विशेष आलेख
- कबीर भक्ति आन्दोलन के एक उच्च कोटि के कवि, समाज सुधारक एवं संत माने जाते हैं। संत कबीर दास हिंदी साहित्य के भक्ति काल के इकलौते ऐसे कवि हैं, जो आजीवन समाज और लोगों के बीच व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात करते रहे।
- कबीरदास कर्म प्रधान समाज के पैरोकार थे और इसकी झलक उनकी रचनाओं में साफ झलकती है। कबीर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि उनकी प्रतिभा में अबाध गति और अदम्य प्रखरता थी।
- समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने लिखा है कि साधना के क्षेत्र में वे युग -युग के गुरु थे, उन्होंने संत काव्य का पथ प्रदर्शन कर साहित्य क्षेत्र में नव निर्माण किया था।
- कबीरदास ने हिन्दू-मुसलमान का भेद मिटा कर हिन्दू-भक्तों तथा मुसलमान-फ़कीरों का सत्संग किया और दोनों की अच्छी बातों को हृदयांगम कर लिया। कबीरदास अनपढ़ थे, इसलिए उन्होंने स्वयं ग्रंथ नहीं लिखे, मुँह से बोले और उनके शिष्यों ने उसे लिख लिया।
- कबीर की वाणी का संग्रह `बीजक' के नाम से प्रसिद्ध है। इसके तीन भाग हैं- रमैनी , सबद और साखी।
- कबीरदास जी की भाषा सधुक्कड़ी अर्थात राजस्थानी और पंजाबी मिली खड़ी बोली है, पर ‘रमैनी’ और ‘सबद’ में गाने के पद हैं जिनमें काव्य की ब्रजभाषा और कहीं-कहीं पूरबी बोली का भी व्यवहार है। .... और पढ़ें
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चयनित लेख
- हिन्दी के सुविख्यात कवि रामधारी सिंह 'दिनकर' का जन्म 23 सितंबर, 1908 ई. में सिमरिया, ज़िला मुंगेर (बिहार) में एक सामान्य किसान रवि सिंह तथा उनकी पत्नी मन रूप देवी के पुत्र के रूप में हुआ था।
- रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते हैं।
- दिनकर जी ने गाँव के प्राथमिक विद्यालय से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की और 1928 में मैट्रिक के बाद दिनकर ने पटना विश्वविद्यालय से 1932 में इतिहास में बी. ए. ऑनर्स किया।
- रामधारी सिंह दिनकर के कवि जीवन का आरम्भ 1935 से हुआ, जब छायावाद के कुहासे को चीरती हुई 'रेणुका' प्रकाशित हुई और हिन्दी जगत एक बिल्कुल नई शैली, नई शक्ति, नई भाषा की गूंज से भर उठा।
- 1952 में जब भारत की प्रथम संसद का निर्माण हुआ, तो उन्हें राज्यसभा का सदस्य चुना गया और वह दिल्ली आ गए। दिनकर 12 वर्ष तक संसद-सदस्य रहे, बाद में उन्हें सन 1964 से 1965 ई. तक भागलपुर विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया गया।
- 24 अप्रॅल,1974 को दिनकर जी अपने आपको अपनी कविताओं में हमारे बीच जीवित रखकर सदा के लिये अमर हो गये। .... और पढ़ें
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चयनित चित्र
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[[चित्र:Raskhan-2.jpg|300px|रसखान के दोहे, महावन, मथुरा|center]]
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