मेहरगढ़: Difference between revisions
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'''मेहरगढ़''' उस स्थान पर स्थित है, जहाँ [[सिंधु नदी]] के कछारी मैदान और वर्तमान [[पाकिस्तान]] और [[ईरान]] के सीमांत प्रदेश के पठार मिलते हैं। इस प्रकार मेहरगढ़ पाक़िस्तान के [[बलूचिस्तान]] प्रांत में '[[बोलन दर्रा|बोलन दर्रे]]' के निकट स्थित है। यहाँ से कृषक समुदाय के उद्भव के भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे प्राचीन प्रमाण प्राप्त हुए हैं। यह स्थान अस्थायी मानव आवास के रूप प्रयुक्त हुआ था तथा सम्भवत: सातवीं सहस्त्राब्दी ई.पू. में यहाँ एक मानव बस्ती अस्तित्व में आ गयी थी। | |||
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पाषाण युग- 70000 से 3300 ई.पू | |
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मेहरगढ़ संस्कृति | 7000-3300 ई.पू |
सिन्धु घाटी सभ्यता- 3300-1700 ई.पू | |
हड़प्पा संस्कृति | 1700-1300 ई.पू |
वैदिक काल- 1500–500 ई.पू | |
प्राचीन भारत - 1200 ई.पू–240 ई. | |
महाजनपद | 700–300 ई.पू |
मगध साम्राज्य | 545–320 ई.पू |
सातवाहन साम्राज्य | 230 ई.पू-199 ई. |
मौर्य साम्राज्य | 321–184 ई.पू |
शुंग साम्राज्य | 184–123 ई.पू |
शक साम्राज्य | 123 ई.पू–200 ई. |
कुषाण साम्राज्य | 60–240 ई. |
पूर्व मध्यकालीन भारत- 240 ई.पू– 800 ई. | |
चोल साम्राज्य | 250 ई.पू- 1070 ई. |
गुप्त साम्राज्य | 280–550 ई. |
पाल साम्राज्य | 750–1174 ई. |
प्रतिहार साम्राज्य | 830–963 ई. |
राजपूत काल | 900–1162 ई. |
मध्यकालीन भारत- 500 ई.– 1761 ई. | |
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आधुनिक भारत- 1762–1947 ई. | |
मराठा साम्राज्य | 1674-1818 ई. |
सिख राज्यसंघ | 1716-1849 ई. |
औपनिवेश काल | 1760-1947 ई. |
मेहरगढ़ उस स्थान पर स्थित है, जहाँ सिंधु नदी के कछारी मैदान और वर्तमान पाकिस्तान और ईरान के सीमांत प्रदेश के पठार मिलते हैं। इस प्रकार मेहरगढ़ पाक़िस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 'बोलन दर्रे' के निकट स्थित है। यहाँ से कृषक समुदाय के उद्भव के भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे प्राचीन प्रमाण प्राप्त हुए हैं। यह स्थान अस्थायी मानव आवास के रूप प्रयुक्त हुआ था तथा सम्भवत: सातवीं सहस्त्राब्दी ई.पू. में यहाँ एक मानव बस्ती अस्तित्व में आ गयी थी।
- फसल
इस स्थान पर लोग गेहूँ, जौ, एवं खजूर पैदा करते थे और भेड़, बकरियाँ तथा मवेशी पालते थे। यहाँ के लोग कच्चे मकानों में रहते थे।
कालांतर में यहाँ, हडप्पा के शहरीकरण के पूर्ववर्ती काल में, मेहरगढ़ के निवासियों ने एक समय उपनगर बसाया था। वे पत्थरों की कई प्रकार की मालाएँ बनाते थे। वे एक कीमती पत्थर 'लाजवर्द मणि' का प्रयोग करते थे, जो केवल मध्य एशिया के बदख़्शां में पाया जाता है। बहुत सी मोहरों एवं ठप्पों का भी पता चला है। मिट्टी के बर्तनों के डिज़ायनों, मिट्टी की बनी मूर्तियों, तांबे और पत्थर की वस्तुओं से पता चलता है कि इन लोगों का ईरान के निकटवर्ती नगरों के साथ घनिष्ट सम्बंध था।
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