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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[रसखान]]'''</div>
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<div id="rollnone"> [[चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-21.jpg|right|150px|सूरदास, सूर कुटी, आगरा|link=सूरदास]] </div>
*हिन्दी साहित्य में कृष्ण भक्त तथा रीतिकालीन कवियों में रसखान का महत्त्वपूर्ण स्थान है। 'रसखान' को रस की ख़ान कहा जाता है।  
*सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी में [[मथुरा]]-[[आगरा]] मार्ग पर स्थित [[रुनकता]] नामक गांव में हुआ था। आचार्य [[रामचन्द्र शुक्ल]] जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत 1540 विक्रम के सन्निकट और मृत्यु संवत 1620 विक्रम के आसपास मानी जाती है।
*'''सैय्यद इब्राहीम रसखान''' का जन्म उपलब्ध स्रोतों के अनुसार सन 1533 से 1558 के बीच हैं। जो लगभग मुग़ल सम्राट [[अकबर]] के समकालीन हैं।
*[[हिन्दी]] साहित्य के [[भक्तिकाल]] में '''कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों''' में महाकवि सूरदास का नाम सर्वोपरि है।  
*रसखान का जन्मस्थान 'पिहानी' कुछ लोगों के मतानुसार [[दिल्ली]] के समीप है। कुछ और लोगों के मतानुसार यह 'पिहानी' [[उत्तरप्रदेश]] के 'हरदोई ज़िले' में है।
*सूरदास जी '''वात्सल्य [[रस]] के सम्राट''' माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।
*रसखान पहले [[मुसलमान]] थे। बाद में वैष्णव होकर [[ब्रज]] में रहने लगे थे। इसका वर्णन '[[भक्तमाल]]' में है।
*'''सूरदास जी के पिता श्री रामदास''' गायक थे। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट श्री [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए।
*रसखान के काव्य में छ: स्थायी भावों की निबंधना मिलती है- रति, निर्वेद, उत्साह, हास, वात्सल्य और भक्ति।
*सूरदास जी [[अष्टछाप]] कवियों में एक थे। सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं- '''[[सूरसागर]], सूरसारावली, [[साहित्य-लहरी]], नल-दमयन्ती और ब्याहलो'''
*रसखान की भाषा की विशेषता उसकी स्वाभाविकता है। उन्होंने [[ब्रजभाषा]] के साथ खिलवाड़ न कर उसके मधुर, सहज एवं स्वाभाविक रूप को अपनाया।
*[[धर्म]], [[साहित्य]] और [[संगीत]] के सन्दर्भ में महाकवि सूरदास का स्थान न केवल [[हिन्दी भाषा]] क्षेत्र, बल्कि सम्पूर्ण [[भारत]] में मध्ययुग की महान विभूतियों में अग्रगण्य है। '''[[सूरदास|.... और पढ़ें]]'''
*रसखान की मृत्यु के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं मिलते हैं। '''[[रसखान|.... और पढ़ें]]'''
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  • हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं।
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विशेष आलेख

  • रबीन्द्रनाथ ठाकुर एक बांग्ला कवि, कहानीकार, गीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार थे। जिन्हें 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
  • रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई, 1861 कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के पुत्र के रूप में एक संपन्न बांग्ला परिवार में हुआ था।
  • उनकी स्कूल की पढ़ाई प्रतिष्ठित सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई। टैगोर ने बैरिस्टर बनने की चाहत में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया।
  • गल्पगुच्छ की तीन जिल्दों में उनकी सारी चौरासी कहानियाँ संगृहीत हैं, जिनमें से केवल दस प्रतिनिधि कहानियाँ चुनना टेढ़ी खीर है।
  • वे अपनी कहानियाँ सबुज पत्र (हरे पत्ते) में छपाते थे। आज भी पाठकों को उनकी कहानियों में 'हरे पत्ते' और 'हरे गाछ' मिल सकते हैं।
  • राष्‍ट्रगान (जन गण मन) के रचयिता टैगोर को बंगाल के ग्राम्यांचल से प्रेम था और इनमें भी पद्मा नदी उन्हें सबसे अधिक प्रिय थी।
  • वास्तव में टैगोर की कविताओं का अनुवाद लगभग असंभव है और बांग्ला समाज के सभी वर्गों में आज तक जनप्रिय उनके 2,000 से अधिक गीतों, जो 'रबींद्र संगीत' के नाम से जाने जाते हैं, पर भी यह लागू होता है। .... और पढ़ें
चयनित लेख
  • सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी में मथुरा-आगरा मार्ग पर स्थित रुनकता नामक गांव में हुआ था। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत 1540 विक्रम के सन्निकट और मृत्यु संवत 1620 विक्रम के आसपास मानी जाती है।
  • हिन्दी साहित्य के भक्तिकाल में कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों में महाकवि सूरदास का नाम सर्वोपरि है।
  • सूरदास जी वात्सल्य रस के सम्राट माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।
  • सूरदास जी के पिता श्री रामदास गायक थे। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट श्री वल्लभाचार्य से हुई और वे उनके शिष्य बन गए।
  • सूरदास जी अष्टछाप कवियों में एक थे। सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं- सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती और ब्याहलो
  • धर्म, साहित्य और संगीत के सन्दर्भ में महाकवि सूरदास का स्थान न केवल हिन्दी भाषा क्षेत्र, बल्कि सम्पूर्ण भारत में मध्ययुग की महान विभूतियों में अग्रगण्य है। .... और पढ़ें
कुछ चुने हुए लेख
साहित्य श्रेणी वृक्ष
चयनित चित्र

[[चित्र:raskhan-1.jpg|300px|रसखान की समाधि, महावन, मथुरा|center]]


संबंधित लेख

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