डी. जयकान्तन

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दण्डपाणि जयकान्तन (अंग्रेज़ी: Dhandapani Jayakanthan, जन्म- 24 अप्रॅल, 1934; मृत्यु- 8 अप्रॅल, 2015) प्रसिद्ध तेलुगु साहित्यकार थे। वह भारतीय साहित्य के सबसे अच्छे लेखकों में से एक थे। पांच दशक से भी अधिक समय तक एक लेखक और शायद स्वतंत्रता के बाद के सबसे महान भारतीय लेखकों में से एक डी. जयकान्तन निश्चित रूप से दुनिया के सर्वश्रेष्ठ रचनात्मक बुद्धिजीवियों में से थे। डी. जयकान्तन केवल एक बहुमुखी तमिल लेखक ही नहीं थे, अपितु वह एक लघु कथाकार और उपन्यासकार भी थे। एक निबन्धकार, पत्रकार, निर्देशक और आलोचक के रूप में भी वह जाने जाते थे।

परिचय

डी. जयकान्तन का जन्म 24 अप्रॅल सन 1934 को कुड्डालोर, मद्रास (वर्तमान चेन्नई) में आज़ादी पूर्व हुआ था। उनकी स्कूली शिक्षा मात्र पाँच साल ही रही। घर से भाग कर बारह साल के डी. जयकान्तन अपने चाचा के यहाँ पहुँचे। जिनसे उन्होंने कम्युनिज़्म के बारे में सीखा। बाद में मद्रास आकर वह 'भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी' की पत्रिका 'जनशक्ति' में काम करने लगे। दिन में प्रेस में काम करते और शाम को सड़कों पर पत्रिका बेचते।

लेखन शैली

उन्हें विश्व साहित्य, संस्कृति, राजनीति, अर्थशास्त्र और पत्रकारिता से संबंधित पुस्तकों के सागर में डूबने का मौका मिला। इस समय के दौरान, डी. जयकान्तन ने पार्टी में नेताओं के प्रोत्साहन पर लिखना शुरू किया। जयकांत की रचनाओं ने भारतीय समाज के हाशिए और दलित संप्रदायों से निर्वाह किया। उन्होंने लगभग 40 उपन्यास, 200 लघु कथाएँ और दो आत्मकथात्मक नोट्स की रचना की थी। अपनी कहानियों और उपन्यासों में वह मध्यम वर्ग और पक्ष-पंक्ति वाले समुदाय के अनकहे संघर्षों को संबोधित करते हैं। डी. जयकान्तन को अच्छी तरह से रूढ़िवादी समाज में चर्चा में नहीं आने वाले विवादास्पद और वर्जित विषयों के लिए जाना जाता है। उनकी लेखन शैली अविश्वसनीय रूप से अभी तक गहन रूप से घनी है। उनके काम दिल से बोलते हैं, आलोचना करते हैं और सामाजिक व्यवस्था और असमानता पर सवाल उठाते हैं।[1]

निडर लेखक

डी. जयकान्तन एक निडर लेखक थे जिन्होंने न्याय के अलावा कुछ नहीं किया। उन्होंने औसत लोगों की दुनिया, सामाजिक पूर्वाग्रह, शहरी श्रमिक वर्ग के संघर्ष, मानवीय कमजोरियों, आत्म-आत्मनिरीक्षण की अंतर्दृष्टि, महिलाओं के दुस्साहस और बौद्धिक अस्तित्व के दबावों से अलग शक्तिशाली तत्वों को जन्म दिया। डी. जयकान्तन की रचनाएँ छापने पर पाठकों के बीच उत्साह और जोश पैदा करने में सक्षम थीं। उन्होंने पाठकों को सीमाओं से परे चिंतन कराया। साहित्यिक आलोचना तमिल साहित्य के डी. जयकान्तन को एक अलग खंड के रूप में प्रतिष्ठित करती है, जिसमें लेखकों के काम डी. जयकान्तन के लेखन से प्रभावित थे।

उपन्यास पर फ़िल्म निर्माण

डी. जयकान्तन के उपन्यास 'सिला नेरंगालिल सिला मनिथरगल', 'ओरु नादिगै नादगाम पार्किरल', 'यरुक्कागा अजुधन' और 'ओरुकु नोरुपर' सभी को फिल्मों में रूपांतरित किया गया है।[1]

अनुवाद

डी. जयकान्तन ने अनुवाद भी किया। कैप्टन की बेटी, रूसी लेखक अलेक्जेंडर पुश्किन द्वारा तमिल में एक ऐतिहासिक उपन्यास। उनकी कई छोटी कहानियों का सभी भारतीय भाषाओं, रूसी और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था।

पुरस्कार व सम्मान

  • डी. जयकान्तन को सन 1978 में 'सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड' और 2002 में 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया, जो भारत में दो सबसे प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मान हैं।
  • वह भारत के सर्वोच्च साहित्यिक पुरस्कार 'ज्ञानपीठ ज्ञानपेदम' पाने वाले दूसरे तमिल लेखक भी थे। उनसे पहले अकिलन थे।
  • उपन्यास 'शिल नेरंगळिल शिल मणितर्कळ' के लिये उन्हें सन 1972 में 'साहित्य अकादमी पुरस्कार (तमिल) से सम्मानित किया गया।[1]

मृत्यु

डी. जयकान्तन की 8 अप्रैल, 2015 को मृत्यु हुई।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 जयकान्तन, तमिल साहित्य का प्रतीक (हिंदी) hi.desiblitz.com। अभिगमन तिथि: 29 सितंबर, 2021।

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