अमृता प्रीतम: Difference between revisions

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अमृता प्रीतम
पूरा नाम अमृता प्रीतम
जन्म 31 अगस्त, 1919
जन्म भूमि गुजरांवाला, पंजाब (पाकिस्तान)
मृत्यु 31 अक्टूबर, 2005
मृत्यु स्थान दिल्ली
कर्म-क्षेत्र साहित्य
मुख्य रचनाएँ काग़ज़ ते कैनवास (ज्ञानपीठ पुरस्कार), रसीदी टिकट, पिंजर आदि।
भाषा पंजाबी, हिन्दी
पुरस्कार-उपाधि पद्म विभूषण (2004), पद्मश्री (1969), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956), भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)
प्रसिद्धि कवयित्री, उपन्यासकार, लेखिका
नागरिकता भारतीय
अद्यतन‎ 18:26, 25 मार्च 2011 (IST)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
  • अमृता प्रीतम (जन्म- 31 अगस्त, 1919 पंजाब (पाकिस्तान) – मृत्यु- 31 अक्टूबर, 2005 दिल्ली) प्रसिद्ध कवयित्री, उपन्यासकार और निबंधकार थीं जिन्हें 20वीं सदी की पंजाबी भाषा की सर्वश्रेष्ठ कवयित्री माना जाता है।
  • इनकी लोकप्रियता सीमा पार पाकिस्तान में भी बराबर है। इन्होंने पंजाबी जगत में छ: दशकों तक राज किया।
  • अमृता प्रीतम ने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा 'रसीदी टिकट' भी शामिल है।
  • अमृता प्रीतम उन साहित्यकारों में थीं जिनकी कृतियों का अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। अपने अंतिम दिनों में अमृता प्रीतम को भारत का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान पद्म विभूषण भी प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से पहले ही अलंकृत किया जा चुका था।

जन्म और बचपन

अमृता प्रीतम का जन्म 1919 में गुजरांवाला (पंजाब- पाकिस्तान) मे हुआ था। बचपन लाहौर में बीता और शिक्षा भी वंही पर हुई। इन्होंने शुरूआत की पंजाबी लेखन से और किशोरावस्था से ही कविता, कहानी और निबंध लिखना शुरू किया। अमृता जी 11 साल की थी तभी इनकी माताजी का इन्तकाल हो गया, इसलिये घर की जिम्मेदारी भी इनके कंधो पर आ गयी। ये उन विरले साहित्यकारों में से है जिनका पहला संकलन 16 साल की उमर में प्रकाशित हुआ। फ़िर आया 1947 का विभाजन का दौर, इन्होने विभाजन का दर्द सहा था, और इसे बहुत क़रीब से महसूस किया था, इनकी कई कहानियों में आप इस दर्द को स्वयं महसूस कर सकते हैं। विभाजन के समय इनका परिवार दिल्ली मे आ बसा। अब इन्होंने पंजाबी के साथ साथ हिन्दी में भी लिखना शुरू किया। इनका विवाह 16 साल की उम्र में ही एक संपादक से हुआ, ये रिश्ता बचपन में ही मां बाप ने तय कर दिया था। यह वैवाहिक जीवन भी 1960 में, तलाक के साथ टूट गया।[1]

कृतियाँ

1960 में अपने पति से तलाक के बाद, इनकी रचनाओं मे महिला पात्रों की पीड़ा और वैवाहिक जीवन के कटु अनुभवों का अहसास को महसूस किया जा सकता है। विभाजन की पीड़ा को लेकर इनके उपन्यास पिंजर पर एक फ़िल्म भी बनी थी, जो अच्छी खासी चर्चा मे रही। इन्होंने लगभग 100 पुस्तकें लिखीं और इनकी काफ़ी रचनाएं विदेशी भाषाओं मे भी अनुवादित हुई।

कहानी संग्रह

  • सत्रह कहानियाँ
  • सात सौ बीस कदम
  • 10 प्रतिनिधि कहानियाँ
  • चूहे और आदमी में फ़र्क़
  • दो खिड़कियाँ
  • ये कहानियाँ जो कहानियाँ नहीं हैं

उपन्यास

  • कैली कामिनी और अनीता
  • यह कलम यह काग़ज़ यह अक्षर
  • ना राधा ना रुक्मणी
  • जलते बुझते लोग
  • जलावतन
  • पिंजर

आत्मकथा

  • अक्षरों के साये
  • रसीदी टिकट

संस्मरण

  • कच्चा आँगन
  • एक थी सारा

कविता संग्रह

  • अमृत लहरें (1936)
  • जिन्दा जियां (1939)
  • ट्रेल धोते फूल (1942)
  • ओ गीता वालियां (1942)
  • बदलम दी लाली (1943)
  • लोक पिगर (1944)
  • पगथर गीत (1946)
  • पंजाबी दी आवाज(1952)
  • सुनहरे (1955)
  • अशोका चेती (1957)
  • कस्तूरी (1957)
  • नागमणि (1964)
  • इक सी अनीता (1964)
  • चक नाबर छ्त्ती (1964)
  • उनीझा दिन (1979)[1]

सम्मान और पुरस्कार

thumb|250px|अमृता प्रीतम अमृता जी को कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कारों से भी नवाजा गया, जिनमें प्रमुख हैं 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1958 में पंजाब सरकार के भाषा विभाग द्वारा पुरस्कार, 1988 में बल्गारिया वैरोव पुरस्कार; (अन्तर्राष्ट्रीय) और 1982 में भारत के सर्वोच्च साहित्त्यिक पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार। वे पहली महिला थी जिन्हे साहित्य अकादमी अवार्ड मिला और साथ ही साथ वे पहली पंजाबी महिला थी जिन्हें 1969 में पद्मश्री अवार्ड से नवाजा गया।[1]

  • साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956)
  • पद्मश्री (1969)
  • डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर (दिल्ली यूनिवर्सिटी- 1973)
  • डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर (जबलपुर यूनिवर्सिटी- 1973)
  • बल्गारिया वैरोव पुरस्कार (बुल्गारिया – 1988)
  • भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1982)
  • डॉक्टर ऑफ़ लिटरेचर (विश्व भारती शांतिनिकेतन- 1987)
  • फ़्रांस सरकार द्वारा सम्मान (1987)
  • पद्म विभूषण (2004)

निधन

अमृता प्रीतम ने लम्बी बीमारी के बाद 31 अक्टूबर, 2005 को अपने प्राण त्यागे। वे 86 साल की थीं, और दक्षिणी दिल्ली के हौज ख़ास इलाके में रहती थीं। अब वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी कवितायें, कहानिया, नज्में और संस्मरण सदैव ही हमारे बीच रहेंगे। अमृता प्रीतम जैसे साहित्याकार रोज रोज पैदा नहीं होते, उनके जाने से एक युग का अन्त हुआ है। अब वे हमारे बीच नहीं है लेकिन उनका साहित्य हमेशा हम सब के बीच मे जिन्दा रहेगा और हमारा मार्गदर्शन करता रहेगा।[1]


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 अमृता प्रीतम: एक युग का अंत (हिन्दी) (पी.एच.पी) मेरा पन्ना। अभिगमन तिथि: 25 मार्च, 2011

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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