ग़बन उपन्यास भाग-3: Difference between revisions
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जागेश्वरी--वहां मिलेगा, तो वहां खर्च भी होगा। नाम जोड़े गहने से नहीं होता, दान-दक्षिणा से होता है। इस तरह चन्द्रहार का प्रस्ताव रद्द हो गया। | जागेश्वरी--वहां मिलेगा, तो वहां खर्च भी होगा। नाम जोड़े गहने से नहीं होता, दान-दक्षिणा से होता है। इस तरह चन्द्रहार का प्रस्ताव रद्द हो गया। | ||
मगर दयानाथ दिखावे और नुमाइश को चाहे अनावश्यक समझें, रमानाथ उसे परमावश्यक समझता था। बरात ऐसे धूम से जानी चाहिए कि गांव-भर में शोर मच जाय। पहले दूल्हे के लिए पालकी का विचार था। रमानाथ ने मोटर पर ज़ोर दिया। उसके मित्रों ने इसका अनुमोदन किया, प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। दयानाथ एकांतप्रिय जीव थे, न किसी से मित्रता थी, न किसी से मेल-जोल। रमानाथ मिलनसार युवक था, उसके मित्र ही इस समय हर एक काम में अग्रसर हो रहे थे। वे जो काम करते, दिल खोल कर। आतिशबाजियां बनवाई, तो अव्वल दर्जे की। नाच ठीक किया, तो अव्वल दर्जे का; बाजे-गाजे भी अव्वल दर्जे के, दोयम या सोयम का वहां | मगर दयानाथ दिखावे और नुमाइश को चाहे अनावश्यक समझें, रमानाथ उसे परमावश्यक समझता था। बरात ऐसे धूम से जानी चाहिए कि गांव-भर में शोर मच जाय। पहले दूल्हे के लिए पालकी का विचार था। रमानाथ ने मोटर पर ज़ोर दिया। उसके मित्रों ने इसका अनुमोदन किया, प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। दयानाथ एकांतप्रिय जीव थे, न किसी से मित्रता थी, न किसी से मेल-जोल। रमानाथ मिलनसार युवक था, उसके मित्र ही इस समय हर एक काम में अग्रसर हो रहे थे। वे जो काम करते, दिल खोल कर। आतिशबाजियां बनवाई, तो अव्वल दर्जे की। नाच ठीक किया, तो अव्वल दर्जे का; बाजे-गाजे भी अव्वल दर्जे के, दोयम या सोयम का वहां ज़िक्र ही न था। दयानाथ उसकी उच्छृंखलता देखकर चिंतित तो हो जाते थे पर कुछ कह न सकते थे। क्या कहते! | ||
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Revision as of 10:25, 17 May 2013
मुंशी दीनदयाल उन आदमियों में से थे, जो सीधों के साथ सीधे होते हैं, पर टेढ़ों के साथ टेढ़े ही नहीं, शैतान हो जाते हैं। दयानाथ बडा-सा मुंह खोलते, हजारों की बातचीत करते, तो दीनदयाल उन्हें ऐसा चकमा देते कि वह उम्र- भर याद करते। दयानाथ की सज्जनता ने उन्हें वशीभूत कर लिया। उनका विचार एक हज़ार देने का था, पर एक हज़ार टीके ही में दे आए। मानकी ने कहा--जब टीके में एक हज़ार दिया, तो इतना ही घर पर भी देना पड़ेगा। आएगा कहां से- दीनदयाल चिढ़कर बोले--भगवान मालिक है। जब उन लोगों ने उदारता दिखाई और लड़का मुझे सौंप दिया, तो मैं भी दिखा देना चाहता हूं कि हम भी शरीफ़ हैं और शील का मूल्य पहचानते हैं। अगर उन्होंने हेकड़ी जताई होती, तो अभी उनकी खबर लेता।
दीनदयाल एक हज़ार तो दे आए, पर दयानाथ का बोझ हल्का करने के बदले और भारी कर दिया। वह कर्ज से कोसों भागते थे। इस शादी में उन्होंने मियां की जूती मियां की चांद वाली नीति निभाने की ठानी थी पर दीनदयाल की सह्रदयता ने उनका संयम तोड़ दिया। वे सारे टीमटाम, नाच-तमाशे, जिनकी कल्पना का उन्होंने गला घोंट दिया था, वही रूप धारण करके उनके सामने आ गए। बंधा हुआ घोडाथान से खुल गया, उसे कौन रोक सकता है। धूमधाम से विवाह करने की ठन गई। पहले जोडे--गहने को उन्होंने गौण समझ रखा था, अब वही सबसे मुख्य हो गया। ऐसा चढ़ावा हो कि मड़वे वाले देखकर भङक उठें। सबकी आंखें खुल जाएं । कोई तीन हज़ार का सामान बनवा डाला। सर्राफ को एक हज़ार नगद मिल गए, एक हज़ार के लिए एक सप्ताह का वादा हुआ, तो उसने कोई आपत्ति न की। सोचा--दो हज़ार सीधे हुए जाते हैं, पांच-सात सौ रुपये रह जाएंगे, वह कहां जाते हैं। व्यापारी की लागत निकल आती है, तो नगद को तत्काल पाने के लिए आग्रह नहीं करता। फिर भी चन्द्रहार की कसर रह गई। जडाऊ चन्द्रहार एक हज़ार से नीचे अच्छा नहीं मिल सकता था। दयानाथ का जी तो लहराया कि लगे हाथ उसे भी ले लो, किसी को नाक सिकोड़ने की जगह तो न रहेगी, पर जागेश्वरी इस पर राजी न हुई। बाज़ी पलट चुकी थी। दयानाथ ने गर्म होकर कहा--तुम्हें क्या, तुम तो घर में बैठी रहोगी। मौत तो मेरी होगी, जब उधार के लोग नाकभौं सिकोड़ने लगेंगे।
जागेश्वरी--दोगे कहां से, कुछ सोचा है?
दयानाथ--कम-से-कम एक हज़ार तो वहां मिल ही जाएंगे।
जागेश्वरी--खून मुंह लग गया क्या?
दयानाथ ने शरमाकर कहा--नहीं-नहीं, मगर आखिर वहां भी तो कुछ मिलेगा?
जागेश्वरी--वहां मिलेगा, तो वहां खर्च भी होगा। नाम जोड़े गहने से नहीं होता, दान-दक्षिणा से होता है। इस तरह चन्द्रहार का प्रस्ताव रद्द हो गया।
मगर दयानाथ दिखावे और नुमाइश को चाहे अनावश्यक समझें, रमानाथ उसे परमावश्यक समझता था। बरात ऐसे धूम से जानी चाहिए कि गांव-भर में शोर मच जाय। पहले दूल्हे के लिए पालकी का विचार था। रमानाथ ने मोटर पर ज़ोर दिया। उसके मित्रों ने इसका अनुमोदन किया, प्रस्ताव स्वीकृत हो गया। दयानाथ एकांतप्रिय जीव थे, न किसी से मित्रता थी, न किसी से मेल-जोल। रमानाथ मिलनसार युवक था, उसके मित्र ही इस समय हर एक काम में अग्रसर हो रहे थे। वे जो काम करते, दिल खोल कर। आतिशबाजियां बनवाई, तो अव्वल दर्जे की। नाच ठीक किया, तो अव्वल दर्जे का; बाजे-गाजे भी अव्वल दर्जे के, दोयम या सोयम का वहां ज़िक्र ही न था। दयानाथ उसकी उच्छृंखलता देखकर चिंतित तो हो जाते थे पर कुछ कह न सकते थे। क्या कहते!
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