Difference between revisions of "राजेंद्र यादव"

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'''राजेंद्र यादव''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Rajendra Yadav'') [[हिन्दी साहित्य]] की सुप्रसिद्ध पत्रिका हंस के सम्पादक और लोकप्रिय उपन्यासकार है। [[28 अगस्त]] [[1929]] को [[आगरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में जन्मे राजेंद्र यादव ने [[1951]] ई. में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. [[हिन्दी]] की परीक्षा प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की।
 
'''राजेंद्र यादव''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Rajendra Yadav'') [[हिन्दी साहित्य]] की सुप्रसिद्ध पत्रिका हंस के सम्पादक और लोकप्रिय उपन्यासकार है। [[28 अगस्त]] [[1929]] को [[आगरा]], [[उत्तर प्रदेश]] में जन्मे राजेंद्र यादव ने [[1951]] ई. में आगरा विश्वविद्यालय से एम.ए. [[हिन्दी]] की परीक्षा प्रथम श्रेणी, प्रथम स्थान के साथ उत्तीर्ण की।
 
==द ग्रेट शो मैन==
 
==द ग्रेट शो मैन==
[[हिंदी]] पत्रिका ‘हंस‘ के 25 साल और हिन्दी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन‘ राजेंद्र यादव यदि [[भारत]] में आज हिन्दी साहित्य जगत की लब्धप्रतिष्ठित पत्रिकाओं का नाम लिया जाये तो उनमें शीर्ष पर है-हंस और यदि मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाय तो सर्वप्रथम राजेंद्र यादव का नाम सामने आता है। साहित्य सम्राट [[प्रेमचंद]] की विरासत व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थे, तब राजेंद्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा [[1930]] में प्रकाशित [[पत्रिका]] ‘हंस’ का पुर्नप्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। अपने 25 साल पूरे कर चुकी यह पत्रिका अपने अन्दर [[कहानी]], [[कविता]], लेख, [[संस्मरण]], समीक्षा, लघुकथा, [[ग़ज़ल]] इत्यादि सभी विधाओं को उत्कृष्टता के साथ समेटे हुए है। ‘‘मेरी-तेरी उसकी बात‘‘ के तहत प्रस्तुत राजेंद्र यादव की सम्पादकीय सदैव एक नये विमर्श को खड़ा करती नज़र आती है। यह अकेली ऐसी पत्रिका है जिसके सम्पादकीय पर तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं किसी न किसी रूप में बहस करती नजर आती हैं। समकालीन सृजन संदर्भ के अन्तर्गत भारत भारद्वाज द्वारा तमाम चर्चित पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं पर चर्चा, मुख्तसर के अन्तर्गत साहित्य-समाचार तो बात बोलेगी के अन्तर्गत कार्यकारी संपादक संजीव के शब्द पत्रिका को धार देते हैं। [[साहित्य]] में अनामंत्रित एवं जिन्होंने मुझे बिगाड़ा जैसे स्तम्भ पत्रिका को और भी लोकप्रियता प्रदान करते है। कविता से लेखन की शुरूआत करने वाले हंस के सम्पादक राजेंद्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामन्ती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में है। निश्चिततः यह तत्व हंस पत्रिका में भी उभरकर सामने आता है। आज भी ‘हंस’ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है। न जाने कितनी प्रतिभाओं को इस पत्रिका ने पहचाना, तराशा और सितारा बना दिया, तभी तो इसके संपादक राजेंद्र यादव को हिन्दी साहित्य का ‘द ग्रेट शो मैन‘ कहा जाता है। निश्चिततः साहित्यिक क्षेत्र में हंस एवं इसके विलक्षण संपादक राजेंद्र यादव का योगदान अप्रतिम है।   
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[[हिंदी]] पत्रिका ‘हंस‘ के 25 साल और हिन्दी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन‘ राजेंद्र यादव यदि [[भारत]] में आज हिन्दी साहित्य जगत की लब्धप्रतिष्ठित पत्रिकाओं का नाम लिया जाये तो उनमें शीर्ष पर है-हंस और यदि मूर्धन्य विद्वानों का नाम लिया जाय तो सर्वप्रथम राजेंद्र यादव का नाम सामने आता है। साहित्य सम्राट [[प्रेमचंद]] की विरासत व मूल्यों को जब लोग भुला रहे थे, तब राजेंद्र यादव ने प्रेमचंद द्वारा [[1930]] में प्रकाशित [[पत्रिका]] ‘हंस’ का पुर्नप्रकाशन आरम्भ करके साहित्यिक मूल्यों को एक नई दिशा दी। अपने 25 साल पूरे कर चुकी यह पत्रिका अपने अन्दर [[कहानी]], [[कविता]], लेख, [[संस्मरण]], समीक्षा, लघुकथा, [[ग़ज़ल]] इत्यादि सभी विधाओं को उत्कृष्टता के साथ समेटे हुए है। ‘‘मेरी-तेरी उसकी बात‘‘ के तहत प्रस्तुत राजेंद्र यादव की सम्पादकीय सदैव एक नये विमर्श को खड़ा करती नज़र आती है। यह अकेली ऐसी पत्रिका है जिसके सम्पादकीय पर तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं किसी न किसी रूप में बहस करती नजर आती हैं। समकालीन सृजन संदर्भ के अन्तर्गत भारत भारद्वाज द्वारा तमाम चर्चित पुस्तकों एवं पत्र-पत्रिकाओं पर चर्चा, मुख्तसर के अन्तर्गत साहित्य-समाचार तो बात बोलेगी के अन्तर्गत कार्यकारी संपादक संजीव के शब्द पत्रिका को धार देते हैं। [[साहित्य]] में अनामंत्रित एवं जिन्होंने मुझे बिगाड़ा जैसे स्तम्भ पत्रिका को और भी लोकप्रियता प्रदान करते है। कविता से लेखन की शुरूआत करने वाले हंस के सम्पादक राजेंद्र यादव ने बड़ी बेबाकी से सामन्ती मूल्यों पर प्रहार किया और दलित व नारी विमर्श को हिन्दी साहित्य जगत में चर्चा का मुख्य विषय बनाने का श्रेय भी उनके खाते में है। निश्चिततः यह तत्व हंस पत्रिका में भी उभरकर सामने आता है। आज भी ‘हंस’ पत्रिका में छपना बड़े-बड़े साहित्यकारों की दिली तमन्ना रहती है। न जाने कितनी प्रतिभाओं को इस पत्रिका ने पहचाना, तराशा और सितारा बना दिया, तभी तो इसके संपादक राजेंद्र यादव को हिन्दी साहित्य का ‘द ग्रेट शो मैन‘ कहा जाता है। निश्चिततः साहित्यिक क्षेत्र में हंस एवं इसके विलक्षण संपादक राजेंद्र यादव का योगदान अप्रतिम है।<ref>{{cite web |url=http://yadukul.blogspot.in/2011/08/25.html |title= ‘हंस‘ के 25 साल और हिन्दी साहित्य के ‘द ग्रेट शो मैन‘ राजेन्द्र यादव|accessmonthday=9 सितम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= यदुकुल|language=हिंदी }}  </ref>
  
  

Revision as of 14:13, 9 September 2013

thumb|rajeandr yadav rajeandr yadav (aangrezi:Rajendra Yadav) hindi sahity ki suprasiddh patrika hans ke sampadak aur lokapriy upanyasakar hai. 28 agast 1929 ko agara, uttar pradesh mean janme rajeandr yadav ne 1951 ee. mean agara vishvavidyalay se em.e. hindi ki pariksha pratham shreni, pratham sthan ke sath uttirn ki.

d gret sho main

hiandi patrika ‘hans‘ ke 25 sal aur hindi sahity ke ‘d gret sho main‘ rajeandr yadav yadi bharat mean aj hindi sahity jagat ki labdhapratishthit patrikaoan ka nam liya jaye to unamean shirsh par hai-hans aur yadi moordhany vidvanoan ka nam liya jay to sarvapratham rajeandr yadav ka nam samane ata hai. sahity samrat premachand ki virasat v moolyoan ko jab log bhula rahe the, tab rajeandr yadav ne premachand dvara 1930 mean prakashit patrika ‘hans’ ka purnaprakashan arambh karake sahityik moolyoan ko ek nee disha di. apane 25 sal poore kar chuki yah patrika apane andar kahani, kavita, lekh, sansmaran, samiksha, laghukatha, gazal ityadi sabhi vidhaoan ko utkrishtata ke sath samete hue hai. ‘‘meri-teri usaki bat‘‘ ke tahat prastut rajeandr yadav ki sampadakiy sadaiv ek naye vimarsh ko kh da karati nazar ati hai. yah akeli aisi patrika hai jisake sampadakiy par tamam pratishthit patr-patrikaean kisi n kisi roop mean bahas karati najar ati haian. samakalin srijan sandarbh ke antargat bharat bharadvaj dvara tamam charchit pustakoan evan patr-patrikaoan par charcha, mukhtasar ke antargat sahity-samachar to bat bolegi ke antargat karyakari sanpadak sanjiv ke shabd patrika ko dhar dete haian. sahity mean anamantrit evan jinhoanne mujhe biga da jaise stambh patrika ko aur bhi lokapriyata pradan karate hai. kavita se lekhan ki shurooat karane vale hans ke sampadak rajeandr yadav ne b di bebaki se samanti moolyoan par prahar kiya aur dalit v nari vimarsh ko hindi sahity jagat mean charcha ka mukhy vishay banane ka shrey bhi unake khate mean hai. nishchitatah yah tatv hans patrika mean bhi ubharakar samane ata hai. aj bhi ‘hans’ patrika mean chhapana b de-b de sahityakaroan ki dili tamanna rahati hai. n jane kitani pratibhaoan ko is patrika ne pahachana, tarasha aur sitara bana diya, tabhi to isake sanpadak rajeandr yadav ko hindi sahity ka ‘d gret sho main‘ kaha jata hai. nishchitatah sahityik kshetr mean hans evan isake vilakshan sanpadak rajeandr yadav ka yogadan apratim hai.[1]



panne ki pragati avastha
adhar
prarambhik
madhyamik
poornata
shodh

tika tippani aur sandarbh

  1. ‘hans‘ ke 25 sal aur hindi sahity ke ‘d gret sho main‘ rajendr yadav (hiandi) yadukul. abhigaman tithi: 9 sitambar, 2013.

bahari k diyaan

sanbandhit lekh

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