गणतंत्र दिवस का इतिहास: Difference between revisions

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'''गणतंत्र दिवस''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Republic Day'') [[भारत]] में [[26 जनवरी]] को मनाया जाता है और यह भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है। हर [[वर्ष]] 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्‍येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्‍नेह भर उठता है। ऐसी अनेक महत्त्वपूर्ण स्‍मृतियां हैं जो इस दिन के साथ जुड़ी हुई है। 26 जनवरी, [[1950]] को देश का संविधान लागू हुआ और इस प्रकार यह सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोक‍तांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया।
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==इतिहास==
==इतिहास==
[[भारत का संविधान|भारत के संविधान]] को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्त्व था। 26 जनवरी को विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, [[31 दिसंबर]] सन् [[1929]] के मध्‍य रात्रि में राष्‍ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए [[लाहौर]] में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] का अधिवेशन [[जवाहरलाल नेहरू|पंडित जवाहरलाल नेहरू]] की अध्यक्षता में हु‌आ,[[चित्र:Tricolor.jpg|thumb|250px|left|[[राष्‍ट्रीय ध्‍वज]]]] जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की ग‌ई कि यदि [[अंग्रेज़]] सरकार 26 जनवरी, [[1930]] तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा।
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[[भारत]] के पहले [[गणतंत्र दिवस]] पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) जगमग रोशनी से गुलजार था जहां भारत के गणतंत्र के रूप में दुनिया के पटल पर उभरने के साक्षी रहे लोगों में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो शामिल थे। ‘रेमिनिसेंस ऑफ फर्स्ट रिपब्लिक डे’ के अनुसार, [[26 जनवरी]] [[1950]] को देश के पहले गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस में कई देशों के राजनयिकों और सुकर्णो सहित 500 से अधिक अतिथि थे। इन सब अतिथियों के बीच देश के अंतिम गर्वनर जनरल [[सी. राजगोपालाचारी]] ने भारत के गणतंत्र बनने की घोषणा करते हुए कहा, ‘इंडिया जो भारत है, वह सम्प्रभुता सम्पन्न लोकतांत्रिक गणतंत्र होगा।’
[[भारत]] के पहले [[गणतंत्र दिवस]] पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) जगमग रोशनी से गुलजार था जहां भारत के गणतंत्र के रूप में दुनिया के पटल पर उभरने के साक्षी रहे लोगों में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो शामिल थे। ‘रेमिनिसेंस ऑफ फर्स्ट रिपब्लिक डे’ के अनुसार, [[26 जनवरी]] [[1950]] को देश के पहले गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस में कई देशों के राजनयिकों और सुकर्णो सहित 500 से अधिक अतिथि थे। इन सब अतिथियों के बीच देश के अंतिम गर्वनर जनरल [[सी. राजगोपालाचारी]] ने भारत के गणतंत्र बनने की घोषणा करते हुए कहा, ‘इंडिया जो भारत है, वह सम्प्रभुता सम्पन्न लोकतांत्रिक गणतंत्र होगा।’
देश के इतिहास के उस अभूतपूर्व क्षण में स्वतंत्र [[भारत के राष्ट्रपति|भारत के प्रथम राष्ट्रपति]] [[राजेन्द्र प्रसाद]] को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी गई। भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति हीरालाल कानिया ने [[हिन्दी]] में शपथ दिलायी। इस मौके पर राजेन्द्र प्रसाद काली अचकन, उजला चूड़ीदार पाजामा और सफेद गांधी टोपी पहने हुए थे। 20वीं शताब्दी के उस ऐतिहासिक क्षण के गवाहों में निवर्तमान गर्वनर जलरल सी. राजगोपालाचारी, प्रथम प्रधानमंत्री [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]], उपप्रधानमंत्री [[सरदार पटेल|सरदार बल्लभभाई पटेल]], कैबिनेट मंत्री, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के ऑडिटर जनरल आदि मौजूद थे। इस अवसर पर पंडित नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ भी दिलायी गई। लोकसभा के पहले अध्यक्ष [[जी.वी. मावलंकर]] भव्य दरबार हाल में पहली पंक्ति में बैठे हुए थे। दरबार हाल में हर्ष और उल्लास के अविस्मरणीय दृश्य था। देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आए लोग [[राष्ट्रपति भवन]] परिसर के आसपास एकत्र थे। बाद में हजारों की संख्या में लोगों ने [[महात्मा गांधी]] की समाधि ‘[[राजघाट दिल्ली|राजघाट]]’ जाकर अपने प्यारे बापू को श्रद्धांजलि अर्पित की। दरबार हाल में पहली बार [[राष्ट्रीय चिह्न और प्रतीक|राष्ट्रीय प्रतीक]] (चार शेर मुख वाले अशोक स्तम्भ) को उस स्थान पर रखा गया जहां ब्रिटिश वायसराय बैठा करते थे। पहली बार ही वहां सिंहासन के पीछे मुस्कुराते बुद्ध की मूर्ति भी रखी गई थी। प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने सभी उपस्थित लोगों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया और हिन्दी एवं अंग्रेजी में संक्षिप्त भाषण दिया। [[दिल्ली]] समेत देश के अनेक स्थानों पर देश के प्रथम गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रभात फेरी भी निकाली गई और यह परंपरा आज भी जारी है।<ref>{{cite web |url=http://zeenews.india.com/hindi/news/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%80-%E0%A4%A5%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%8B/159356 |title=भारत के गणतंत्र बनने के साक्षी थे सुकर्णो |accessmonthday=22 अप्रैल|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ज़ी न्यूज़ |language=हिंदी }}</ref>
देश के इतिहास के उस अभूतपूर्व क्षण में स्वतंत्र [[भारत के राष्ट्रपति|भारत के प्रथम राष्ट्रपति]] [[राजेन्द्र प्रसाद]] को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी गई। भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति हीरालाल कानिया ने [[हिन्दी]] में शपथ दिलायी। इस मौके पर राजेन्द्र प्रसाद काली अचकन, उजला चूड़ीदार पाजामा और सफेद गांधी टोपी पहने हुए थे। 20वीं शताब्दी के उस ऐतिहासिक क्षण के गवाहों में निवर्तमान गर्वनर जलरल सी. राजगोपालाचारी, प्रथम प्रधानमंत्री [[पंडित जवाहरलाल नेहरू]], उपप्रधानमंत्री [[सरदार पटेल|सरदार बल्लभभाई पटेल]], कैबिनेट मंत्री, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के ऑडिटर जनरल आदि मौजूद थे। इस अवसर पर पंडित नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ भी दिलायी गई। लोकसभा के पहले अध्यक्ष [[जी.वी. मावलंकर]] भव्य दरबार हाल में पहली पंक्ति में बैठे हुए थे। दरबार हाल में हर्ष और उल्लास के अविस्मरणीय दृश्य था। देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आए लोग [[राष्ट्रपति भवन]] परिसर के आसपास एकत्र थे। बाद में हजारों की संख्या में लोगों ने [[महात्मा गांधी]] की समाधि ‘[[राजघाट दिल्ली|राजघाट]]’ जाकर अपने प्यारे बापू को श्रद्धांजलि अर्पित की। दरबार हाल में पहली बार [[राष्ट्रीय चिह्न और प्रतीक|राष्ट्रीय प्रतीक]] (चार शेर मुख वाले अशोक स्तम्भ) को उस स्थान पर रखा गया जहां ब्रिटिश वायसराय बैठा करते थे। पहली बार ही वहां सिंहासन के पीछे मुस्कुराते बुद्ध की मूर्ति भी रखी गई थी। प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने सभी उपस्थित लोगों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया और हिन्दी एवं अंग्रेजी में संक्षिप्त भाषण दिया। [[दिल्ली]] समेत देश के अनेक स्थानों पर देश के प्रथम गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रभात फेरी भी निकाली गई और यह परंपरा आज भी जारी है।<ref>{{cite web |url=http://zeenews.india.com/hindi/news/%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B6/%E0%A4%AD%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%97%E0%A4%A3%E0%A4%A4%E0%A4%82%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0-%E0%A4%AC%E0%A4%A8%E0%A4%A8%E0%A5%87-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%95%E0%A5%8D%E0%A4%B7%E0%A5%80-%E0%A4%A5%E0%A5%87-%E0%A4%B8%E0%A5%81%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A3%E0%A5%8B/159356 |title=भारत के गणतंत्र बनने के साक्षी थे सुकर्णो |accessmonthday=22 अप्रैल|accessyear=2017 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=ज़ी न्यूज़ |language=हिंदी }}</ref>





Revision as of 14:17, 22 April 2017

गणतंत्र दिवस का इतिहास
विवरण प्रत्येक वर्ष का 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्‍येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्‍नेह भर उठता है।
उद्देश्य यह आयोजन हमें देश के सभी शहीदों के नि:स्‍वार्थ बलिदान की याद दिलाता है, जिन्‍होंने आज़ादी के संघर्ष में अपने जीवन बलिदान कर दिए और विदेशी आक्रमणों के विरुद्ध अनेक लड़ाइयाँ जीती।
इतिहास 26 जनवरी, 1950 को देश का संविधान लागू हुआ और इस प्रकार भारत सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोक‍तांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया। भारतीय संविधान, जिसे देश की सरकार की रूपरेखा का प्रतिनिधित्‍व करने वाले पर्याप्‍त विचार विमर्श के बाद विधान मंडल द्वारा अपनाया गया, तब से 26 जनवरी को भारत के गणतंत्र दिवस के रूप में भारी उत्‍साह के साथ मनाया जाता है और इसे राष्‍ट्रीय अवकाश घोषित किया जाता है।
विशेष प्रधानमंत्री द्वारा गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्‍या (25 जनवरी) पर राष्ट्र के नाम संदेश प्रसारित किया जाता है। इसके बाद अगले दिन, जो जवान आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए उनकी याद में इंडिया गेट पर अमर ज्योति जलाई जाती है। इसके शीघ्र बाद 21 तोपों की सलामी दी जाती है और राष्ट्रपति महोदय द्वारा राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराया जाता है एवं राष्‍ट्रगान होता है। महामहिम राष्ट्रपति के साथ एक उल्‍लेखनीय विदेशी राष्ट्र प्रमुख आते हैं, जिन्‍हें आयोजन के मुख्‍य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया जाता है।
संबंधित लेख गणतंत्र दिवस, गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि, बीटिंग द रिट्रीट, स्वतंत्रता दिवस, भारतीय क्रांति दिवस, विजय दिवस, भारत का विभाजन
अन्य जानकारी सबसे पहली बार 21 तोपों की सलामी के बाद भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज को डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने फहरा कर 26 जनवरी, 1950 को भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्‍म की घो‍षणा की। ब्रिटिश राज से आज़ादी पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्‍वतंत्र राज्‍य बना। तब से हर वर्ष पूरे राष्‍ट्र में बड़े उत्‍साह और गर्व से यह दिन मनाया जाता है।

गणतंत्र दिवस (अंग्रेज़ी: Republic Day) भारत में 26 जनवरी को मनाया जाता है और यह भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है। हर वर्ष 26 जनवरी एक ऐसा दिन है जब प्रत्‍येक भारतीय के मन में देश भक्ति की लहर और मातृभूमि के प्रति अपार स्‍नेह भर उठता है। ऐसी अनेक महत्त्वपूर्ण स्‍मृतियां हैं जो इस दिन के साथ जुड़ी हुई है। 26 जनवरी, 1950 को देश का संविधान लागू हुआ और इस प्रकार यह सरकार के संसदीय रूप के साथ एक संप्रभुताशाली समाजवादी लोक‍तांत्रिक गणतंत्र के रूप में भारत देश सामने आया।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें

इतिहास

भारत के संविधान को लागू किए जाने से पहले भी 26 जनवरी का बहुत महत्त्व था। 26 जनवरी को विशेष दिन के रूप में चिह्नित किया गया था, 31 दिसंबर सन् 1929 के मध्‍य रात्रि में राष्‍ट्र को स्वतंत्र बनाने की पहल करते हुए लाहौर में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में हु‌आ,[[चित्र:Tricolor.jpg|thumb|250px|left|राष्‍ट्रीय ध्‍वज]] जिसमें प्रस्ताव पारित कर इस बात की घोषणा की ग‌ई कि यदि अंग्रेज़ सरकार 26 जनवरी, 1930 तक भारत को उपनिवेश का पद (डोमीनियन स्टेटस) नहीं प्रदान करेगी तो भारत अपने को पूर्ण स्वतंत्र घोषित कर देगा।


26 जनवरी, 1930 तक जब अंग्रेज़ सरकार ने कुछ नहीं किया तब कांग्रेस ने उस दिन भारत की पूर्ण स्वतंत्रता के निश्चय की घोषणा की और अपना सक्रिय आंदोलन आरंभ किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इस लाहौर अधिवेशन में पहली बार तिरंगे झंडे को फहराया गया था परंतु साथ ही इस दिन सर्वसम्मति से एक और महत्त्वपूर्ण फैसला लिया गया कि प्रतिवर्ष 26 जनवरी का दिन पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाएगा। इस दिन सभी स्वतंत्रता सेनानी पूर्ण स्वराज का प्रचार करेंगे। इस तरह 26 जनवरी अघोषित रूप से भारत का स्वतंत्रता दिवस बन गया था। उस दिन से 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त होने तक 26 जनवरी स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता रहा।

भारतीय संविधान सभा

उसी समय भारतीय संविधान सभा की बैठकें होती रहीं, जिसकी पहली बैठक 9 दिसंबर, 1946 को हुई, जिसमें भारतीय नेताओं और अंग्रेज़ कैबिनेट मिशन ने भाग लिया। भारत को एक संविधान देने के विषय में कई चर्चाएँ, सिफारिशें और वाद - विवाद किया गया। कई बार संशोधन करने के पश्चात भारतीय संविधान को अंतिम रूप दिया गया जो 3 वर्ष बाद यानी 26 नवंबर, 1949 को आधिकारिक रूप से अपनाया गया।thumb|250px|left|गणतंत्र दिवस के विभिन्न दृश्य 15 अगस्त, 1947 में अंग्रेजों ने भारत की सत्ता की बागडोर जवाहरलाल नेहरू के हाथों में दे दी, लेकिन भारत का ब्रिटेन के साथ नाता या अंग्रेजों का अधिपत्य समाप्त नहीं हुआ। भारत अभी भी एक ब्रिटिश कॉलोनी की तरह था, जहाँ की मुद्रा पर जॉर्ज 6 की तस्वीरें थी। आज़ादी मिलने के बाद तत्कालीन सरकार ने देश के संविधान को फिर से परिभाषित करने की ज़रूरत महसूस की और संविधान सभा का गठन किया जिसकी अध्यक्षता डॉ. भीमराव अम्बेडकर को मिली, 25 नवम्बर, 1949 को 211 विद्वानों द्वारा 2 महीने और 11 दिन में तैयार देश के संविधान को मंजूरी मिली। [[चित्र:fist repablicday.jpg|thumb|250px|सन 1950, प्रथम गणतंत्र दिवस में जवाहरलाल नेहरू]]


24 जनवरी, 1950 को सभी सांसदों और विधायकों ने इस पर हस्ताक्षर किए। और इसके दो दिन बाद यानी 26 जनवरी 1950 को संविधान लागू कर दिया गया। इस अवसर पर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भारत के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली तथा 21 तोपों की सलामी के बाद 'इर्विन स्‍टेडियम' में भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज 'तिरंगा' को फहराकर भारतीय गणतंत्र के ऐतिहासिक जन्‍म की घो‍षणा की थी। 26 जनवरी का महत्त्व बना‌ए रखने के लि‌ए विधान निर्मात्री सभा (कांस्टीट्यू‌एंट असेंबली) द्वारा स्वीकृत संविधान में भारत के गणतंत्र स्वरूप को मान्यता प्रदान की ग‌ई। इस तरह से 26 जनवरी एक बार फिर सुर्खियों में आ गया। यह एक संयोग ही था कि 'कभी भारत का पूर्ण स्वराज दिवस के रूप में मनाया जाने वाला दिन अब भारत का गणतंत्र दिवस' बन गया था। अंग्रेजों के शासनकाल से छुटकारा पाने के 894 दिन बाद हमारा देश स्‍वतंत्र राष्ट्र बना। तब से आज तक हर वर्ष राष्‍ट्रभर में बड़े गर्व और हर्षोल्लास के साथ गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। तदनंतर स्वतंत्रता प्राप्ति के वास्तविक दिन 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में स्वीकार किया गया। यही वह दिन था जब 1965 में हिन्दी को भारत की राजभाषा घोषित किया गया।

कांग्रेस अधिवेशन और मुस्लिम लीग

26 जनवरी सन् 1930 को ही कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में रावी के किनारे पूर्ण स्वतंत्रता प्रस्ताव पास करके आज़ादी का जश्न मनाया था। उसी वक़्त से सारे देश में हर साल 26 जनवरी को पूर्ण स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाने लगा था।thumb|250px|left|अग्नि मिसाइल, गणतंत्र दिवस जुलाई 1946 में संविधान सभा का चुनाव हुआ, जिसमें 296 सदस्यों की सभा में से मुस्लिम लीग को 73 और कांग्रेस को 211 स्थान मिले थे। कांग्रेस के नेताओं ने पं. जवाहरलाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, सरदार बल्लभ भाई पटेल, गोविन्द बल्लभ पन्त, बी. जी. खेर, डॉ. पुरुषोत्तम दास टण्डन, मौलाना अबुलकलाम आज़ाद, खान अब्दुल गफ़्फ़ार ख़ाँ, श्री आसफ़ अली, श्री रफ़ी अहमद किदवाई, श्री कृष्ण सिन्हा, कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी, आचार्य जे. बी. कृपलानी और श्री कृष्णमाचारी आदि थे।


इसके अलावा कांग्रेस सेना मेम्बरों में कांग्रेस द्वारा नामांकित सदस्यों में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन, डॉ. सच्चिदानन्द सिन्हा, श्री एन. गोपाल स्वामी अयंगर, डॉ. बी. आर. अम्बेडकर, डॉ. एम. आर. जयकर, श्री अल्लादि कृष्ण स्वामी अय्यर, पं. हृदयनाथ कुंजरू, श्री हरी सिंह गौड़ और प्रोफेसर के. टी. शाह आदि थे। संविधान सभा में कुछ महिलायें भी थीं, जिनमें श्रीमती सरोजिनी नायडू, श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख, श्रीमती हंसा मेहता, और श्रीमती रेणुका राय प्रमुख थीं। मुस्लिम लीग में नवाबज़ादा लियाक़त अली ख़ाँ, ख़्वाजा नाज़िमुद्दीम, श्री एच. एस. सुहरावर्दी, सर फ़िरोज़ ख़ाँ नून और मोहम्मद जफ़रुल्ला ख़ाँ, प्रमुख थे। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद इस सभा के अध्यक्ष थे। 9 दिसम्बर सन् 1946 को संविधान सभा का पहला अधिवेशन होना निश्चित हुआ। मुस्लिम लीग ने दो संविधान सभाओं की माँग की जिसमें से एक पाकिस्तान के लिए बनाई और दूसरी भारत के लिए।

भारत का विभाजन

  1. REDIRECTसाँचा:मुख्य

3 जून सन् 1947 को माउण्टबेटन योजना प्रस्तुत की गई, जिसमें प्रस्ताव किया गया कि भारत को दो भागों, भारत और पाकिस्तान में बाँट दिया जाए। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने ही इस योजना को स्वीकार कर लिया। अप्रैल सन् 1947 में बड़ौदा, बीकानेर, उदयपुर, जोधपुर, रीवा और पटियाला के देशी राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा में सम्मिलित हो चुके थे। thumb|250px|गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय कैडेट कोर की परेड और 14 जुलाई सन् 1947 तक केवल दो देशी राज्यों जम्मू–कश्मीर और हैदराबाद को छोड़कर बाकी देशी राज्यों के प्रतिनिधि संविधान सभा में भाग लेने आ गए थे। 15 अगस्त सन् 1947 को भारत के दो टुकड़े भारत और पाकिस्तान से होकर भारत आज़ाद हुआ। पं. जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने और लाल क़िले पर तिरंगा झण्डा फहराया। अक्टूबर सन् 1947 तक जम्मू और कश्मीर भी भारत में शामिल हो गया और नवम्बर सन् 1948 में हैदराबाद भी।

संविधान पारित

इस प्रकार संसद भारत की मुकम्मल प्रतिनिधि सभा बन गई। 29 अगस्त सन् 1947 के प्रस्ताव के अनुसार एक प्रारूप समिति क़ायम की गई, जिसके सात सदस्य थे और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर उसके अध्यक्ष थे। इस समिति ने 21 फ़रवरी सन् 1948 को अपना निर्णय प्रस्तुत कर दिया, जो 4 नवम्बर, सन् 1948 को संसद के सामने रखा गया। इस पर 9 नवम्बर सन् 1948 से 17 अक्टूबर सन् 1949 तक दूसरी खुवांदगी (वाचन) चलती रही जिसमें 7635 धाराएँ पेश की गईं। 14 नवम्बर सन् 1949 से 26 नवम्बर सन् 1949 तक तीसरी खुवांदगी हुई और 26 नवम्बर, 1949 को संविधान पर संविधान सभा हस्ताक्षर होकर संविधान पारित हो गया। 24 जनवरी सन् 1950 को संविधान सभा का अन्तिम अधिवेशन हुआ और इसमें नये संविधान के अनुसार डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को भारतीय गणराज्य का प्रथम राष्ट्रपति चुना गया। 26 जनवरी सन् 1950 से नया संविधान लागू किया गया। उसी दिन से हर साल 26 जनवरी को भारत में गणतंत्रता दिवस मनाया जाता है।[1]

उत्सव आयोजन

जब 15 अगस्त, 1947 को भारत को अंग्रेज़ी शासन से मुक्ति मिली, तब हमारे देश का कोई अपना संविधान नहीं था। अपना संविधान ना होने के कारण हम अपनी प्रशासनिक और न्यायिक व्यवस्था का कार्य अंग्रेज़ों द्वारा संचालित नीतियों के अनुसार ही करते थे। प्रशासनिक रूप से हम 26 जनवरी, 1950 को स्वतंत्र हुए। इसी कारण से भारतीय इतिहास में 26 जनवरी, 1950 का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भारत के अंतिम गवर्नर-जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने भारत को गणतंत्र राष्ट्र घोषित किया था। यह दिन भारत के लिए ऐतिहासिक है, क्योंकि इस दिन हमारे देश को पहली बार संप्रभु, धर्म-निरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गणतंत्र राज्य घोषित किया गया था। तब से लगातार इस दिन को गणतंत्र दिवस के रूप मे मनाया जाता है। 26 जनवरी, 1950 को हमें भारत का संविधान और भारत का प्रथम राष्ट्रपति भी मिला। सच कहा जाय तो वास्तव में हमें अंग्रेज़ों से आज़ादी भी इसी दिन मिली थी। प्रथम राष्ट्रपति के रूप में डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने इसी दिन इरविन स्टेडयिम में भारतीय तिरंगा फहराया था तथा सेना द्वारा की हुई परेड और तोपों की सलामी भी ली थी। इस परेड में सशस्त्र सेना के तीनों बलों ने हिस्सा लिया था। तब से लगातार इस दिन भारतीय सेना के तीनों अंग नए-नए करतब दिखाकर अपनी कार्यक्षमता का परिचय देते हैं। राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने उसी दिन 26 जनवरी को राष्ट्रीय अवकाश घोषित कर दिया। गणतंत्र दिवस के दिन मुख्य अतिथि बुलाने की परंपरा भी इसी दिन से शुरू हुई थी। 1950 मे पहले मुख्य अतिथि के रूप में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो आए थे तो 2012 में मुख्य अतिथि के रूप में थाईलैंड की पहली महिला प्रधानमंत्री यिंगलक शिनावात्रा ने शिरकत की।[2]

26 जनवरी, 1955 को पहली बार परेड राजपथ से होकर गुजरा था, तब से लगातार परेड राजपथ से होकर गुजरता है। परेड की शुरूआत रायसीना हिल से होती है और वह राजपथ, इंडिया गेट से गुजरती हुई लाल क़िला तक जाती है। इसका मार्ग 8 किलोमीटर का है। सुविधाओं में बढ़ोत्तरी के कारण आज राष्ट्रपति कार में सवार होते हैं, जबकि पहले परेड में राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद बग्घी में सवार थे। गणतंत्र दिवस समारोह का आरंभ "अमर जवान ज्योति" पर प्रधानमंत्री द्वारा शहीदों की श्रदांजलि देने से होता है तत्पश्चात शहीदों की याद में दो मिनट का मौन रखा जाता है। इसके बाद प्रधानमंत्री इंडिया गेट आते हैं, जहाँ 21 तोपों की सलामी दी जाती है। राज्यों से आयी हुई झाँकियाँ सभी का मनमोह लेती हैं। इन झाँकियों में राज्यों में हुए विकास कार्य, संस्कृति और विविधता आदि को दिखाया जाता है। इस दिन वीरों को अशोक चक्र, कीर्ति चक्र, परमवीर चक्र, वीर चक्र और महावीर चक्र से सम्मानित किया जाता है। इस दिन 24 बच्चों को, जिनकी उम्र 16 साल से कम है, को उनके अदम्य साहस और वीरता के लिये 'गीता चोपड़ा' और 'संजय चोपड़ा अवार्ड' से सम्मानित किया जाता है। सम्मान स्वरूप बच्चों को मेडल, प्रमाणपत्र और नकद राशि दी जाती है।

इस दिन पूरे भारतवर्ष में रंगारंग उत्सव मनाया जाता है। प्रत्येक राज्य में राज्यपाल तिरंगा फहराते हैं और परेड की सलामी लेते हैं। यह राष्ट्रीय उत्सव तीन दिनों तक चलता है। 26 जनवरी के बाद 27 जनवरी को एन.सी.सी. कैडेट कई कार्यक्रम पेश करते हैं। अंतिम दिन 29 जनवरी को विजय चौक पर 'बीटिंग द रिट्रीट सेरेमनी' होती है, जिसमें बैंड भी शामिल होता है। पूरी दुनिया में गणतंत्र दिवस एक ऐसा विशाल उत्सव है जो केवल भारत में ही दिखता है।

पहला गणतंत्र दिवस

भारत के पहले गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस (वर्तमान राष्ट्रपति भवन) जगमग रोशनी से गुलजार था जहां भारत के गणतंत्र के रूप में दुनिया के पटल पर उभरने के साक्षी रहे लोगों में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति सुकर्णो शामिल थे। ‘रेमिनिसेंस ऑफ फर्स्ट रिपब्लिक डे’ के अनुसार, 26 जनवरी 1950 को देश के पहले गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस में कई देशों के राजनयिकों और सुकर्णो सहित 500 से अधिक अतिथि थे। इन सब अतिथियों के बीच देश के अंतिम गर्वनर जनरल सी. राजगोपालाचारी ने भारत के गणतंत्र बनने की घोषणा करते हुए कहा, ‘इंडिया जो भारत है, वह सम्प्रभुता सम्पन्न लोकतांत्रिक गणतंत्र होगा।’ देश के इतिहास के उस अभूतपूर्व क्षण में स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद को पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलायी गई। भारत के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति हीरालाल कानिया ने हिन्दी में शपथ दिलायी। इस मौके पर राजेन्द्र प्रसाद काली अचकन, उजला चूड़ीदार पाजामा और सफेद गांधी टोपी पहने हुए थे। 20वीं शताब्दी के उस ऐतिहासिक क्षण के गवाहों में निवर्तमान गर्वनर जलरल सी. राजगोपालाचारी, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू, उपप्रधानमंत्री सरदार बल्लभभाई पटेल, कैबिनेट मंत्री, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, भारत के ऑडिटर जनरल आदि मौजूद थे। इस अवसर पर पंडित नेहरू और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों को पद एवं गोपनीयता की शपथ भी दिलायी गई। लोकसभा के पहले अध्यक्ष जी.वी. मावलंकर भव्य दरबार हाल में पहली पंक्ति में बैठे हुए थे। दरबार हाल में हर्ष और उल्लास के अविस्मरणीय दृश्य था। देश के विभिन्न क्षेत्रों से बड़ी संख्या में आए लोग राष्ट्रपति भवन परिसर के आसपास एकत्र थे। बाद में हजारों की संख्या में लोगों ने महात्मा गांधी की समाधि ‘राजघाट’ जाकर अपने प्यारे बापू को श्रद्धांजलि अर्पित की। दरबार हाल में पहली बार राष्ट्रीय प्रतीक (चार शेर मुख वाले अशोक स्तम्भ) को उस स्थान पर रखा गया जहां ब्रिटिश वायसराय बैठा करते थे। पहली बार ही वहां सिंहासन के पीछे मुस्कुराते बुद्ध की मूर्ति भी रखी गई थी। प्रथम राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद ने सभी उपस्थित लोगों का हाथ जोड़कर अभिवादन किया और हिन्दी एवं अंग्रेजी में संक्षिप्त भाषण दिया। दिल्ली समेत देश के अनेक स्थानों पर देश के प्रथम गणतंत्र दिवस के अवसर पर प्रभात फेरी भी निकाली गई और यह परंपरा आज भी जारी है।[3]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- भारतीय उत्सव और पर्व द्वारा- वेद प्रकाश गुप्ता
  2. 26 जनवरी का इतिहास (हिंदी) sudhalok.blogspot.in। अभिगमन तिथि: 29 जनवरी, 2017।
  3. भारत के गणतंत्र बनने के साक्षी थे सुकर्णो (हिंदी) ज़ी न्यूज़। अभिगमन तिथि: 22 अप्रैल, 2017।

बाहरी कड़ियाँ

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