गिरिराज किशोर: Difference between revisions
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गिरिराज किशोर | {{सूचना बक्सा साहित्यकार | ||
गिरिराज किशोर | |चित्र=Giriraj-Kishor.jpg | ||
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}}'''गिरिराज किशोर''' ([[अंग्रेज़ी]]: Giriraj Kishore; जन्म- [[8 जुलाई]], [[1937]], मुजफ़्फ़रनगर; मृत्यु- [[9 फ़रवरी]], [[2020]], [[कानपुर]]) [[हिन्दी]] के प्रसिद्ध [[उपन्यासकार]] होने के साथ-साथ एक सशक्त कथाकार, नाटककार और आलोचक हैं। एक [[कहानीकार]] के रूप में भी इन्होंने पर्याप्त ख्याति अर्जित की है। गिरिराज किशोर के सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक [[निबंध]] विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से प्रकाशित होते रहे हैं। आपने बालकों के लिए भी अनेक लेख लिखे हैं। इनका [[उपन्यास]] 'ढाई घर' अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। वर्ष [[1991]] में प्रकाशित इस कृति को [[1992]] में ही '[[साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी|साहित्य अकादमी पुरस्कार]]' से सम्मानित कर दिया गया था। गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया 'पहला गिरमिटिया' नामक उपन्यास [[महात्मा गाँधी]] के [[अफ़्रीका]] प्रवास पर आधारित था, जिसने इन्हें विशेष पहचान दिलाई। | |||
==शिक्षा व कार्यक्षेत्र== | ==शिक्षा व कार्यक्षेत्र== | ||
गिरिराज किशोर का | गिरिराज किशोर का जन्म [[8 जुलाई]], [[1937]] को [[उत्तर प्रदेश]] के मुजफ़्फ़रनगर में हुआ था। अपनी शिक्षा के अंतर्गत उन्होंने 'मास्टर ऑफ़ सोशल वर्क' की डिग्री [[1960]] में 'समाज विज्ञान संस्थान', [[आगरा]] से प्राप्त की थी। गिरिराज किशोर [[1960]] से [[1964]] तक उत्तर प्रदेश सरकार में सेवायोजन अधिकारी व प्रोबेशन अधिकारी भी रहे थे। [[1964]] से [[1966]] तक [[इलाहाबाद]] में रहकर स्वतन्त्र लेखन किया। फिर [[जुलाई]], 1966 से [[1975]] तक 'कानपुर विश्वविद्यालय' में सहायक और उप-कुलसचिव के पद पर सेवारत रहे। आई.आई.टी. [[कानपुर]] में [[1975]] से [[1983]] तक रजिस्ट्रार के पद पर रहे और वहाँ से कुलसचिव के पद से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। वर्ष [[1983]] से [[1997]] तक 'रचनात्मक लेखन एवं प्रकाशन केन्द्र' के अध्यक्ष रहे। गिरिराज किशोर [[साहित्य अकादमी]], [[नई दिल्ली]] की कार्यकारिणी के भी सदस्य रहे। रचनात्मक लेखन केन्द्र उनके द्वारा ही स्थापित किया गया था। आप हिन्दी सलाहकार समिति, रेलवे बोर्ड के सदस्य भी रहे।<ref>{{cite web |url=http://www.blogger.com/profile/03766307171336096893 |title=गिरिराज किशोर |accessmonthday=12 जुलाई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
====फैलोशिप==== | |||
1998 | वर्ष [[1998]] से [[1999]] तक संस्कृति मंत्रालय, [[भारत सरकार]] ने गिरिराज किशोर को 'एमेरिट्स फैलोशिप' दी। [[2002]] में 'छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, [[कानपुर]] द्वारा डी.लिट. की मानद् उपाधि दी गयी। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, [[शिमला]] में [[मई]], 1999-[[2001]] तक फैलो रहे।<ref>{{cite web |url=http://www.sangaman.com/sangaman%20family/girirajkishor.htm |title=गिरिराज किशोर, संस्थापक सदस्य|accessmonthday=12 जुलाई |accessyear=2011 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | ||
==प्रतिभा सम्पन्न लेखक== | |||
गिरिराज किशोर के सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक [[निबंध]] पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। ये बालकों के लिए भी लिखते रहे हैं। इस तरह गिरिराज किशोर एक बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न लेखक हैं। गिरिराज किशोर को सर्वाधिक कीर्ति औपन्यासिक लेखन के माध्यम से ही प्राप्त हुई। वर्तमान में गिरिराज जी स्वतंत्र लेखन तथा कानपुर से निकलने वाली [[हिन्दी]] त्रैमासिक पत्रिका 'अकार' त्रैमासिक के संपादन में संलग्न हैं। | |||
====प्रसिद्धि==== | |||
गिरिराज किशोर के सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक निबंध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। ये बालकों के लिए भी लिखते रहे हैं। इस तरह गिरिराज किशोर एक बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न लेखक हैं। गिरिराज किशोर को सर्वाधिक कीर्ति औपन्यासिक लेखन के माध्यम से ही प्राप्त हुई। वर्तमान में गिरिराज जी स्वतंत्र लेखन तथा कानपुर से निकलने वाली [[हिन्दी]] त्रैमासिक पत्रिका 'अकार' त्रैमासिक के संपादन में संलग्न हैं। | लेखक की शुरुआती दौर में लिखी गयी किसी मशहूर कृति की छाया से बाद की रचनायें निकल नहीं पातीं। गिरिराज जी का लेखन इसका अपवाद है और इनकी हर नयी रचना का क़द पिछली रचना से के क़द से ऊंचा होता गया। देश के इस प्रख्यात साहित्यकार को 'कनपुरिये' अपना ख़ास गौरव मानते हैं। अपनी विनम्रता, सौजन्यता के लिये जाने जाने वाले गिरिराज जी मानते हैं - | ||
सख्त से सख्त बात शिष्टाचार के आज घेरे में रहकर भी कही जा सकती है। हम लेखक हैं। शब्द ही हमारा जीवन है और हमारी शक्ति भी ।उसको बढ़ा सकें तो बढ़ायें, कम न करें। भाषा बड़ी से बड़ी गलाजत ढंक लेती है।<ref>{{cite web |url=http://kanpurnama.blogspot.com/2008/05/blog-post_07.html|title=गिरिराज किशोर जी से बातचीत|accessmonthday=12जुलाई|accessyear=2011|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> | |||
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Latest revision as of 07:06, 11 September 2021
गिरिराज किशोर
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पूरा नाम | गिरिराज किशोर |
जन्म | 8 जुलाई, 1937 |
जन्म भूमि | मुजफ़्फ़रनगर, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 9 फ़रवरी, 2020 |
मृत्यु स्थान | कानपुर, उत्तर प्रदेश |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | साहित्य |
मुख्य रचनाएँ | 'ढाई घर', 'पहला गिरमिटिया', 'शहर-दर-शहर', 'पेपरवेट', 'दावेदार', 'यातनाघर', 'जुगलबन्दी' आदि। |
भाषा | हिन्दी |
विद्यालय | 'समाज विज्ञान संस्थान', आगरा |
शिक्षा | 'मास्टर ऑफ़ सोशल वर्क', |
पुरस्कार-उपाधि | 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' (1992), 'पद्मश्री' (2007), 'व्यास सम्मान' (2000), 'वीरसिंह देव पुरस्कार', 'भारतेन्दु पुरस्कार' आदि। |
प्रसिद्धि | उपन्यासकार, कहानीकार, नाटककार और आलोचक। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | वर्ष 1998 से 1999 तक संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने गिरिराज किशोर को 'एमेरिट्स फैलोशिप' दी थी। 2002 में 'छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा डी.लिट. की मानद उपाधि दी गयी। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
गिरिराज किशोर (अंग्रेज़ी: Giriraj Kishore; जन्म- 8 जुलाई, 1937, मुजफ़्फ़रनगर; मृत्यु- 9 फ़रवरी, 2020, कानपुर) हिन्दी के प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ-साथ एक सशक्त कथाकार, नाटककार और आलोचक हैं। एक कहानीकार के रूप में भी इन्होंने पर्याप्त ख्याति अर्जित की है। गिरिराज किशोर के सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक निबंध विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से प्रकाशित होते रहे हैं। आपने बालकों के लिए भी अनेक लेख लिखे हैं। इनका उपन्यास 'ढाई घर' अत्यन्त लोकप्रिय हुआ था। वर्ष 1991 में प्रकाशित इस कृति को 1992 में ही 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' से सम्मानित कर दिया गया था। गिरिराज किशोर द्वारा लिखा गया 'पहला गिरमिटिया' नामक उपन्यास महात्मा गाँधी के अफ़्रीका प्रवास पर आधारित था, जिसने इन्हें विशेष पहचान दिलाई।
शिक्षा व कार्यक्षेत्र
गिरिराज किशोर का जन्म 8 जुलाई, 1937 को उत्तर प्रदेश के मुजफ़्फ़रनगर में हुआ था। अपनी शिक्षा के अंतर्गत उन्होंने 'मास्टर ऑफ़ सोशल वर्क' की डिग्री 1960 में 'समाज विज्ञान संस्थान', आगरा से प्राप्त की थी। गिरिराज किशोर 1960 से 1964 तक उत्तर प्रदेश सरकार में सेवायोजन अधिकारी व प्रोबेशन अधिकारी भी रहे थे। 1964 से 1966 तक इलाहाबाद में रहकर स्वतन्त्र लेखन किया। फिर जुलाई, 1966 से 1975 तक 'कानपुर विश्वविद्यालय' में सहायक और उप-कुलसचिव के पद पर सेवारत रहे। आई.आई.टी. कानपुर में 1975 से 1983 तक रजिस्ट्रार के पद पर रहे और वहाँ से कुलसचिव के पद से उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। वर्ष 1983 से 1997 तक 'रचनात्मक लेखन एवं प्रकाशन केन्द्र' के अध्यक्ष रहे। गिरिराज किशोर साहित्य अकादमी, नई दिल्ली की कार्यकारिणी के भी सदस्य रहे। रचनात्मक लेखन केन्द्र उनके द्वारा ही स्थापित किया गया था। आप हिन्दी सलाहकार समिति, रेलवे बोर्ड के सदस्य भी रहे।[1]
फैलोशिप
वर्ष 1998 से 1999 तक संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार ने गिरिराज किशोर को 'एमेरिट्स फैलोशिप' दी। 2002 में 'छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय, कानपुर द्वारा डी.लिट. की मानद् उपाधि दी गयी। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, राष्ट्रपति निवास, शिमला में मई, 1999-2001 तक फैलो रहे।[2]
प्रतिभा सम्पन्न लेखक
गिरिराज किशोर के सम-सामयिक विषयों पर विचारोत्तेजक निबंध पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं। ये बालकों के लिए भी लिखते रहे हैं। इस तरह गिरिराज किशोर एक बहुआयामी प्रतिभा सम्पन्न लेखक हैं। गिरिराज किशोर को सर्वाधिक कीर्ति औपन्यासिक लेखन के माध्यम से ही प्राप्त हुई। वर्तमान में गिरिराज जी स्वतंत्र लेखन तथा कानपुर से निकलने वाली हिन्दी त्रैमासिक पत्रिका 'अकार' त्रैमासिक के संपादन में संलग्न हैं।
प्रसिद्धि
लेखक की शुरुआती दौर में लिखी गयी किसी मशहूर कृति की छाया से बाद की रचनायें निकल नहीं पातीं। गिरिराज जी का लेखन इसका अपवाद है और इनकी हर नयी रचना का क़द पिछली रचना से के क़द से ऊंचा होता गया। देश के इस प्रख्यात साहित्यकार को 'कनपुरिये' अपना ख़ास गौरव मानते हैं। अपनी विनम्रता, सौजन्यता के लिये जाने जाने वाले गिरिराज जी मानते हैं - सख्त से सख्त बात शिष्टाचार के आज घेरे में रहकर भी कही जा सकती है। हम लेखक हैं। शब्द ही हमारा जीवन है और हमारी शक्ति भी ।उसको बढ़ा सकें तो बढ़ायें, कम न करें। भाषा बड़ी से बड़ी गलाजत ढंक लेती है।[3]
रचनाएँ
- प्रकाशित कृतियां -
उपन्यासों के अतिरिक्त दस कहानी संग्रह, सात नाटक, एक एकांकी संग्रह, चार निबंध संग्रह तथा महात्मा गांधी की जीवनी 'पहला गिरमिटिया' प्रकाशित हो चुका है।
- कहानी संग्रह -
- नीम के फूल,
- चार मोती बेआब,
- पेपरवेट,
- रिश्ता और अन्य कहानियां,
- शहर -दर -शहर,
- हम प्यार कर लें,
- जगत्तारनी एवं अन्य कहानियां,
- वल्द रोज़ी,
- यह देह किसकी है?
- कहानियां पांच खण्डों में 'मेरी राजनीतिक कहानियां'
- 'हमारे मालिक सबके मालिक'
- उपन्यास
इनके द्वारा लिखित उपन्यास इस प्रकार हैं-
- लोग (1966)
- चिड़ियाघर (1968)
- यात्राएँ (1917)
- जुगलबन्दी (1973)
- दो (1974)
- इन्द्र सुनें (1978)
- दावेदार (1979)
- यथा प्रस्तावित (1982)
- तीसरी सत्ता (1982)
- परिशिष्ट (1984)
- असलाह (1987)
- अंर्तध्वंस (1990)
- ढाई घर (1991)
- यातनाघर (1997)
- पहला गिरमिटिया (1999)
- आठ लघु उपन्यास अष्टाचक्र के नाम से दो खण्डों में ।
- पहला गिरमिटिया - गाँधी जी के दक्षिण अफ्रीकी अनुभव पर आधारित महाकाव्यात्मक उपन्यास।
- नाटक -
- नरमेध,
- प्रजा ही रहने दो,
- चेहरे - चेहरे किसके चेहरे,
- केवल मेरा नाम लो,
- जुर्म आयद,
- काठ की तोप।
- लघुनाटक
बच्चों के लिए एक लघुनाटक ' मोहन का दु:ख'
- लेख/निबंध -
- संवादसेतु,
- लिखने का तर्क,
- सरोकार,
- कथ-अकथ,
- समपर्णी,
- एक जनभाषा की त्रासदी,
- जन-जन सनसत्ता
पुरस्कार
गिरिराज किशोर का उपन्यास ‘ढाई घर’ अत्यन्त लोकप्रिय हुआ। 1991 में प्रकाशित इस कृति को 1992 में ही 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' प्राप्त हुआ। महात्मा गांधी के अफ़्रीका प्रवास पर आधारित ‘पहला गिरमिटिया’ भी काफ़ी लोकप्रिय हुआ, पर ‘ढाई घर’ औपन्यासिक क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना चुका है। राष्ट्रपति द्वारा 23 मार्च 2007 को 'साहित्य और शिक्षा' के लिए 'पद्मश्री' पुरस्कार से विभूषित किया गया था। उत्तर प्रदेश के 'भारतेन्दु पुरस्कार' नाटक पर, 'परिशिष्ट' उपन्यास पर 'मध्यप्रदेश साहित्य परिषद' के 'वीरसिंह देव पुरस्कार', 'उत्तर प्रदेश हिन्दी सम्मेलन' के 'वासुदेव सिंह स्वर्ण पदक' तथा 'ढाई घर' उ.प्र.के लिये हिन्दी संस्थान के 'साहित्य भूषण' पुरस्कार से सम्मानित किये गये। 'भारतीय भाषा परिषद' का 'शतदल सम्मान' मिला। 'पहला गिरमिटिया' उपन्यास पर 'के.के. बिरला फाउण्डेशन' द्वारा 'व्यास सम्मान' और जे. एन. यू. में आयोजित 'सत्याग्रह शताब्दी विश्व सम्मेलन' में सम्मानित किया गया।[4]
मृत्यु
पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ हिंदी साहित्यकार गिरिराज किशोर का निधन रविवार के दिन 9 फ़रवरी, 2020 को कानपुर में उनके आवास पर हृदय गति रुकने से हुआ। वह 83 वर्ष के थे। अपने लोकप्रिय उपन्यासों जैसे ‘ढाई घर’ और 'पहला गिरमिटिया' आदि के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ गिरिराज किशोर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 जुलाई, 2011।
- ↑ गिरिराज किशोर, संस्थापक सदस्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 जुलाई, 2011।
- ↑ गिरिराज किशोर जी से बातचीत (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12जुलाई, 2011।
- ↑ गिरिराज किशोर, संस्थापक सदस्य (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 12 जुलाई, 2011।
बाहरी कड़ियाँ
- गिरिराज किशोर जी से बातचीत
- गिरिराज किशोर, संस्थापक सदस्य
- फिलहाल
- गिरिराज किशोर
- Guidelines for Emeritus Fellowship
संबंधित लेख
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