गुणाढ्य

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एक विवरण के अनुसार प्रतिष्ठान निवासी कीर्तीसेन के पुत्र गुणाढ्य ने दक्षिणापथ में विद्यार्जन किया और सातवाहन राजा ने उन्हें अपना मंत्री नियुक्त किया। अन्य विवरण के अनुसार राजा को अल्पकाल में संस्कृत व्याकरण सिखाने की प्रतिज्ञा में पराजित होकर उन्हें अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार न केवल नगर छोड़ना पड़ा वरन संस्कृत, पाली और प्राकृत भाषा छोड़ कर पैशाची का आश्रय लेना पड़ा। कुछ विद्वान इन्हें कश्मीर क़ा निवासी मानते हैं।

  • यद्यपि गुणाढ्य द्वारा रचित पैशाची भाषा का आख्यायिका ग्रंथ 'बड़ कथा'[1] उपलब्ध नहीं है परंतु प्राचीन ग्रंथों में उनका उल्लेख अनेक बार होने से उनका महत्त्व प्रकट है।
  • गुणाढ्य ने पैशाची में सात लाख कथाओं की 'बड़ कथा' की रचना की थी। बाद में सातवाहन नरेश की राज्यसभा में सम्मान न मिलने से उन्होंने इस विशाल ग्रंथ को अग्नि में समर्पित कर दिया। अब संस्कृत रुपांतरित इसके केवल 7,500 श्लोक उपलब्ध बताये जाते हैं।
  • विद्वानों का मत है कि भारतीय सहित्य की दो धाराएँ आदि काल से ही प्रचलित रही हैं। एक धारा वेद, पुराण आदि की थी और दूसरी उसी के समनांतर लोक प्रचलित कथाओं की धारा थी। गुणाढ्य ने इसी कथा धारा को संकलित करने का महान कार्य किया।
  • इसलिये कुछ आचार्य बड़ कथा को व्यास और वाल्मीकि की रचनाओं के क्रम में तीसरी महान कृति मानकर गुणाढ्य को व्यास का अवतार मानते हैं।
  • गुणाढ्य के समय के संबंध में एक मत नहीं हैं। इनका कार्यकाल तीसरी-चौथी शताब्दी में किसी समय अनुमानित है।

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  1. वृहत् कथा

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