनके आत्मीय संबंध ताजिन्दगी रहे। बाबरी मस्जिद ढहाए जाने के बाद राष्ट्रीय एकता अभियान के तहत सांस्कृतिक संगठनों के साझा अभियान की कमान बनारस में उन्हीं के हाथ थी और इस दौर में उनके और हमारे संगठन के बीच जो आत्मीय रिश्ता क़ायम हुआ, वह सदैव ही चलता रहा। उनके साक्षात्कार ‘समकालीन जनमत’ में प्रकाशित हुए। चन्द्रबली जी वाम सास्कृतिक आंदोलन के समन्वय के प्रखर समर्थक रहे।
चन्द्रबली जी ने मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के भीतर की बहसों के उन्नत रूप और स्तर के लिए हरदम ही संघर्ष किया। ‘नई चेतना’ 1951 में उनका लेख छपा था- ‘साहित्य का संयुक्त मोर्चा’। (बाद में वह ‘आलोचना का जनपक्ष’ पुस्तक में संकलित भी हुआ। चन्द्रबली जी ने इस लेख में लिखा, ‘सबसे अधिक निर्लिप्त और उद्देश्यपूर्ण आलोचना आत्मालोचना कम्यूनिस्ट- लेखकों और आलोचकों की और से आनी चाहिए। उन्हें अपने भटकावों को स्वीकार करने में किसी प्रकार की झेंप या भीरुता नहीं दिखलानी चाहिए, क्योंकि जागरूक क्रांतिकारी की यह सबसे बड़ी पहचान है कि वह आम जनता को अपने साथ लेकर चलता है और वह यह जानता है कि दूसरों की आलोचना के साथ-साथ जब तक वह अपनी भी आलोचना नहीं करता, तब तक वह न सिर्फ जनता को ही साथ न ले सकेगा, वरन् स्वयं भी वह अपने लिए सही मार्ग का निर्धारण नहीं करा पाएगा। दूसरों की आलोचना में भी चापलूसी करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि चापलूसी उन्हें कुछ समय तक धोखा दे सकती है, किन्तु उन्हें सुधार नहीं सकती। मैत्रीपूर्ण आलोचना का यह अर्थ नहीं कि हम दूसरों की गलतियों को जानते हुए भी छिपाकर रखें। आत्मालोचना के स्तर और रूप की यही विशेषता- मार्क्सवादी आलोचना होनी चाहिए कि हम उसके सहारे आगे बढ़ सकें।’[3]
गद्य को पहुँचाया उत्कर्ष पर
आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद आचोलना का ऐसा समर्थ स्तबक किसी ने नहीं लिखा, लेकिन चंद्रबली सिंह ने गद्य को उत्कर्ष पर पहुंचाया। मैं भी ऐसा गद्य नहीं लिख सकता। यह बात वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह ने जनवादी लेखक संघ केंद्र की ओर से प्रोफेसर चंद्रबली सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते समय साहित्य अकादमी के सभागार में आयोजित सभा में कही। उन्होंने कहा कि चंद्रबली ने जिन छह कवियों को अनुवाद के लिए चुना उनमें पाब्लो नेरुदा, नाजिम हिकमत, मायकोव्स्की, वाल्ट ह्विटमैन, एमिली डिकिन्सन और ब्रेख्त हैं। इन सबने फासिज्म के विरोध में तथा मानवीय उत्पीड़न के विरोध में यथार्थवादी कविताएं लिखी थीं। इस चयन से उनकी आलोचनात्मक कसौटी का पता चलता है। उन्होंने कहा कि चंद्रकांता संतति पर पहली बार चंद्रबली सिंह ने ही विस्तार से विचार किया और खड़ी बोली हिंदी के कथा साहित्य के विकास में देवकीनंदन खत्री की दृष्टि को सकरात्मक रूप से प्रस्तुत किया। जनवादी लेखक संघ के महासचिव मुरली मनोहर प्रसाद सिंह ने कहा कि द्वंद्वात्मक एवं ऐतिहासिक दृष्टि की प्रखरता उनकी आलोचना में जिस तरह से उभरी है, उससे सीख लेने की ज़रूरत है। वह साहित्य के सभी क्षेत्रों में बहुविज्ञ पंडित थे। नागरी प्रचारिणी सभा के विश्वकोश में जितनी भी यूरोपीय साहित्य की टिप्पणी छपीं, वे चंद्रबली जी ने ही लिखीं। विश्व साहित्य की दृष्टि से भी उनका ज्ञान बहुत व्यापक था। आलोचना की प्रांजल भाषा लिखने के हिसाब से वह अद्वितीय थे।[4]
निधन
हिन्दी के सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, संगठनकर्ता और विश्व कविता के श्रेष्टतम अनुवादकों में शुमार कामरेड चन्द्रबली सिंह का 23 मई, 2011 को 87 वर्ष की आयु में बनारस में निधन हो गया। चन्द्रबली जी का जाना एक ऐसे कर्मठ वाम बुद्धिजीवी का जाना है, जो मार्क्सवादी सांस्कृतिक आन्दोलन के हर हिस्से में बराबर समादृत और प्रेरणा का स्रोत रहा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ काशी के साहित्यकार (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 24 जनवरी, 2014।
- ↑ 2.0 2.1 यायावर, भारत। अमरीका का वह निराला कवि (हिंदी) रविवार डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 15 अप्रॅल, 2014।
- ↑ चन्द्रबली सिंह के रूप में प्रेरणा स्रोत खो दिया (हिंदी) लेखक मंच। अभिगमन तिथि: 15 अप्रॅल, 2014।
- ↑ चंद्रबली सिंह ने गद्य को उत्कर्ष पर पहुंचाया : नामवर सिंह (हिंदी) लेखक मंच। अभिगमन तिथि: 15 अप्रॅल, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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