राय कृष्णदास: Difference between revisions

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राय कृष्णदास का उपनाम 'स्नेही' था। राय कृष्णदास का जन्म सन् 1892 ई. को वाराणसी में हुआ। बचपन में ही पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा का क्रम टूट गया। उन्होंने घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी और बंगला भाषा का अध्ययन किया। वाराणसी के तत्कालीन साहित्यिक वातावरण और जयशंकर प्रसाद, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त आदि के सम्पर्क में आने के बाद उनमें साहित्यिक रुचि का विकास हुआ।  
राय कृष्णदास का उपनाम 'स्नेही' था। राय कृष्णदास का जन्म सन् 1892 ई. को वाराणसी में हुआ। बचपन में ही पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा का क्रम टूट गया। उन्होंने घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी और बंगला भाषा का अध्ययन किया। वाराणसी के तत्कालीन साहित्यिक वातावरण और जयशंकर प्रसाद, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त आदि के सम्पर्क में आने के बाद उनमें साहित्यिक रुचि का विकास हुआ।  
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Revision as of 13:38, 11 January 2014

राय कृष्णदास
पूरा नाम राय कृष्णदास
अन्य नाम स्नेही
जन्म 13 नवंबर, 1892
जन्म भूमि वाराणसी, भारत
मृत्यु 1985
मृत्यु स्थान भारत
कर्म-क्षेत्र लेखक, गद्य गीतकार, कहानीकार
मुख्य रचनाएँ 'साधना' 1919 ई., 'अनाख्या' 1929 ई., 'सुधांशु' 1929 ई., 'प्रवाल'
विषय कहानी, पुस्तक, गद्य गीत
पुरस्कार-उपाधि पद्मविभूषण
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

राय कृष्णदास (जन्म- 13 नवंबर, 1892, वाराणसी; मृत्यु- 1985) कहानी सम्राट प्रेमचन्द के समकालीन कहानीकार और गद्य गीत लेखक थे। इन्होंने 'भारत कला भवन' की स्थापना की थी, जिसे वर्ष 1950 में 'काशी हिन्दू विश्वविद्यालय' को दे दिया गया था। आज 'भारत कला भवन' शोधार्थियों के लिए किसी तीर्थ स्थल से कम नहीं है। राय कृष्णदास को 'साहित्य वाचस्पति पुरस्कार' तथा 'भारत सरकार' द्वारा '[पद्म विभूषण]]' की उपाधि मिली थी।

जीवन परिचय

राय कृष्णदास का उपनाम 'स्नेही' था। राय कृष्णदास का जन्म सन् 1892 ई. को वाराणसी में हुआ। बचपन में ही पिता का स्वर्गवास हो जाने के कारण उनकी औपचारिक शिक्षा का क्रम टूट गया। उन्होंने घर पर ही हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेज़ी और बंगला भाषा का अध्ययन किया। वाराणसी के तत्कालीन साहित्यिक वातावरण और जयशंकर प्रसाद, रामचन्द्र शुक्ल, मैथिलीशरण गुप्त आदि के सम्पर्क में आने के बाद उनमें साहित्यिक रुचि का विकास हुआ।

साहित्यिक परिचय

राय साहब ने कविता, निबन्ध, गद्यगीत, कहानी, कला, इतिहास आदि सभी विषयों पर ग्रन्थों की रचना की। उनका बहुत बड़ा योगदान चित्रकला और मूर्तिकला के क्षेत्र में है। उनकी लिखित ‘भारत की चित्रकला’ और ‘भारतीय मूर्तिकला’ अपने विषय के मौलिक ग्रन्थ हैं। उन्होंने अपने निजी व्यय से एक उच्चकोटि के कला भवन का निर्माण किया। यह चित्रकला और मूर्तिकला आदि का अपने ढंग का एक विशाल संग्रहालय है। अब यह काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का एक विभाग है और प्राचीन भारतीय कला संस्कृत के अध्ययन का प्रमुख केन्द्र है। इनकी चित्रकला, मूर्तिकला एवं पुरातत्त्व में विशेष रुचि थी। यह ललित कला अकादमी के सदस्य थे। ये राजा पटनीमल के वंशज थे। 'राय की उपाधि इनकी आनुवंशिक थी जो मुग़ल दरबार से मिली थी। यह बनारस के मान्य परिवार के हैं। यह प्रसाद जी के घनिष्ठ मित्रों में से एक हैं। राय कृष्णदास भारती भण्डार (साहित्य प्रकाशन संस्थान) और 'भारतीय कला भवन' के संस्थापक थे। राय कृष्णदास की कहानियों में भारतीय जीवन के सामाजिक व्यंग्य एवं सरसता दोनों समान रूप से वर्तमान हैं। भावुक लेखक होने के नाते शिल्प के कथ्य और कलात्मक रचना की अपेक्षा आदर्श और यथार्थ के संघर्ष की अच्छी झाँकियाँ वर्तमान हैं। इनकी भाषा प्राजंल और अनुभूति नितान्त रागात्मक, दृष्टि मूलत: आदर्शवादी है। इसीलिए गद्य गीतों में भावुकता इनकी शैली की एक सजीव एवं सप्राण प्रतीक बन गयी है। छायावादी रागात्मकता इनके गद्य गीतों की जान है। मानवीय भावनाओं को भावुक एवं कोमल पक्ष इनकी रचनाओं में विशेष रूप से चित्रित हुआ है। गद्य गीतकारों में माखनलाल चतुर्वेदी और रावी के साथ यदि किसी का भी नाम लिया जा सकता है, तो वह हैं राय कृष्णदास।

कला प्रेमी

इन साहित्यिक रुचियों के अतिरिक्त शोधपरक कार्यों के लिए मूल रचनाओं की प्रमाणिक हस्त प्रतियाँ प्राप्त करना, नये लेखकों की मूल पाण्डुलिपियों का संग्रह करना, प्राचीन चित्र और मूर्तियों को संचित करना, पुरानी विभिन्न भारतीय शैलियों के चित्रों को संग्रहीत करना राय साहब की विशेष रुचि है।

  • 'भारत की चित्रकला' (1939 ई.),
  • 'भारतीय मूर्तिकला' (1939 ई.)

यह इनके मौलिक ग्रन्थों में से हैं। राय कृष्णदास के इस अध्ययन और योजना के कारण आज, 'भारतीय कला भवन' का एक ऐतिहासिक महत्त्व है। शायद यही कारण है कि इधर राय साहब साहित्यिक रचनाओं की अपेक्षा भारतीय चित्रों और मूर्तियों को पहचानने, काल निर्धारित करने में अधिक समय देने लगे थे।

रचनाएँ

राय कृष्णदास की महत्त्वपूर्ण रचनाओं में से 'साधना' कहानी संग्रह (1919 ई.), 'अनाख्या' (1929 ई.), 'सुधांशु' (1929 ई.) मुख्य हैं। 'प्रवाल' गद्य गीतों का संग्रह है, जो 1929 ई. में प्रकाशित हुआ। भारतीय चित्रकला और मूर्तिकला पर वैसे तो पाश्चात्य विद्वानों ने बहुत कुछ लिखा है, किन्तु हिन्दी में विशेष अभिरुचि और विश्लेषण के साथ राय कृष्णदास की पुस्तकों ने हिन्दी साहित्य को सर्वांगपूर्ण बनाने में सहायता दी है।

पुरस्कार

राय कृष्णदास को भारत सरकार ने पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।

मृत्यु

राय कृष्णदास जी की मृत्यु सन् 1985 ई. में हुई थी।


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