ग़बन उपन्यास भाग-40: Difference between revisions
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रमा मुंह-अंधेरे अपने बंगले जा पहुंचा। किसी को कानों-कान ख़बर न हुई। नाश्ता करके रमा ने ख़त | रमा मुंह-अंधेरे अपने बंगले जा पहुंचा। किसी को कानों-कान ख़बर न हुई। नाश्ता करके रमा ने ख़त साफ़ किया, कपड़े पहने और दारोग़ा के पास जा पहुंचा। त्योरियां चढ़ी हुई थीं। दारोग़ा ने पूछा, ‘ख़ैरियत तो है, नौकरों ने कोई शरारत तो नहीं की।‘ | ||
रमा ने खड़े-खड़े कहा, ‘नौकरों ने नहीं, आपने शरारत की है, आपके मातहतों, अफसरों और सब ने मिलकर मुझे उल्लू बनाया है।‘ | रमा ने खड़े-खड़े कहा, ‘नौकरों ने नहीं, आपने शरारत की है, आपके मातहतों, अफसरों और सब ने मिलकर मुझे उल्लू बनाया है।‘ | ||
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दारोग़ा ने कुछ घबडाकर पूछा, आख़िर बात क्या है, कहिए तो? ‘ | दारोग़ा ने कुछ घबडाकर पूछा, आख़िर बात क्या है, कहिए तो? ‘ | ||
रमानाथ—‘बात यही है कि इस मुआमले में अब कोई शहादत न दूंगा। उससे मेरा ताल्लुक नहीं। आप ने मेरे साथ चाल चली और वारंट की धमकी देकर मुझे शहादत देने पर मजबूर किया। अब मुझे मालूम हो गया कि मेरे ऊपर कोई इलज़ाम नहीं। आप लोगों का चकमा था। पुलिस की तरफ से शहादत नहीं देना चाहता, मैं आज जज साहब से | रमानाथ—‘बात यही है कि इस मुआमले में अब कोई शहादत न दूंगा। उससे मेरा ताल्लुक नहीं। आप ने मेरे साथ चाल चली और वारंट की धमकी देकर मुझे शहादत देने पर मजबूर किया। अब मुझे मालूम हो गया कि मेरे ऊपर कोई इलज़ाम नहीं। आप लोगों का चकमा था। पुलिस की तरफ से शहादत नहीं देना चाहता, मैं आज जज साहब से साफ़ कह दूंगा। बेगुनाहों का ख़ून अपनी गर्दन पर न लूंगा। ‘ | ||
दारोग़ा ने तेज़ होकर कहा, ‘आपने खुद गबन तस्लीम किया था।‘ | दारोग़ा ने तेज़ होकर कहा, ‘आपने खुद गबन तस्लीम किया था।‘ | ||
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‘इससे आपको कोई बहस नहीं। मै ं शहादत न दूंगा। साफ-साफ कह दूंगा, पुलिस ने मुझे धोखा देकर शहादत दिलवाई है। जिन तारीख़ों का वह वाकया है, उन तारीख़ों में मैं इलाहाबाद में था। म्युनिसिपल आफिस में मेरी हाजिरी मौजूद है।’ | ‘इससे आपको कोई बहस नहीं। मै ं शहादत न दूंगा। साफ-साफ कह दूंगा, पुलिस ने मुझे धोखा देकर शहादत दिलवाई है। जिन तारीख़ों का वह वाकया है, उन तारीख़ों में मैं इलाहाबाद में था। म्युनिसिपल आफिस में मेरी हाजिरी मौजूद है।’ | ||
दारोग़ा ने इस आपत्ति को हंसी में उडाने की चेष्टा करके कहा, ‘अच्छा साहब, पुलिस ने धोखा ही दिया, लेकिन उसका ख़ातिरख्वाह इनाम देने को भी तो हाज़िर है। कोई अच्छी जगह मिल जाएगी, मोटर पर बैठे हुए सैर करोगे। खुगिया पुलिस में कोई जगह मिल गई, तो चैन ही चैन है। सरकार की नज़रों में इज्जत और रूसूख कितना बढ़गया, यों मारे-मारे फिरते। शायद किसी | दारोग़ा ने इस आपत्ति को हंसी में उडाने की चेष्टा करके कहा, ‘अच्छा साहब, पुलिस ने धोखा ही दिया, लेकिन उसका ख़ातिरख्वाह इनाम देने को भी तो हाज़िर है। कोई अच्छी जगह मिल जाएगी, मोटर पर बैठे हुए सैर करोगे। खुगिया पुलिस में कोई जगह मिल गई, तो चैन ही चैन है। सरकार की नज़रों में इज्जत और रूसूख कितना बढ़गया, यों मारे-मारे फिरते। शायद किसी दफ़्तर में क्लर्की मिल जाती, वह भी बडी मुश्किल सेब यहां तो बैठे-बिठाए तरक़्क़ी | ||
का दरवाज़ा खुल गया। अच्छी तरह कारगुज़ारी होगी, तो एक दिन रायबहादुर | का दरवाज़ा खुल गया। अच्छी तरह कारगुज़ारी होगी, तो एक दिन रायबहादुर | ||
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और आप उल्टे ख़फा होते हैं। ‘ | और आप उल्टे ख़फा होते हैं। ‘ | ||
रमा पर इस प्रलोभन का कुछ असर न हुआ। बोला, ‘मुझे क्लर्क बनना मंजूर है, इस तरह की | रमा पर इस प्रलोभन का कुछ असर न हुआ। बोला, ‘मुझे क्लर्क बनना मंजूर है, इस तरह की तरक़्क़ी नहीं चाहता। यह आप ही को मुबारक रहे। इतने में डिप्टी साहब और इंस्पेक्टर भी आ पहुंचे। रमा को देखकर इंस्पेक्टर साहब ने गरमाया, ‘हमारे बाबू साहब तो पहले ही से तैयार बैठे हैं। बस इसी की कारगुज़ारी पर वारा-न्यारा है। ‘ | ||
रमा ने इस भाव से कहा, ‘मानो मैं भी अपना नफा-नुकसान समझता हूं,जी। हां, आज वारा-न्यारा कर दूंगा। इतने दिनों तक आप लोगों के इशारे पर चला, अब अपनी आंखों से देखकर चलूंगा। ‘ | रमा ने इस भाव से कहा, ‘मानो मैं भी अपना नफा-नुकसान समझता हूं,जी। हां, आज वारा-न्यारा कर दूंगा। इतने दिनों तक आप लोगों के इशारे पर चला, अब अपनी आंखों से देखकर चलूंगा। ‘ | ||
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रमानाथ—‘मैंने फैसला किया है कि आज अपना बयान बदल दूंगा। बेगुनाहों का ख़ून नहीं कर सकता ।‘ | रमानाथ—‘मैंने फैसला किया है कि आज अपना बयान बदल दूंगा। बेगुनाहों का ख़ून नहीं कर सकता ।‘ | ||
इंस्पेक्टर ने दया-भाव से उसकी तरफ देखकर कहा, ‘आप बेगुनाहों का ख़ून नहीं कर रहे हैं, अपनी तकष्दीर की इमारत खड़ी कर रहे हैं। हलफ से कहता हूं, ऐसे मौके बहुत कम आदमियों को मिलते हैं। आज क्या बात हुई कि आप इतने खफा हो गए? आपको कुछ मालूम है, दारोग़ा साहब, आदमियों ने तो कोई शोखी नहीं की- अगर किसी ने आपके मिज़ाज़ के | इंस्पेक्टर ने दया-भाव से उसकी तरफ देखकर कहा, ‘आप बेगुनाहों का ख़ून नहीं कर रहे हैं, अपनी तकष्दीर की इमारत खड़ी कर रहे हैं। हलफ से कहता हूं, ऐसे मौके बहुत कम आदमियों को मिलते हैं। आज क्या बात हुई कि आप इतने खफा हो गए? आपको कुछ मालूम है, दारोग़ा साहब, आदमियों ने तो कोई शोखी नहीं की- अगर किसी ने आपके मिज़ाज़ के ख़िलाफ़ कोई काम किया हो, तो उसे गोली मार दीजिए, हलफ से कहता हूं! | ||
दारोग़ा –‘मैं अभी जाकर पता लगाता हूं। ‘ | दारोग़ा –‘मैं अभी जाकर पता लगाता हूं। ‘ | ||
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रमानाथ—‘आप तकलीफ न करें। मुझे किसी से शिकायत नहीं है। मैं थोड़े से फायदे के लिए अपने ईमान का ख़ून नहीं कर सकता। ‘ | रमानाथ—‘आप तकलीफ न करें। मुझे किसी से शिकायत नहीं है। मैं थोड़े से फायदे के लिए अपने ईमान का ख़ून नहीं कर सकता। ‘ | ||
एक मिनट सन्नाटा रहा। किसी को कोई बात न सूझी। दारोग़ा कोई दूसरा चकमा सोच रहे थे, इंस्पेक्टर कोई दूसरा प्रलोभन। डिप्टी एक दूसरी ही | एक मिनट सन्नाटा रहा। किसी को कोई बात न सूझी। दारोग़ा कोई दूसरा चकमा सोच रहे थे, इंस्पेक्टर कोई दूसरा प्रलोभन। डिप्टी एक दूसरी ही फ़िक्र में था। रूखेपन से बोला, ‘रमा बाबू, यह अच्छा बात न होगा। ‘ | ||
रमा ने भी गर्म होकर कहा, ‘आपके लिए न होगी। मेरे लिए तो सबसे अच्छी यही बात है। ‘ | रमा ने भी गर्म होकर कहा, ‘आपके लिए न होगी। मेरे लिए तो सबसे अच्छी यही बात है। ‘ | ||
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रखकर) चला जायगा। ‘ | रखकर) चला जायगा। ‘ | ||
यह कहते हुए उसने | यह कहते हुए उसने आँखें निकालकर रमा को देखा, मानो कच्चा ही खा जाएगा। रमा सहम उठा। इन आतंक से भरे शब्दों ने उसे विचलित कर दिया। यह सब कोई झूठा मुकदमा चलाकर उसे फंसा दें, तो उसकी कौन रक्षा करेगा। उसे यह आशा न थी कि डिप्टी साहब जो शील और विनय के पुतले बने हुए थे, एकबारगी यह रूद्र रूप धारणा कर लेंगे, मगर वह इतनी आसानी से दबने वाला न था। तेज़ होकर बोला, ‘आप मुझसे ज़बरदस्ती शहादत दिलाएंगे ?’ | ||
डिप्टी ने पैर पटकते हुए कहा, ‘हां, ज़बरदस्ती दिलाएगा!’ | डिप्टी ने पैर पटकते हुए कहा, ‘हां, ज़बरदस्ती दिलाएगा!’ | ||
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रमा का चेहरा फीका पड़ने लगा। मालूम होता था, प्रतिक्षण उसका ख़ून सूखता चला जाता है। अपनी दुर्बलता पर उसे इतनी ग्लानि हुई कि वह रो पड़ा। कांपती हुई आवाज़ से बोला, ‘आप लोगों की यह इच्छा है, तो यही सही! भेज दीजिए जेल। मर ही जाऊंगा न, फिर तो आप लोगों से मेरा गला छूट जायगा। जब आप यहां तक मुझे तबाह करने पर आमादा हैं, तो मैं भी मरने को तैयार हूं। जो कुछ होना होगा, होगा। ‘ | रमा का चेहरा फीका पड़ने लगा। मालूम होता था, प्रतिक्षण उसका ख़ून सूखता चला जाता है। अपनी दुर्बलता पर उसे इतनी ग्लानि हुई कि वह रो पड़ा। कांपती हुई आवाज़ से बोला, ‘आप लोगों की यह इच्छा है, तो यही सही! भेज दीजिए जेल। मर ही जाऊंगा न, फिर तो आप लोगों से मेरा गला छूट जायगा। जब आप यहां तक मुझे तबाह करने पर आमादा हैं, तो मैं भी मरने को तैयार हूं। जो कुछ होना होगा, होगा। ‘ | ||
उसका मन दुर्बलता की उस दशा को पहुंच गया था, जब ज़रा-सी सहानुभूति, ज़रा-सी | उसका मन दुर्बलता की उस दशा को पहुंच गया था, जब ज़रा-सी सहानुभूति, ज़रा-सी सहृदयता सैकड़ों धामकियों से कहीं कारगर हो जाती है। इंस्पेक्टर साहब ने मौक़ा ताड़ लिया। उसका पक्ष लेकर डिप्टी से बोले,हलफ से कहता हूं, ‘आप लोग आदमी को पहचानते तो हैं नहीं, लगते हैं रोब जमाने। इस तरह गवाही देना हर एक समझदार आदमी को बुरा मालूम होगा। यह द्ददरती | ||
बात है। जिसे ज़रा भी इज्जत का खयाल है, वह पुलिस के हाथों की कठपुतली बनना पसंद न करेगा। बाबू साहब की जगह मैं होता तो मैं भी ऐसा ही करता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह हमारे ख़िलाफ़ शहादत देंगे। आप लोग अपना काम कीजिए, बाबू साहब की तरफ से बेफिक्र रहिए, हलफ से कहता हूं। ‘ | बात है। जिसे ज़रा भी इज्जत का खयाल है, वह पुलिस के हाथों की कठपुतली बनना पसंद न करेगा। बाबू साहब की जगह मैं होता तो मैं भी ऐसा ही करता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह हमारे ख़िलाफ़ शहादत देंगे। आप लोग अपना काम कीजिए, बाबू साहब की तरफ से बेफिक्र रहिए, हलफ से कहता हूं। ‘ | ||
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इंस्पेक्टर ने उसके कंधो पर हाथ रखकर कहा, ‘आप क्यों ऐसी बातें मुंह से निकालते हैं साहबब जेलखाने में मरें आपके दुश्मन। ‘ | इंस्पेक्टर ने उसके कंधो पर हाथ रखकर कहा, ‘आप क्यों ऐसी बातें मुंह से निकालते हैं साहबब जेलखाने में मरें आपके दुश्मन। ‘ | ||
डिप्टी ने तसमा भी बाकी न छोड़ना चाहाब बडे कठोर स्वर में बोला, मानो रमा से कभी का परिचय नहीं है, ‘साहब, यों हम बाबू साहब के साथ सब तरह का सलूक करने को तैयार हैं, लेकिन जब वह हमारा | डिप्टी ने तसमा भी बाकी न छोड़ना चाहाब बडे कठोर स्वर में बोला, मानो रमा से कभी का परिचय नहीं है, ‘साहब, यों हम बाबू साहब के साथ सब तरह का सलूक करने को तैयार हैं, लेकिन जब वह हमारा ख़िलाफ़ गवाही देगा, हमारा जड़ खोदेगा, तो हम भी कार्रवाई करेगा। ज़रूर से करेगा। कभी छोड़ नहीं सकता। ‘ | ||
इसी वक्त सरकारी एडवोकेट और बैरिस्टर मोटर से उतरे। | इसी वक्त सरकारी एडवोकेट और बैरिस्टर मोटर से उतरे। |
Latest revision as of 05:31, 4 February 2021
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रमा मुंह-अंधेरे अपने बंगले जा पहुंचा। किसी को कानों-कान ख़बर न हुई। नाश्ता करके रमा ने ख़त साफ़ किया, कपड़े पहने और दारोग़ा के पास जा पहुंचा। त्योरियां चढ़ी हुई थीं। दारोग़ा ने पूछा, ‘ख़ैरियत तो है, नौकरों ने कोई शरारत तो नहीं की।‘
रमा ने खड़े-खड़े कहा, ‘नौकरों ने नहीं, आपने शरारत की है, आपके मातहतों, अफसरों और सब ने मिलकर मुझे उल्लू बनाया है।‘
दारोग़ा ने कुछ घबडाकर पूछा, आख़िर बात क्या है, कहिए तो? ‘
रमानाथ—‘बात यही है कि इस मुआमले में अब कोई शहादत न दूंगा। उससे मेरा ताल्लुक नहीं। आप ने मेरे साथ चाल चली और वारंट की धमकी देकर मुझे शहादत देने पर मजबूर किया। अब मुझे मालूम हो गया कि मेरे ऊपर कोई इलज़ाम नहीं। आप लोगों का चकमा था। पुलिस की तरफ से शहादत नहीं देना चाहता, मैं आज जज साहब से साफ़ कह दूंगा। बेगुनाहों का ख़ून अपनी गर्दन पर न लूंगा। ‘
दारोग़ा ने तेज़ होकर कहा, ‘आपने खुद गबन तस्लीम किया था।‘
रमानाथ—‘मीजान की ग़लती थी। ग़बन न था। म्युनिसिपैलिटी ने मुझ पर कोई मुकदमा नहीं चलाया।‘
‘यह आपको मालूम कैसे हुआ? ‘
‘इससे आपको कोई बहस नहीं। मै ं शहादत न दूंगा। साफ-साफ कह दूंगा, पुलिस ने मुझे धोखा देकर शहादत दिलवाई है। जिन तारीख़ों का वह वाकया है, उन तारीख़ों में मैं इलाहाबाद में था। म्युनिसिपल आफिस में मेरी हाजिरी मौजूद है।’
दारोग़ा ने इस आपत्ति को हंसी में उडाने की चेष्टा करके कहा, ‘अच्छा साहब, पुलिस ने धोखा ही दिया, लेकिन उसका ख़ातिरख्वाह इनाम देने को भी तो हाज़िर है। कोई अच्छी जगह मिल जाएगी, मोटर पर बैठे हुए सैर करोगे। खुगिया पुलिस में कोई जगह मिल गई, तो चैन ही चैन है। सरकार की नज़रों में इज्जत और रूसूख कितना बढ़गया, यों मारे-मारे फिरते। शायद किसी दफ़्तर में क्लर्की मिल जाती, वह भी बडी मुश्किल सेब यहां तो बैठे-बिठाए तरक़्क़ी
का दरवाज़ा खुल गया। अच्छी तरह कारगुज़ारी होगी, तो एक दिन रायबहादुर
मुंशी रमानाथ डिप्टी सुपरिंटेंडेंट हो जाओगे। तुम्हें हमारा एहसान मानना चाहिए
और आप उल्टे ख़फा होते हैं। ‘
रमा पर इस प्रलोभन का कुछ असर न हुआ। बोला, ‘मुझे क्लर्क बनना मंजूर है, इस तरह की तरक़्क़ी नहीं चाहता। यह आप ही को मुबारक रहे। इतने में डिप्टी साहब और इंस्पेक्टर भी आ पहुंचे। रमा को देखकर इंस्पेक्टर साहब ने गरमाया, ‘हमारे बाबू साहब तो पहले ही से तैयार बैठे हैं। बस इसी की कारगुज़ारी पर वारा-न्यारा है। ‘
रमा ने इस भाव से कहा, ‘मानो मैं भी अपना नफा-नुकसान समझता हूं,जी। हां, आज वारा-न्यारा कर दूंगा। इतने दिनों तक आप लोगों के इशारे पर चला, अब अपनी आंखों से देखकर चलूंगा। ‘
इंस्पेक्टर ने दारोग़ा का मुंह देखा, दारोग़ा ने डिप्टी का मुंह देखा, डिप्टी ने इंस्पेक्टर का मुंह देखा। यह कहता क्या है? इंस्पेक्टर साहब विस्मित होकर बोले, ‘क्या बात है? हलफ से कहता हूं, आप कुछ नाराज़ मालूम होते हैं! ‘
रमानाथ—‘मैंने फैसला किया है कि आज अपना बयान बदल दूंगा। बेगुनाहों का ख़ून नहीं कर सकता ।‘
इंस्पेक्टर ने दया-भाव से उसकी तरफ देखकर कहा, ‘आप बेगुनाहों का ख़ून नहीं कर रहे हैं, अपनी तकष्दीर की इमारत खड़ी कर रहे हैं। हलफ से कहता हूं, ऐसे मौके बहुत कम आदमियों को मिलते हैं। आज क्या बात हुई कि आप इतने खफा हो गए? आपको कुछ मालूम है, दारोग़ा साहब, आदमियों ने तो कोई शोखी नहीं की- अगर किसी ने आपके मिज़ाज़ के ख़िलाफ़ कोई काम किया हो, तो उसे गोली मार दीजिए, हलफ से कहता हूं!
दारोग़ा –‘मैं अभी जाकर पता लगाता हूं। ‘
रमानाथ—‘आप तकलीफ न करें। मुझे किसी से शिकायत नहीं है। मैं थोड़े से फायदे के लिए अपने ईमान का ख़ून नहीं कर सकता। ‘
एक मिनट सन्नाटा रहा। किसी को कोई बात न सूझी। दारोग़ा कोई दूसरा चकमा सोच रहे थे, इंस्पेक्टर कोई दूसरा प्रलोभन। डिप्टी एक दूसरी ही फ़िक्र में था। रूखेपन से बोला, ‘रमा बाबू, यह अच्छा बात न होगा। ‘
रमा ने भी गर्म होकर कहा, ‘आपके लिए न होगी। मेरे लिए तो सबसे अच्छी यही बात है। ‘
डिप्टी, ‘नहीं, आपका वास्ते इससे बुरा दोसरा बात नहीं है। हम तुमको छोड़ेगा नहीं, हमारा मुकदमा चाहे बिगड़ जाय, लेकिन हम तुमको ऐसा लेसन दे देगा कि तुम उमिर भर न भूलेगा। आपको वही गवाही देना होगा जो आप दिया। अगर तुम कुछ गड़बड़ करेगा, कुछ भी गोलमाल किया तो हम तोमारे साथ दोसरा बर्ताव करेगा। एक रिपोर्ट में तुम यों (कलाइयों को ऊपर-नीचे
रखकर) चला जायगा। ‘
यह कहते हुए उसने आँखें निकालकर रमा को देखा, मानो कच्चा ही खा जाएगा। रमा सहम उठा। इन आतंक से भरे शब्दों ने उसे विचलित कर दिया। यह सब कोई झूठा मुकदमा चलाकर उसे फंसा दें, तो उसकी कौन रक्षा करेगा। उसे यह आशा न थी कि डिप्टी साहब जो शील और विनय के पुतले बने हुए थे, एकबारगी यह रूद्र रूप धारणा कर लेंगे, मगर वह इतनी आसानी से दबने वाला न था। तेज़ होकर बोला, ‘आप मुझसे ज़बरदस्ती शहादत दिलाएंगे ?’
डिप्टी ने पैर पटकते हुए कहा, ‘हां, ज़बरदस्ती दिलाएगा!’
रमानाथ—‘यह अच्छी दिल्लगी है!’
डिप्टी—‘तोम पुलिस को धोखा देना दिल्लगी समझता है। अभी दो गवाह देकर साबित कर सकता है कि तुम राजक्रोह की बात कर रहा था। बस चला जायगा सात साल के लिए। चक्की पीसते-पीसते हाथ में घड्डा पड़ जायगा। यह चिकना-चिकना गाल नहीं रहेगा। ‘
रमा जेल से डरता था। जेल-जीवन की कल्पना ही से उसके रोएं खड़े होते थे। जेल ही के भय से उसने यह गवाही देनी स्वीकार की थी। वही भय इस वक्त भी उसे कातर करने लगा। डिप्टी भाव-विज्ञान का ज्ञाता था। आसन का पता पा गया। बोला, ‘वहां हलवा पूरी नहीं पायगा। धूल मिला हुआ आटा का रोटी, गोभी के सड़े हुए पत्तों का रसा, और अरहर के दाल का पानी खाने
को पावेगा। काल-कोठरी का चार महीना भी हो गया, तो तुम बच नहीं सकता वहीं मर जायगा। बात-बात पर वार्डर गाली देगा, जूतों से पीटेगा, तुम समझता क्या है! ‘
रमा का चेहरा फीका पड़ने लगा। मालूम होता था, प्रतिक्षण उसका ख़ून सूखता चला जाता है। अपनी दुर्बलता पर उसे इतनी ग्लानि हुई कि वह रो पड़ा। कांपती हुई आवाज़ से बोला, ‘आप लोगों की यह इच्छा है, तो यही सही! भेज दीजिए जेल। मर ही जाऊंगा न, फिर तो आप लोगों से मेरा गला छूट जायगा। जब आप यहां तक मुझे तबाह करने पर आमादा हैं, तो मैं भी मरने को तैयार हूं। जो कुछ होना होगा, होगा। ‘
उसका मन दुर्बलता की उस दशा को पहुंच गया था, जब ज़रा-सी सहानुभूति, ज़रा-सी सहृदयता सैकड़ों धामकियों से कहीं कारगर हो जाती है। इंस्पेक्टर साहब ने मौक़ा ताड़ लिया। उसका पक्ष लेकर डिप्टी से बोले,हलफ से कहता हूं, ‘आप लोग आदमी को पहचानते तो हैं नहीं, लगते हैं रोब जमाने। इस तरह गवाही देना हर एक समझदार आदमी को बुरा मालूम होगा। यह द्ददरती
बात है। जिसे ज़रा भी इज्जत का खयाल है, वह पुलिस के हाथों की कठपुतली बनना पसंद न करेगा। बाबू साहब की जगह मैं होता तो मैं भी ऐसा ही करता, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि यह हमारे ख़िलाफ़ शहादत देंगे। आप लोग अपना काम कीजिए, बाबू साहब की तरफ से बेफिक्र रहिए, हलफ से कहता हूं। ‘
उसने रमा का हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘आप मेरे साथ चलिए, बाबूजी! आपको अच्छे-अच्छे रिकार्ड सुनाऊं। ‘
रमा ने रूठे हुए बालक की तरह हाथ छुडाकर कहा, ‘मुझे दिक न कीजिए। इंस्पेक्टर साहबब अब तो मुझे जेलखाने में मरना है। ‘
इंस्पेक्टर ने उसके कंधो पर हाथ रखकर कहा, ‘आप क्यों ऐसी बातें मुंह से निकालते हैं साहबब जेलखाने में मरें आपके दुश्मन। ‘
डिप्टी ने तसमा भी बाकी न छोड़ना चाहाब बडे कठोर स्वर में बोला, मानो रमा से कभी का परिचय नहीं है, ‘साहब, यों हम बाबू साहब के साथ सब तरह का सलूक करने को तैयार हैं, लेकिन जब वह हमारा ख़िलाफ़ गवाही देगा, हमारा जड़ खोदेगा, तो हम भी कार्रवाई करेगा। ज़रूर से करेगा। कभी छोड़ नहीं सकता। ‘
इसी वक्त सरकारी एडवोकेट और बैरिस्टर मोटर से उतरे।
भाग-1 | भाग-2 | भाग-3 | भाग-4 | भाग-5 | भाग-6 | भाग-7 | भाग-8 | भाग-9 | भाग-10 | भाग-11 | भाग-12 | भाग-13 | भाग-14 | भाग-15 | भाग-16 | भाग-17 | भाग-18 | उभाग-19 | भाग-20 | भाग-21 | भाग-22 | भाग-23 | भाग-24 | भाग-25 | भाग-26 | भाग-27 | भाग-28 | भाग-29 | भाग-30 | भाग-31 | भाग-32 | भाग-33 | भाग-34 | भाग-35 | भाग-36 | भाग-37 | भाग-38 | भाग-39 | भाग-40 | भाग-41 | भाग-42 | भाग-43 | भाग-44 | भाग-45 | भाग-46 | भाग-47 | भाग-48 | भाग-49 | भाग-50 | भाग-51 | भाग-52 | भाग-53 |