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<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[सूरदास]]'''</div>
<div align="center" style="color:#34341B;">'''[[रामधारी सिंह दिनकर]]'''</div>
<div id="rollnone"> [[चित्र:Surdas Surkuti Sur Sarovar Agra-21.jpg|right|150px|सूरदास, सूर कुटी, आगरा|link=सूरदास]] </div>
<div id="rollnone"> [[चित्र:Dinkar.jpg|right|150px|रामधारी सिंह दिनकर|link=रामधारी सिंह दिनकर]] </div>
*सूरदास जी का जन्म 1478 ईस्वी में [[मथुरा]]-[[आगरा]] मार्ग पर स्थित [[रुनकता]] नामक गांव में हुआ था। आचार्य [[रामचन्द्र शुक्ल]] जी के मतानुसार सूरदास का जन्म संवत 1540 विक्रम के सन्निकट और मृत्यु संवत 1620 विक्रम के आसपास मानी जाती है।
*[[हिन्दी]] के सुविख्यात कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म [[23 सितंबर]], 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर ([[बिहार]]) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था।
*[[हिन्दी]] साहित्य के [[भक्तिकाल]] में '''कृष्ण भक्ति के भक्त कवियों''' में महाकवि सूरदास का नाम सर्वोपरि है।
*रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं।
*सूरदास जी '''वात्सल्य [[रस]] के सम्राट''' माने जाते हैं। उन्होंने श्रृंगार और शान्त रसों का भी बड़ा मर्मस्पर्शी वर्णन किया है।
*दिनकर जी ने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और 1928 में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में [[इतिहास]] में बी. ए. ऑनर्स किया।
*'''सूरदास जी के पिता श्री रामदास''' गायक थे। सूरदास जी के जन्मांध होने के विषय में भी मतभेद हैं। आगरा के समीप गऊघाट पर उनकी भेंट श्री [[वल्लभाचार्य]] से हुई और वे उनके शिष्य बन गए।
*रामधारी सिंह दिनकर के कवि जीवन का आरम्भ 1935 से हुआ, जब छायावाद के कुहासे को चीरती हुई 'रेणुका' प्रकाशित हुई और हिन्दी जगत एक बिल्कुल नई शैली, नई शक्ति, नई भाषा की गूंज से भर उठा।
*सूरदास जी [[अष्टछाप]] कवियों में एक थे। सूरदास जी द्वारा लिखित पाँच ग्रन्थ बताए जाते हैं- '''[[सूरसागर]], सूरसारावली, [[साहित्य-लहरी]], नल-दमयन्ती और ब्याहलो'''।
*1952 में जब [[भारत]] की प्रथम [[संसद]] का निर्माण हुआ, तो उन्हें [[राज्यसभा]] का सदस्य चुना गया और वह [[दिल्ली]] आ गए। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे, बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया।
*[[धर्म]], [[साहित्य]] और [[संगीत]] के सन्दर्भ में महाकवि सूरदास का स्थान न केवल [[हिन्दी भाषा]] क्षेत्र, बल्कि सम्पूर्ण [[भारत]] में मध्ययुग की महान विभूतियों में अग्रगण्य है। '''[[सूरदास|.... और पढ़ें]]'''
*[[24 अप्रॅल]],1974 को दिनकर जी अपने आपको अपनी कविताओं में हमारे बीच जीवित रखकर सदा के लिये अमर हो गये। '''[[रामधारी सिंह दिनकर|.... और पढ़ें]]'''
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  • यहाँ हम भारत की विभिन्न भाषाओं के साहित्य से संबंधित जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
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  • हिन्दी साहित्य की जड़ें मध्ययुगीन भारत की ब्रजभाषा, अवधी, मैथिली और मारवाड़ी जैसी भाषाओं के साहित्य में पाई जाती हैं।
  • प्राचीन युग के लेखकों और कवियों की विशेष रुचि यात्रावर्णन तथा रोचक कहानी कहने में थी।
  • भारतकोश पर लेखों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती रहती है जो आप देख रहे वह "प्रारम्भ मात्र" ही है...
विशेष आलेख

  • कबीर भक्ति आन्दोलन के एक उच्च कोटि के कवि, समाज सुधारक एवं संत माने जाते हैं। संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे।
  • कबीरदास कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ झलकती है। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी।
  • समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि साधना के क्षेत्र में वे युग -युग के गुरु थे, उन्होंने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर साहित्य क्षेत्र में नव निर्माण किया था।
  • कबीरदास ने हिन्दू-मुसलमान का भेद मिटा कर हिन्दू-भक्तों तथा मुसलमान-फ़कीरों का सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को हृदयांगम कर लिया। कबीरदास अनपढ़ थे, इसलिए उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से बोले और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया।
  • कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं- रमैनी , सबद और साखी।
  • कबीरदास जी की भाषा सधुक्कड़ी अर्थात राजस्थानी और पंजाबी मिली खड़ी बोली है, पर ‘रमैनी’ और ‘सबद’ में गाने के पद हैं जिनमें काव्य की ब्रजभाषा और कहीं-कहीं पूरबी बोली का भी व्यवहार है। .... और पढ़ें
चयनित लेख
  • हिन्दी के सुविख्यात कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 23 सितंबर, 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था।
  • रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं।
  • दिनकर जी ने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और 1928 में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स किया।
  • रामधारी सिंह दिनकर के कवि जीवन का आरम्भ 1935 से हुआ, जब छायावाद के कुहासे को चीरती हुई 'रेणुका' प्रकाशित हुई और हिन्दी जगत एक बिल्कुल नई शैली, नई शक्ति, नई भाषा की गूंज से भर उठा।
  • 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे, बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया।
  • 24 अप्रॅल,1974 को दिनकर जी अपने आपको अपनी कविताओं में हमारे बीच जीवित रखकर सदा के लिये अमर हो गये। .... और पढ़ें
चयनित चित्र

[[चित्र:Raskhan-2.jpg|300px|रसखान के दोहे, महावन, मथुरा|center]]


कुछ लेख
साहित्य श्रेणी वृक्ष


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