गुरुजाडा अप्पाराव: Difference between revisions
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* वीरेशिलिंगम के प्रयत्नों से समाज सुधार की जो लहर पैदा हुई थी उसको आगे बढाने में अप्पाराव ने भी योग दिया। | * वीरेशिलिंगम के प्रयत्नों से समाज सुधार की जो लहर पैदा हुई थी उसको आगे बढाने में अप्पाराव ने भी योग दिया। | ||
==रचनाएँ== | |||
गुरुजाडा अप्पाराव की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं- | |||
#सारंगधर | |||
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#नीलगिरि पाटलु | |||
#मुत्याल सरालु | |||
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#संस्कर्त हृदयं | |||
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Latest revision as of 05:53, 30 September 2017
गुरुजाडा अप्पाराव
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पूरा नाम | गुरुजाडा अप्पाराव |
जन्म | 30 सितम्बर, 1861 |
जन्म भूमि | विशाखापत्तनम, आंध्र प्रदेश |
मृत्यु | 30 नवम्बर, 1915 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | कवि, नाटककार, कहानीकार |
भाषा | तेलुगु |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | कविता के साथ साथ गुरुजाडा अप्पाराव ने नाटकों, कहानियों और आलोचनाओं की भी रचना की। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
गुरुजाडा अप्पाराव (अंग्रेजी: Gurajada Apparao, जन्म: 30 सितम्बर, 1861 - मृत्यु: 30 नवम्बर, 1915) आधुनिक तेलुगु भाषा के प्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि थे।
संक्षिप्त परिचय
- अप्पाराव आन्ध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम क्षेत्र में एक विद्वान् परिवार में पैदा हुए थे।
- उनके पिता वेंकटरामदास संस्कृत और तेलुगु के विद्वान् और वेदांत तथा ज्योतिष के ज्ञाता थे।
- इनकी आरंभिक शिक्षा घर पर ही हुई। विद्यालय में संस्कृत और दर्शन उनके प्रिय विषय थे।
- उन्होंने कुछ समय तक अध्यापक रहने के बाद विजयनगर रियासत में नौकरी की। यहां इनको इतिहास पर शोध करने का अवसर मिला और उन्होंने 'कलिंग का इतिहास' नामक ग्रंथ की रचना की।
- गुरुजाडा अप्पाराव राष्ट्रीय भावनाओं से ओत प्रोत बड़े ओजस्वी कवि थे। उनकी कविताओं के अनेक संग्रह प्रकाशित हुए। उन्होंने जाति भेद ,वर्ण भेद, आदि का विरोध किया।
- धर्म के ब्रह्माचार और मूर्ति पूजा में उनका विश्वास नहीं था।
- कविता के साथ साथ उन्होंने नाटकों, कहानियों और आलोचनाओं की भी रचना की।
- वे अपनी रचनाओं में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग करते थे।
- वीरेशिलिंगम के प्रयत्नों से समाज सुधार की जो लहर पैदा हुई थी उसको आगे बढाने में अप्पाराव ने भी योग दिया।
रचनाएँ
गुरुजाडा अप्पाराव की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं-
- सारंगधर
- पूर्णम्म
- कॊंडुभट्टीयं
- नीलगिरि पाटलु
- मुत्याल सरालु
- कन्यक
- सत्यव्रति शतकमु
- बिल्हणीयं (असंपूर्णं)
- सुभद्र
- लंगरॆत्तुमु
- दिंचुलंगरु
- लवणराजु कल
- कासुलु
- सौदामिनि
- कथानिकलु
- मीपेरेमिटि
- दिद्दुबाटु
- मॆटिल्डा
- संस्कर्त हृदयं
- मतमु विमतमु
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
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