नागार्जुन: Difference between revisions

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Revision as of 13:44, 14 October 2011

thumb|250px|नागार्जुन
Nagarjun
नागार्जुन (जन्म- 30 जून, 1911, दरभंगा ज़िला, बिहार, - मृत्यु- 5 नवंबर, 1998, दरभंगा ज़िला, बिहार) प्रगतिवादी विचारधारा के लेखक और कवि हैं। नागार्जुन ने 1945 ई. के आसपास साहित्य सेवा के क्षेत्र में क़दम रखा।

जीवन परिचय

शून्यवाद के रूप में नागार्जुन का नाम विशेष उल्लेखनीय है। नागार्जुन का असली नाम वैद्यनाथ मिश्र था। हिन्दी साहित्य में उन्होंने 'नागार्जुन' तथा मैथिली में 'यात्री' उपनाम से रचनाएँ कीं।

कृतियाँ

प्रकाशित कृतियों में पहला वर्ग उपन्यासों का है।

उपन्यास

  • 'रतिनाथ की चाची' (1948 ई.)
  • 'बलचनमा' (1952 ई.)
  • 'नयी पौध' (1953 ई.)
  • 'बाबा वटेश्वरनाथ' (1954 ई.)
  • 'दुखमोचन' (1957 ई.)
  • 'वरुण के बेटे' (1957 ई.)

इन औपन्यासिक कृतियों में नागार्जुन सामाजिक समस्याओं के सधे हुए लेखक के रूप में सामने आते हैं। जनपदीय संस्कृति और लोक जीवन उनकी कथा-सृष्टि का चौड़ा फलक है। उन्होंने कहीं तो आंचलिक परिवेश में किसी ग्रामीण परिवेश के सुख-दु:ख की कहानी कही हैं, कहीं मार्क्सवादी सिद्धान्तो की झलक देते हुए सामाजिक आन्दोलनों का समर्थन किया है और कहीं-कहीं समाज में व्याप्त शोषण वृत्ति एवं धार्मिक सामाजिक कृतियों पर कुठाराघात किया है। इन सन्दर्भों में नागार्जुन की 'बाबा वटेश्वरनाथ' रचना उल्लेखनीय एवं परिपुष्ट कृति है। इसमें ज़मींदारी उन्मूलन के बाद की सामाजिक समस्याओं एवं ग्रामीण परिस्थितियों का अंकन हुआ है। और निदान रूप में समाजवादी संगठन द्वारा व्यापक संघर्ष की परिकल्पा की गई है। कथा के प्रस्तुतीकरण के लिए व्यवहृत किये जाने तक एक अभिनव रोचक शिल्प की दृष्टि से भी नागार्जुन का यह उपन्यास महत्त्वपूर्ण है।

कविता

नागार्जुन की प्रकाशित रचनाओं का दूसरा वर्ग कविताओं का है। उनकी अनेक कविताएँ पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। 'युगधारा' (1952) उनका प्रारम्भिक काव्य संकलन है। इधर की कविताओं का एक संग्रह 'सतरंगे पंखोंवाली' प्रकाशित हुआ है। कवि की हैसियत से नागार्जुन प्रगतिशील और एक हद तक प्रयोगशील भी हैं। उनकी अनेक कविताएँ प्रगति और प्रयोग के मणिकांचन संयोग के कारण इस प्रकार के सहजभावे सौंदर्य से दीप्त हो उठी हैं। आधुनिक हिन्दी कविता में शिष्टगम्भीर तथा सूक्ष्म चुटीले व्यंग्य की दृष्टि से भी नागार्जुन की कुछ रचनाएँ अपनी एक अलग पहचान रखती हैं। इन्होंने कहीं-कहीं सरस मार्मिक प्रकृति चित्रण भी किया है।

भाषा

नागार्जुन की भाषा लोक भाषा के निकट है। कुछ कविताओं में संस्कृत के क्लिष्ट-तत्सम शब्दों का प्रयोग अधिक मात्रा में किया गया है। किन्तु अधिकतर कविताओं और उपन्यासों की भाषा सरल है। तदभव तथा ग्रामीण शब्दों के प्रयोग के कारण इसमें एक विचित्र प्रकार की मिठास आ गई है।

शैली

नागार्जुन की शैलीगत विशेषता भी यही है। वे लोकमुख की वाणी बोलना चाहते हैं।

मृत्यु

नागार्जुन की मृत्यु 5 नवंबर, 1998 ई. को ख्वाजा सराय, दरभंगा, बिहार, भारत में हुई थी।


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